Wednesday, 31 July 2013

मधुश्रावणी : छठम दिनक कथा

                        मधुश्रावणी : छठम दिनक कथा

                                          प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                                   गंगाक कथा
महाराज सगरकेँ दू गोट स्त्री छलथिन- वैदर्भी आ शैव्या। शैव्यासँ असमञ्जस नामक पुत्र भेलनि। वैदर्भीकेँ  सन्तान नञि छलनि। ओ सन्तानक निमित्त महादेवक तपस्या करऽ लगली। सय बरखक बाद एक गोट लोथक जन्म भेलनि। ई देखि वैदर्भी कानऽ लगली। महादेवकेँ स्मरणक करैत गोहरेलनि। महादेव पसीझि गेला आ ब्राह्मणक रूप धऽ ओतऽ एला आ ओहि लोथकेँ साठि हजार खण्ड कऽ सभकेँ एक-एक तौलामे झाँपि कऽ राखि देलनि। थोड़े दिनुक बाद ओ साठि हजार लोथक खण्ड साठि हजार सुन्दर आ बलवान पुत्रक रूपमे बदलि गेल।
महाराज सगर निनानबे गोट अश्वमेध यज्ञ पूरा कऽ सयम यज्ञ करबाक तैयारी कऽ रहल छला। देवराज इन्द्र नञि चाहै छला जे सगर केर सयम यज्ञ पूर्ण होनि। एकर कारण छल जे सयम अश्वमेध यज्ञ पूरा हेबापर यज्ञ केनिहार शतक्रतु इन्द्र भऽ जाइत अछि। तेँ इन्द्र कोनो ने कोनो विघ्न उपस्थित कऽ देथिन।
अश्वमेधक घोड़ा छोड़ल गेल जकरा संग सगर केर साठियो हजार पुत्र विदा भेला। इन्द्र छल-बल कऽ ओहि घोड़ाकेँ लऽ भागि गेला। साठियो हजार राजकुमार हुनका खेहारलनि। ओ सभ घोड़ा तकबा लेल पृथ्वीकेँ कोड़ैत आगू बढ़ैत गेला। अन्तमे कपिल मुनिक आश्रममे घोड़ा बान्हल देखलनि। कपिल मुनि तपस्यामे लीन छला। राजकुमार लोकनि कपिलकेँ घोड़ाक चोर बुझि हुनकेपर छुटला। एहिसँ कपिल मुनिक ध्यान भंग भऽ गेलनि जाहिसँ ओ क्रुद्ध भऽ गेला। हुनक कु्रद्ध-दृष्टिसँ साठियो हजार राजकुमार तखने जरि कऽ भस्म भऽ गेला। महाराज सगरक यज्ञ अपूर्णे रहि गेलनि। ओ शोकाकुल भऽ गेला आ हुनक मृत्यु भऽ गेलनि।
राजकुमार लोकनिक अपमृत्यु भेल छलनि। हुनका सभक सद्गतिक उपायपर विचार लेल विद्वान लोकनिक सभा बैसल। एहिमे निष्कर्ष बहार भेल जे जँ गंगा बैकुण्ठसँ पृथ्वीपर उतरि आबथि आ साठियो हजार राजकुमारक छाउरकेँ अपन जलधारामे डुबा पवित्र कऽ देथि तखने सभकेँ सद्गति भेटि सकै छनि। मृत राजकुमार लोकनिक वैमात्रेय भाइ असमञ्जस गंगाकेँ पृथ्वीपर उतारबा लेल तपस्या करैत-करैत मरि गेला। हुनक पुत्र दिलीपो लाख बरख धरि तपस्या केलनि, मुदा सफल नञि भेला आ मरि गेला। दिलीपक पुत्र अंशुमानो तपस्या करैत-करैत मरि गेला। तखन हुनक पुत्र भगीरथ तपस्या आरम्भ केलनि जाहिसँ प्रसन्न भऽ विष्णु भगवान गंगाकेँ बैकुण्ठसँ मृत्यु भुवनपर जेबाक अनुमति दऽ देलथिन।
गंगाक एकाएक पृथ्वीपर उतरि जेबासँ धरती रसातलमे धँसि जैतथि तेँ महादेव हिमालयक ऊँच चोटीपर चढ़ि हुनका अपना माथपर उतारि जटामे समेटि लेलथिन। हुनकर जटासँ होइत गंगा हिमालय प्रदेशकेँ दहबैत बिदा भेली। जखन जह्नु ऋषिक आश्रम दहाय लगलनि तँ ओ गंगाकेँ पीबि गेला। आब भगीरथ लेल कठिन समस्या भऽ गेलनि जे कोनो गंगाकेँ लऽ जाथि आ अपन पूर्वजकेँ सद्गति देयाबथि? भगीरथ परम साहसी छला। ओ मुनिक सेवामे जुटि गेला। अन्तमे मुनि प्रसन्न भेला आ ई मनबा कऽ गंगाकेँ छोड़लनि जे ओ हुनक पुत्री कहाबथि। तहियासँ गंगा जाह्नवी कहेली आ ओ गंगद्वार होइत हरिद्वार एली। भगीरथ आगाँ-आगाँ आहि दिशामे बढ़ला जेमहर हुनक पितरक छाउर छलनि आ गंगा पाछाँ-पाछाँ सभकेँ दहबैत-भसबैत चलली। अन्तमे ओ ओहि विशाल खाधिमे खसली जकरा मुनिक क्रोधसँ भस्म भेल राजकुमार लोकनि घोड़ा तकबाक क्रममे खुनने छला। एहि कारणेँ ओ सागर कहायल। एहि तरहेँ गंगा वैकुण्ठ छोड़ि पृथ्वीपर अवतरली आ सगरक साठि हजार सन्तानकेँ सद्गति प्राप्त भेलनि। गंगा धरतीपर आबि भगीरथक परिश्रम सार्थक केलनि।

                                                               गौरीक जन्म 
सतीक मृत्युसँ दुखी महादेव विरक्त भऽ निर्जन स्थानमे जा तपस्यामे लीन भऽ गेला। हुनका संसारक कोनो सुधि नञि रहि गेलनि। एहि बीच राक्षस सभक उपद्रव बड़ बढ़ि गेल। ओहिमे ताड़कासुर बड़ पराक्रमी छल। ओ तपस्या कऽ ब्रह्माकेँ प्रसन्न कऽ लेलकनि आ हुनकासँ अमर हेबाक वरदान मङलक। ब्रह्मा कहलनि- ‘ई असम्भव अछि। जे जन्म लेलक तकर मरण अनिवार्य अछि।’ तखन ओ दोसर वरदान मङलक जे ओकर मृत्यु महादेवक औरस पुत्रक हाथेँ हो। ब्रह्मा तथास्तु कहि देलथिन।
ब्रह्मासँ ई वरदान मङबाक पाछाँ ताड़कासुरक चतुरता छल जे महादेवक पत्नी सती नि:सन्तान मरि गेल छथिन। महादेव संसारसँ विरक्ते भऽ गेल छथि। विवाहक कोनो सम्भावना नञि छनि। तेँ हुनक पुत्रक हाथेँ ओकर मारल जेबाक प्रश्ने नञि उठै छल। एहना स्थितिमे ओ अमर रहत।
अपन अन्तसँ निश्चिन्त ताड़कासुर सभ देवताकेँ भगा देलक आ स्वर्गक राजा भऽ गेल। यज्ञ-जाप रोकि देलक आ मुनि सभकेँ सतबऽ लागल। सुन्नरि नारी सभक अपहरण करऽ लागल। सौँसे संसार त्राहि-त्राहि करऽ लागल। ओकर उत्पातसँ त्रस्त देवता आ ऋषि लोकनि ब्रह्माक लग उपस्थित भेला। ब्रह्मा सभक बात सुनि कहलथिन- ‘जखन-जखन संसारमे दैत्य-दानव एहि तरहेँ उत्पात मचेलक अछि तखन-तखन आदि शक्ति महामाया दुर्गा अवतार लऽ ओकरा सभक संहार केलनि अछि। अहाँ सभ एहि महासंकटक समय उद्धार लेल हुनके आराधना करू। वैह सतीक रूपमे जन्म लऽ महादेवसँ विवाह केने छली।ओ पुन: गौरीक रूपमे जन्म लेती आ महादेवसँ हुनक विवाह हेतनि। हुनका जे पुत्र हेथिन सैह ताड़कासुरक बध करता।’
देवता आ ऋषि लोकनि भगवती दुर्गाक आराधनामे लागि गेला। किछु दिनक बाद हिमालयकेँ पुत्री भेलनि। ई देखि देवतागण प्रसन्न भऽ फूलक वर्षा केलनि। ओ अत्यन्त गोरि छली तेँ हुनकर नाम गौरी पड़लनि।

                                                                  काम दहन 
एक   दिन हिमालयक ओहि ठाम नारद मुनि एला। हिमालय अपन पुत्री गौरीकेँ हुनका देखा जिज्ञासा केलनि जे हिनक विवाह किनका संग हेतनि? गौरीक हाथ देखि नारद कहलनि- ‘हिनक विवाह महादेवक संग हेतनि। से ओहिना नञि हेतनि। एखन महादेव अहीँक शिखरपर तपस्या कऽ रहल छथि। गौरी नित्य ओतऽ जा हुनक सेवा करथि। तखन ओ प्रसन्न भऽ हिनका संग विवाह करता।’
गौरी चेष्टगरि भऽ गेली तँ हिमालय हुनका नित्य दू सखीक संग महादेवक सेवा लेल पठाबऽ लगलथिन। देवता सभ महादेवक तपस्या भंग हुनक ध्यान गौरी दिस आकृष्ट करेबा लेल कामदेवकेँ तपोवन पठेलनि। कामदेव अपन पत्नी रति आ मित्र वसन्तक संग ओतऽ पहुँचि गेला। वसन्तक महिमासँ वनक सभ गाछ फुला गेल। सुगन्धिसँ वन-प्रान्त गमगमा उठल। फूल सभपर भम्हरा मड़राय लागल। शीतल बसात बहऽ लागल। चन्द्रमाक ज्योतिसँ वन सुन्दर लागऽ लगला। एहन मनोहारी-रमणीय वातावरणसँ महादेवक तपस्या भंग होबऽ लगलनि। गौरी सजि-धजि कऽ वासन्ती फूलक गहना पहिरि सखीक संग ओहि वनमे पूजा करबा लेल पहुँचली। गौरी सुन्नरि तँ छलीहे, ओहि दिन साज-शृंगारसँ हुनक सौन्दर्य आरो निखरि आयल छलनि। जखने महादेव लग गौरी पहुँचली आ कि कामदेव अपन वाण चलेलनि जे महादेव लग खसल। महादेवक तपस्या भंग भऽ गेलनि आ ओ गौरी दिस तकलनि। गौरी हुनक पूजा कऽ कातमे ठाढ़ भऽ गेली। गौरीक सुन्दरतासँ महादेव हुनका प्रति आकर्षित भऽ गेला आ बड़ाइ करैत गौरी दिस बढ़ला। गौरी संकोचसँ पाछाँ हटि गेली। हठात महादेवकेँ ध्यान एलनि जे ओ कामातुर भऽ उठला अछि। ओ एकर कारण जनबा लेल एमहर-ओमहर तकलनि तँ एकटा झोँझमे नुकायल कामदेवपर नजरि पड़लनि। ओ क्रोधित भऽ उठला जाहिसँ तेसर नेत्र खुजि गेलनि। एहिसँ कामदेव जरि कऽ भस्म भऽ गेला।
रति अपन पतिकेँ भस्म होइत देखि मूर्च्छित भऽ खसली। होशमे एबापर ओ करुण विलाप करऽ लगली। रतिक शोकसँ देवता लोकनि पर्यन्त दुखी भऽ उठला। तखन देवतागण महादेव लग पहुँचला आ कहलथिन जे एहिमे कामदेवक कोनो दोष नञि छनि। देवते लोकनि हुनका पठेने छलथिन जे कहुना महादेव गौरी दिस आकृष्ट होथि आ हुनकासँ विवाह करथि। तखने ताड़कासुरसँ सभकेँ त्राण भेटि सकै छलनि। तेँ महादेव कोनो उपाय कऽ कामदेवकेँ जीवन देथु।
देवता लोकनिक बात सुनि महादेव कहलथिन- ‘कामदेव मुइना नञि अछि, मात्र हुनक शरीर भस्म भेलनि अछि। हुनका ओ शरीर एखन प्राप्त नञि हेतनि। समुद्रमे शम्बर नामक दैत्य अछि। रति ओतऽ जाय एखन रहथु। कामदेव द्वापरमे श्रीकृष्णक पुत्र प्रद्युम्न भऽ जन्म लेता। शम्बर हुनका जनमिते उठा कऽ अपन नगर लऽ जायत। रतिकेँ ओतहि प्रद्युम्नक रूपमे कामदेव भेटथिन। जखन ओ पैघ हेता तँ दैत्य शम्बरकेँ पारि ओेकर धन-सम्पत्ति सहित रतिकेँ सेहो द्वारिका लऽ जेता आ हुनकासँ विवाह कऽ सुख-विलास करता।’
एकर बाद महादेव अन्तर्ध्यान भऽ गेला। रति ओहि ठामसँ शम्बरक ओतऽ आश्रय लेल बिदा भेली आ कामदेवसँ मिलनक प्रतीक्षा करऽ लगली।

