ऊधोजीक उधियान....
-अमलेन्दु शेखर पाठक
जाम परदेश
ऊधोजी बाँसक फट्ठा नेने, गल्लीक मुँहपर बेञ्च लगेने ओहिपर बैसल छला। बाँस लऽ बाटकेँ पूरा-पूरी घेरि देने छला। हालति तेहन छल जे कातो दऽ निकलब सम्भव नञि छल। जे प्रयास करितो छल तकरापर फट्ठा लऽ छुटै छला। नेना-भुटका सभ स्कूल जेबा लेल पीठपर बस्ताक बैग लदने ठाढ़ आ हुनक अभिभावक लोकनि ऊधोजीसँ आग्रह कऽ ्नरहल आ ओ तेना गरजि कऽ दौड़ै छला- ‘मारे सोँटासँ दिमागे झारि देगा।’
लोक सभक पिल्ही चमकि उठै छलै आ सभ सुटुकि जाइ छल। अपनो आॅफिस जेबामे विलम्ब भऽ रहल छल, मुदा ऊधोजीक कोइलाक पहाड़ सन कायासँ लगमे जेबाक साहस नञि भऽ रहल छल। ताबत हुनकर नजरि हमरापर पड़लनि आ जीवनमे पहिल दिन हलसि उठला। अपना मने मोलायम स्वरमे हमर स्वागत केलनि, मुदा हमरा लागल जेना क्यौ कानेपर हथौड़ा बजारि रहल हो- ‘आबो भैबा! तूँ आबि गीया तँ आब काज भऽ जायगा।....आबो बैसि कऽ हम्मर समर्थनमे नारा लगाबो आ हे कने कलस्टर साहेबकेँ फोनो लगाबो जे मोआबजा भेटेगा तखने बाटो फूजेगा।’
ऊधोजीक भुजदण्ड बढ़लनि आ जाबत हम किछु कही ताहिसँ पहिने हमरा खेलौना जकाँ उठा बेञ्चपर अपना हिसाबे बैसेलनि आ हमरा हिसाबे पटकि देलनि। बड़ चोट लागल। सुसाकरी छूटि गेल। मन तँ लोहछि गेल, मुदा ऊधोजीपर क्रोधो तँ नञि प्रकट कऽ सकै छलहुँ। मन मसोसि कऽ रहि गेलहुँ। बाट जाम करबाक कारण पुछलियनि तँ अपन विशाल टाङ आगाँ कऽ देलनि। ओहिमे क्रैप बैण्डेज छलनि। हमरा किछु बुझबा नञि आयल तँ फुफकार जकाँ निसास छोड़ैत कहलनि- ‘भैबा रे! हम्मर टाङ मुचुकि गीया। एकर मोआबजा भेटेगा तखने बाट छूटेगा।’
-‘आहि रे बा, अहाँक टाङ टूटि गेल ताहि लेल मोआवजा किए भेटत? आइ धरि एना कहियो भेलैए?...’
हमरा बीचेमे रोकैत ऊधोजी गरजला- ‘हे बेसी बलगेङ नञि जोता...जतबा कहा ततबे बूझेगा तँ नीक रहेगा...दुनिञा भरिमे की भऽ रहा से तोरे टा नञि ने बूझा रे, हमरो ने बूझा...चुपचाप मोआबजा लेल बात करि देओ नञि तँ घरमे जा कऽ सूतो आइ हम तँ आपिस नञि जाय देगा।’
हम कल जोड़ि शान्त करैत कहलियनि- ‘हे-हे बिगड़ियौ नञि। अपने सन पुरुख जँ बिगड़ि जायत तँ प्रलये ने एतै...।’
ऊधोजी पहिने तरङला- ‘रे तोँ बड़ काबिल रे...हम तोरा यमराज बुझाता की जे परलय आबेगा?’
