ऊधोजीक उधियान...
-अमलेन्दु शेखर पाठक
तोड़फाड़क रिहल्सल
दलानपर राखल फूलक गमला फुटबाक अबाज कानमे पड़ल तँ निन्न टूटि गेल। भऽ तँ गेल छल भोर, मुदा उठबामे कने लेटलतीफ छी से तखनो औँघायले रही। मने मन महल्लावला सभपर खौँझेलहुँ जे ढेरी-ढाकी कूकुर पोसने अछि जे आबि कऽ कोनो ने कोनो नोकसान कऽ दैए। आब गमलो सभ फोड़ब शुरू कऽ देलक। यैह सभ सोचैत करौट फेरबे केलहुँ कि बाहर राखब गमला सभक तड़तड़ कऽ फुटबाक अबजा आयल। लगै छल जेना क्यौ उठा-उठा कऽ पटकि-पटकि फोड़ि रहल हो। तामसे घोर भऽ गेलहुँ। भेल जे महल्लाक उचक्का सभ बदमाशी कऽ रहल अछि। क्रोधान्ध भेल केबाड़ दिस बढ़बे केलहुँ कि ओकरो पीटल जाय लागल आ चन-चन कऽ खिड़की सभक शीशा फूटऽ लागल। लाठीक हुराठपर नजरि पड़ल तँ डरे हरबग्घा पैसि गेल। भेल जे ककरो दऽ कोनो समाचार छपि गेलै अछि से गुण्डा-बदमाश सभ डेरापर पहुँचि गेल अछि। हम डरे सटक सीताराम। मुँहसँ बकारे ने फूटय जे हल्लो करितहँु। कोनटा धऽ लेलहुँ आ एहि आशामे दलानपरक बल्ब, मर्करी फुटबाक दम्म सधने सुनैत रहलहुँ जे महल्लावासी जुटता तँ ई सभ पड़ायत। ताबत साओन-भादवक मेघ जकाँ ढनकैत ऊधोजीक स्वर कानमे पड़ल- ‘रे पत्तरकार! केबाड़ ने फोलो जे तोहर चानि चूरि देगा।’
आहि रे बा, ऊधोजी सनकि गेला की? ई किए हमरा नोकसान पहुँचा रहल छथि। हिनकर हम आरि तामि लेलियनि आ कि खेत जोति लेलियनि अछि। - ई सोचैत केबाड़क बिलैयापर हाथ देल, मुदा हिम्मति नञि भेल। ऊधोजीक यमराज सन आकृति आँखिक सोझाँ नाचि गेल। हाथ छीपि लेलहुँ, मुदा जखन ओ केबाड़ तोड़ि देबाक घोषणा कऽ देलनि तँ केबाड़ फोलि कात भऽ गेलहुँ। ऊधोजी बिहाड़ि जकाँ घरमे घुसला आ तोड़फोड़ शुरू कऽ देलनि। मसहरी आ ओछायन उठा कऽ फेकि देलनि। लैपटॉपपर तेहन लाठी मारलनि जे ओ टुकड़ी-टुकड़ी भऽ गेल। देखिते-देखिते घरक एक-एक वस्तु भूलुण्ठित भेल ऊधोजीक पुरुषार्थक कथा कहऽ लागल। हम डरे थरथर करैत निरुपाय भेल सभटा टुकुर-टुकुर देखैत रहलहुँ। ऊधोजी घामे-पसेने नहा गेल छला। जखन सभ समान थूरल-थकुचल भऽ गेलनि तँ पलटला आ हम बपहारि कटैत घरसँ बाहर पड़ेबाक प्रयास कयल, मुदा ऊधोजीक विशाल भजुदण्ड हमरा बीचेमे लोकि लेलक। हम किकिया उठलहुँ। ओ रोकैत कहलनि- ‘आब कथी लेल भागि रहा? आब हमर करोध शान्त भऽ गीया।’
हमहुँ ई देखि कने थीर भेलहुँ जे ऊधोजी कोनो शारीरिक क्षति पहुँचेबाक मूडमे नञि छथि। दबले स्वरमे पुछलियनि- ‘हम की हार-बिगाड़ केलहँु अछि?’