Tuesday, 30 July 2013

गोनू झा केर कम्मल


                                                             
                        गोनू झा केर कम्मल

                                                                 - अमलेन्दु शेखर पाठक 

गोनू झाक बुद्धि आ ज्ञानक जते लोक प्रशंसक छला ततबे हुनक विरोधी सेहो छला। हुनक धन-बीतसँ जरै छला। सदिखन अवसर तकै छला जे कखन गोनू झाक दुनू भाइमे झञ्झटि होनि जे बीचमे पड़ि गोनू झाकेँ हानि पहुँचाबथि। गोनू झाक भाइ भोनू झा छला सुधबौक। ओ छल-प्रपञ्च जनै ने छला। से जहाँ कोनो टोलबैया कनेको चढ़ेलक-बढ़ेलक कि बाँट-बखरा लेल तैयार भऽ जाइ छला। ओ लोकक चढ़ौअलि-बढ़ौअलि नञि बूझथि। से एक बेर भोनू झाकेँ किछु गोटे सिखा-पढ़ा देलकनि जे गोनू झासँ बाँटि लीयऽ नञि तँ कहियो विकास नञि करब। एहि बेर भोनू झा अड़ि गेला। गोनू झा कतबो बुझेलनि ओ मानबा लेल तैयारे ने भेलथिन। हारि कऽ गोनू झा बाँट लेल तैयार भऽ गेला।
गोनू झाक विरोधी सभ जखने ई सुनलनि सभक छाती जुड़ा गेलनि। ओ सभ भोनू झाक पक्षसँ पञ्च भऽ कऽ एला। गोनू झा तँ असलीहत बुझै छला। ओ मने मन पञ्च सभकेँ पछाड़बाक आ भोनू झाकेँ फेरसँ संग करबाक विचार केलनि। हुनकर ध्यान कम्मल दिस गेलनि आ ओ मुसुकि उठला। ओ पञ्च सभसँ ई स्वीकार करबा लेलनि जे जकरा हिस्सामे कम्मल जखन रहत तखन ओ अपना हिसाबे ओकर उपयोग करत।
बाँट-बखरा भऽ गेल। सभ समान गोनू झा आ भोनू झामे बरोबरि कऽ बँटा गेल। रहि गेल एगो कम्मल। समस्या छल जे ओ एके टा छल। ओकरा कोना बाँटल जाय जे दुनूकेँ भेटनि। गोनू झाक विरोधी सभ चालि चललनि। कम्मलक बाँट एना कऽ देलनि जे दिनमे ओ गोनू झा रखता आ रातिमे भोनू झा। गोनू झाक विरोधी टोलबैया सभ मने मन प्रसन्न छल जे एहि बेर हिनकर सभ बुधियारी घुसरि जेतनि, मुदा गोनू झा अपनो यैह चाहै छला। ओ प्रसन्न भऽ गेला। बाँट-बखराक दुइ दिन बाद भोनू झाकेँ फेर पञ्च सभकेँ बजाबऽ पड़लनि। कारण छल जे गोनू झा दिनमे कम्मल तँ राखथि, मुदा साँझ पड़बासँ पहिने ओकरा पानिमे बोरि भिजा देथि। आब रातिमे जखन भोनू झाक हिस्सामे कम्मल भेटनि तँ ओ तते तीतल रहै छल जे उपयोगे ने कयल जा सकै छल। भोनू झाक शिकाइतपर पञ्च सभ गोनू झाकेँ आबि टोकलथिन। गोनू झाक उत्तर छलनि जे हुनका हिस्सामे जखन दिनमे कम्मल छनि तँ ओकर उपयोग हुनका जेना मन हेतनि तेना ने करता। ओ रातिमे तँ कम्मल नञि भिजबै छथि। आब पञ्च सभ निरुत्तर रहि गेला। भोनू झा सेहो बुझि गेला जे गोनूक ज्ञानक आगाँ ककरो चलऽवला नञि। ओ फेरसँ गोनू झाक संग भऽ गेला। जखन गोनू झा दरबार गेला आ महराजकेँ पता लगलनि तँ ओ गोनू झाक बुधियारीक प्रशंसा केलनि। एहि लेल हुनका दान-दक्षिणामे सोना, चानी, हीरा आदि भेटलनि आ महराज एगो कम्मल सेहो देलथिन जे दुनू भाइ लग एक-एक टा भऽ जायत। आब भोनू झा बुझलनि जे गोनू झाक संग रहबासँ की लाभ अछि?

मधुश्रावणी : पाँचम दिनक कथा

             मधुश्रावणी : पाँचम दिनक कथा

                                            प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

          दन्त कथापर आधारित महादेवक पारिवारिक कथा
दक्षक यज्ञमे सतीकेँ प्राण त्यागबाक बाद दक्ष प्रजापति हिमालय रूपमे अवतार लेलनि। हुनका पाँच कन्या भेलथिन उमा, पार्वती, गंगा, गौरी आ सन्ध्या। एहि पाँचो कन्याक विवाह बेरा-बेरी महादेवसँ भेलनि।
                                         उमा
हिमालय पत्नी मैनाक पहिल पुत्री जखन पाँच बरखक भेली तखनेसँ महादेवकेँ वर रूपमे प्राप्त करबाक कामनासँ तपस्या लेल वन बिदा भऽ गेली। माय मनाइन हुनका उमा कहि कऽ मना केलनि तथापि ओ चलि गेली। तेँ हुनकर नाम उमा पड़लनि। आठ बरखक हेबापर महादेव हुनक तपस्यासँ प्रसन्न भऽ हुनकासँ विवाह केलनि। ई समाचार सुनि मनाइन बताहि जकाँ करऽ लगली जे फूल सनक बेटीकेँ बुढ़बा वर लऽ गेला।
                                          पार्वती 
हिमालयक दोसर बेटी पार्वती भेलथिन। हुनको बाढ़ि उमा जकाँ छलनि। ओहो थोड़बे दिनमे विवाहक योग्य भऽ गेली। पार्वती एक दिन फूल तोड़बा लेल सखी सभक संग कनक शिखरपर गेली। ओतऽ ओ एक गोट बूढ़ व्यक्तिकेँ देखलनि जिनका पैघ-पैघ पाकल केश आ पैघ-पैघ दाँत छलनि। ओ बसहापर चढ़ल डमरू बजा रहल छला। पार्वती चीन्हि गेली जे ओ आर क्यौ नञि साक्षात महादेव छथि। सखी सभक मनो करबोपर सभकेँ घर बिदा कऽ पार्वती अपने महादेवक संग बसहापर चढ़ि चलि गेली। सखी सभ घर आबि मनाइनकेँ सभ बात कहलनि। ओ अपन माथ धुनऽ लगली जे ‘हमरा कपारमे की लिखल अछि जे एना भऽ जाइत अछि, किन्तु आब जे भऽ गेल तकर कोन उपाय?’
                                                                  गंगा 
हिमालयक तेसर बेटी भेलथिन गंगा। ओहो जखन पैघ भेली तखन एक दिन महादेव भिखारि रूपमे आबि गंगाकेँ जटामे नुका भागि गेला। तहियासँ गंगा सतत महादेवक जटामे रहऽ लगली। मनाइन जखन ई बुझलनि तखन फेर माथ धुनलनि जे ‘एहि बुढ़बाक यैह धन्धा छै जे हमर बेटी सभकेँ चोरा कऽ लऽ जाइत अछि।’


                    बिसहरिक गीत

                               संकलन : निर्मला देवी 

सखि हे साओन बरा सोहाओन
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

घर पछुआरमे कुम्हरा रे भैया
भैया गढ़ि दे माटिक दीप
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

घर पछुआरमे कानू रे भैया
भैया भूजि दे धानक लाबा
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

घर पछुआरमे दूधवला भैया
भैया दूहि दे गाइक दूध
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

पाबनिक गीत
पाबनि एक हम पूजब महादेव
आनि दियऽ चीर बेसाहि महादेव
एहि रे जंगलमे चीर नञि भेटत
मृगछाला परचार महादेव।।

पाबनि एक हम पुजब महादेव
आनि दियऽ सिनुर बेसाहि महादेव
एहि जंगलमे सिनुर नञि भेटत
भसमे करू परचार महादेव।।

पाबनि एक हम पुजब महादेव
आनि दियऽ लहठी बेसाहि महादेव
एहि रे जंगलमे लहठी नञि भेटत
रुद्राक्षे करु परचार महादेव।।

पाबनि एक हम पुजब महादेव
आनि दियऽ नैवेद बेसाहि महादेव
एहि रे जंगलमे नैवेद नञि भेटत
भाङक करु परचार महादेव।।

बटगबनी
सुरुज मुँह नञि देखू मोर बिन्दिया के रंग उड़ि जाय
बहिना कोना कऽ कटबै साओन राति अन्हरिया
पिया छै नोकरिया ना।।

एक तऽ राति अन्हरिया
सूझय घर ने दुअरिया
पिया छै नोकरिया ना।।

बहिना कोना कऽ सुतबै
पिया के पलङिया
पिया छै नोकरिया ना।।

सखि सभ झुमि-झुमि गाबय गीत
दूर हमर मोनक मीत
पिया छै नोकरिया ना।।

बहिना बितल जाइ छै
काँच उमेरिया
पिया छै नोकरिया ना।।




Monday, 29 July 2013

मधुश्रावणी : चारिम दिनक कथा

                                                                                 मधुश्रावणी : चारिम दिनक कथा
                                              प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 


                                           सतीक कथा

ईश्वर सृष्टि रचबा लेल पहिने विष्णु, तखन महादेव आ अन्तमे ब्रह्माक रूपमे अवतार लेलनि। ब्रह्माके ँ सृष्टि रचबाक दायित्व भेटलनि। ओ तप-बलसँ अपन शरीरसँ देवता आ ऋषि-मुनि, मुहसँ सतरूपा नामक स्त्री आ स्वयंभुव मनु, दहिना आँखिसँ अत्रि, कान्हसँ मरीचि आ दहिना पाँजरसँ दक्ष प्रजापतिक जन्म देलनि। आब ब्रह्माक सन्तानो सभ सृष्टि करऽ लगला। मरीचिक पुत्र कश्यप भेला आ अत्रिक पुत्र चन्द्रमा। मनुकेँ दू पुत्र प्रियव्रत आ उत्तानपाद भेलथिन। तीन पुत्री आकृति, देवहुति आ प्रसूति भेलखिन। प्रसूतिक विवाह दक्ष प्रजापतिसँ भेलनि। ताहिसँ साठि कन्याक जन्म भेलनि। एहिमे आठ कन्याक विवाह धर्मसँ, एगारह केर रुद्रसँ, तेरह केर कश्यपसँ, सत्ताइस केर चन्द्रमासँ आ एक गोट सती नामक कन्याक विवाह महादेवसँ भेलनि।
चन्द्रमा अपन स्त्री सभमे रोहिणीके ँ सभसँ बेसी मानै छला। तँे बाकी छब्बीसो बहिनकेँ हुनकर बहुत डाह होइ छलनि। ओ सभ अपन पिता दक्षकेँ एकर ओलहन दै छली। दक्ष आसन जमाय चन्द्रमाकेँ बुझेबाक चेष्टा केलनि, मुदा ओ निष्फल भेला। दक्ष क्रोधसँ हुनका श्राप दऽ देलनि- अहाँकेँ क्षय रोग भऽ जायत आ सम्पूर्ण शरीर गलि जायत। एकर प्रभावेँ चन्द्रमाक शरीर दिनपर दिन गलऽ लगलनि।
ओ देवता सभसँ गोहारि लगेलनि, मुदा क्यौ हुनकर रक्षा नञि केलनि। अन्तमे अपन साढ़ू महादेवक शरणमे गेला। ताबत चन्द्रमाक देह बहुत गलि गेल छलनि मात्र किछुए बाँचल छल। महादेव हुनका अपन माथपर चढ़ा लेलनि। हुनकर देह गलब बन्न भऽ गेलनि।
जखन दक्षकेँ एकर पता चललनि तँ ओ दौगल महादेव लग एला आ हुनका चन्द्रमाकेँ अपन माथपरसँ उतारि देबऽ लेल कहलथिन। महादेव ई बात अस्वीकार कऽ देलनि आ कहलनि जे ओ अपन शरणमे आयल केर तिरस्कार नञि कऽ सकै छथि।
दक्ष प्रजापति तहियासँ अपन जमाय महादेवसँ असौजन क
ऽ लेलनि। दक्ष अपन तामसकेँ देखबऽ लेल एकगोट पैघ यज्ञक आयोजन केलनि। ओहिमे सभ देवता आ मुनिकेँ नोतलनि, मुदा महादेवकेँ छोड़ि देलनि। यज्ञ प्रारम्भ भेल। लोक सभ देखबा लेल ओमहर जाय लगल। देवता लोकनि अपन विमानसँ बिदा भेला। सभकेँ  अपन नैहर दिस जाइत देखि सती एकर कारण महादेवसँ पुछलनि। सती जखन बुझलनि जे हुनक नैहरमे एतेक पैघ यज्ञ भऽ रहलनि अछि तँ ओ महादेवसँ बिना नोत ओतऽ जेबा लेल जिद्द ठानि देलनि। अन्तमे महादेव हुनका अपन सेवक वीरभद्रक संग नैहर पठा देलनि।
सती जखन अपन पिताक यज्ञस्थलीमे पहुँचली तँ क्यौ हुनका बैसबो धरि लेल नञि कहलनि। सभ हिनका दिस ताकि-ताकि कनफुसकी करऽ लगला। ओहि ठाम महादेवक निन्दा सेहो भऽ रहल छलनि। ई सभ देखैत-देखैत आ महादेवक निन्दा सुनैत-सुनैत जखन सतीकेँ असह्य भऽ गेलनि तखन ओ धधकैत यज्ञकुण्डमे कूदि आत्मदाह कऽ लेलनि। ई देखि हुनका संग आयल वीरभद्र ओतऽ भारी उत्पात मचबऽ लागल। दक्षक गर्दनि काटि लेलक। यज्ञ मण्डलकेँ तहस-नहस कऽ देलक। देवता आ मुनिगणकेँ मारि भगेलक। महादेवकेँ जखन पता लगलनि तँ ओहो ओतऽ पहुँचि गेला। हुनका क्रोधमे देखि देवता सभ कल जोड़ि क्षमाप्रार्थी भेला। ओ सभ कहलनि जे ाअहाँकेँ अपमानित करबाक दण्ड दक्ष पाबि गेला। आब जँ यज्ञ सम्पन्न नञि होयत तँ संसारक अनिष्ट भऽ जायत आ बिनु यजमानक जीने यज्ञ कोना होयत? ते ँ हुनका कहुना जियाउ। अन्तमे औढरदानी महादेव द्रवित भऽ गेला आ यज्ञमे बान्हल बतूक मूड़ी काटि दक्षक धड़सँ जोड़ि देलनि। ओ पुन: जीवित भऽ गेला आ बो-बो करऽ लागल। महादेवकेँ हुनका भेटल एहि दण्ड आ हुनका बो-बो करैत देखि महादेवकेँ बड़ नीक लगलनि। तहियेसँ लोकसभ महादेवक पूजाक अन्तमे बो-बो करैत अछि जाहिसँ ओ प्रसन्न होइ छथि। दक्षक जीबि गेलाक बाद यज्ञ समाप्त भेल, मुदा सतीक विछोहसँ महादेव बताह भऽ गेला। ओ सतीक शवकेँ कनहापर राखि लेलनि आ जतऽ-ततऽ बौआय लगला। विष्णु भगवानकेँ जखन ई स्थिति नञि सहल भेलनि तखन ओ अपन चक्रसँ सतीक शवकेँ काटि-काटि खसबऽ लगला। सतीक अंग जतऽ-जतऽ भूमिपर खसल से सभ सिद्धपीठ भऽ गेल। विष्णु भगवान महादेवकेँ परामर्श देलनि जे ओ कठिन तपस्या करथु, सती जखन पुन: जन्म लेती तखन ओ हुनका प्राप्त भऽ जेती। महादेव तखन कैलाश छोड़ि हिमालयक घनघोर जंगलमे जा तपस्यामे लीन भऽ गेला।