हम हड़बड़ा उठलहुँ जे कहीँ फेर ने उठा कऽ बजारि देथि। घिघियाइत कहलियनि- ‘नञि-ननि हमर कहबाक आशय से नञि छल। हम तँ अहाँक सामर्थ्यवान हेबाक बात कहि रहल छलहुँ...मुदा भेल की से तँ कहू, कलक्टर साहेब पुछता तँ की कहबनि?।’
ऊधोजी नरम पड़ला- ‘से ने बाजो... देख भैबा! हम बजारसँ घूमि घर आबि रहा कि सड़क केर खाधिमे पैर कलटि गीया आ मुचुकि गीया।...पट्टी देखि रहा ने...आब बाजो जे सरकार एहन बाट किए राखा जे हम्मर पैर मुचका?...हम तँ बिना मोआबजा नेने नञि मानेगा।’
हम कहलियनि- ‘एतनी गो बातक लेल कतहु मोआबजा भेटय?...बेकारे जाम केने छी क्यौ नञि सूनत।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘तोरा कहने नञि भेटेगा मोआबजा...हमर पैर मुचुकि गीया से कनी गो बात भया आ सौँसे जे लोक सभ कनी-कनी गो बातपर बाट जाम करि रहा से...जेम्हरे बिदा भया तेम्हरे जाम...ई कथीक जाम तँ बकरीकेँ मोटरवला पीचि दीया...रे तँ मोटरवलाकेँ ने धरेगा, एहिमे सरकार की गलती भया।...ई जाम किए, तँ मुर्गीकेँ पीचि दीया...ई जाम कथी लेल, तँ बच्ची बाट टपि रहा कि जीप ठोकर मारि दीया...ले बलैया, नेना-भुटकाकेँ समेटि कऽ ने राखेगा?...रोडक कातेमे जँ घर बान्हा तँ बाल-बुतरूपर ध्यान ने देगा...।’
ऊधोही जोशमे आबि ठाढ़ भऽ गेल छला आ मुक्का भाँजि-भाँजि भाषण दऽ रहल छला। घामे-पसेने भऽ गेल छला, मुदा बजबाक उत्साह बढ़िते जा रहल छलनि- ‘जाम करबामे बाल-बुतरू केर संग ओकर बापो-माय जूटि रहा...देखा नञि जे पछिला दिन इस्कूल सभमे टाका बँटाया तँ कते ठाम जाम भया...रै भैबा! आर तँ आर सड़कपर दू गो गाड़ी दौड़ि रहा अपनामे टक्कर भऽ गीया तँ बाट जाम, गलती अप्पन आ तंग किया जात्री सभकेँ...एक गोटे दारू पीबि रातिमे बाटेपर सूति रहा, कोनो गाड़ी वला ठोकि दीया तँ भोरे फूल-माला दऽ लहास राखि भऽ गीया जाम...एक गोटे बाटक अतिकरमण कऽ घर बनाया, तातिमे कोनो टरक मारि दीया धक्का तँ भऽ गीया जाम...।’
हम रोकलियनि- ‘मुदा अहाँ जकाँ पैर मुचुकबापर नञि ने जाम होइ छै।’
ऊधोजी भड़कला- ‘रे एकरा तोँ छोट बात बूझि रहा। आन सभ तँ ताहि लेल जाम कीया जाहिमे सरकारक कोनो दोख नञि भया, मुदा हमर जे टाङ मुचका से तँ सरकारक बाटपर ने रे!...जेँ सरकार खाधि नञि भरा तेँ ने मुचका...नञि केहन देगा मोआवजा...हम केस करि देगा जे टाङ मुचुकबाक कारणेँ हमर लाखोक नोकसान भऽ गीया।’
फेर शान्त पड़ला आ बेञ्च घुसकबैत बाट खाली करैत कहलनि- ‘हमहूँ तँ ओकरे सभ जकाँ करि रहे नञि, गलती सरकारक आ तंग महल्लाक लोक।’
