Tuesday, 23 July 2013

ऊधोजीक उधियान........ हम्मे नञि रहबऽ तिमनचिक्खा

  ऊधोजीक उधियान........
                         हम्मे नञि रहबऽ तिमनचिक्खा
                                                           - अमलेन्दु शेखर पाठक 
ऊधोजी उत्फाल भेल छथि। सौँसे घर एक दिस आ ओ अपने एक दिस भऽ गेल छथि। ककरो सुनबा लेल तैयार नञि। ओ अड़ि गेल छथि जे आब नोकरी नञि करता- ‘नञि हम्मे नोकरी नञि करबऽ तोँइ आर कतबो हल्ला करभो हम्मे आइ रिजनेसन मारि इस्कूलसँ घुरी अइबऽ।’
भौजी, माने ऊधोजीक कनिञा दौड़ल एली हमरा गोहराबऽ- ‘हे नूनू तोँइ बुझैबहो तँ मानि जैथिन। रिजेन मारि देथिन तब बाल-बुतरू सभ की खैतै...फेरो सनकी चढ़ि गेलै हन।’
हुनकासँ बात बुझबाक प्रयास कयल जे ऊधोजी एना किए कऽ रहल छथि, मुदा ओ किछु कहबाक बदला तेना हमर गट्टा धेलनि जे ओकर मट्टा टूटि गेल आ पहिल दिन बुझलहुँ जे भौजी पूरा-पूरी ऊधोजीक अर्द्धांगिनी हेबा जोगर छथि। हमर मुँहक बात मुँहे रहि गेल आ ओ हमरा घिसिएने अपना आङन लऽ कऽ पहुँचि गेली। ऊधोजी कऽलपर हाथ मटिया रहल छला। हमरा देखिते हुम्हरला- ‘भैबाकेँ बोला कऽ लैलहो से आइ हम एकरो बात नञि मानबो।...तोँइ आर कलस्टर-मजिस्टरकेँ अन्भो तैयौ आइ हम्मे अपना बातसँ नञि पलटय वला छिकियै।...हमरा जानपर बनल छिकै आ हिनका सभकेँ....।’
ऊधोजी वाक्यो ने पूरा केलनि आ हड़बड़ा कऽ लोटा नेने फेर कऽले लगक शौचालयमे घुसि गेला। भौजीसँ पता चलल जे अधरतिएसँ लोटे हाथे छथि। घर भरि जागल अछि। रातिमे पानि चढशौचालयसँ घुरै छथि तँ एतबे रटै छथि जे आइ नोकरी छोड़ि देता। एहू हालतिमे त्यागपत्र लिखि कऽ राखि लेलनि अछि। कनिञा बुझा कऽ थाकि गेली अछि। आब जेठका बेटोकेँ मोछक पम्ह चललनि, से ओहो बुझेलकनि, मुदा ओकरा हुरपेटि लेलथिन। बेचारा सिटपिटा कऽ कात भऽ गेल। भौजीकेँ पुछलियनि- ‘किए त्यागपत्र देबऽ चाहै छथि? भेलैए की जे...’
हमर मुँहक बात मुँहेमे रहि गेल। ऊधोजी शौचालयसँ बहार भऽ गेल छला, ओ कऽलपर हाथ मटिएबा लेल बैसैत कहलनि- ‘हम्मे कहै छिकियौ भैबा, तनी हाथ धोइ लै छिकियौ...तोँइ जरूर हम्मर दरद बुझभीँ...।’
हाथ मटिया ओही ठाम आङनमे राखल चौकीपर ओलरि गेला। हुनकर हालति ठीके खराब छलनि। कहाँ चकैठ सन देहवला ऊधोजी आ कहाँ एके रातिमे गलि कऽ राङ भऽ गेल हुनक देह। कतऽ लाल-लाल कर्जनी सन बड़का-बड़का डिम्हा कुदबा लेल तैयार रहै छलनि से धँसि गेल छलनि।...ऊधोजी कने काल आँखि मुनने हकमैत रहला। हम ई सोचि दलानपर चलबाक आग्रह केलियनि जे ओहि ठाम कोनो बात होयत तँ भौजी संग झझका-झझकी तँ नञि हेतनि, से प्रस्ताव दैते हमरापर छुटला- ‘तोँइ महा खतम छिकहीँ भैबा, लौकै नञि छिकौ जे हमर की हाल छिकै...अधरतियासँ अखनी धरि लोटा नेने दौड़िए रहलियै हन...आधासँ बेसी काल भितरे बैसल छिकियै।...फीरि अइलौँ आ फीरि जाइ छिकियै.....जँ फेरो पेटमे खोँच मारय लगतै तँ तोँइ काम देबहो...जाबे अङना अइबै ताबे जँ.....नञि-नञि हम्मे नञि जैबै दूरापर इहेँ बैठब करेँ...।’
चुप लगा गेलहुँ। कहबो तँ ठीके कने छला। बेचारे करथु की। आहा-ओहो कऽ हुनका पोल्हबैत पुछलियनि- ‘की भेल? किए नोकरी छोड़बा लेल भिड़ल छी...पेट किए खराब भऽ गेल? कतहु अक्कच-दोक्कच खा लेलियै की?’
ऊधोजी ओहू हालमे गरजि उठला- ‘माहटर तोँइ छहो की हम्मे...लगल्हो हमरासँ चटिया जेँकती सबाल पुछय...किए नोकरी छोड़भो...रे हम्मे भितरामपुर जा रहल छिकियै तकर चिन्ता ककरो नञि छिकै...खस्सी के जान जाय आ खेबैया के स्वादे नञि...तोँइ आर की चाहै छहो जे ऊधोबाबूकेँ फूकि देबहो तखनिए चैन होइतऽ..?’
