Thursday, 1 August 2013

मधुश्रावणी : सातम दिनक कथा

            मधुश्रावणी : सातम दिनक कथा

                                      प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                            गौरीक तपस्या
काम-दहन आ महादेवक व्यवहार देखि गौरी डेरा गेली। हुनका कतहु चैन नञि भेटनि। सदैव शिव-शिव रटैत रहथि। एहि बीच हुनका नारद मुनिसँ भेटि भेलनि। गौरी हुनकासँ महादेवकेँ प्राप्त करबाक उपाय पुछलनि। नारद कहलथिन- ‘बिना तपस्याक महादेवक दर्शन कठिन अछि। हुनका तपस्येसँ प्राप्त कयल जा सकैत अछि।’ तखन सखी सभ महरानी मेनाकेँ सभ बात कहलथिन। गौरीकेँ बजा मेना कहलनि- ‘अपना घरमे सभ देवता छथि। एहन सुकुमारि शरीरसँ वनमे तपस्या करब सहज नञि। वनमे बड़ कष्ट होयत। ते ँ हेतु हमर विचार जे घरहिमे तपस्या करू।’ मुदा गौरीकेँ ई बात नञि जँचलनि। बिना महादेवक तपस्या केने हुनका चैन नञि भेटि रहल छलनि। गौरीकेँ दुखी देखि माय बहुत चिन्तित भेली। अन्तमे जंगला जा तपस्या करबाक आज्ञा दऽ देलनि।
गौरी माता-पिताके ँ प्रणाम कऽ सखी सभक संग वन विदा भेली। ओ पटोर आ गहना खोलि कृष्णाजिन आ बल्कल पहिरि लेलनि आ गौरीशिखर नामक पहाड़क चोटीपर गेली। फल-फूलसँ लदल मनोरम स्थानकेँ देखि ओकरा साफ कऽ तपस्याक बेदी बनेलनि। ओहिपर बैसि ओ कठिन तपस्या आरम्भ केलनि। गर्मी मासमे चारू कात धुनी लगा कऽ सूर्यक दिस तपस्या करथि। बरसातमे बिनु अऽढ़वला स्थानपर तपस्या करथि आ जाड़ मासमे जलमे ठाढ़ भऽ तपस्या करथि।
जे तपस्या मुनिगणसँ पार नञि लागल से तपस्या एक गोट सुकमारि कन्याकेँ करैत देखि मुनि लोकनि हुनकर दर्शन करऽ लेल आबऽ लगला। सभ हुनक प्रशंसा करऽ लगला। ओहि आश्रमक अद्भुत हाल छल। ओतऽ गाय-सिंह एकहि घाटपर पानि पिबै छल। गौरीक तपस्याक प्रतापसँ कैलाश आ गौरी शिखरमे कोनो अन्तर नञि रहल।
गौरीसँ प्रभावित भऽ ऋषि-मुनि सभ नारदक संग महादेवक ओतऽ गेला। हुनका सभ गोटे विनम्र भऽ कहलनि- ‘हे महादेव गौरी तँ तेहन तपस्या कऽ रहल छथि जेहन आइ धरि क्यौ नञि केलक अछि आ ने कहियो भविष्यमे कऽ सकत। आब हुनकापर प्रसन्न भऽ अहाँ हमरा लोकनिक काज कयल जाय।’
महादेव कहलनि- ‘गौरी अपन तपस्यासँ हमरा प्रसन्न कऽ देलनि। आब हुनकर मनोरथक पूर्त्ति हम करब। अहाँ लोकनि जाउ। अहाँ सभक काज अनायासे भऽ जायत।’
महादेव बूढ़ बबाजीक रूप धऽ गौरीक तपस्या-स्थलपर गेला। बबाजीकेँ देखि गौरी हुनकर स्वागत-सत्कार केलनि। बबाजी प्रसन्न भऽ हुनका पुछलनि- ‘कोनो तरहक विघ्न-बाध तँ नञि अछि? कोन कामनासँ एतेक कठिन तपस्या कऽ रहल छी?
गौरी अपने किछु उत्तर नञि दऽ अपन सखीकेँ इशारा केलनि। ओ कहलनि- ‘महादेवसँ विवाह करबाक कामनासँ हमर सखी गौरी तपस्या कऽ रहली अछि। जहिएसँ ई तपस्या आरम्भ केलनि तहिएसँ आश्रममे फल-फूल लगेलनि। ओ सभ गाछ आब बढ़िञा फल-फूल दऽ रहल अछि, मुदा हिनकर कामनाक फलक अंकुरो नञि फूटल अछि।’
बबाजी गौरीसँ पुछलनि- ‘की ई बात सत्य अछि?’
गौरी हँ मे उत्तर देलथिन।
एहिपर बबाजी अपन निरशा प्रकट करैत बिदा भेला जे हुनका होइ छलनि जे गौरी कोनो पैघ कामनासँ एहन कठिन साधनामे लागल छथि।
हुनका जाइत देखि गौरी हुनका रोकबाक प्रयास करैत पुछलनि- ‘हमरासँ कोन अपराध भेल जे एना निराश भऽ तमसा कऽ जाइ छी?’