‘रे भैबा! तोँ कथी लेल किछु बिगाड़ेगा?... तोँ कनेको चिन्ता नञि करो तोहर कोनो टा गलती नञि भया।’ -ऊधोजी शान्त स्वरमे उत्तर देलनि।
हम आश्चर्यचकित रहि गेलहुँ जे तखन हमरा आहि ठाम किए तोड़फाड़ केलनि। पुछलियनि तँ किए कनेको अफसोच हेतनि। आरामसँ कहि देलनि- ‘तोड़फाड़ लेल ई जरूरी नञि रे भैबा जे गलती हेबे करेगा।’
आब हम कने तनलहुँ- ‘ई कोन बात भेल, बिना गलतीक किए हमर एते नोकसान पहुँचेलहुँ? ई तँ सर्वथा अनर्गल बात अछि।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘हे बेसी लबर-लबर नञि करो, नञि तँ आब ई लाठी तोरा कपारेपर बजरेगा...कने मोलायम पड़ा तँ काबिलती छाँटब शुरू करि दीया।...रे अखनो सगरो यैह ने भऽ रहा। खास कऽ पढ़ल लीखल सभ तँ यैह ने करि रहा। हम तँ तकरे अनुकरण करि रहा।’
हमरा हुनकर बात अजगुत लागल- ‘एहन कतहु भेलैए जे बिना गलतीक तोड़फाड़ भऽ जाय।’
ऊधोजी आँखि गुड़ारलनि- ‘तोँ सभ तँ कलम घसा आ सभटा बिसरि गीया। रे बुद्धिवर्द्धक चूर्ण फाँको तँ याद रहेगा। कने भोरे उठि टटका बसात चाटो...आयुर्वेदमे बहुत्ते दबाइ आबि रहा ताहिमेसँ कोनो कीनो जे स्मरण शक्ति बढ़ेगा...तोँ बज्र सिलौट भऽ गीया। अपनो लीखल समाचार बिसरि जाता।’
हम किछु नञि बुझलहुँ। हुनकर मुँह तकैत रहलियनि। प्राय: हमर मन:स्थिति बुझि गेला आ कहलनि- ‘तोरे अखबारमे ने छपा रे जे समस्तीपुरक मोहद्दीनगरमे एनसीसी केर कैडेट मरि गीया तँ छात्र सभ हेडमाहटर केर मोटरसाइकिल फूकि दीया। टेबुल, कुर्सी, बेञ्च सभकेँ थौआ-थौआ कऽ दीया।....आ मधुबन्नी बिसरि गीया जे छौँड़ा-छौड़ी केर खेलमे पूरा जिला धधकि गीया?...आब तोँही बाजो जे कैडेट मरि गीया ताहिमे इस्कूलक बेञ्च-डेस्क की बिगाड़ा?... मानि लीया जे इस्कूलक समान तोड़बा काल करोधसँ आन्हर भऽ गीया...मुदा अस्पताल की बिगाड़ा? ओहि ठाम किए तोड़फाड़ कीया।... डाक्टर मरलकेँ जीबैत कहि देता?...आर तँ आर एहिमे अभिभावको सभ संग दीया।...भैबा रे! आब तोड़फाड़ सामान्य बात भऽ गीया।’
हम घिघिएलहुँ- ‘ओहि ठाम जे तोड़फाड़ भेल से तँ घटनास्थल ओ छल, हमरा ओहि ठाम अहाँ किए तोड़फाड़ केलहुँ?’
ऊधोजी नर्म पड़ैत कहलनि- ‘रिहल्सल कीया। भोरे-भोर क्यौ सभटा फूल चरा दीया। हमरो ने नोकसान भया तँ हमहूँ ने ककरो नोकसान पहुँचायगा। से सोचा जे आनक नोकसान करेगा तँ पीटेगा तँ किए ने भैबाक घरपर रिहल्सल करि लीया जाय..आ आबि गीया तोरा ओहि ठाम।’
हम झूर-झमान भेल पुछलियनि- ‘हमरा जे एते आर्थिक क्षति पहुँचल से के पूरा करत? अहाँ तँ नाहकमे ने एते क्षति कऽ देलहुँ?’
