Wednesday, 31 July 2013

मधुश्रावणी : छठम दिनक कथा

                        मधुश्रावणी : छठम दिनक कथा

                                          प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                                   गंगाक कथा
महाराज सगरकेँ दू गोट स्त्री छलथिन- वैदर्भी आ शैव्या। शैव्यासँ असमञ्जस नामक पुत्र भेलनि। वैदर्भीकेँ  सन्तान नञि छलनि। ओ सन्तानक निमित्त महादेवक तपस्या करऽ लगली। सय बरखक बाद एक गोट लोथक जन्म भेलनि। ई देखि वैदर्भी कानऽ लगली। महादेवकेँ स्मरणक करैत गोहरेलनि। महादेव पसीझि गेला आ ब्राह्मणक रूप धऽ ओतऽ एला आ ओहि लोथकेँ साठि हजार खण्ड कऽ सभकेँ एक-एक तौलामे झाँपि कऽ राखि देलनि। थोड़े दिनुक बाद ओ साठि हजार लोथक खण्ड साठि हजार सुन्दर आ बलवान पुत्रक रूपमे बदलि गेल।
महाराज सगर निनानबे गोट अश्वमेध यज्ञ पूरा कऽ सयम यज्ञ करबाक तैयारी कऽ रहल छला। देवराज इन्द्र नञि चाहै छला जे सगर केर सयम यज्ञ पूर्ण होनि। एकर कारण छल जे सयम अश्वमेध यज्ञ पूरा हेबापर यज्ञ केनिहार शतक्रतु इन्द्र भऽ जाइत अछि। तेँ इन्द्र कोनो ने कोनो विघ्न उपस्थित कऽ देथिन।
अश्वमेधक घोड़ा छोड़ल गेल जकरा संग सगर केर साठियो हजार पुत्र विदा भेला। इन्द्र छल-बल कऽ ओहि घोड़ाकेँ लऽ भागि गेला। साठियो हजार राजकुमार हुनका खेहारलनि। ओ सभ घोड़ा तकबा लेल पृथ्वीकेँ कोड़ैत आगू बढ़ैत गेला। अन्तमे कपिल मुनिक आश्रममे घोड़ा बान्हल देखलनि। कपिल मुनि तपस्यामे लीन छला। राजकुमार लोकनि कपिलकेँ घोड़ाक चोर बुझि हुनकेपर छुटला। एहिसँ कपिल मुनिक ध्यान भंग भऽ गेलनि जाहिसँ ओ क्रुद्ध भऽ गेला। हुनक कु्रद्ध-दृष्टिसँ साठियो हजार राजकुमार तखने जरि कऽ भस्म भऽ गेला। महाराज सगरक यज्ञ अपूर्णे रहि गेलनि। ओ शोकाकुल भऽ गेला आ हुनक मृत्यु भऽ गेलनि।
राजकुमार लोकनिक अपमृत्यु भेल छलनि। हुनका सभक सद्गतिक उपायपर विचार लेल विद्वान लोकनिक सभा बैसल। एहिमे निष्कर्ष बहार भेल जे जँ गंगा बैकुण्ठसँ पृथ्वीपर उतरि आबथि आ साठियो हजार राजकुमारक छाउरकेँ अपन जलधारामे डुबा पवित्र कऽ देथि तखने सभकेँ सद्गति भेटि सकै छनि। मृत राजकुमार लोकनिक वैमात्रेय भाइ असमञ्जस गंगाकेँ पृथ्वीपर उतारबा लेल तपस्या करैत-करैत मरि गेला। हुनक पुत्र दिलीपो लाख बरख धरि तपस्या केलनि, मुदा सफल नञि भेला आ मरि गेला। दिलीपक पुत्र अंशुमानो तपस्या करैत-करैत मरि गेला। तखन हुनक पुत्र भगीरथ तपस्या आरम्भ केलनि जाहिसँ प्रसन्न भऽ विष्णु भगवान गंगाकेँ बैकुण्ठसँ मृत्यु भुवनपर जेबाक अनुमति दऽ देलथिन।
गंगाक एकाएक पृथ्वीपर उतरि जेबासँ धरती रसातलमे धँसि जैतथि तेँ महादेव हिमालयक ऊँच चोटीपर चढ़ि हुनका अपना माथपर उतारि जटामे समेटि लेलथिन। हुनकर जटासँ होइत गंगा हिमालय प्रदेशकेँ दहबैत बिदा भेली। जखन जह्नु ऋषिक आश्रम दहाय लगलनि तँ ओ गंगाकेँ पीबि गेला। आब भगीरथ लेल कठिन समस्या भऽ गेलनि जे कोनो गंगाकेँ लऽ जाथि आ अपन पूर्वजकेँ सद्गति देयाबथि? भगीरथ परम साहसी छला। ओ मुनिक सेवामे जुटि गेला। अन्तमे मुनि प्रसन्न भेला आ ई मनबा कऽ गंगाकेँ छोड़लनि जे ओ हुनक पुत्री कहाबथि। तहियासँ गंगा जाह्नवी कहेली आ ओ गंगद्वार होइत हरिद्वार एली। भगीरथ आगाँ-आगाँ आहि दिशामे बढ़ला जेमहर हुनक पितरक छाउर छलनि आ गंगा पाछाँ-पाछाँ सभकेँ दहबैत-भसबैत चलली। अन्तमे ओ ओहि विशाल खाधिमे खसली जकरा मुनिक क्रोधसँ भस्म भेल राजकुमार लोकनि घोड़ा तकबाक क्रममे खुनने छला। एहि कारणेँ ओ सागर कहायल। एहि तरहेँ गंगा वैकुण्ठ छोड़ि पृथ्वीपर अवतरली आ सगरक साठि हजार सन्तानकेँ सद्गति प्राप्त भेलनि। गंगा धरतीपर आबि भगीरथक परिश्रम सार्थक केलनि।