ऊधोजी बेञ्चकेँ कँखिएलनि आ बरबराइत बिदा भऽ गेला- ‘सरकारो तँ जामक समस्याकेँ बढ़ेबे ने करि रहा, जहाँ किछु भया कि मोआवजा...एहि लेल समाजकेँ ने जागरूक करेगा...नञि करेगा तँ किछुए दिनमे अपना इलाका केर नाम झूला परदेस भऽ जायगा।’
ऊधोजी जा रहल छला आ हम हुनक पीठ निँघारैत विचार करऽ लगलहँु जे ठीके ने कहि रहल छथि।
-अमलेन्दु शेखर पाठक

ऊधोजी बाँसक फट्ठा नेने, गल्लीक मुँहपर बेञ्च लगेने ओहिपर बैसल छला। बाँस लऽ बाटकेँ पूरा-पूरी घेरि देने छला। हालति तेहन छल जे कातो दऽ निकलब सम्भव नञि छल। जे प्रयास करितो छल तकरापर फट्ठा लऽ छुटै छला। नेना-भुटका सभ स्कूल जेबा लेल पीठपर बस्ताक बैग लदने ठाढ़ आ हुनक अभिभावक लोकनि ऊधोजीसँ आग्रह कऽ ्नरहल आ ओ तेना गरजि कऽ दौड़ै छला- ‘मारे सोँटासँ दिमागे झारि देगा।’
लोक सभक पिल्ही चमकि उठै छलै आ सभ सुटुकि जाइ छल। अपनो आॅफिस जेबामे विलम्ब भऽ रहल छल, मुदा ऊधोजीक कोइलाक पहाड़ सन कायासँ लगमे जेबाक साहस नञि भऽ रहल छल। ताबत हुनकर नजरि हमरापर पड़लनि आ जीवनमे पहिल दिन हलसि उठला। अपना मने मोलायम स्वरमे हमर स्वागत केलनि, मुदा हमरा लागल जेना क्यौ कानेपर हथौड़ा बजारि रहल हो- ‘आबो भैबा! तूँ आबि गीया तँ आब काज भऽ जायगा।....आबो बैसि कऽ हम्मर समर्थनमे नारा लगाबो आ हे कने कलस्टर साहेबकेँ फोनो लगाबो जे मोआबजा भेटेगा तखने बाटो फूजेगा।’
ऊधोजीक भुजदण्ड बढ़लनि आ जाबत हम किछु कही ताहिसँ पहिने हमरा खेलौना जकाँ उठा बेञ्चपर अपना हिसाबे बैसेलनि आ हमरा हिसाबे पटकि देलनि। बड़ चोट लागल। सुसाकरी छूटि गेल। मन तँ लोहछि गेल, मुदा ऊधोजीपर क्रोधो तँ नञि प्रकट कऽ सकै छलहुँ। मन मसोसि कऽ रहि गेलहुँ। बाट जाम करबाक कारण पुछलियनि तँ अपन विशाल टाङ आगाँ कऽ देलनि। ओहिमे क्रैप बैण्डेज छलनि। हमरा किछु बुझबा नञि आयल तँ फुफकार जकाँ निसास छोड़ैत कहलनि- ‘भैबा रे! हम्मर टाङ मुचुकि गीया। एकर मोआबजा भेटेगा तखने बाट छूटेगा।’
-‘आहि रे बा, अहाँक टाङ टूटि गेल ताहि लेल मोआवजा किए भेटत? आइ धरि एना कहियो भेलैए?...’
हमरा बीचेमे रोकैत ऊधोजी गरजला- ‘हे बेसी बलगेङ नञि जोता...जतबा कहा ततबे बूझेगा तँ नीक रहेगा...दुनिञा भरिमे की भऽ रहा से तोरे टा नञि ने बूझा रे, हमरो ने बूझा...चुपचाप मोआबजा लेल बात करि देओ नञि तँ घरमे जा कऽ सूतो आइ हम तँ आपिस नञि जाय देगा।’
हम कल जोड़ि शान्त करैत कहलियनि- ‘हे-हे बिगड़ियौ नञि। अपने सन पुरुख जँ बिगड़ि जायत तँ प्रलये ने एतै...।’
ऊधोजी पहिने तरङला- ‘रे तोँ बड़ काबिल रे...हम तोरा यमराज बुझाता की जे परलय आबेगा?’
