Tuesday, 23 July 2013

शोणितक दाम

                                                   शोणितक दाम
                                                       -अमलेन्दु शेखर पाठक
श्आब हí क· रहल छी अहाँ सभÓ -मोद बाबू गरजला। श्एहन कतहु सुनबो ने केने रही हमरा लोकनि, आब हमरो सभक उमेर कम थोड़े रहल, अस्सी लगिचा देलियैÓ।
मोद बाबूक गरजबाक कोनो असरि नहि पड़ल। सभ एक-दोसराक मुँह मात्र तकैत रहल। कमल बाबूक चारू पुत्र अपनामे कटाउँझ करैते रहलथिन। के आगि देत से फरिछाए नहि रहल छल। जेठ बालक जयपालक अèािकारे बनै छनि, मुदा छोटका रामपालक कहब छनि जे ओ मोन खराब भेलापर एको बेर हुलकियो मार· नहि एलखिन। माझिल श्यामपाल सेहो आगि देबा लेल फाँड़ भिडऩे छथिन, मुदा पछिला जतरामे ओ मदन बाबूसँ लडि़ क· गेल छलथिन आ सौँसे समाज र्इ देखने छलनि तेँ बजबाक साहस नहि छलनि। ओना कनियाँ कहने रहथिन आगि देबा लेल। कारण जे आगि देतै तकरा बड़का अठकठबा भेटतै। बजबो केलनि, मुदा सझिला जनकपाल भाँजी मारि देलथिन- श्अहाँ आगि देबै से हमहीँ किए ने देबै, गाम èा· क· रहलहुँ हम आ आगि देबनि आहाँ सभ? नेरकम केलियनि हमरा लोकनि आ आगि देबा लेल आहाँ सभ उताहुल छी, लाजो नहि होइए?Ó
मोन तँ तिलमिला गेलनि, मुदा चुपे रहि गेला। आइ बोèा भ· रहल छनि जे गाम आबर-जात किए नहि करैत रहला। बाबू कूही भ· क· मरला। सभ दिन गाँजाक सोँट मारैत रहला जनकपाल आ आइ जे छोह देखा रहल छथि।
ओमहर गोपालकेँ किछु ने फुरा रहल छनि, की करथु? कोना क· कहथु अपन नाम। अपन नाम लैते हरबिर्रो ने मचि जाय। चारू भर नजरि खिरेलनि - श्मशान भूमिमे ठाढ़ छथि सभ लोक। कहै छै जे श्मशानमे आबि क· सभटा मोह मायासँ लोक मुä भ· जाइत अछि, मुदा एत· तँ उन्टे भ· रहल छै। सभ अपना अपनी दिस अठकठबा समेटबा लेल बेहाल अछि। सामने चिता सजल अछि आ ओहिपर कमल बाबूक शव पाड़ल छनि। एक कात गोँइठा सुनुगि रहल अछि। कमल बाबू एनमेन तेना जेना सूतल होथि। गोपालकेँ कमल बाबूक संग बितायल एक-एक पल स्मरण पडय़ लगलनि। ओ कमल बाबूक क्यौ नहि छथि। क्यौ नहि छथि माने, रä संबंèाी नहि छथि। ओना क्यौ कोना नहि छथि। नामो तँ हुनके देल छनि। अपन माय-बाप मोनो कहाँ छनि। पाँचे वर्षक रहथि जखन कमल बाबूकेँ लहेरियासराय टीसनपर भेटल रहथि। कहाँ दन तहिया ब³ला बजैत रहथि गोपाल, गोपाल नामो कहाँ कहने रहथि। किछु नाम कहने रहथि आ कमल बाबू गोपाल कहय लागल रहथिन। कमल बाबू तहिया युवके छला आ नोकरी तकै छला। बालो-बच्चा कहाँ भेल छलनि। जखन टीसनपर क्यौ नहि रखलनि आ गोपाल कनैत-कनैत लहालोट भ· गेला तँ अपना संग नेने एलथिन। कमल बाबूक पत्नी कुमुदिनी सेहो छाती सँ लगा लेलथिन। थोड़े दिन ताक हेर क· पुत्रवते राखि लेलथिन। गोपालक अबिते संयोग लगलै आ कमल बाबूकेँ प्रोफेसरी भेटि गेलनि। विवाहक दस वर्ष बीति गेल रहनि, मुदा कोनो संतान नहि भेल छलनि। दुनू बेकती दुखी रहै छला, से गोपालक अबिते कुमुदिनी मातृसुख पौलनि। अपनो संतान भेलनि, मुदा एहिसँ गोपालक मान-दानपर कोनो असरि नहि पड़लनि। दू पुत्रक बादे आपरेशन कराबय चाहै छला कमल बाबू, मुदा हुनका मायक जिदकेर समक्ष नतमस्तक भ· जाय पड़लनि। कुमुदिनीकेँ माय आ कमल बाबूकेँ बाबू कहै छला गोपाल। से माय अस्वस्थ रहय लगलथिन आ बाबूक समक्षे सभकेँ छोडि़ बिदा भ· गेली। ताबत जयपाल बीडीओ भ· गेल छलथिन। श्यामपालोकेँ रेलवेमे नोकरी भ· गेल छलनि। जनकपाल आर्इ.