एहिपर बबाजी बजला- ‘अहाँ हमर कोनो अपराध नञि केलहुँ अछि। हमरा पहिने अहाँपर श्रद्धा भऽ गेल छल, मुदा अहाँक अभीष्ट बूझि घृणा भऽ गेल। अहाँ अशर्फी बेचि माटि कीनऽ चाहै छी। हाथीक सवारी छोड़ि बरदपर चढ़ऽ चाहै छी। सूर्यक प्रकाश छोड़ि भगजोगनीक इजोतमे रहऽ चाहै छी। कोठा-अटारी त्यागि मरघटमे दिन बितबऽ चाहै छी। कतऽ सर्वसम्पन्न इन्द्रादि देवता आ कतऽ भिखमंगा महादेव? अहाँ सन सुकुमारि आ परम सुन्दिरीकेँ ओहि बूढ़ भिगमंगा महादेवक संग जोड़ी केहन लागत? अहाँक एहन चन्द्रमा सन मुँह आ महादेवक दाढ़ी-मोछ वला मुँह, अहाँक कमल सन आँखि आ हुनक तीनटा आँखि, अहाँक माथमे फूलक बेनी आ हुनका माथ आ देहमे छाउर, अहाँक देहमे सोनाक गहना आ हुनका देहमे साप आ मुण्डमालक गहना, अहाँ मंगलमयी आ ओ महा अमंगल, अहाँ महाराज हिमालयक बेटी आ ओ ककर सन्तान छथि से अपनो नञि जनै छथि। धनिक तेहन छथि जे देहपर लत्तो नञि छनि। कन्या लेल लोक वरमे जे जे गुण तकैत अछि ताहिमेसँ एको गोट गुण महादेवमे नञि छनि। हुनकासँ विवाह करबासँ अहाँक कोनो मनोरथ पूरत? अहाँपर महादेवके ँ जँ कनिञो अनुराग रहितनि तँ ओ कामदेवकेँ नञि जरबितथि। ओ अहाँक योग्य वर कदापि नञि छथि।’
एहिपर गौरी कहलथिन- ‘महादेव निर्गुण ब्रह्म थिका। ओ अपन इच्छानुसार सगुण सेहो होइ छथि। वैह ब्रह्माक रूप धऽ संसारक सृष्टि करै छथि। सभक आदि पुरुष वैह थिका। हिनकर पिता कोन पुरुष भऽ सकैत अछि? सभ विद्याक आदि वैह छथि। हुनके श्वाससँ वेद बहरायल अछि। तखन ओ मूर्ख कोना भऽ सकै छथि? कोनो गरीब लोक मनसँ हुनकर पूजा करैत अछि तँ ओ अत्यन्त धनिक भऽ जाइत अछि। हुनकर लीला अपरम्पार छनि। सुन्दरसँ सुन्दर आ कुरूपसँ कुरूप हुनके  रूप छनि। ओ कहियो अमंगलकारी नञि भऽ सकै छथि। अहाँ अपने पापी छी, ते ँ अहाँ हुनकर रहस्य कोना बुझबनि? अहाँक हम सत्कार केलहुँ, अहाँसँ गप केलहुँ एकर हमरा प्रायश्चित करऽ पड़त।’
बबाजी फेर किछु बाजऽ लगला तँ गौरी अपन सखीसँ बबाजीकेँ बिदा कऽ देबा लेल कहलनि। ओ कहलनि- ‘फेर ई महादेवक निन्दा करता। पैघक निन्दासँ मात्र निन्दा केनिहारेकेँ पाप नञि होइ छनि अपितु सुननिहारो पापक भागी होइत अछि।’ ई कहि गौरी ओतऽसँ तमसा कऽ बिदा भऽ गेली। बबाजी तुरन्त महादेवक रूप धऽ गौरीक बाट छेकैत कहलनि- ‘हम अहाँक तपस्यासँ प्रसन्न छी। जे वरदान माङब से माङू। आइसँ हम अहाँक दास छी।’
गौरी लाज आ अनन्दसँ काठ भऽ गेली। महादेव कहलनि- ‘आब अहाँक वियोग हमरासँ सहल नञि जाइत अछि। कैलाश चलू ओतहि विवाह करब।’ गौरी लाजे महादेवकेँ किछु नञि कहि सकली। ओ अपना सखीसँ कहबेलनि जे जँ अहाँ हिनकापर प्रसन्न छी तँ अहाँ हिनकर एतबा अनुरोध मानि लियनु। एखन हिनका पिताक घर जेबाक अनुमति दियनु। अहाँ कोनो पैघ लोककेँ हिनकर पिताकेँ ओतऽ पठा कऽ हिनका संग विवाहक प्रस्ताव करियनु। विवाहक जे प्रचलित नियम अछि तहिना विवाह हो जाहिसँ हिनक पिताक गृहस्थाश्रम सफल होनि आ यश पसरनि।
गौरीक बात मानि महादेव अन्तर्ध्यान भऽ गेला। गौरी अपन पिताक घर एली। हिमालय आ मेना गौरीक सखीक  मुँहे सभ बात सुनि प्रसन्न भेला। जानकारी होइते ऋषि-मुनि हिमालयक ओतऽ एला।  

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