                                                                    पतिव्रताक कथा
एक गोट राजाकेँ दू गोट कन्या छलनि। एक गोट कन्याक नाम छल कुमरव्रता आ दोसरक पतिव्रता। कुमरव्रता नाम एहि लेल जे ओ भरि जन्म कुमारि रहबाक व्रत नेने छली। ओतहि पतिव्रता अपन पतिएकेँ सर्वस्व बूझथि आ हुनके सेवामे लीन रहथि। पतिए केर आज्ञानुसार सभ काज करथि। राजा पतिव्रताक विवाह एक गोट राजकुमारसँ करेने छला। हुनका सासुर पठा देने छला। ओही ठाम कुमरव्रताकेँ नन्दन वनमे एक कुटी बना हुनक रहबाक व्यवस्था कऽ देलनि।
एक दिन एक सिद्ध योगी ओहि वन दऽ जाइ छला। एगो कौआ हुनका माथपर चटक कऽ देलकनि। योगी क्रोधित भऽ कौआकेँ श्राप दऽ देलनि। कौआ जरि कऽ भस्म भऽ गेल। योगी भिक्षाटन करैत-करैत पतिव्रता ओहि ठाम पहुँचला। पतिव्रता योगीसँ कहलनि- नन्दन वनमे आगि लागि गेल छै। ओहि वनमे हमर बहिनक कुटी छनि। ओकरा बचा कऽ आउ ताबत हम तुलसीकेँ बेढ़ दै छी। ओहि ठामसँ आयब तखन भीख देब। साधु हुनका डेरेलनि- हमरा जँ भिक्षा नञि देब तँ श्राप दऽ देब। ताहिपर पतिव्रता कहलथिन- हम कौआ नञि छी जे अहाँक श्रापसँ भस्म भऽ जायब। ई सुनि साधु अवाक रहि गेला जे ई स्त्री तँ हमरोसँ बेसी सिद्ध अछि। ओ साधु तुरन्त नन्दन वन गेला। ओतऽ ओ देखलनि जे समस्त वनमे आगि लागल छै। मात्र कुमरव्रताक कुटी प्रतिव्रताक प्रभुत्वसँ बाँचल छल। तखन साधु कुमरव्रतासँ कहलनि- अहाँ भरि जन्म कुमारि रहि कऽ तपस्या केलहुँ, मुदा अपन कुटीकेँ नञि बचा सकलहुँ। अहाँक कुटी पतिव्रताक प्रभावसँ बाँचल अछि। तेँ ई सिद्ध भेल जे कुमरव्रतासँ पतिव्रता पैघ होइत अछि।
ई सुनि कुमरव्रता सेहो निश्चय केलनि जे ओहो बियाह कऽ पतिव्रता बनि जेती। भोर हेबापर जाहि पुरुषक दर्शन हुनका सभसँ पहिने हेतनि तिनकेसँ विवाह कऽ लेती। भोर हेबापर हुनक नजरि एक गोट कुष्ठ रोगीपर पड़लनि। ओकर शरीर कुष्ठसँ गलल जा रहल छल। तैओ कुमरव्रता निश्चयक अनुसार ओकरे अपन स्वामी बना लेलनि। ओकरा अपन कुटीमे आनि ओकर सेवा करऽ लगली। ओ दिन-राति स्वामीक सेवा करथि, किन्तु स्वामीक रोग बढ़ल जानि। अन्तमे एक दिन हुनक पति कहि देलनि जे आब हम बेसी दिन नञि जीब। तेँ हमरा तीर्थ करा दीयऽ। ओ अपन पतिकेँ ढाकीमे लऽ माथपर उठा बिदा भेली। बाटमे एक गोट ऋषि सूलीपर लटकल तपस्या कऽ रहल छला। जखन ओ माथपरसँ ढाकी उतारऽ लगली तँ ऋषिक डाँरमे चोट लागि गेलनि। ऋषिक सम्पूर्ण शरीर कनकनाय लगलनि। ऋषि हुनका श्राप दऽ देलथिन- जाहि स्वामी लेल तोँ ऋषिकेँ एतेक कष्ट पहुँचेलेँ से स्वामी सूर्योदयसँ पहिने मरि जेथुन। ई सुनि हुनका बहुत दु:ख भेलनि आ ओ ओही ठाम बैसि गेली। ओ भगवान सूर्यक व्रत करऽ लगली। ओ पहिनो तते तपस्या केने छली जे हुनक विधवा होयब असम्भव छल। ऋषिक शापसँ पति तँ मरि गेलथिन, मुदा सतीक तपस्याक प्रभावसँ ओ फेर जीबि उठलथिन। हुनकर शरीर सेहो पूर्ण स्वस्थ भऽ गेलनि।
एहि तरहेँ सतीक महिमा कतेको तरहेँ महिमा देखल गेल अछि। तेँ सती सीता, सावित्री, अनसूया, बिहुला आदिक गुण-गान एखनो धरि होइत अछि। जँ कोनो स्त्री मनसँ अपन पतिक सेवा करै छथि तँ हुनका कोनो प्रकारक क्लेश नञि होइ छनि। ओ सती सीता-सावित्री जकाँ यशस्वी आ अमर होइ छथि।


पूजा कालक गीत- 1 
एक हम पाबनि पूजब महादेव
आनि दियऽ सड़िया बेसाहि गे माई
हमरा गाम कपड़िया ने बसय
नैहर जा करु निस्तार गे माई।।

आनि दियऽ लहठी बेसाहि गे माई
हमरो गाम चुड़िहारा ने बसय
नैहर जा करु निस्तार गे माई।।

आनि दियऽ सिन्दुर बेसाहि गे माई
हमरो गाम सिनुरिया ने बसय
नैहर जा करु निस्तार गे माई।।

गीत-2
आजु छनि सीता दाइ के पाबनि हे
वरक माय किछु ने पठेलखिन
मुजौना गाममे हलुआइ बहुत छथि
हुनकेसँ करितथि सगाइ हे
तखन भार पठबितथि।।

मुजौना गाममे मरवाड़ी बहुत छथि
हुनकेसँ करितथि सगाइ हे
तखन साड़ी पठबितथि।।

मुजौना गाममे फल्लोँ बहुत छथि
हुनकेसँ करितथि सगाइ हे
तखन साजी पठबितथि।।

बिसहरि गीत-1
साओन मास बिसहरि लेल अवतार
राम भादव मास बिसहरि झूमरि खेलाय
झुमड़ि खेलैते बिसहरि गेल अउँघाय
राम सुति रहली बिसहरि माता कानू दुआरि
तेल दे रे तेलिया भैया दीप दे कुम्हार
राम बाती दे रे पटबा भैया लेसब प्रहलाद।।

गीत-2
छोटी-मोटी तुलसी के चतरल डाढ़ि
राम ताहि तर बिसहरि माता झूमड़ि खेलाय
झुमड़ि खेलैते बिसहरि रोदन पसार
राम कहाँ गेली किए गेली कानू दुआरि
लाबा-दूध खाये बिसहरिकेँ लागल पियास
राम चलि गेली बिसहरि माता सरोवरक कात
भनहि विद्यापति सुनू हे महेश
राम सेवक जन पर दया राखू हरहु कलेश
                                                                                                                    संकलन : निर्मला देवी 

Sunday, 28 July 2013

मधुश्रावणी : तेसर दिनक कथा

                     मधुश्रावणी : तेसर दिनक कथा 

                                                                                                           
                                         प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                                         पृथ्वीक जन्म
संसारमे पाप बेसी भऽ जेबासँ पृथ्वी पड़ा कऽ पाताल चलि गेली। एहिसँ देवतागण सेहो चिन्तित भऽ उठला। एक दिन ब्रह्मा, विष्णु आदि देवता सभ एहिपर विचार करबा लेल बैसला जे कोन एहन उपाय हो जे पृथ्वी ऊपर आबथि आ फेरसँ संसार बसि सकय। अन्तमे हुनका प्रार्थना कऽ प्रसन्न करबाक निर्णय भेल। देवता सभ पाताल गेला आ पृथ्वीक प्रार्थना केलनि जे ऊपर आबथु।
पृथ्वी कहलथिन- ‘हमरेपर सम्पूर्ण जीव-जन्तु, गाछ-बिरिछ, मनुक्ख आदि रहै छथि आ हमरे क्यौ चिन्ता नञि करै छथि। हमहीँ सभकेँ अन्न-पानि दै छी, मुदा हमरे क्यौ चिन्ता नञि करैत अछि। सभ हमरेपर मल-मूत्रक त्याग करैत अछि। हमर अपमान करैत अछि।’
देवता लोकनि भरोस देलथिन जे हुनक जे क्यौ अपमान करत हुनका पाप हेतनि। पृथ्वीसँ कहलथिन- ‘जे अहाँसँ क्षमा मङने बिनु अहाँपर पैर धरत से पापक भागी होयत। तहिना जे मल-मूत्र त्यागि ओकरा देखि लेत सेहो स्वयं पापक भागी होयत।’
देवतागणक विनय-प्रार्थनापर पृथ्वी पसीझि गेली आ ऊपर आबि गेली। तखन ओ डगमग कऽ रहल छली। तखन भगवान विष्णु काछु केर रूप धारण कऽ हुनका अपना पीठपर राखि लेलथिन।