ए.एस. केर तैयारी लेल दिल्ली ओगरने छला आ रामपालकेँ आवारागदÊसँ फुर्सति नहि रहनि। गोपालकेँ जते भ· सकलनि निमेरा करैत रहला। माय खूब मोनसँ आशीर्वाद देने रहथिन। हुनकर अंतिम इच्छा रहनि पुतहुक मुँह देखबाक। गोपाल तैयार भ· गेला, मुदा कोनो भाइ ताहि लेल तैयार नहि। तहिया सभकेँ गोपाल अपन जेठके बुझेलथिन। गोपालक विवाह भ· गेलनि। मायक मनोरथ पूर भेलनि, मुदा गोपाल चाहैत रहथि जे सभ भाइ समर्थे छथिन, किए ने एके लगनमे सभक विवाह भ· जाय। मायोक मन रहनि, मुदा चुपे रहि गेल। कमल बाबू कहबो केलथिन, मुदा सभ भाइक जीवन वैयäकि भ· उठलनि। विवाह करबाक करबे केलनि, मुदा मायक देहांतक बाद। गोपालोक संग भाइ सभक दूरी बढय़ लगलनि आ ओहि दिन ओ पूरा-पूरी आन भ· गेलथिन जहिया पता लगलै जे बाबू जमीन पाँच भागमे बाँटि देने छथि। सभ भाइ विæोहपर उतरि एला। कमल बाबूसँ सभक कहा-सुनी èारि भ· गेलनि। गोपाल सेहो बुझौलकनि, मुदा बाबू नहि मानलथिन आ अपन सप्पत द· चुप क· देलथिन। भाइ सभक इच्छा रहनि जे गोपाल घर छोडि़ देथि। गोपाल कतेको बेर कानाफुस्सी सुनबो केलनि, मुदा गबदी मारि देलनि। जाबत बाबू छथिन ताबत रहता। छोडि़ क· चलि जेता तँ हुनका के देखतनि? आ गोपालक र्इ निर्णय ठीके रहलनि। परुकाँ बाबू बीमार पडि़ गेलथिन। देह सुखा गेलनि। अस्पतालमे भतÊ कयल गेलनि। जेठका जयपालकेँ फुर्सतिए नहि भेटलनि जे देखियो जैतथिन। माँझिल श्यामपाल एलखिन जरूर, मुदा रä देबाक बात सुनिते मोन बì खराब भ· गेलनि। जखन अपने अस्वस्थ रहथि तखन बाबूकेँ रä कोना दितथिन। रामपालकेँ पत्नी साफ मना क· देलथिन। जनकपाल ताबत नहि भेटलथिन जाबत खूनक ब्यौत नहि भ· गेलै। गोपाल एहि लेल प्रस्तुत छलाहे। पूरे चारि बोतल खून देलथिन। तीन बोतलक बाद डाक्टर साफ मना क· देलकनि श्आब खून लेने खतरा भ· सकै छैÓ। गोपाल नहि मानलनि। बाबू लेल जान चलियो जेतनि तँ की हेतै? जीवनो तँ हुनके देल छनि। बाबूकेँ जखन पता लगलनि तँ भरि पाँज èा· लेलथिन आ कहलथिन श्बौआ खाली मायक पेटेसँ जनमलासँ क्यौ ककरो बेटा नहि होइ छै से तोँ सिद्ध क· देलेँ...तोँ नहि रहितेँ तँ बेटा अछैतो निपुत्रे रहि जैतहुँ...हमरा लग तोरा पठा क· भगवान संतान-सुख बुझबाक अवसर देलनि...हे एगो बात कहै छियौ, जखन मरि जाइ तँ तोहीँ आगि दिहेँ। आन देत तँ आत्मा काहि काटत, तोँ देबेँ तँ जुड़ा जायत बौआÓ।
गोपाल गछि तँ लेलनि, मुदा बुझै छला जे प्रस्ताव दैते समाजो विरोèामे ठाढ़ भ· जायत। कोन जाति-èार्मक छथि सेहो तँ पता नहि। आ अखन,जखन समाज तय क· देलकै जे आगि देनिहारकेँ अठकठबा भेटतै, सभ भैयारी एहि लेल मारि ठनने छथि। अठकठबा तय होयबासँ पूर्व ककरो फुर्सति नहि छलनि तँ किनको मन खराब छलनि। आब मुर्दा पड़ल अछि आ सभ अठकठबापर गिद्ध जकाँ èयान लगेने छथि। की करथु गोपाल, बाबूक अंतिम इच्छा पूरा करबा लेल आगि देबा लेल अपन नाम कहथुन की नहि?...कहीँ तेसरे बखेरा ने भ· जाय। किछु निर्णय नहि क· पाबि रहल छथि। भीतरसँ अबाज उठलनि-श्अपनाकेँ सुरक्षित रखबा लेल चुप रहि जेताÓ। हठात उठला आ जयपालकेँ कहलथिन जे आगि ओ देता। जेना एकेबेर खरक आगि जकाँ सभ èाुèाुआ उठल। जयपाल सोझे आरोपो लगा देलथिन- श्खूनक दाममे अठकठबा चाहै छी?Ó