ऊधोजी मुसुकला- ‘रे भैबा! तोहर सभ नोकसान हम भरेगा। तोँ एकदम्मे चिन्ता नञि ने करो। ओ सभ जे इस्कूल तोड़ा, अस्पतालमे नोकसान पहुँचाया से तँ फेर ओकरे सभक पाइसँ बनेगा...सरकारी सम्पत्ति तँ जनतेक ने भया रे भैबा!...ओकरे सभ जकाँ हमहूँ अपना जेबीसँ खर्च करि तोहर सभ समान कीनि देगा।... भैबा रे एहन तोड़फाड़सँ नीक लोक अपन कपड़ा अपने फाड़ि करोधपर काबू करय..एहिमे खर्चा तँ घटि जायगा।’
ऊधोजी डण्टा नेन बिदा भऽ गेला आ हम विचारऽ लगलहुँ जे ठीके सामान्य जन जे तोड़फाड़ कऽ अपन अनावश्यक क्रोध प्रकट करै छथि से तँ नोकसान अपने होइ छनि। हँ, ई देखाइ नञि पड़ै छनि। नाक कने घुमा कऽ छूबाक बात अछि।

तोड़फाड़क रिहल्सल
दलानपर राखल फूलक गमला फुटबाक अबाज कानमे पड़ल तँ निन्न टूटि गेल। भऽ तँ गेल छल भोर, मुदा उठबामे कने लेटलतीफ छी से तखनो औँघायले रही। मने मन महल्लावला सभपर खौँझेलहुँ जे ढेरी-ढाकी कूकुर पोसने अछि जे आबि कऽ कोनो ने कोनो नोकसान कऽ दैए। आब गमलो सभ फोड़ब शुरू कऽ देलक। यैह सभ सोचैत करौट फेरबे केलहुँ कि बाहर राखब गमला सभक तड़तड़ कऽ फुटबाक अबजा आयल। लगै छल जेना क्यौ उठा-उठा कऽ पटकि-पटकि फोड़ि रहल हो। तामसे घोर भऽ गेलहुँ। भेल जे महल्लाक उचक्का सभ बदमाशी कऽ रहल अछि। क्रोधान्ध भेल केबाड़ दिस बढ़बे केलहुँ कि ओकरो पीटल जाय लागल आ चन-चन कऽ खिड़की सभक शीशा फूटऽ लागल। लाठीक हुराठपर नजरि पड़ल तँ डरे हरबग्घा पैसि गेल। भेल जे ककरो दऽ कोनो समाचार छपि गेलै अछि से गुण्डा-बदमाश सभ डेरापर पहुँचि गेल अछि। हम डरे सटक सीताराम। मुँहसँ बकारे ने फूटय जे हल्लो करितहँु। कोनटा धऽ लेलहुँ आ एहि आशामे दलानपरक बल्ब, मर्करी फुटबाक दम्म सधने सुनैत रहलहुँ जे महल्लावासी जुटता तँ ई सभ पड़ायत। ताबत साओन-भादवक मेघ जकाँ ढनकैत ऊधोजीक स्वर कानमे पड़ल- ‘रे पत्तरकार! केबाड़ ने फोलो जे तोहर चानि चूरि देगा।’
आहि रे बा, ऊधोजी सनकि गेला की? ई किए हमरा नोकसान पहुँचा रहल छथि। हिनकर हम आरि तामि लेलियनि आ कि खेत जोति लेलियनि अछि। - ई सोचैत केबाड़क बिलैयापर हाथ देल, मुदा हिम्मति नञि भेल। ऊधोजीक यमराज सन आकृति आँखिक सोझाँ नाचि गेल। हाथ छीपि लेलहुँ, मुदा जखन ओ केबाड़ तोड़ि देबाक घोषणा कऽ देलनि तँ केबाड़ फोलि कात भऽ गेलहुँ। ऊधोजी बिहाड़ि जकाँ घरमे घुसला आ तोड़फोड़ शुरू कऽ देलनि। मसहरी आ ओछायन उठा कऽ फेकि देलनि। लैपटॉपपर तेहन लाठी मारलनि जे ओ टुकड़ी-टुकड़ी भऽ गेल। देखिते-देखिते घरक एक-एक वस्तु भूलुण्ठित भेल ऊधोजीक पुरुषार्थक कथा कहऽ लागल। हम डरे थरथर करैत निरुपाय भेल सभटा टुकुर-टुकुर देखैत रहलहुँ। ऊधोजी घामे-पसेने नहा गेल छला। जखन सभ समान थूरल-थकुचल भऽ गेलनि तँ पलटला आ हम बपहारि कटैत घरसँ बाहर पड़ेबाक प्रयास कयल, मुदा ऊधोजीक विशाल भजुदण्ड हमरा बीचेमे लोकि लेलक। हम किकिया उठलहुँ। ओ रोकैत कहलनि- ‘आब कथी लेल भागि रहा? आब हमर करोध शान्त भऽ गीया।’
हमहुँ ई देखि कने थीर भेलहुँ जे ऊधोजी कोनो शारीरिक क्षति पहुँचेबाक मूडमे नञि छथि। दबले स्वरमे पुछलियनि- ‘हम की हार-बिगाड़ केलहँु अछि?’