हम हड़बड़ा उठलहुँ जे कहीँ फेर ने उठा कऽ बजारि देथि। घिघियाइत कहलियनि- ‘नञि-ननि हमर कहबाक आशय से नञि छल। हम तँ अहाँक सामर्थ्यवान हेबाक बात कहि रहल छलहुँ...मुदा भेल की से तँ कहू, कलक्टर साहेब पुछता तँ की कहबनि?।’
ऊधोजी नरम पड़ला- ‘से ने बाजो... देख भैबा! हम बजारसँ घूमि घर आबि रहा कि सड़क केर खाधिमे पैर कलटि गीया आ मुचुकि गीया।...पट्टी देखि रहा ने...आब बाजो जे सरकार एहन बाट किए राखा जे हम्मर पैर मुचका?...हम तँ बिना मोआबजा नेने नञि मानेगा।’
हम कहलियनि- ‘एतनी गो बातक लेल कतहु मोआबजा भेटय?...बेकारे जाम केने छी क्यौ नञि सूनत।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘तोरा कहने नञि भेटेगा मोआबजा...हमर पैर मुचुकि गीया से कनी गो बात भया आ सौँसे जे लोक सभ कनी-कनी गो बातपर बाट जाम करि रहा से...जेम्हरे बिदा भया तेम्हरे जाम...ई कथीक जाम तँ बकरीकेँ मोटरवला पीचि दीया...रे तँ मोटरवलाकेँ ने धरेगा, एहिमे सरकार की गलती भया।...ई जाम किए, तँ मुर्गीकेँ पीचि दीया...ई जाम कथी लेल, तँ बच्ची बाट टपि रहा कि जीप ठोकर मारि दीया...ले बलैया, नेना-भुटकाकेँ समेटि कऽ ने राखेगा?...रोडक कातेमे जँ घर बान्हा तँ बाल-बुतरूपर ध्यान ने देगा...।’
ऊधोही जोशमे आबि ठाढ़ भऽ गेल छला आ मुक्का भाँजि-भाँजि भाषण दऽ रहल छला। घामे-पसेने भऽ गेल छला, मुदा बजबाक उत्साह बढ़िते जा रहल छलनि- ‘जाम करबामे बाल-बुतरू केर संग ओकर बापो-माय जूटि रहा...देखा नञि जे पछिला दिन इस्कूल सभमे टाका बँटाया तँ कते ठाम जाम भया...रै भैबा! आर तँ आर सड़कपर दू गो गाड़ी दौड़ि रहा अपनामे टक्कर भऽ गीया तँ बाट जाम, गलती अप्पन आ तंग किया जात्री सभकेँ...एक गोटे दारू पीबि रातिमे बाटेपर सूति रहा, कोनो गाड़ी वला ठोकि दीया तँ भोरे फूल-माला दऽ लहास राखि भऽ गीया जाम...एक गोटे बाटक अतिकरमण कऽ घर बनाया, तातिमे कोनो टरक मारि दीया धक्का तँ भऽ गीया जाम...।’
हम रोकलियनि- ‘मुदा अहाँ जकाँ पैर मुचुकबापर नञि ने जाम होइ छै।’
ऊधोजी भड़कला- ‘रे एकरा तोँ छोट बात बूझि रहा। आन सभ तँ ताहि लेल जाम कीया जाहिमे सरकारक कोनो दोख नञि भया, मुदा हमर जे टाङ मुचका से तँ सरकारक बाटपर ने रे!...जेँ सरकार खाधि नञि भरा तेँ ने मुचका...नञि केहन देगा मोआवजा...हम केस करि देगा जे टाङ मुचुकबाक कारणेँ हमर लाखोक नोकसान भऽ गीया।’
फेर शान्त पड़ला आ बेञ्च घुसकबैत बाट खाली करैत कहलनि- ‘हमहूँ तँ ओकरे सभ जकाँ करि रहे नञि, गलती सरकारक आ तंग महल्लाक लोक।’
ऊधोजी बेञ्चकेँ कँखिएलनि आ बरबराइत बिदा भऽ गेला- ‘सरकारो तँ जामक समस्याकेँ बढ़ेबे ने करि रहा, जहाँ किछु भया कि मोआवजा...एहि लेल समाजकेँ ने जागरूक करेगा...नञि करेगा तँ किछुए दिनमे अपना इलाका केर नाम झूला परदेस भऽ जायगा।’
ऊधोजी जा रहल छला आ हम हुनक पीठ निँघारैत विचार करऽ लगलहँु जे ठीके ने कहि रहल छथि।
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