-अमलेन्दु शेखर पाठक
लोनमे टोन रामनाम सत्त
ऊधोजी अन्हरोखे जुमि गेला। हम सुतले रही। अबिते तेना ने देह झमारि देलनि जे अदंक पैसि गेल, डरे घिघिया उठलहुँ। ऊधोजीक गर्दभ स्वर कानमे पड़ल- ‘मत्त तोरी के रे हम भूत की परेत जे किकिया रहा ...रे उठा आ कि गर्दा झाड़ अभियान...।’
ऊधोजीक स्वर सुनि आश्वस्त भेलहुँ, मुदा हुनक गर्दा झाड़ अभियान शुरू करबाक बातसँ धरफरा कऽ जे उठलहुँ तँ मच्छरदानीमे लटपटा मुँहे भरे खसि पड़लहुँ। लोल फूटि गेल, मुदा वाह रे ऊधोजी, कथी लेल कने आहा-ओहो करता उन्टे हमरा अलूरि, अबढङाह, अलबेङल आदि उपाधिसँ विभूषित करऽ लगला। मने मन विधाताकेँ स्मरण करैत बूझि गेलहुँ जे अजुका दिन केहन बीतत। एक तँ राक्षस पर्यन्तकेँ आतंक भऽ जाय तेहन कारी-भुजुंग ऊधोजीक मुखमण्डलक भोरे-भोर दर्शन आ ताहिपर ठोर फूलि कऽ बड़ी लटकि जायब, मुँहसँ बहरा गेल- ‘दिन कोना बीतत हे महादेव!’
ऊधोजी अग्निश्च वायुश्च भऽ गेला- ‘किए रे, तोरासँ हम्मर मुँह खराब रे जे जतरा बिगड़बाक बात करि रहा रे? एखने लण्ठशास्त्रक सातम श्लोक पढ़ि देगा कि दिमागे बुलन्द ने भऽ जायगा।’
हम डरे सटक सीताराम भऽ गेलहुँ। दबले स्वरमे कहलियनि जे ठोर फूटि गेल तेँ भगवानकेँ गोहरेलहुँ। जल्दीसँ हुनका टारबाक लेल एबाक प्रयोजन पुछलियनि तँ कहलनि- ‘लोनमे टोन लाबो।’
लोन आ टोनक किछु भाँजे ने लागल। जिज्ञासा करबापर शुरू भऽ गेलनि स्पीच- ‘रे भैबा! तोँ रहि गीया सभ दिन बैके गीयरमे...खाली मैथुली-मैथुली करबा से नञि ने काज चलेगा रे, कनी दिन-दुनिञापर सेहो ने ध्यान राखेगा...खाली मैथुली पढ़ेगा, लिखेगा, बाजेगा तँ लोन आ टोन माने कोना बुझेगा...हमरा जकाँ टॉप गीयरमे रहेगा तँ सभ ने बूझि जायगा...रे लोन भया पैँच आ टोन भया टोन।’
हमरा मुँह तकैत देखि टोन केर अर्थ स्पष्ट केलनि जे हुनका मोबाइलक रिंग टोन चाहियनि। पुछलियनि- ‘ब्लू ट्रुथ अछि?’
ऊधोजी भड़कला- ‘दुनिञामे सभसँ बकलेल तोरा हमहीँ बुझा रहा की रे जे बुल्लू रंगक टूथ राखेगा...आइ धरि कोनो मनुक्ख देखा जकर टूथ बुल्लू रंग होता...मनुक्ख तँ मनुक्ख कोनो जानवरो देखा जकर बुल्लू टूथ होता...तोरा अप्पन टूथ किए ने बुल्लू रे...भोरसँ भोर हमरासँ ठट्ठा करेगा तँ सभ टूथ झाड़ि देगा तखन तोरा पता चलेगा जे तोहर टूथ बुल्लू आ कि उज्जर...।’
हम गेङिया उठलहुँ- ‘हम दाँत वला टुथ नञि ने कहै छी...।’
ऊधोजी तरङला- ‘बेसी भचर-भचर नञि ने करो टूथ माने तोँ बुझायगा हमरा....?’
हम स्पष्ट केलियनि जे मोबाइलमे एकटा सिस्टम केर नाम छै ब्लू ट्रुथ तखन शान्त पड़ला आ अपन मोबाइल धरा देलनि। हम जुटलहुँ रिंग टोन देबामे। हुनका सुनाबऽ लगलियनि जे कोन लेता, मुदा एको गोट रिंग टोन हुनका पसिन्ने ने पड़लनि। म्युजिकसँ लऽ भजन, फिल्मी गीत, पारम्परिक मैथिली गीत सभकेँ रिजेक्ट कऽ देलनि। अन्तमे मोबाइल छीनि लेलनि आ बलाबस्ती अपना संग लऽ महल्लामे घरे-घर रिंग टोन लेल बौआय लगला। ककरो रिंग टोन नञि अरघलनि। बिदा भेला मोबाइलक दोकान दिस। हमरा संगे घिसिएने गेला। बजरोमे सैह हाल। दोकाने-दोकाने बौएला, मुदा एको गोट नञि जँचलनि। चलैत-चलैत पैर ऐँठि गेल छल से कतेक नेहरो-मिनती कऽ सुस्तेबा लेल मल-मूत्रकेँ उदरस्थ केनिहार हराही पोखरिक किनारपर दुनू गोटे बैसलहुँ। तखन ऊधोजी असलीहत फोललनि- ‘रे भैबा! टोन चाही रामनाम सत्त।’
हमरा टुकुर-टुकुर मुँह तकैत देखि बजला- ‘देख भैबा! एखुनका टोन मनक कोनमे खोँच मारता। मुर्दा डाहि रहा आ फोन आया तँ टोन बाजा बियाहक गीत। ककरो ओहि ठाम जुआन बेटा मरि गीया आ रिंग बाजा परेम केर गीत। ककरो ओहि ठाम डाका पड़ि गयी, चोरि भऽ गीया आ रिंग टोन बाजा बच्चाक ठिठिआयब जेना कहि रहा भने भया चोरि। गारि-भारिसँ लऽ डायलग धरिक रिंग टोन बनि गीया। बचि गीया बस रामनाम सत्त, तेँ हम रामनाम सत्त वला टोन ताकि रहा।’
ऊधोजी उठला आ बिदा भऽ गेला। हम हुनक पीठ निंघारैत विचरऽ लगलहुँ, कहै तँ छथि ठीके। विज्ञान मोबाइल सन सुन्दर आ उपयोगी आविष्कार देलक। हमरा लोकनि ओकर दुरुपयोग कऽ रहल छी। किदन-कहाँदन ओहिपर देखै छी, सुनै छी आ अपन संस्कृतिक कऽ रहल छी रामनाम सत्त।
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