                                                                                समुद्र-मन्थन
समुद्र-मन्थन करबापर विचार लेल देवतागण सुमेरु पर्वतपर जुटला। विष्णु केर विचार भेलनि जे समुद्र-मन्थन देवता आ दानव दुनू मिलि कऽ करथु। हुनके विचारसँ वासुकी नागकेँ बजाओल गेलनि। ओ आबि मन्दराचल पर्वतमे लपटा गेला आ ओकरा उखाड़ि समुद्रक कात लऽ अनलनि। ओ समुद्र-मन्थनसँ प्राप्त होबऽवला अमृतमे हिस्सा भेटबाक आश्वासनपर मन्थनक कष्ट सहबा लेल तैयार भऽ गेला। मन्थनक तँयारी तँ भऽ गेल, मुदा समस्या ई ठाढ़ भऽ गेल जे मन्थन लेल समुद्रमे रखबापर एतेक भारी मन्दार पर्वते डूबि जाइत। कोनो एहन आधार तँ चाही जाहिपर मन्थार रहि सकय आ डूबय नञि। अन्तमे देवता लोकनिक कूर्मराज (काछु) सँ आग्रह केलनि। कच्छप आधार बनि मन्दार पर्वतक भार सहबा लेल तैयार भऽ गेला। तखन कूर्मराजपर मन्दारकेँ राखि मथनी बनाओल गेल। वासुकी नाग मन्थन लेल रस्सी बनला। वासुकी नागक फन दिस दानव पकड़लनि आ नाङरि दिस देवतागण। समुद्र-मन्थन आरम्भ भेल। एहिसँ समुद्रक जीव-जन्तु सभ पिसाय लागल। मन्दारपर लागल गाछ-बिरिछ सभ अपनामे रगड़ा कऽ टूटि-टूटि समुद्रमे खसऽ लागल। ओहि रगड़सँ पर्वतमे आगि लागि गेल। एहिसँ पर्वतपर केर जड़ी-बूटी, सोना-चानी, मूङा आदि जरि कऽ भस्म भऽ गेल। देवता आ दानव गर्मीसँ व्याकुल भऽ उठला तँ शीतलता देबा लेल इन्द्र वर्षा करऽ लगला जाहिसँ अमृतमय सभटा भस्म धोखरि-धोखरि समुद्रमे खसऽ लागल। एहिसँ समुद्रक पानि नोनगरसँ दूध भऽ गेल आ बेसी काल धरि मन्थनसँ घी बनि गेल। एकर बादो जखन बड़ी काल मन्थन कयल गेल तँ समुद्रसँ लक्ष्मी, सुरा (मदिरा), उच्चैश्रवा घोड़ा बहार भेल जे चन्द्रमा लोकनि हथिया लेलनि। तकर बाद अमृतक कलश नेने धन्वन्तरि प्रकट भेला। एकर बाद विष बहार भेल जकर तापसँ देवता आ दानव मूर्च्छित होबऽ लगला। एहिसँ हाहाकार मचि गेल। ई हाल देखि विष्णु भगवान महादेवसँ आग्रह केलनि आ ओ सभटा विष पीबि गेला। महादेव सेहो एहिसँ बेहोश भऽ गेला। तखन माता गौरीक नेहोरा-मिनतीपर बिसहराक संग सभ साँप, बिढ़नी, चुट्टी, पिपरी आदि जा कऽ महादेवक शरीरसँ लपटा गेल आ विष बहार केलक। अन्तमे सभ महादेवक कण्ठमे कनेक विष छोड़ि देलकनि जाहिसँ हुनक कण्ठ नील भऽ गेलनि आ ओ नीलकण्ठ कहल जाय लगला।
एमहर अमृत लेल देवता आ दानवमे झगड़ा होबऽ लागल। दानव सभक कहब छल जे समुद्रसँ बहार भेल सभटा वस्तु देवता सभ अपनामे बाँटिए लेलनि। जाहि अमृत लेल समुद्र-मन्थन भेल ताहिमे सँ हुनको सभकेँ बखरा चाही। देवका सभकेँ चिन्ता छलनि जे दानव सभ बहुत बलिष्ठ अछि, कतेको बेर हुनका सभकेँ स्वर्गसँ खेहारि कऽ भगा चुकल छनि। जँ अमृत पीबि लेत तँ अमर भऽ जायत आ तखन सभ दिन देवता सभकेँ देबेने रहत। तखन भगवान विष्णु मोहिनीक रूप धारण कऽ दानव सभक आगाँ ठाढ़ भऽ गेला। दानव मोहिनीक स्त्री रूपसँ मोहित भऽ गेल आ अमृतक कलश हुनका हाथमे दऽ देवता सभसँ युद्ध करऽ लागल। मोहिनी रूप धेने भगवान नारायण देवता लोकनिकेँ अमृत पियाबऽ लगला। ई राहु नामक दैत्य देखि लेलक आ देवताक रूप धऽ ओहो अमृत पीबि लेलक, मुदा ओकरा देवताक रूप धरैत सूर्य आ चन्द्रमा देखि नेने छला। ओ विष्णुकेँ एकर जानकारी देलनि। जाबत राहुक कण्ठसँ नीचा अमृत उतरैत ताहिसँ पहिने विष्णु अपन चक्रसँ ओकर गर्दनि काटि देलनि। अमृत-पान करबाक कारण राहु मरि तँ नञि सकल, मुदा ओ दू खण्ड भऽ गेल। गर्दनि वला खण्डक नाम राहु आ धड़ वला खण्डक नाम केतु पड़ल। तहिएसँ ओ सूर्य आ चन्द्रमाक शत्रु बनि गेल। तेँ एखनो अमावश्यामे सूर्यकेँ आ पूर्णिमामे चन्द्रमाकेँ ओ गीड़ि लैत अछि जाहिसँ सूर्यग्रहण आ चन्द्रग्रहण होइत अछि। जेँ ओकर गर्दनि आ धड़ फराक छै तेँ सूर्य आ चन्द्रमाक ओहिसँ उग्रास भऽ जाइ छनि, माने ओ बहरा जाइ छथि।
एमहर देवता लोकनिकेँ अमृत पिएबाक बाद विष्णु अस्त्र-शस्त्र लऽ दानव सभसँ कसगर युद्ध केलनि आ सभकेँ मारि-काटि कऽ पराजित कऽ देलनि। ओ सभ दानवकेँ खेहारि पाताल भगा देलनि। बचल अमृत इन्द्रकेँ दऽ देलथिन। इन्द्र ओकर रखबारिक भार विश्वकर्माकेँ देलनि। समुद्र-मन्थनमे वासुकी नाग रस्सीक काज केने छला तेँ देवता लोकनि हुनका आशीर्वाद देलथिन जे हुनका   मायक श्राप कहियो नञि लगतनि आ ओ जन्मेजयक यज्ञमे सपरिवार नञि जरता। हुनकर भागिन आस्तिक मुनि हुनक रक्षा करथिन। 

मधुश्रावणी : दोसर दिनक कथा

                                                                      मधुश्रावणी : दोसर दिनक कथा 
                                                           प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक
                            बिहुला ओ मनसाक कथा
  मनसा महादेवक मानस पुत्री छलीह। ओ जनमितहि युवती भऽ गेली। नाङटि रहबा कारणेँ हुनक लाज रक्षा हेतु साँप हुनका देहमे लपटाय गेल। एहिसँ सभसँ गौरी अप्रसन्न भऽ गेली। तेँ हेतु मनसाकेँ कैलाश त्यागि अन्यत्र जाए पड़लनि। महादेवक कृपासँ ओ मर्त्य-भुवन चलि एली। हुनक इच्छा छल जे लोक हिनक पूजा करए। ओहि समयमे मर्त्य-लोकमे चन्द्रधर (चन्दू) नामक एक पैघ सौदागर रहए। पैघक देखाउसि आनो लोक करैत अछि। तेँ मनसाक मोनमे भेल जे पहिने चन्दूए हमर पूजा करए त देखा-देखी आनो हमर पूजा करए लागत। चन्दू महादेवक परम भक्त छल। ओ महादेव छोड़ि आन देवताक पूजा करब नञि गछलक। ओकर उत्तर छल ‘जे दहिना हाथ महादेवकेँ देने छियनि, बामा हाथसँ हम अहाँक पूजा कऽ सकैत छी।’ मनसाकेँ ई नञि जचल। ओ तमसा गेली। चन्दूक छओ गोट बेटाकेँ ओ साँप डसबाकेँ मारि देलनि। चन्दूकेँ बूढ़ारीमे पुन: एक बेटा भेल। हुनक टिप्पनि देखि ज्योतिषी कहलक जे इहो बेसी दिन नञि जीताह। हिनका विवाहक दिन कोबरहिमे साँप डँसि लेत। चन्दू अत्यन्त दु:खी भेला, किन्तु साध्य कोन। ओहि बेटाक नाम पर लक्ष्मीधर (बाला लखन्दर) पड़ल। लक्ष्मीधरकेँ छवे मास भेलापर चन्दू अपन पत्नीक जिद्दपर एहन कनिञासँ  विवाह प्रस्तुत भऽ गेलाह, जकर टिप्पनिमे चिर-सोहागिन योग छलैक। ओ पहाड़पर एकटा एहन कोठा बनबेलनि, जे सभ दिससँ निमुन छलैक। बिज्जी आ बिढ़नीक पहरा पड़ल जे ओहि परोपट्टामे कोनो साँपकेँ नञि आब देतै। ओहि कोठामे लखन्दरक विवाह बारह बरखकपरम सुन्दरी आ सुलक्षणि कन्या बिहुलासँ भेल। जखन ओ कनिञा संग कोहबर छल। तखने कोनो बाटे एकटा साँप आबि हिनका डँसि लेलक। लखन्दर तत्काले मरि गेलाह। लोक सभ हिनका संस्कार लेल  गंगा कात लऽ गेला। बिहुला परम सती छली। ओहो स्वामीजीक संग श्मशान घाट चलि गेली। लोक सभकेँ ओ मुर्दा गारऽ नञि देलनि। ओ सभकेँ कहलनि जे हमरा जेना होयत तेना हिनका जिआयब। बिहुला केराक थमक एकटा नाव बना ओहिमे सभक संग अपनहुँ बैसि गेली। आ गंगामे नावकेँ भसिया देलनि। लोकसभ बहुत मना केलक, लेकिन जिद्द देखि अन्तमे लोक हुनका अपना भाग्य पर छोड़ि देलक। ओ बिना अन्न-जलक गंगामे मुर्दाक संग कतेको दिन धरि भसिआइत रहली। सभक माँस गलि-गलि खसय लागल। केरा थम्ह सड़िकऽ टूटऽ लागल। भसिआइत-भसिआइत ओ बेढ़ प्रयाग पहुँचल। बिहुला आ त्रिवेणी घाटपर एक धोबिनकेँ कपड़ा खिचैत देखलनि। ओकरा संग एक चिल्हका छलैक। ओ चिल्हका ओकरा दिक्क करै छलै। बीच-बीचमे नुआ खीच लैत छलै। अन्तमे धोबिनओकरा जानसँ मारि खीचल सारी तरमे झाँपि देलक। काजक बाद  चिल्काकेँ जिया देलक आ ओकरा काँख तर लऽ  घर बिदा भऽ गेल। बिहुला के भेलनि जे एहि धोबिनसँ हुनक काज भऽ सकैत छनि।  दोसर दिन जखन धोबिन फेर घाटपर आयल तखन बिहुला अपना सभ हाल ओकरा कहलखिन्ह। आ ओकरासँ अपन स्वामीकेँ पुन: जीवित करबामे मदति मङलखिन्ह। बिहुलाक सुन्दरता, धैर्य आ साहस देखि धोबिनकेँ दया आबि गेल। धोबिन बिहुलाकेँ सङ इन्द्र दरबार पहुँचल। ओतय आरो देवता सभ छला। बिहुला सभ देवताकेँ अपन वृतान्त सुनेलनि आ अपन स्वामीक प्राण दानक भीख मङलनि। देवतागण बिहुलाक व्यवहार देखि प्रसन्न भऽ गेला आ हुनका दया आबि गेलनि। ओ सभ बिसहरा (मनसा) के बजेलनि आ चन्दू सौदागरक अपराधकेँ क्षमा करबा लेल कहलनि। बिहुलो बिसहाराक पैर पकड़ि विनती केलनि आ आँचरि पसारि कबुला केलनि जे यदि पति सहित हुनक छबो भैंसुर जीबि उठता तँ ओ अपन ससुरकेँ मना पूर्ण समारोहक संग बिसहाराक पूजा करती तथा मृत्यु भुवनमे हुनक प्रचार करती। बिसहरी माता प्रसन्न भऽ सभकेँ जीवित हेबाक वरदान देलनि। इन्द्र महराज लक्ष्मीधर सहित सातो भाइकेँ यमपुरीसँ बाहर करबाक आज्ञा देलनि। सातो भाइकेँ नव शरीर दऽ बिहुलाक संग लगा देल गेल। चन्दू सौदागर बेटाक शोकसँ मरनासन्न भऽ गेल छला। देखनिहार अभावमे धन-वित्त बोहा गेलनि। अकस्मात् सातो बेटाक संग पोतहुकेँ आयल देखि आनन्द विभोर भऽ गेला। हुलसि कऽ सातो बेटा आ पुतोहुकेँ गला लगेलनि। बिहुला सँ सभ हाल बुझि हुनका आशीर्वादसँ ओतप्रोत कऽ देलनि। खूब धूमधामसँ बिसहाराक पूजा केलनि। सभकेँ हकार आ निमंत्रण देलनि। बिसहाराक महिमाक गुणगान, पूजाक प्रचार कयल गेल। अनेको स्थानपर हुनक मन्दिर बनाओल गेल। ओहि दिनसँ मृत्यु भुवनमे बिसहाराक पूजा होमय लागल। गाम-गाममे हुनक गहबर बनल। लोक सभ ढ़ोल बजा, भीख माङि बिसहाराक गीत गाबि पूजा करब प्रारम्भ केलक।

बिसहराक कथा
कद्रू नामक स्त्रीसँ कश्यप मुनिकेँ एक हजार सन्तान भेल आ ओ सम्पूर्ण संसारमे पसरि गेल। ओ सभ उत्पाती छल। एकाएक ओ सभ मरऽ लागल। ब्रह्मा चिन्तित भऽ गेला जे साँप एना करत तँ हमर सृष्टि समाप्त भऽ जायत। ब्रह्मा कश्यप मुनिकेँ एहिसँ त्राणक उपाय कहलनि। कश्यप मुनि साँप झाड़बाक मंत्र बनेलनि। ओ तपस्या कऽ बिसहाराक सृष्टि केलनि। तेँ मनसा देवी कहल जाइत अछि। एहि तरहेँ ओ महादेवक, श्रीकृष्णक तपस्या केलनि। एहि सभसँ हिनक देह सुखाकऽ जीर्ण भऽ गेल तेँ हिनक नाम जरत्कारू पड़ल। हिनक विवाह बूढ़ ब्राह्मणसँ भेल।  अखाड़क संक्रान्तिसँ नाग पञ्चमी धरि बिसहाराक पूजा पसीझक पातपर होइत अछि। बिसहारा पूजा करबासँ लोककेँ धन-धान्यक वृद्धि होइत अछि आ साँपक डर नञि होइत अछि। बारह नामसँ बिसहरि विख्यात छथि-जगदगौरी,   मनसा, जरत्कारु, वैष्णवी, सिद्धयोगिनी, नागेश्वरी, शैवी, जरत्कारु - प्रिया, नाग-भगिनी, आस्तीक माता, बिसहारा आ महाज्ञानयुता। ई बारहो नाम लेबासँ लोककेँ अपना आ ओकर सन्तानकेँ सर्पदंशक डर नञि होइत अछि।