                                                               गौरीक जन्म 
सतीक मृत्युसँ दुखी महादेव विरक्त भऽ निर्जन स्थानमे जा तपस्यामे लीन भऽ गेला। हुनका संसारक कोनो सुधि नञि रहि गेलनि। एहि बीच राक्षस सभक उपद्रव बड़ बढ़ि गेल। ओहिमे ताड़कासुर बड़ पराक्रमी छल। ओ तपस्या कऽ ब्रह्माकेँ प्रसन्न कऽ लेलकनि आ हुनकासँ अमर हेबाक वरदान मङलक। ब्रह्मा कहलनि- ‘ई असम्भव अछि। जे जन्म लेलक तकर मरण अनिवार्य अछि।’ तखन ओ दोसर वरदान मङलक जे ओकर मृत्यु महादेवक औरस पुत्रक हाथेँ हो। ब्रह्मा तथास्तु कहि देलथिन।
ब्रह्मासँ ई वरदान मङबाक पाछाँ ताड़कासुरक चतुरता छल जे महादेवक पत्नी सती नि:सन्तान मरि गेल छथिन। महादेव संसारसँ विरक्ते भऽ गेल छथि। विवाहक कोनो सम्भावना नञि छनि। तेँ हुनक पुत्रक हाथेँ ओकर मारल जेबाक प्रश्ने नञि उठै छल। एहना स्थितिमे ओ अमर रहत।
अपन अन्तसँ निश्चिन्त ताड़कासुर सभ देवताकेँ भगा देलक आ स्वर्गक राजा भऽ गेल। यज्ञ-जाप रोकि देलक आ मुनि सभकेँ सतबऽ लागल। सुन्नरि नारी सभक अपहरण करऽ लागल। सौँसे संसार त्राहि-त्राहि करऽ लागल। ओकर उत्पातसँ त्रस्त देवता आ ऋषि लोकनि ब्रह्माक लग उपस्थित भेला। ब्रह्मा सभक बात सुनि कहलथिन- ‘जखन-जखन संसारमे दैत्य-दानव एहि तरहेँ उत्पात मचेलक अछि तखन-तखन आदि शक्ति महामाया दुर्गा अवतार लऽ ओकरा सभक संहार केलनि अछि। अहाँ सभ एहि महासंकटक समय उद्धार लेल हुनके आराधना करू। वैह सतीक रूपमे जन्म लऽ महादेवसँ विवाह केने छली।ओ पुन: गौरीक रूपमे जन्म लेती आ महादेवसँ हुनक विवाह हेतनि। हुनका जे पुत्र हेथिन सैह ताड़कासुरक बध करता।’
देवता आ ऋषि लोकनि भगवती दुर्गाक आराधनामे लागि गेला। किछु दिनक बाद हिमालयकेँ पुत्री भेलनि। ई देखि देवतागण प्रसन्न भऽ फूलक वर्षा केलनि। ओ अत्यन्त गोरि छली तेँ हुनकर नाम गौरी पड़लनि।