‘रे भैबा! तोँ कथी लेल किछु बिगाड़ेगा?... तोँ कनेको चिन्ता नञि करो तोहर कोनो टा गलती नञि भया।’ -ऊधोजी शान्त स्वरमे उत्तर देलनि।
हम आश्चर्यचकित रहि गेलहुँ जे तखन हमरा आहि ठाम किए तोड़फाड़ केलनि। पुछलियनि तँ किए कनेको अफसोच हेतनि। आरामसँ कहि देलनि- ‘तोड़फाड़ लेल ई जरूरी नञि रे भैबा जे गलती हेबे करेगा।’
आब हम कने तनलहुँ- ‘ई कोन बात भेल, बिना गलतीक किए हमर एते नोकसान पहुँचेलहुँ? ई तँ सर्वथा अनर्गल बात अछि।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘हे बेसी लबर-लबर नञि करो, नञि तँ आब ई लाठी तोरा कपारेपर बजरेगा...कने मोलायम पड़ा तँ काबिलती छाँटब शुरू करि दीया।...रे अखनो सगरो यैह ने भऽ रहा। खास कऽ पढ़ल लीखल सभ तँ यैह ने करि रहा। हम तँ तकरे अनुकरण करि रहा।’
हमरा हुनकर बात अजगुत लागल- ‘एहन कतहु भेलैए जे बिना गलतीक तोड़फाड़ भऽ जाय।’
ऊधोजी आँखि गुड़ारलनि- ‘तोँ सभ तँ कलम घसा आ सभटा बिसरि गीया। रे बुद्धिवर्द्धक चूर्ण फाँको तँ याद रहेगा। कने भोरे उठि टटका बसात चाटो...आयुर्वेदमे बहुत्ते दबाइ आबि रहा ताहिमेसँ कोनो कीनो जे स्मरण शक्ति बढ़ेगा...तोँ बज्र सिलौट भऽ गीया। अपनो लीखल समाचार बिसरि जाता।’
हम किछु नञि बुझलहुँ। हुनकर मुँह तकैत रहलियनि। प्राय: हमर मन:स्थिति बुझि गेला आ कहलनि- ‘तोरे अखबारमे ने छपा रे जे समस्तीपुरक मोहद्दीनगरमे एनसीसी केर कैडेट मरि गीया तँ छात्र सभ हेडमाहटर केर मोटरसाइकिल फूकि दीया। टेबुल, कुर्सी, बेञ्च सभकेँ थौआ-थौआ कऽ दीया।....आ मधुबन्नी बिसरि गीया जे छौँड़ा-छौड़ी केर खेलमे पूरा जिला धधकि गीया?...आब तोँही बाजो जे कैडेट मरि गीया ताहिमे इस्कूलक बेञ्च-डेस्क की बिगाड़ा?... मानि लीया जे इस्कूलक समान तोड़बा काल करोधसँ आन्हर भऽ गीया...मुदा अस्पताल की बिगाड़ा? ओहि ठाम किए तोड़फाड़ कीया।... डाक्टर मरलकेँ जीबैत कहि देता?...आर तँ आर एहिमे अभिभावको सभ संग दीया।...भैबा रे! आब तोड़फाड़ सामान्य बात भऽ गीया।’
हम घिघिएलहुँ- ‘ओहि ठाम जे तोड़फाड़ भेल से तँ घटनास्थल ओ छल, हमरा ओहि ठाम अहाँ किए तोड़फाड़ केलहुँ?’
ऊधोजी नर्म पड़ैत कहलनि- ‘रिहल्सल कीया। भोरे-भोर क्यौ सभटा फूल चरा दीया। हमरो ने नोकसान भया तँ हमहूँ ने ककरो नोकसान पहुँचायगा। से सोचा जे आनक नोकसान करेगा तँ पीटेगा तँ किए ने भैबाक घरपर रिहल्सल करि लीया जाय..आ आबि गीया तोरा ओहि ठाम।’
हम झूर-झमान भेल पुछलियनि- ‘हमरा जे एते आर्थिक क्षति पहुँचल से के पूरा करत? अहाँ तँ नाहकमे ने एते क्षति कऽ देलहुँ?’
ऊधोजी मुसुकला- ‘रे भैबा! तोहर सभ नोकसान हम भरेगा। तोँ एकदम्मे चिन्ता नञि ने करो। ओ सभ जे इस्कूल तोड़ा, अस्पतालमे नोकसान पहुँचाया से तँ फेर ओकरे सभक पाइसँ बनेगा...सरकारी सम्पत्ति तँ जनतेक ने भया रे भैबा!...ओकरे सभ जकाँ हमहूँ अपना जेबीसँ खर्च करि तोहर सभ समान कीनि देगा।... भैबा रे एहन तोड़फाड़सँ नीक लोक अपन कपड़ा अपने फाड़ि करोधपर काबू करय..एहिमे खर्चा तँ घटि जायगा।’
ऊधोजी डण्टा नेन बिदा भऽ गेला आ हम विचारऽ लगलहुँ जे ठीके सामान्य जन जे तोड़फाड़ कऽ अपन अनावश्यक क्रोध प्रकट करै छथि से तँ नोकसान अपने होइ छनि। हँ, ई देखाइ नञि पड़ै छनि। नाक कने घुमा कऽ छूबाक बात अछि।
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