मंगला-गौरीक कथा
श्रुतिकीर्त्ति नामक एकटा राजा छला। हुनका बेटा नञि छल। ओ भगवतीक आराधना केलनि। भगवती वरदान मङबा लेल कहलनि। राजा कहलनि पुत्र छोड़ि कोनो वस्तुक कमी नञि अछि। हमरा एकटा पुत्र दिअ। भगवती कहली-सेवक तोरापर हम प्रसन्न छी। तोरा पुत्र लिखल नञि छह, तथापि तोरा हम बेटा देबह। सर्वगुणी बेटा लेबह तँ सोलह बरख जीतह आ जँ चिरञ्जीवी लेबह तँ महामूर्ख हेतह। राजा मन्दिर दुआरि लगीचक एकटा आम रानीकेँ खुआ देलनि। रानीक कोखिसँ सुन्दर बालकक जन्म भेल। राजकुमार पढ़ि-लिखि सम्पन्न भऽ गेला। देखैत-देखैत राजकुमार सोलह बरखक भऽ गेला। राजाकेँ एमहर चिन्ता सता रहल छल। बेटाक मृत्यु अपन सोझाँ केना देखता। राजा राजकुमारकेँ अपना सारक संग काशी पठा देलनि। माम-भागिन काशीक रस्तामे जाइत-जाइत आनन्दनगर पहुँचला। ओहिठाम वीरसेन नामक राजा राज करैत छला। राजाकेँ मँगला गौरी नामक एकटा कन्या रहथिन। ओ सखी सभक संग फुल लोढ़ि रहल छली। बात बातमे कोनो सखी तमसाकेँ राजकुमारीकेँ राँड़ी कहि देलनि। राजकुमारी कहलनि हमरा हाथक अक्षत जाहि वरक माथपर पड़ि जायत ओ अल्पायु रहितो चिरायु भऽ जायत। सञ्योगवश माम-भागिन एहि बातकेँ अपना कानसँ सुनलनि। ओ सोचलनि जे राजकुमारी संग भगिनाक विवाह भऽ जायत तँ ओ चिरायु भऽ सकैत छल। एमहर राजकुमारीक विवाह सुकेतु वर्मासँ तऽ छल। ओ कुरूप छल। सुकेतुक बाप-पित्ती विचारलनि। नीक वर लऽ मड़वा पर जायब आ विवाह भेला बाद ओकरा भगा देब आ सुकेतुकेँ कोहबरमे बैसा देब। ई लोकनि मामासँ भागिन मङलनि। चिरायुक विवाह राजकुमारीसँ करायल गेल। एमहर सोलहम बरख चिरायुक पूरि गेल छल। अधरतियामे काल गहुमनक रूप धऽ घर पैसि गेल। राजकुमारी गहुमनकेँ देखि दुधक बाटी ओकरा  आगू राखि देलनि। नागराज प्रसन्न भऽ ओतहि राखल पुरहरिमे पैस गेल। राजकुमारी आँगीसँ पुरहरिक मुँह बान्हि देलनि। बादमे जखन राजकुमारी साँपवला पुरहरिकेँ फेकऽ गेली तँ साँपक जगह एक गोट रत्नक हार छल। ओ हार पहिर लेली। एमहर चिरायु अपन मामक संग काशी, विन्ध्याचल चलि गेला। एक बरखक बाद फेर एहिठाम एला। राजकुमारी चिरायुकेँ देखि चीन्ह लेली। राजा दुनूक विवाह खूब धूमधामसँ करेलनि आ पूरा परिवार खुशीपूर्वक जीवन बिताबऽ लगला। तेँ मैना आ नाग पूजाक साधवाक जीवनमे बड़ महत्व अछि।

मधुश्रावणी : पहिल दिनक कथा

                                                                                 मधुश्रावणी : पहिल दिनक कथा
                                                     प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक                                           मौना पञ्चमी
एगो बूढ़ी स्नान करबा लेल धार कात गेली। ओ देखलनि जे धारमे पातपर पाँच गो जीव लहलहाइत दहा रहल अछि। ओ जीव बूढ़ीकेँ कहलकनि जे जाउ आ गाममे स्त्राीगणकेँ कहियनु जे आइ मौना पञ्चमी अछि। आइ पवित्रता पूर्वक स्नान-ध्यान करथि। चिक्कनि माटि आनि घर-आङनकेँ पवितासँ नीपथि। ओहि माटिक पाँच गो थुम्हा बनाबथि। ओहिपर सिनूर-पिठार लगा दूभि साटि देथु। नव बासनमे खीर-घोरजाउर बनाबथि। बिसहराक पूजा कऽ हुनका दूध-लाबा चढ़ाबथि। खीर, घोरजाउरक उसरगि देथि। नेबो, आमक पखुआ, नीमक पात आदि चढ़ाबथि। घरक दुआरिक दुनू भाग गोबरसँ फेँच काढ़ने नागक आकृति बनाबथि। ओकरा मुँहमे दही-दूभि लगाबथि। आइ तीत खाथि। जे एहि तरहेँ मौना पञ्चमी पाबनि मनेती तिनका सभ तरहक कल्याण हेतनि। एना नञि केनिहारिकेँ नोकसान हेतनि।
जखन स्नान कऽ बूढ़ी गाम घुरली तँ ओ सभकेँ एकर जानकारी देलनि। किछु गोटे बूढ़िक बातपर विश्वास नञि केलनि आ पाबनि नञि मनेलनि। ओतहि बहुतो गोटे हुनका बातपर विश्वास कऽ जाहि रूपेँ कहल गेल छल तहिना मौना पञ्चमी मनेलनि। जे सभ पाबनि केलनि से सभ तँ सुरक्षित रहला आ जे सभ पाबनि नञि केलनि ओ सभ रातिमे मरि गेला। तखन लोक सभ बूढ़ी लग पहुँचल आ हुनकासँ एकर उपाय पुछलनि। बूढ़ी फेर धार लग गेली आ ओहि ठाम चिकनी पातपर लहलह करैत ओहि जीवकेँ सभटा बात कहि उपाय पुछलनि। ओ पाँचो जीव पाँचो बहिन बिसहरा छली। परिचय जानि बूढ़ी हुनका प्रणाम केलनि आ मरल लोक सभकेँ जीवन देबाक आग्रह केलनि। तखन बिसहरा कहलनि जे गाममे जँ ककरो ओहि ठाम बासनमे खीर-घोरजाउर लागल रहि गेल हो तँ ओकरा मरल लोक सभक मुँहमे लगा देबै ओ सभ जीबि जायत। सभकेँ कहबै जे अगिला पञ्चमीकेँ जखन नागपञ्चमी होयत तँ ओहि दिन नियमसँ पाबनि मनाबथि। बूढ़ि गाम आबि सभटा बात कहलनि आ सभ मरल लोकक मुँहपर खीर-घोरजाउर लगायल गेल। सभ जीबि उठला। नागपञ्चमी दिन पाबनि मनेलनि आ मड़रय कहाय लगला।

                                                                               बिसहराक जन्म
महादेव आ गौरी सरोवरमे जल-क्रीड़ा कऽ रहल छला। एही बीच ओ स्खलन भऽ गेलनि। महादेव ओकरा पुरैनिक पातपर राखि देलनि जाहिसँ विसहरा पाँचो बहिनिक जन्म भेलनि। महादेवकेँ पाँचोपर सन्तानवत स्नेह उमड़ि एलनि। ओ रोज सरोवर जाथि आ पाँचो बहिनिक संग खेलाथि। एमहर गौरीकेँ महादेवपर सन्देह भेलनि जे ओ नहाय लेल जाइ छथि तँ बड़ी काल किए लगबै छथि? एक दिन ओ चुपेचाप महादेवक पछोड़ धेलनि। नुका कऽ देखलनि जे महादेव साँपक पाँचो पोआ संग खेला रहल छथि। गौरी कुपित भऽ गेली आ पाँचो पोआकेँ पैरसँ पीचऽ लगली तँ महादेव मना केलनि आ कहलनि जे ई पाँचो मारबाक पात्र नञि छथि। ई पाँचो अहाँक पुत्री थिकी। ई सभ अहाँक संग सभक उपकार करती। सभक कष्ट दूर करती। हिनका सभक पूजा साओन मासमे पृथ्वीपर हेतनि। जे एहि पाँचो बहिनिक पूजा करता तिनकर सभ तरहेँ कल्याण हेतनि। महादेव कहलनि जे एहि पाँचोक नाम ओ जया, बिसहरि, शामिलबारी, देव आ दोतलि रखलनि अछि।

मधुश्रावणी : माधुर्य संग गम्भीर चिन्तनो

मधुश्रावणी : माधुर्य संग गम्भीर चिन्तनो

-अमलेन्दु शेखर पाठक
मिथिलाक वातावरण संगीतमय भऽ उठल अछि। नव विवाहितका महापर्व मधुश्रावणी जे शुरू भऽ गेल अछि। मधुश्रावणी जकरा मिथिलाक गामघरमे मोसरामनी सेहो कहल जाइछ अपन नामक अनुकूल मधु-रससँ सराबोर अछि। अन्तिम दिन पतिक संग मोसरमनी पुजबाक बाद हुनका हाथे तेसर बेर सिन्दूरदानक विधि नव विवाहिता लोकनिकेँ एक बेर फेर पुलकित कऽ देतनि। आ एहन पाबनि संगीत विहीन कोना होयत जखन मिथिलाक कोनो पाबनि-तिहार आ कि संस्कार बिना गीतक नञि होइत अछि। से गितगाइन सभ नव विवाहिताक आङनमे जूटि वातावरणमे अपन मनोहारी सामूहिक स्वर घोरब शुरू कऽ देलनि अछि। पबनैतिनक आङनमे भोर होइते हबगब आरम्भ भऽ गेल अछि आ पूजा आरम्भ होइते सभ विधिक गीत बेराबेरी भऽ रहल अछि। ‘विनती  सुनियौ हे  महरानी,  हम  सभ शरणमे ठाढ़, अक्षत  चानन  अहाँकेँ  चढ़ायब, आरती  उतारब ना’ सँ गोसाउनिकेँ गोहरायल जाइत अछि, तँ ‘साओन मास नागपञ्चमी भेल, बिसहरि गहवर सोहाओन भेल’ गीतसँ बसहरिक अभ्यर्थना भऽ रहल अछि। ओतहि ‘पहिरि ओढ़िय कनिञा सुहबे पाबनि पूजऽ बैसली हे, हे शुभ पावनि दिनमे’ केर माध्यमे पर्वक उछाह प्रकट होइत अछि। पूजन होइत-होइत दुपहर भऽ जाइत अछि आ तकर बाद सोलहो शृंगार केने नव विवाहिताक टोली केर समवेत स्वर वातावरणमे अनुगुञ्जित भऽ उठैत अछि ‘लालहि बन फूल लोढ़ब फुल तोड़ब,  हे सिन्दुर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।’ गहना-गुड़ियासँ लदल नव विवाहिताक लोकनिक पदचापसँ उठैत रुन-झुन स्वर वातावरणकेँ अलौकिक बना रहल अछि। ई सभ फूल लोढ़बा लेल बहरेली अछि। फूल लोढ़बा लेल, तोड़बा लेल नञि। माने साँझ धरि जे फूल मौलायब आरम्भ भऽ गेल अछि, झरि जेबा योग्य भऽ रहल अछि, तुइबा लेल प्रस्तुत अछि तकर सञ्चय करबा लेल। अधिकांश फूल भोरमे फुलाइत अछि से साँझ धरि लोढ़बे योग्य रहि जाइत अछि। ओकरा सभकेँ चुनि कऽ अपन डाला भरैत नव विवाहिताक सासुरसँ आयल भार-दोरक बात, पतिक चर्चा, परिहास आ हँसीक बोर दैत नव विवाहितामेसँ क्यौ फेर उठा दै छथि बटगमनी आ मिथिलाक संस्कृति ओहिमे बिहुँसऽ लगैत अछि। आनन्द मग्न नव विवाहिताकेँ अन्तिम दिन टेमी दगबाक परम्पराक रोमाञ्चो छनि। पानक पातसँ पति आँखि मुनता आ टेमी दगबाक विधि होयत। चर्चामे ई विधि सेहो अछि आ लुकझुक होइत-होइत सभ अपन डाला फूल-पातसँ भरि घुरै छथि तँ साँझक गीत आरम्भ भऽ जाइत अछि ‘कोन घर साँझ सँझाय गेल कोने घर दीप जरु रे, बाबू कोने सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे...।’
कहबाक तात्पर्य जे सगरो उछाहे उछाह अछि, मुदा एहि महापर्वमे एतबे धरि नञि अछि। ई अपना भीतरमे अनेक महत्वपूर्ण आ महत्वपूर्ण तथ्य समेटने अछि। एकर महत्ताकेँ एहीसँ बूझल जा सकैत अछि जे ई साहित्योमे अपन स्थान बनेलक। डॉ. शैलेन्द्र मोहन झाक उपन्यास ‘मधुश्रावणी’ मैथिली साहित्यमे आइयो अपन विशिष्ट स्थान रखैत अछि। ओना एहि पोथी सन दुखान्त मधुश्रावणी पाबनि नञि अछि। ई अपना अन्तसमे मधुरताक संग बहुत रास चिन्तन सहेजि रखने अछि। आने पाबनि जकाँ एकर सामाजिक सरोकार तँ अछिए ई नव विवाहिताकेँ गाहर्स्थ्य जीवनक योग्य बनेबाक काज सेहो करैत अछि। से व्यावहारिक आ मनोवैज्ञानिक दुहू स्तरपर।

गृहस्थ जीवन लेल दैछ मार्ग-निर्देश
मिथिलाक नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी आस्था आ श्रद्धासँ गहीँर धरि जुड़ल अछि। नव विवेहते नञि अपितु मिथिलाक कतेको विवाहिता आजीवन एहि पाबनिकेँ मनबै छथि। हँ, ओ नव विवाहिता एकरा साओन कृष्ण पक्षक पञ्चमीसँ साओन शुक्ल पक्ष तृतीया धरि मनबै छथि जिनका वैवाहिक जीवनमे पहिल बेर ई पाबनि अबै छनि आ आन-आन विवाहिता अन्तिम दिन उपास रखै छथि कि एकसञ्झा करै छथि आ अनोन खाइ छथि। नव विवाहिताकेँ मोसरामनी पुजेबामे ओ नित्य बढ़ि-चढ़ि कऽ भाग लै छथि। हुनक उछाह देखिते बनैत अछि। ई तँ अछि श्रद्धा-विश्वासक हाल। एकर दोसर पक्ष सेहो अछि। नव विवाहिता गृहस्थ जीवनमे प्रवेश करै छथि तँ हुनका गृहस्थीक गाड़ी गुड़केबा लेल आवश्यक जनतब सेहो चाही। मधुश्रावणी एहिमे मेहक काज करैत अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिनकेँ सभ दिन फराक-फराक निर्धारित कथा सुनाओल जाइ छनि जे गाहर्स्थ्य जीवनसँ कोनो ने कोनो रूपमे जुड़ल रहैत अछि। मिथिलामे सभसँ नीक शिव-पार्वतीकेँ नीक दम्पती गेलनि अछि। हुनकासँ जुड़ल अनेक कथा पबनैतिनकेँ सुनाओल जाइ छनि। एकर अतिरिक्त ओ मंगला गौरी, पृथ्वीक जन्म, समदु्र मन्थन, सती, पतिव्रता, गंगा, गौरीक जन्म, काम दहन, गौरीक तपस्या, गौरीक बियाह, मैनाक मोह भंग, कार्त्तिकेय, गणेश, लीलीक जन्म, विदाइक भार, गौरिक भागिन पुरिबा-पछबा, पतिव्रता सुकन्या, गौरीक ननदि आदिक कथा सुनै छथि। एहि कथा सभमे जतऽ शास्त्रीयताक पुट रहैत अछि ओतहि दाम्पत्य जीवनमे केहन आचार-विचार हेबाक चाही, एकर की लाभ होइत अछि आ विमरीत गति अपनेने की हानि होइत अछि, विवाहक बाद नव सम्बन्ध ननदि, भागिन आदिसँ सेहो हुनका परिचित कराओल जाइ छनि। ई कथा सभ नव-नव सम्बन्धक बीच समन्वय बनेबाक आ गृहस्थीकेँ सुचारु रूपसँ चलेबाक मानसिकता तैयार करैत अछि।