मन तँ लोहछि गेल। ई हमर चटिया तँ नहिञे छथि, हमहूँ तँ हिनक चटिया नञि छियनि। दू-चारि बरख छोट हेबनि तकर की माने जे एना लुलकारता? मन तँ भेल जे चुपचाप उठि कऽ चलि दी, मुदा फेर हुनक शारीरिक अवस्थापर ध्यान गेल आ चुप लगा गेलहुँ। अपना ओहि ठाम कहलो गेल छै जे बच्चा, बूढ़ आ बेमारपर दया करी। प्राय: ऊधोजी सेहो गमि लेलनि जे एखन हुनकर बात हमरा नीक नञि लागल से नरम पड़ैत कहलनि- ‘ले बलैया तोँइ किए मूँह लटका लेलहीँ रे भैबा, कने जोरसँ बोला गेलै तँ बुझभी नञि जे कमजोरीसँ एना होइ छिकै....।’
ऊधोजी हमरा प्रति सिनेह देखेलनि आ आगाँमे टाङ पसारि देलनि। संकेत केलनि तँ मन मसोसि कऽ पैर ऐँठऽ लगलियनि। हमरा दबेने हुनक ढेङ सन-सन टाङ-जाँघकेँ की हेतनि, मुदा तैयो झूलऽ लगलहुँ आ ऊधोजी अपन व्यथा कहब शुरू केलनि- ‘भैबा रे सरकारी नोकरीकेँ लात मारब के चाहै छिकै? जहिया नोकरी होलै तहिया हम्मे बड्डी खुशी होलियै...माहटर होबै...परिच्छा होइतै तऽ हमरा आउर के नोकरी होबो करितै? बीए पास होलियै तहिया मोछ रहै करिया...नोकरी होलै उजरा मोछवला के...जे होलै से होलै माहटर तऽ हम्मे होइए गेलियै....आहि रे बा, माहटर होलियै बाल-बुतरूकेँ पढ़ाबै खातिर की बकरी, घोड़ा, महीस आ मनुक्ख गीनय खातिर आ भोट करबय खातिर?...हाय रे बा एकर बाद हम्मे होइ गेलियै बेपारी....चाउन आनहो, खिचड़ी बाँटहो...चोरी करहो, चाउर बेचहो, नञि बेचभो तँ तंग होइबहो...चोरी करहो तोँइ, पकड़ैबहो तँ गौञाँ-घरुआ सोँटियैबो करतऽ आ एकबारमे फोटो सहो छपि जैतऽ...नञि चोरि करभो तँ ई लुटुकुन नेताजी सभक आव-भगत कहाँसँ करभो...हाकिमक स्वागत कोना होइतऽ?’
ऊधोजीकेँ कण्ठ सुखा गेल छलनि। नोन-चीनी मिलायल पानि दू घोँट पीलनि आ फेर शुरू भऽ गेला- ‘ई फेज तँ जेना-तेना पार होइ गेलियै...हाय रे बा आब   कहै छिकै तिमनचिक्खा बनहो।’
हम टोकारा देलियनि- ‘केहन सुन्नर तँ नोकरी अछि। आब तँ अहाँ प्रभारी हेडमास्टरो छी।’
ऊधोजी लोहछला- ‘भैबा रे यैह ने काल होइ गेलै। छपरामे मझिनी भोजन धीयापुता खैलकै आ मरि गेलै से आब कहै छिकै जे पहिने तोँ चिखहो तब दहो बच्चा सभके...नोकरी करभो तँ सरकारी बात कोना नञि मानभो से काल्हि हम्मे चिखलियै एक बेर, मुदा आबय लागलै नेताजी सभ आ सभ बेराबेरी अपना सामनेमे हमरा कहै पहिने अपने खाइ कऽ देखबहो...तै पर गारजीयनो जुटय लागलै...हमरा चिखैत-चिखैत ठोँठा धरि आइ गेलै खिचड़ी..ढेकरो होइ तँ मुँहमे खिचड़ी आबि जाइ...घरे आबैत-आबैत छेरा-बोकरा धै लेलकै...आब तोँही बोलेँ हम्मे माहटरी करबै कि तिमनचिक्खा बनबै....।’
ऊधोजीक बात तँ ठीके छलनि, तथापि कहलियनि- ‘मिड डे मील बनेबामे सफाइ आदि नञि रखबै?’
ऊधोजी तमतमेला- ‘तोँइ आर की बुझै छहो जे हम्मे सभ जानि-बूझि कऽ गन्दा राखै छिकियै, जे बेबस्था देबहो ओहीमे ने खाना बनबैबै...कहै छहो जे शौचालय लग बनबै छिकै...रे भैबा देशमे ऐसन लाखो आदमी छिकै जे लगमे नञि शौचालये के हॉजपर खाना पकबै छिकै...आ घरमे लोकके फूड पोआइजनिंग नञि होइ छिकै...कुछ होइ गेलै तँ माहटरे के फाँसी....बच्चा आर के हिफाजति ठीक छिकै, मुदा माहटर के जान जान नञि होइ छिकै की...फूड चीखि कऽ अपने टीङ गेलियै तबै की होतै...छिकै अन्दाज ककरो...हम ककरो नञि सुनबै...आइ रिजनेसन देबे करबै?’
ऊधोजी लोटा लऽ फेर दौड़ि गेला आ हम चौकीपर विचारैत बैसल रहि गेलहुँ, अपना आहि ठाम कोनो समस्याक निदान लेल रोगक इलाज किए ने होइ छै?

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