                                                                  काम दहन 
एक   दिन हिमालयक ओहि ठाम नारद मुनि एला। हिमालय अपन पुत्री गौरीकेँ हुनका देखा जिज्ञासा केलनि जे हिनक विवाह किनका संग हेतनि? गौरीक हाथ देखि नारद कहलनि- ‘हिनक विवाह महादेवक संग हेतनि। से ओहिना नञि हेतनि। एखन महादेव अहीँक शिखरपर तपस्या कऽ रहल छथि। गौरी नित्य ओतऽ जा हुनक सेवा करथि। तखन ओ प्रसन्न भऽ हिनका संग विवाह करता।’
गौरी चेष्टगरि भऽ गेली तँ हिमालय हुनका नित्य दू सखीक संग महादेवक सेवा लेल पठाबऽ लगलथिन। देवता सभ महादेवक तपस्या भंग हुनक ध्यान गौरी दिस आकृष्ट करेबा लेल कामदेवकेँ तपोवन पठेलनि। कामदेव अपन पत्नी रति आ मित्र वसन्तक संग ओतऽ पहुँचि गेला। वसन्तक महिमासँ वनक सभ गाछ फुला गेल। सुगन्धिसँ वन-प्रान्त गमगमा उठल। फूल सभपर भम्हरा मड़राय लागल। शीतल बसात बहऽ लागल। चन्द्रमाक ज्योतिसँ वन सुन्दर लागऽ लगला। एहन मनोहारी-रमणीय वातावरणसँ महादेवक तपस्या भंग होबऽ लगलनि। गौरी सजि-धजि कऽ वासन्ती फूलक गहना पहिरि सखीक संग ओहि वनमे पूजा करबा लेल पहुँचली। गौरी सुन्नरि तँ छलीहे, ओहि दिन साज-शृंगारसँ हुनक सौन्दर्य आरो निखरि आयल छलनि। जखने महादेव लग गौरी पहुँचली आ कि कामदेव अपन वाण चलेलनि जे महादेव लग खसल। महादेवक तपस्या भंग भऽ गेलनि आ ओ गौरी दिस तकलनि। गौरी हुनक पूजा कऽ कातमे ठाढ़ भऽ गेली। गौरीक सुन्दरतासँ महादेव हुनका प्रति आकर्षित भऽ गेला आ बड़ाइ करैत गौरी दिस बढ़ला। गौरी संकोचसँ पाछाँ हटि गेली। हठात महादेवकेँ ध्यान एलनि जे ओ कामातुर भऽ उठला अछि। ओ एकर कारण जनबा लेल एमहर-ओमहर तकलनि तँ एकटा झोँझमे नुकायल कामदेवपर नजरि पड़लनि। ओ क्रोधित भऽ उठला जाहिसँ तेसर नेत्र खुजि गेलनि। एहिसँ कामदेव जरि कऽ भस्म भऽ गेला।
रति अपन पतिकेँ भस्म होइत देखि मूर्च्छित भऽ खसली। होशमे एबापर ओ करुण विलाप करऽ लगली। रतिक शोकसँ देवता लोकनि पर्यन्त दुखी भऽ उठला। तखन देवतागण महादेव लग पहुँचला आ कहलथिन जे एहिमे कामदेवक कोनो दोष नञि छनि। देवते लोकनि हुनका पठेने छलथिन जे कहुना महादेव गौरी दिस आकृष्ट होथि आ हुनकासँ विवाह करथि। तखने ताड़कासुरसँ सभकेँ त्राण भेटि सकै छलनि। तेँ महादेव कोनो उपाय कऽ कामदेवकेँ जीवन देथु।
देवता लोकनिक बात सुनि महादेव कहलथिन- ‘कामदेव मुइना नञि अछि, मात्र हुनक शरीर भस्म भेलनि अछि। हुनका ओ शरीर एखन प्राप्त नञि हेतनि। समुद्रमे शम्बर नामक दैत्य अछि। रति ओतऽ जाय एखन रहथु। कामदेव द्वापरमे श्रीकृष्णक पुत्र प्रद्युम्न भऽ जन्म लेता। शम्बर हुनका जनमिते उठा कऽ अपन नगर लऽ जायत। रतिकेँ ओतहि प्रद्युम्नक रूपमे कामदेव भेटथिन। जखन ओ पैघ हेता तँ दैत्य शम्बरकेँ पारि ओेकर धन-सम्पत्ति सहित रतिकेँ सेहो द्वारिका लऽ जेता आ हुनकासँ विवाह कऽ सुख-विलास करता।’
एकर बाद महादेव अन्तर्ध्यान भऽ गेला। रति ओहि ठामसँ शम्बरक ओतऽ आश्रय लेल बिदा भेली आ कामदेवसँ मिलनक प्रतीक्षा करऽ लगली।

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