सासुरवास लेल मनोवैज्ञानिक तैयारी
मधुश्रावणी ओना तँ आने पाबनि जकाँ नजरि अबैत अछि, मुदा एकर महत्व एहि दृष्टिञे बढ़ि जाइछ जे ई ओहि नव विवाहिता लेल अछि जे अपन ओहि घर-परिवारकेँ छोड़ि अपन सासुर जेती जाहि ठाम ओ बालपनसँ लऽ युवावस्था धरि बितेलनि। जाहि गामक माटि-पानिमे ओ खेलेली। माता-पिता, भाय-बहिन, काका-काकी, सखी-बहिनपा, अपना गामक चिन्हार खेत-खरिहान, गाछी-बिरछी, पोखरि-झाँखरि सभकेँ त्यागि ओ ओहि गाम जेती जाहि ठाम हुनक परिचित पति मात्र हेथिन। बड़सँ बड़ ओ देओरकेँ चिन्हैत हेती। अपरिचित सासु-ससुर, ननदि-नन्दोसि, देयादनी, भैंसुर, देयोर आदिक बीच हुनका अपन गृहस्थी बसेबाक छनि। मधुश्रावणी नव विवाहिताकेँ सासुरवास लेल मनोवैज्ञानिक रूपसँ तैयार सेहो करैत अछि। एहिमे नव विवाहिता लेल विधान कयल गेल अछि जे अछि जे ओ भरि पाबनि सासुरेसँ आयल अन्न, फल, दूध, पूजन सामग्री, वस्त्र आदिक उपयोग करती। परिणाम ई होइत अछि जे नव विवाहिता अपन नैहरमे रहितो ओहि ठामक किछु उपयोग नञि करै छथि। काल्हि धरि जाहि नैहरक सभ किछु उपयोग करैत रहली ताहिसँ लगातार 14 दिन कटल रहब सेहो नैहरमे रहिते हुनकापर मनोवैज्ञानिक असरि जरूर बनबैत हेतनि। एहिसँ मानसिकता अवश्य बनैत होयत जे आब ओ हुनक अपन घर नैहर नञि छनि। नैहरक बदला सासुरकेँ अपन घर मानबा दिस प्रेरित करबाक ई पाबनि पहिल सीढ़ी बनैत अछि। तहिना सासुरक आर्थिक स्थितिसँ अवगत भऽ तदनुकूल अपनाकेँ तैयार करबाक अवसर सेहो ई नव विवाहिताकेँ दैत अछि। पाबनि लेल कनिञाकेँ पठाओल जायवला मधुश्रावणीक भारक ओरियान प्राय: वास्तविक आर्थिक स्थितिसँ थोड़े बढ़िएक कऽ कयल जाइत अछि। एहि पाबनिमे कनिञाक संग हुनक माय आ नैहरक आन स्त्रीगण परिजन लेल वस्त्र सेहो पठाओल जाइत अछि। एहिसँ अनुमान कयल जा सकैछ जे कनिञाक सासुरक केहन भोजन आ पहिरन-ओढ़न छनि। नव विवाहिताकेँ ई अवसर दैत अछि जे आयल भारसँ कम कऽ अपना सासुरक आर्थिक स्थितिकेँ आँकथि आ ओहिमे अपन सामञ्जस्य लेल तैयार होथि।

पर्यावरणसँ बढ़बैछ निकटता
ओना तँ सभ पाबनि प्रकृतिएपर आधारित होइत अछि। जखन-जखन प्राकृतिक परिवर्त्तन होइत अछि कोनो ने कोनो पाबनि अवश्य मनाओल जाइत अछि, मुदा नव विवाहिताक महापर्व मधुश्रावणी एहन पाबनि अछि जे पबनैतिनकेँ सोझे प्रकृतिसँ जोड़ैत अछि। ओकरा प्रकृतिक लग अनैत अछि आ ई सन्देश दैत अछि जे पर्यावरणक लेल सभ गाछ-बिरिछ अनिवार्य आ उपयोगी अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिन रोज साँझमे फूल लोढ़ै छथि। फूलक संग ओ विभिन्न गाछक पात सेहो जमा करै छथि। ताहिमे बेली, चमेली, ओड़हुल, गुलाब, कनैल, अपराजिता आदिक फूल आ जाही, जूही, बाँस, मेहदी, लताम, औरा, अनार, अकौन आदिक पात होइत अछि। एहि सभसँ डाला भरि पबनैतिन नित्य साँझमे घर घुरै छथि आ एही फूल-पातसँ अगिला दिन भोरमे पूजन होइत अछि। एहि पाबनिमे बासिए फूल-पातसँ पूजाक विधान अछि। फूल लोढ़बा काल तँ नव विवाहिताक बीच गाछ-पातक नाम आ ओकर उपयोगिताक चर्च होइते अछि, कोन फूल-पात पूजाक उपयोगमे आयत आ नञि ताहिपर एक-दोसरसँ तँ विमर्श होइते अछि, बूढ़-पुरान सेहो एहि सम्बन्धमे नवका पीढ़ीकेँ जानकारी दैत रहला अछि।ई क्रम पहिल दिन मौना पञ्चमीसँ लऽ अन्तिम दिन धरि चलैत अछि। पातो तोड़बाक विधान ताहि समयमे राखल गेल अछि जखन बरखा होइत रहैत अछि। पाबनि साओन मासमे होइत अछि आ एहि समयमे गाछसँ पात हटेने ओकर क्षति नञि होइत अछि।

साँप पर्यन्त केर रक्षाक मानसिकता
पर्यावरणमे साँप सन विषधर केर सेहो महत्वपूर्ण स्थान अछि। आधुनिक विज्ञानो एकरा स्वीकार करैत अछि। से कतेको अनुसन्धानक बाद, मुदा मिथिला अदौसँ एकरा जनने अछि। मात्र जनबे ने केलक, अपितु साँप सन जीव पर्यन्तक रक्षा लेल एकर विधान मधुश्रावणीक संग केलक। नव विवाहिता तिथिक हिसाबे लगातार 14 दिन धरि बिसहरि केर पूजन करै छथि। नाग-नागिनसँ सम्बन्धित अनेक कथा सुनै छथि जे आगामी जीवनक पाथेय बनैत अछि। अक्षय अहिबातक कामना संग होबऽ वला एहि पाबनिकेँ महिलेसँ ताहूमे नव विवाहितासँ जोड़बाक पाछाँ कारण सेहो अछि। ई विधान प्राय: एहि दुआरे कयल गेल जे ओहि नव विवाहिताक जीवनमे पहिल बेर ई पाबनि अबैत अछि भावी माता होइ छथि। जँ माय पर्यावरणक संरक्षा-सुरक्षा केर संग सर्प सन जीवक प्रति संवेदनशील हेती तँ ओ अपना सन्तानमे सेहो एकर संवेदना भरि सकती। यैह कारणो अछि जे मिथिला क्षेत्रक महिला तँ धार्मिक-आध्यात्मिक होइते छथि, हुनकासँ कनेको कम पुरुष नञि होइ छथि। तेँ अन्धानुकरणक अन्हर-बौखीक बादो एखनो मिथिलाक अधिकांश लोक अपन सांस्कृतिक परम्पराक प्रति ममत्व रखै छथि। ओना धीरे-धीरे एहूमे घून लागब शुरू अछि।

महिलाक पौरोहित्य सशक्तिकरणक आधार
सगरो दुनिञामे महिला सशक्तिकरणक अनघोल अछि। सभ तरि एके रंग बात जे महिलाकेँ कतिया कऽ राखि देल गेल। हुनका विकास नञि करऽ देल गेल। अपनो ओहि ठाम यैह हाल, मुदा मिथिलाक स्थिति अतीतमे देश-दुनिञाक आन क्षेत्रसँ सर्वथा भिन्न रहल अछि। ई सत्य जे पुरुष समाज जकाँ अपनो ओहि ठाम महिला लोकनिक समाजक सभ क्षेत्रमे सक्रिय नञि रहली, मुदा विद्याक क्षेत्रमे एहन नञि रहल। ज्ञानार्जनक अधिकार प्राचीन कालेसँ मैथिलानीकेँ रहलनि। तेँ ने मिथिला पुत्री गार्गी एतहि भेल छली जे राजा जनक ओहि ठाम ब्रह्मज्ञानी लोकनिक सभामे सम्मिलित होइत छली। शास्त्रार्थ करै छली। से की बिना पढ़ने-लिखने? तहिना सुलभा, सुनयना, मैत्रेयी, भारती, लखिमा आदि रहली। तहिना महिलाकेँ पौरोहित्यक अधिकार सेहो छलनि। आइयो छनि। मधुश्रावणी पाबनिमे आइयो महिलाकेँ पौरोहित्य करबैत देखल जा सकैत अछि। महिला पुरहित होइ छथि टोल-समाजक कोनो बूढ़-पुरान दादी, काकी, पीसी आदि जे प्रतिदिन नव विवाहिता पबनैतिनकेँ मोसरामनी पुजबै छथि आ सभ दिन लेल निर्धारित फराक-फराक कथा कहै छथि। अन्तिम दिन हुनका दक्षिणामे नव नूआ आदि सेहो भेटै छनि। आर तँ आर गाम-घरमे हुनका ‘पण्डीजी’ कहि सम्बोधित सेहो कयल जाइ छनि। कतेको गाममे आइयो मोसरामनी पुजनिहारि नव विवाहिता सभक बीच फूल लोढ़बा काल ई संवाद सुनल जा सकैत अछि ‘गे बहिना तोहर पण्डीजी के छथुन, हमर तँ अपने बड़की मैञा छथि?’ उत्तरमे कोनो काकी, कोनो दीदी, कोनो गामवालीक नाम कहल जाइत अछि। ई व्यवस्था लौकिक अछि। माने शास्त्रीय आ लौकिक दुहू दृष्टिञे मिथिला अपन मातृ शक्तिकेँ यथोचित सम्मान दैत रहल अछि। ई परम्परा नव विवाहिताक महापर्व मोसरामनीमे एखनो विद्यमान अछि।

मातृभाषाक प्रति बनबैछ संवेदनशील
नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी मिथिलाक मातृभाषा मैथिलीक प्रति सेहो संवेदनशील बनबैत अछि। एहि पाबनिमे सभटा कथा मैथिलीमे होइत अछि। फूल लोढ़बा काल, पूजा काल बिसहरि, गोसाउनि, मधुश्रावणी आदिक गीत तँ मैथिलीमे होइते अछि एहिमे जे पाँच गोट विशेष लौकिक मंत्रक विधान कयल गेल अछि जकरा बीनी कहल गेल अछि। व्रती पूरा आस्थासँ प्रतिदिन ई सुनै छथि- ‘जहियासँ भेल नाग मनारे। बिसहरि खसली शम्भु-भड़ारे...’, ‘गोसाउनि दान बड़ि, सोहाग बड़ि, आधा साओन....’, ‘गोसाउनि दाइकेँ एक ढक छियनि, पुरिबा-पछबा बसात छियनि..’, ‘बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल पहिल कोन...’ आ ‘दीप दिपहरा जाथु धरा, मोती मानिक भरथु घरा...।’ कतेक ठाम गौरी, बिसहरि, बैरसी, चनाइ नाग, कुसुमावती, पिंगला, लीली नाग, शतभागिनि, गोसाउनि, नाग, साठि आदिक पूजा पूर्णत: मैथिलीमे होइत अछि तँ कतेको ठाम पूजन संस्कृतमे आ लौकिक विधान बीनी आदि मैथिली आदिमे होइछ। माने शास्त्रीयता आ लौकिकताक समन्वय रहैछ। 

मधुश्रावणीक गीत आ बीनी

मधुश्रावणीक गीत आ बीनी
नव विवाहिताक महापर्व मधुश्रावणी पाबनि मनायल जा रहल अछि। एकर समापन आगामी 9 अगस्तकेँ साओन शुक्ल तृतीयाकेँ होयत। नव विवाहिता लोकनि गौरी, बिसहरा, वैरसी, चनाइ नाग, कुसुमावती, पिंगला, लीली नाग, शतभगिनी सहित गोसाउनि, साठि केर पूजन कऽ रहल छथि। नित्य कथा सुनि रहल छथि। ओतहि बीनीक मोटरीकेँ खोँइछमे राखि पाँच गोट ‘बीनी’ तीन बेर सुनै छथि। एकर बाद सभ दिन लेल निर्धारित कथा होइत अछि। कथाक अन्तमे ‘बाचो बीनी’ सुनबाक विधान अछि। ओतहि पूजनक समय आ फूल लोढ़बा काल गीत-गायनक परम्परा रहल अछि। साँझक समय सेहो माय-बहिनि लोकनि ‘साँझ’ गबै छथि। पोथीक अभाव आ गामसँ दूर विभिन्न महानगर ओ नगरमे रहनिहार मैथिल परिवारकेँ अपन सांस्कृतिक परम्परासँ जुड़ल रहबामे असुविधा होइ छनि। एहि ठाम प्रस्तुत अछि गीत आ बीनी-


