
- अमलेन्दु शेखर पाठक
गोनू झा केर भाइ छलथिन भोनू झा। एक बेर दुनू भाइमे बाँट बखरा भऽ गेलनि। सभ सम्पत्तिक बँटवारा भऽ गेल। जे समान जोड़ामे छल, माने दू-दू चारि-चारि केर संख्यामे छल से तँ सहजतासँ बँटा गेल, मुदा जे एके टा छल तकरा कोनो बाँटल जाय? ई पैघ समस्या छल। गोनू झा चाहै छला जे महीँसक सेवा दूनू भाय करथि। ओकरा दुनू गोटे खाय-पीबऽ लेल देथि आ दूध आधा-आधा बाँटि लेथि, मुदा भोनू झाकेँ लोक सभ चढ़ा-बढ़ा देने छलनि तेँ ओ मानबा लेल तैयारे नञि भेला। गोनू झा कतबो बुझेलथिन, मुदा ओ टोलबैया सभक सिखेबाक कारणेँ महीँस बँटबापर अड़ल रहि गेला। अन्तमे गोनू झा हुनकेपर छोड़ि देलथिन जे जेना मन होनि तेना करथु।
एमहर गोनू झाक विकाससँ टोल-पड़ोसक लोक सभमेसँ कतेको जरै छल। कतेको गोटे हुनका छकेबाक प्रयासमे विफल रहल छला से सभ अवसर तकै छला जे कोना हुनका पछाड़ल जाय। एहन लोक सभकेँ गौँ भेटि गेलनि। ओ सभ भोनू झासँ सटि गेला आ आरो चढ़ा-बढ़ा देलनि जे महीँसोक बाँट कराबथु। भोनू झा हुनके सभकेँ पञ्चैती लेल बजेलनि। सभ बैसि कऽ पञ्चैती कऽ देलनि जे महीँसकेँ आगाँ आ पाछाँ दू भागमे बाँटि देल जाय। अगिला हिस्सा गोनू झाकेँ भेटलनि आ पछिला भोनू झाकेँ।
अगिला हिस्सामे महीँसक मुँह पड़ै छल से गोनू झा रोज महीँसकेँ खुआबथि आ पछिला हिस्सामे थनमे पड़ै छल से भोनू झा बिना कोनो तरद्दुतकेँ आरामसँ रोज दूध दूहथि आ दही-दूध खाथि-पीबथि। गोनू झाकेँ बिना किछु केने गोबर सेहो भऽ जानि, जकरा खेतमे पटाबथि। एहिसँ हुनक उपजो बढ़ि गेलनि। गोनू झा भायक सिनेहमे चुपमे छला। एक दिन टोलबैया सभ हुनक कौचर्य केलकनि जे बड़ा दिमाग वला छथि, केहन छकेलियनि।
ई बात गोनू झाकेँ बड़ अप्रिय लगलनि। ओ तय केलनि जे सभक बुधियारी घुसारि देता। फेर की छल, अगिला दिनसँ जखने भोनू झा महीँस दुहबा लेल बैसथि कि गोनू झा महीँसक मुँहपर सोँटा लऽ पीटऽ लागथि। एहिसँ महीँस छटपटाय लागय आ लथार चलबऽ लागय। भोनू झा महीँसकेँ दूहिए ने पाबथि। ई क्रम जखन दू-चारि दिन चलल तँ भोनू झा एकर शिकाइत पञ्च सभसँ केलनि। सभ फेर जुटला। गोनू झाकेँ पुछलथिन जे ओ एना किए करै छथि जे भोनू झा महीँसकेँ दूहि नञि पबै छथि?
गोनू झा मुस्कियाइत उत्तर देलथिन जे अपना हिस्सामे किछु करै छथि ताहिसँ ककरो की मतलब? ओ भोनू झाक हिस्सामे तँ नञि किछु करै छथि? ककरो लग कोनो उत्तरे नञि छल। भोनू झा सेहो बूझि गेला जे ओ गोनू झासँ अराड़ि मोल लऽ नञि टीकि सकै छथि। ओ गोनू झा लग हारि मानि लेलनि आ तकर बाद दुनू भाय मिलिजुलि कऽ महीँसकेँ खुआबथि-पियाबथि आ दूध आधा-आधा बाँटि लेथि। गोनू झासँ ईर्ष्या रखनिहार टोलबैया सभ मुँहे बबैत रहि गेल।
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