गोपाल सन्न रहि गेला। जयपाल एते खसि पड़ता से सोचनहुँ नहि छला। अवाक रहि गेला गोपाल। थोड़े काल बोले नहि फुटलनि, कने कालक बाद कहलथिन- श्बाबूक इच्छा रहनि तेँ, अठकठबा अहीँ सभ बाँटि लेबÓ। आब गौओँ सभ सुगबुगयला- र्इ कोना हेतै? अपन पुत्र अछैत आनक जनमल आगि देतै? देयादो रहितनि तँ ठीक छल। गोपाल भीतरे-भीतर कूही भ· उठला- भगवान हिनके कोखिमे किए ने जन्म देलथिन। कमल बाबू सन साèाु पुरुषक हाल भीतर èारि हिला देलकनि। आश्चर्य होइ छनि गोपालकेँ- एक टा माय कि बाप चारि टा संतानकेँ पोसि लै छै, मुदा चारि टा संतान मिलि एकटाकेँ नहि पोसि पबैए। गोपालक प्रस्तावपर भाइ सभ तँ तैयार भ· गेलथिन, आब समाजे विरोèामे ठाढ़ भ· गेलनि।
ताबत राजेÜवर बाबू ओकील हपसैत पहुँचि गेलथिन। ओ दाह संस्कार नहि होयबाकेँ नीक मानि रहल छला। कमल बाबू हुनका एगो लिफाफ देने रहथिन। कहने रहथिन जे हुनक मृत्युक बाद दाह संस्कार होयबासँ पूर्व खोलबाक निर्देश देने रहथिन, से कमल बाबूक देहांतक जानकारी भेलापर गंगापुरसँ सोझे दौड़ल गामपर गेला आ शव श्मशान चलि जेबाक बात सुनि सोझे एत· एला अछि। उपसिथत लोक सभमे हबगब शुरू भ· गेल। किनको मत रहनि जे कमल बाबू सभटा संपत्ति गोपालक नाम क· देने हेथिन तँ क्यौ एकरा गोपालक चलाकी मानि रहल छला। ओमहर चारू भाइकेर चेहरा निश्तेज भ· उठल छलनि। सभ एक-दोसराक मुँह देखि रहल छला। राजेÜवर बाबू लिलाफ फोललनि। सभ लोक हुनका घेरि लेलकनि। लिफाफसँ एगो कागत बहरायल जाहिपर लिखल छल जे श्हुनका आगि देथि श्री...पालÓ। आब भारी फेरी लागल। कागतमे पूरा नाम किनको नहि। श्पालÓ शब्दसँ पहिने सादा छलै। सभ भाइ तर्क देबय लगला। सभक यैह कहब जे बाबू हुनके नाम लिखय चाहै छला। बूढ़ रहथि से अक्षर छूटि गेलनि, मुदा एहिसँ निदान तँ नहि बहरायत। किछु लोक एहि लेल कमल बाबूकेँ सेहो लोक नीक-बेजाय कहय लगलनि। कमल बाबू रहथि मखौलिया। जाबत जीला सभकेँ हँसबैते रहला, मुदा किछु लोककेँ हुनक र्इ स्वभाव नीक लगनि तँ किछु गोटे भीतरे-भीतर डाहो रखै छला। कमल बाबू अपना पत्नीयोकेँ परिहास करैत रहै छलथिन। दलसिंहसराय कालेज जाथि आ अयबामे बेसी दिन भ· जानि तँ कहियो तेना अक्षर उन्टा क· चि-ी लिखि देथिन जे ककरो चलबे ने करै, मुदा कुमुदिनी आ गोपालकेँ बुझा देने रहथिन। कहियो सामने अयना राखि ओहिमे सभटा खेरहा पढ़ा जाय तँ कहियो शीर्षक नीचा क· अयनाक समक्ष पत्र रखलापर पढ़ाय, मुदा आइ तँ किछु लिखले नहि छै। गोपालोक बुद्धि काज नहि क· रहल छनि। एही बीच राजेÜवर बाबूक हाथसँ कागज उèािया गेलनि आ सोझे èाुआँइत गोँइठापर जा क· खसलै। जाबत लोक उठाबय-उठाबय ता कागत कुड़कुड़ा गेलै आ श्पालÓ शब्दसँ पहिने चमकि उठलै अक्षर श्गोÓ, आब शब्द पूरा भ· क· गोपाल भ· गेल छलै। हलसि उठला गोपाल आ मुखागिन दैत बाजि उठला श्तोँ सभ की देबह खूनक दाम, दाम तँ देलनि बाबूÓ। आ बुक्का फाडि़ क· कानि उठला गोपाल  श्बाबू यो बाबू... अगिलो बेर जन्म ली तँ अहीँ बाप होइ यो बाबूÓ।

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