गोसाउनिक गीत- 1
विनती  सुनियौ हे  महरानी,  हम  सभ शरणमे ठाढ़।
अक्षत  चानन  अहाँकेँ  चढ़ायब, आरती  उतारब ना।।
बेली चमेली माँ के हार चढ़ायब, ओड़हुल चढ़ायब ना।
करिया  छागर  धूर  बन्हायब,  उजर  चढ़ायब  ना।।

गोसाउनिक गीत- 2

कोन फूल पीयर हे माता कोन फूल लाल हे
कोन फूल पहिरन माँ के कोन फूल सिङार हे
चम्पा फूल पियर माँ हे ओढ़ूल फूल लाल हे
चम्पा फूल पहिरन माँ के ओढ़ूल फूल सिङार हे
पहिरि   ओढ़िय  काली  मन्दिरमे  ठाढ़  हे
सभ  सखि  मिलि कऽ पूजू माँ के दुआरि हे
पाँच - सात  सखि  मिलि विनिमव तोहार हे
हमरो   विनती   माता   सूनू   बारम्बार  हे
एकटा  जे  आशीष  दियऽ अहैबक सिङार हे
युग - युग   रहै   पबनैतिनक   सोहाग  हे

बिसहरिक गीत

साओन मास नागपञ्चमी भेल
बिसहरि गहवर सोहाओन भेल
केयो नीपै गहवर केया चौपारि
हमही अभागिन निपी दुआरि
केयो लोढ़य अड़हुल केओ बेलपात
 हमहू अभागिन हरियर दूभि
केयो माङय अनधन केओ माङय पूत
हमहू अभागिन सिरक सिन्दूर
कथी के चौखण्डी माता कथी के चौपारि
कथी के ओठङनि बिसहरि खेले जुआ सारि
सोना के चौखण्डी मैया रूपा के चौपारि
तुलसी ओठङनि बिसहरि खेले जुआ सारि
खेलैते धूपैते बिसहरि गेली अलसाय
सिरमा बैसल भगता बेनिया डोलाय
कहाँ तोहर आसन वासन कहाँ निज धाम
कौने दाइक बेटी थिकहुँ की थिक नाम
मेना हमर आसन बासन वैह थिक नाम
गौरी दाइक बेटी थिकहुँ बिसहरि नाम
जोड़ी लागल कलश देब जोड़ी लागल झाँझ
जोड़ी लागल छागर देब रहू एहि ठाम
सदा दहिन रहू होइयौ ने बाम

मोसरामनी पुजबा कालक गीत- 1

पहिरि ओढ़िय कनिञा सुहबे पाबनि पूजऽ बैसली हे
 हे शुभ पावनि दिनमे
लच-चल लचकै हुनकर डाँर
हे शुभ पाबनि दिनमे
घोड़बा चढ़ल अबथिन दुलहा रसिलबा
 हे शुभ पाबनि दिनमे
आजु  सुदिन दिन पाबनि छै
हे शुभ पाबनि दिनमे
ससुरा सँ औतै भरिया भार
हे शुभ पाबनि दिनमे
भरिया के करिहऽ बिदाह
हे शुभ पाबनि दिनमे

मोसरामनी पुजबा कालक गीत- 2

पाबनि पूजू आजु सोहागिन प्राण नाथ के संगमे
कारी कम्बल झारि गंगाजल काजर सिन्दुर हाथमे
चानन घसू मेहदी पीसू लिखू मैना पातमे
पाबनि साजी भरि-भरि आनल जाही-जूही पातमे
कतेक सुन्दर साज साजल अछि लिखल मैना पातमे।

फूल लोढ़बाक गीत

जानकी सखी विचारल झटझाट झारल
हे चलहुँ नन्दन वन जाय, सुन्दर फूल लोढ़ब
लालहि बन फूल लोढ़ब फुल तोड़ब
हे सिन्दुर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब
हरियर बन फूल लोढ़ब, फुल तोड़ब
पानहि भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।
कारी बन फूल लोढ़ब, फुल तोड़ब
हे काजर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।
चारु बन फूल लोढ़ब, फुल तोड़ब
हे माङब अखण्ड सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।


साँझ
कोन घर साँझ सँझाय गेल कोने घर दीप जरु रे
बाबू कोने सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे
बड़बा बाबा साँझ सँझाय गेल बड़की बाबी घर दीप जरु रे
फल्लाँ बाबा घर सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे
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बीनी-1

जहियासँ भेल मन-मनारे। बिसहरि खसली शम्भु-भड़ारे।।
कानथि गौरा फोड़थि ढाह। हे दाइ बिसहरि राखू नाह।।
आब तुलायलि पाँचो बहिनी। सकल शरीर घामि गेल बीनी।।
बीनी हे बिसकर्मा देलनि । देव-दोतिलकेँ देखऽ देलनि।।
सामिल-बाइल हरे परेखी। बेनी-गुण यति कहब विशेषी।।
आँतर-आँतर लागल मोती। मुक्ता गाछ पाट के थोपी।।
चारि कञ्चन चारि सामिक वरना। से देखि माइ हे आदित भुलना।।
से देखि माइ हे मालिन भुलना। डाँटी लागि गरुड़ के वाला।।
सोने बान्हू बान्ह करोड़ा। रूपे बान्हू गजमोती माला।।
जे बनीइ तेन बीनइ सारी। गहा-गुही पलटा दे नारी।।
अन्हरा पाबय नयन-संयुक्ता। कोढ़िया पाबय निर्मल काया।।
बाँझी नारि पाबय पुत्ता। जे ई बीनी सुनय चित्ता।।
अनधन लक्ष्मी बाढ़य वित्त। जे ई बीनी सुनय मन लागि।।
तकरा वंश नञि हो विष-दोष। तकर पुरुष चलय लछ कोस।।
जँ बीनीक लागय बसात। बीष-दोष नञि आबय पास।।

बीनी- 2
गोसाउनि दान बड़ि, सोहाग बड़ि, सुन्दर बड़ि, आधा साओन
जगत्र गोसाउनि, मधस्थ राजाक बेटी, युगे कुमरक बहिन
मधु-मधु महानाग-श्रीनाग-नागश्री दाइकेँ पाँच पुत्र कोखि धरि
नाहर परतारि बैरसी बियाहि, मद्र-मनिका धरहर ढाहि, गोसाउनि
सन भाग, लीली सन सोहाग, सुननिहारिकेँ होइनि।

बीनी- 3
गोसाउनि दाइकेँ एक ढक छियनि, पुरिबा-पछबा बसात छियनि,
कोखिलाक सात छियनि, भमराक लात छियनि, मेघडम्बर सन छाती छियनि
मुक्तावली पाँती छियनि।

बीनी- 4
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल पहिल कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल दोसर कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल तेसर कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल चारिम कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल पाँचम कोन।
चारू कोना रूना टूना भेल सम्पूर्णा, गौरा दाइकेँ पाँचो बेटिया।
भल भाइ शंकर हमहीँ जियाओल गौरी दाइ के बेटी।।

बीनी- 5
दीप दिपहरा जाथु धरा। मोती-मानिक भरथु घरा।।
नाग बढ़थु, नागिन बढ़थु। पाँच बहिन बिसहरा बढ़थु।।
बाल बसन्त भैया बढ़थु। डाढ़ी-खोँढ़ी मौसी बढ़थु।।
आशावरी पीसी बढ़थु। बासुकी राजा नाग बढ़थु।।
बासुकिनी माय बढ़थु। खोना-मोना मामा बढ़थु।।
राही शब्द लऽ सुती। काँसा शब्द लऽ उठी।।
होइत प्रात सोना कटोरामे दूध-भात खाइ।।
साँझ सूती प्रात उठी, पटोर पहिरी कचोर ओढ़ी।।
ब्रह्माक देल कोदारि, विष्णुक चाँछल बाट।।
भाग-भाग रे कीड़ा-मकोडाÞ। ताही बाट अओता ईश्वर महादेव,
पड़ल गुरूड़क ढाठ। आस्तिक, आस्तिक, आस्तिक, गरुड़, गरुड़।।

वाचो बीनी
पुरैनिक पत्ता, झिलमिल लत्ता, ताहि चढ़ि बैसली बिसहरि माता।
हाथ सुपारी खोँइछा पान, बिसहरि करती शुभ कल्याण।

Tuesday, 23 July 2013

शोणितक दाम

                                                   शोणितक दाम
                                                       -अमलेन्दु शेखर पाठक
श्आब हí क· रहल छी अहाँ सभÓ -मोद बाबू गरजला। श्एहन कतहु सुनबो ने केने रही हमरा लोकनि, आब हमरो सभक उमेर कम थोड़े रहल, अस्सी लगिचा देलियैÓ।
मोद बाबूक गरजबाक कोनो असरि नहि पड़ल। सभ एक-दोसराक मुँह मात्र तकैत रहल। कमल बाबूक चारू पुत्र अपनामे कटाउँझ करैते रहलथिन। के आगि देत से फरिछाए नहि रहल छल। जेठ बालक जयपालक अèािकारे बनै छनि, मुदा छोटका रामपालक कहब छनि जे ओ मोन खराब भेलापर एको बेर हुलकियो मार· नहि एलखिन। माझिल श्यामपाल सेहो आगि देबा लेल फाँड़ भिडऩे छथिन, मुदा पछिला जतरामे ओ मदन बाबूसँ लडि़ क· गेल छलथिन आ सौँसे समाज र्इ देखने छलनि तेँ बजबाक साहस नहि छलनि। ओना कनियाँ कहने रहथिन आगि देबा लेल। कारण जे आगि देतै तकरा बड़का अठकठबा भेटतै। बजबो केलनि, मुदा सझिला जनकपाल भाँजी मारि देलथिन- श्अहाँ आगि देबै से हमहीँ किए ने देबै, गाम èा· क· रहलहुँ हम आ आगि देबनि आहाँ सभ? नेरकम केलियनि हमरा लोकनि आ आगि देबा लेल आहाँ सभ उताहुल छी, लाजो नहि होइए?Ó
मोन तँ तिलमिला गेलनि, मुदा चुपे रहि गेला। आइ बोèा भ· रहल छनि जे गाम आबर-जात किए नहि करैत रहला। बाबू कूही भ· क· मरला। सभ दिन गाँजाक सोँट मारैत रहला जनकपाल आ आइ जे छोह देखा रहल छथि।
ओमहर गोपालकेँ किछु ने फुरा रहल छनि, की करथु? कोना क· कहथु अपन नाम। अपन नाम लैते हरबिर्रो ने मचि जाय। चारू भर नजरि खिरेलनि - श्मशान भूमिमे ठाढ़ छथि सभ लोक। कहै छै जे श्मशानमे आबि क· सभटा मोह मायासँ लोक मुä भ· जाइत अछि, मुदा एत· तँ उन्टे भ· रहल छै। सभ अपना अपनी दिस अठकठबा समेटबा लेल बेहाल अछि। सामने चिता सजल अछि आ ओहिपर कमल बाबूक शव पाड़ल छनि। एक कात गोँइठा सुनुगि रहल अछि। कमल बाबू एनमेन तेना जेना सूतल होथि। गोपालकेँ कमल बाबूक संग बितायल एक-एक पल स्मरण पडय़ लगलनि। ओ कमल बाबूक क्यौ नहि छथि। क्यौ नहि छथि माने, रä संबंèाी नहि छथि। ओना क्यौ कोना नहि छथि। नामो तँ हुनके देल छनि। अपन माय-बाप मोनो कहाँ छनि। पाँचे वर्षक रहथि जखन कमल बाबूकेँ लहेरियासराय टीसनपर भेटल रहथि। कहाँ दन तहिया ब³ला बजैत रहथि गोपाल, गोपाल नामो कहाँ कहने रहथि। किछु नाम कहने रहथि आ कमल बाबू गोपाल कहय लागल रहथिन। कमल बाबू तहिया युवके छला आ नोकरी तकै छला। बालो-बच्चा कहाँ भेल छलनि। जखन टीसनपर क्यौ नहि रखलनि आ गोपाल कनैत-कनैत लहालोट भ· गेला तँ अपना संग नेने एलथिन। कमल बाबूक पत्नी कुमुदिनी सेहो छाती सँ लगा लेलथिन। थोड़े दिन ताक हेर क· पुत्रवते राखि लेलथिन। गोपालक अबिते संयोग लगलै आ कमल बाबूकेँ प्रोफेसरी भेटि गेलनि। विवाहक दस वर्ष बीति गेल रहनि, मुदा कोनो संतान नहि भेल छलनि। दुनू बेकती दुखी रहै छला, से गोपालक अबिते कुमुदिनी मातृसुख पौलनि। अपनो संतान भेलनि, मुदा एहिसँ गोपालक मान-दानपर कोनो असरि नहि पड़लनि। दू पुत्रक बादे आपरेशन कराबय चाहै छला कमल बाबू, मुदा हुनका मायक जिदकेर समक्ष नतमस्तक भ· जाय पड़लनि। कुमुदिनीकेँ माय आ कमल बाबूकेँ बाबू कहै छला गोपाल। से माय अस्वस्थ रहय लगलथिन आ बाबूक समक्षे सभकेँ छोडि़ बिदा भ· गेली। ताबत जयपाल बीडीओ भ· गेल छलथिन। श्यामपालोकेँ रेलवेमे नोकरी भ· गेल छलनि। जनकपाल आर्इ.ए.एस. केर तैयारी लेल दिल्ली ओगरने छला आ रामपालकेँ आवारागदÊसँ फुर्सति नहि रहनि। गोपालकेँ जते भ· सकलनि निमेरा करैत रहला। माय खूब मोनसँ आशीर्वाद देने रहथिन। हुनकर अंतिम इच्छा रहनि पुतहुक मुँह देखबाक। गोपाल तैयार भ· गेला, मुदा कोनो भाइ ताहि लेल तैयार नहि। तहिया सभकेँ गोपाल अपन जेठके बुझेलथिन। गोपालक विवाह भ· गेलनि। मायक मनोरथ पूर भेलनि, मुदा गोपाल चाहैत रहथि जे सभ भाइ समर्थे छथिन, किए ने एके लगनमे सभक विवाह भ· जाय। मायोक मन रहनि, मुदा चुपे रहि गेल। कमल बाबू कहबो केलथिन, मुदा सभ भाइक जीवन वैयäकि भ· उठलनि। विवाह करबाक करबे केलनि, मुदा मायक देहांतक बाद। गोपालोक संग भाइ सभक दूरी बढय़ लगलनि आ ओहि दिन ओ पूरा-पूरी आन भ· गेलथिन जहिया पता लगलै जे बाबू जमीन पाँच भागमे बाँटि देने छथि। सभ भाइ विæोहपर उतरि एला। कमल बाबूसँ सभक कहा-सुनी èारि भ· गेलनि। गोपाल सेहो बुझौलकनि, मुदा बाबू नहि मानलथिन आ अपन सप्पत द· चुप क· देलथिन। भाइ सभक इच्छा रहनि जे गोपाल घर छोडि़ देथि। गोपाल कतेको बेर कानाफुस्सी सुनबो केलनि, मुदा गबदी मारि देलनि। जाबत बाबू छथिन ताबत रहता। छोडि़ क· चलि जेता तँ हुनका के देखतनि? आ गोपालक र्इ निर्णय ठीके रहलनि। परुकाँ बाबू बीमार पडि़ गेलथिन। देह सुखा गेलनि। अस्पतालमे भतÊ कयल गेलनि। जेठका जयपालकेँ फुर्सतिए नहि भेटलनि जे देखियो जैतथिन। माँझिल श्यामपाल एलखिन जरूर, मुदा रä देबाक बात सुनिते मोन बì खराब भ· गेलनि। जखन अपने अस्वस्थ रहथि तखन बाबूकेँ रä कोना दितथिन। रामपालकेँ पत्नी साफ मना क· देलथिन। जनकपाल ताबत नहि भेटलथिन जाबत खूनक ब्यौत नहि भ· गेलै। गोपाल एहि लेल प्रस्तुत छलाहे। पूरे चारि बोतल खून देलथिन। तीन बोतलक बाद डाक्टर साफ मना क· देलकनि श्आब खून लेने खतरा भ· सकै छैÓ। गोपाल नहि मानलनि। बाबू लेल जान चलियो जेतनि तँ की हेतै? जीवनो तँ हुनके देल छनि। बाबूकेँ जखन पता लगलनि तँ भरि पाँज èा· लेलथिन आ कहलथिन श्बौआ खाली मायक पेटेसँ जनमलासँ क्यौ ककरो बेटा नहि होइ छै से तोँ सिद्ध क· देलेँ...तोँ नहि रहितेँ तँ बेटा अछैतो निपुत्रे रहि जैतहुँ...हमरा लग तोरा पठा क· भगवान संतान-सुख बुझबाक अवसर देलनि...हे एगो बात कहै छियौ, जखन मरि जाइ तँ तोहीँ आगि दिहेँ। आन देत तँ आत्मा काहि काटत, तोँ देबेँ तँ जुड़ा जायत बौआÓ।
गोपाल गछि तँ लेलनि, मुदा बुझै छला जे प्रस्ताव दैते समाजो विरोèामे ठाढ़ भ· जायत। कोन जाति-èार्मक छथि सेहो तँ पता नहि। आ अखन,जखन समाज तय क· देलकै जे आगि देनिहारकेँ अठकठबा भेटतै, सभ भैयारी एहि लेल मारि ठनने छथि। अठकठबा तय होयबासँ पूर्व ककरो फुर्सति नहि छलनि तँ किनको मन खराब छलनि। आब मुर्दा पड़ल अछि आ सभ अठकठबापर गिद्ध जकाँ èयान लगेने छथि। की करथु गोपाल, बाबूक अंतिम इच्छा पूरा करबा लेल आगि देबा लेल अपन नाम कहथुन की नहि?...कहीँ तेसरे बखेरा ने भ· जाय। किछु निर्णय नहि क· पाबि रहल छथि। भीतरसँ अबाज उठलनि-श्अपनाकेँ सुरक्षित रखबा लेल चुप रहि जेताÓ। हठात उठला आ जयपालकेँ कहलथिन जे आगि ओ देता। जेना एकेबेर खरक आगि जकाँ सभ èाुèाुआ उठल। जयपाल सोझे आरोपो लगा देलथिन- श्खूनक दाममे अठकठबा चाहै छी?Ó
गोपाल सन्न रहि गेला। जयपाल एते खसि पड़ता से सोचनहुँ नहि छला। अवाक रहि गेला गोपाल। थोड़े काल बोले नहि फुटलनि, कने कालक बाद कहलथिन- श्बाबूक इच्छा रहनि तेँ, अठकठबा अहीँ सभ बाँटि लेबÓ। आब गौओँ सभ सुगबुगयला- र्इ कोना हेतै? अपन पुत्र अछैत आनक जनमल आगि देतै? देयादो रहितनि तँ ठीक छल। गोपाल भीतरे-भीतर कूही भ· उठला- भगवान हिनके कोखिमे किए ने जन्म देलथिन। कमल बाबू सन साèाु पुरुषक हाल भीतर èारि हिला देलकनि। आश्चर्य होइ छनि गोपालकेँ- एक टा माय कि बाप चारि टा संतानकेँ पोसि लै छै, मुदा चारि टा संतान मिलि एकटाकेँ नहि पोसि पबैए। गोपालक प्रस्तावपर भाइ सभ तँ तैयार भ· गेलथिन, आब समाजे विरोèामे ठाढ़ भ· गेलनि।
ताबत राजेÜवर बाबू ओकील हपसैत पहुँचि गेलथिन। ओ दाह संस्कार नहि होयबाकेँ नीक मानि रहल छला। कमल बाबू हुनका एगो लिफाफ देने रहथिन। कहने रहथिन जे हुनक मृत्युक बाद दाह संस्कार होयबासँ पूर्व खोलबाक निर्देश देने रहथिन, से कमल बाबूक देहांतक जानकारी भेलापर गंगापुरसँ सोझे दौड़ल गामपर गेला आ शव श्मशान चलि जेबाक बात सुनि सोझे एत· एला अछि। उपसिथत लोक सभमे हबगब शुरू भ· गेल। किनको मत रहनि जे कमल बाबू सभटा संपत्ति गोपालक नाम क· देने हेथिन तँ क्यौ एकरा गोपालक चलाकी मानि रहल छला। ओमहर चारू भाइकेर चेहरा निश्तेज भ· उठल छलनि। सभ एक-दोसराक मुँह देखि रहल छला। राजेÜवर बाबू लिलाफ फोललनि। सभ लोक हुनका घेरि लेलकनि। लिफाफसँ एगो कागत बहरायल जाहिपर लिखल छल जे श्हुनका आगि देथि श्री...पालÓ। आब भारी फेरी लागल। कागतमे पूरा नाम किनको नहि। श्पालÓ शब्दसँ पहिने सादा छलै। सभ भाइ तर्क देबय लगला। सभक यैह कहब जे बाबू हुनके नाम लिखय चाहै छला। बूढ़ रहथि से अक्षर छूटि गेलनि, मुदा एहिसँ निदान तँ नहि बहरायत। किछु लोक एहि लेल कमल बाबूकेँ सेहो लोक नीक-बेजाय कहय लगलनि। कमल बाबू रहथि मखौलिया। जाबत जीला सभकेँ हँसबैते रहला, मुदा किछु लोककेँ हुनक र्इ स्वभाव नीक लगनि तँ किछु गोटे भीतरे-भीतर डाहो रखै छला। कमल बाबू अपना पत्नीयोकेँ परिहास करैत रहै छलथिन। दलसिंहसराय कालेज जाथि आ अयबामे बेसी दिन भ· जानि तँ कहियो तेना अक्षर उन्टा क· चि-ी लिखि देथिन जे ककरो चलबे ने करै, मुदा कुमुदिनी आ गोपालकेँ बुझा देने रहथिन। कहियो सामने अयना राखि ओहिमे सभटा खेरहा पढ़ा जाय तँ कहियो शीर्षक नीचा क· अयनाक समक्ष पत्र रखलापर पढ़ाय, मुदा आइ तँ किछु लिखले नहि छै। गोपालोक बुद्धि काज नहि क· रहल छनि। एही बीच राजेÜवर बाबूक हाथसँ कागज उèािया गेलनि आ सोझे èाुआँइत गोँइठापर जा क· खसलै। जाबत लोक उठाबय-उठाबय ता कागत कुड़कुड़ा गेलै आ श्पालÓ शब्दसँ पहिने चमकि उठलै अक्षर श्गोÓ, आब शब्द पूरा भ· क· गोपाल भ· गेल छलै। हलसि उठला गोपाल आ मुखागिन दैत बाजि उठला श्तोँ सभ की देबह खूनक दाम, दाम तँ देलनि बाबूÓ। आ बुक्का फाडि़ क· कानि उठला गोपाल  श्बाबू यो बाबू... अगिलो बेर जन्म ली तँ अहीँ बाप होइ यो बाबूÓ।

‘झिझिर कोना’ खेलाइत मिथिला-मैथिली आन्दोलन

   ‘झिझिर कोना’ खेलाइत मिथिला-मैथिली आन्दोलन

      -अमलेन्दु शेखर पाठक
             
  ‘झिझिर कोना, झिझिर कोना, कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना’, धीयापुताक खेलक ई सांगीतिक समूह-स्वर हमर ध्यान अनचोके मिथिला-मैथिली आन्दोलनपर केन्द्रित कऽ दैत अछि। तहिना जखन कखनो मिथिला-मैथिली आन्दोलनपर विचार करै छी किंवा एकरा लगसँ हिआसै छी हमरा कानमे नेना-भुटकाक खेल ‘झिझिर कोना’ केर ई प्रश्नोत्तरी अनुगुञ्ति होबऽ लगैत अछि। दुनू एक-दोसराक पर्याय जकाँ बुझाइत अछि। दुनूमे अद्भुत समानता।  से उद्देश्य आ गतिविधि दुहू दृष्टिञेँ। बच्चा सभ ई खेल मनोरञ्जन आ समय बितेबा लेल खेलाइ छथि। कोनो काज नञि अछि तँ चलू ‘झिझिर कोना’ खेलि ली। नेना लोकनिमे बहुतोकेँ एकर लुतुक सेहो। आन खेल नञि रुचै छनि। घुरिफिरि कऽ यैह खेलता। एहने सन हाल मैथिली-मिथिला आन्दोलनोक देखबामे अबैत अछि।
    जेना ‘झिझिर कोना’ खेल कोनो कोठली आकि दलानक कोन भरि खेलल जाइत अछि तहिना आन्दोलनी सेहो निर्धारित कोनसँ बहरेबा लेल तैयार नञि। ‘झिझिर कोना’ मे होइत अछि ई जे चारि अथवा एहिसँ बेसी कोनसँ सटि कऽ नेना ठाढ़ रहै छथि। एक गोटा बीचमे ठाढ़ रहैत अछि। कोन धेने ठाढ़ बच्चा सभ एक-दोसरासँ स्थान बदलै छथि। एक कोनसँ दोसर कोन धरि पहुँचबासँ पहिने जँ बीचमे ठाढ़ नेना किनको छू देलक आकि खाली कोनो कोन धऽ लेलक तँ छुआ गेल आ कि स्थान पेबासँ वञ्चित रहि गेल खेलाड़ी बीचवला स्थानपर आबि जाइत छथि। स्थान-परिवर्तनसँ पहिने कोनमे ठाढ़ नेना सभ अपनामे प्रश्नोत्तरी करैत अछि। एक समूह पुछैत अछि ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना?’, दोसर समूह उत्तर दैत अछि ‘सासु घर पुतहुआ कोना’, आ गौँ ताकि बीच वला खेलाड़ीसँ बचैत दौड़ि कऽ कोन बदलि लै छथि। ई खेल स्थान बदलियो कऽ खेलल जाइत अछि। आइ एक दलानपर तँ काल्हि दोसर घरमे। कहियो स्कूलपर तँ कहियो गामक मन्दिरपर। खेलाड़ियो निर्धारिते रहैछ। एक टोलक बच्चा एक ठाम। धोखा-धाखी कहियो कऽ आनो टोलसँ क्यौ ससरि कऽ आबि गेल तँ ओकरो सम्मिलित कऽ लेल गेल। वर्चस्वपर आघात किंवा आन कोनो कारणेँ जँ मतान्तर रहल तँ दोसर टोलवलाक ‘बायकाट’ कऽ देल गेल। कहियो कऽ अपना गोलमे एहि लेल वाकयुद्ध आ मल्लयुद्ध भऽ जाइत अछि आ फूट-फूट दू गोल भऽ गेल। एक गोलक खेलाड़ी दोसरामे गेल तँ ओहो बारि देल गेल।
   अपवादकेँ छोड़ि दी तँ मैथिली-मिथिलाक विकासक अभियानो ‘झिझिर कोना’ जकाँ चलि रहल अछि। जते गाम, जते टोल, तते गोल। खेलाड़िए जकाँ प्रतिस्पर्द्धी भावसँ भरल। एक-दोसराकेँ पछाड़बा लेल अपस्याँत। एहि फेरीमे जँ गोले भहरि जाय तँ तकरो चिन्ता नञि। एहू खेलक कोन निर्धारित अछि। दरभंगा-मधुबनीक एहन दलान बेसी अछि जाहि ठाम ई खेल बरोबरि चलैत अछि। स्थानीय तँ सहजहिँ बाहरोक अभियानी एही दिस बेसी धपायल। एमहर सहरसा दिस सेहो हुलकी मारल जा रहल अछि। दरभंगा, पटना आ कि राँचीक पैघ-छोट गोलक प्रभावी गतिविधिक परिधिमे समग्र मिथिला नञि अबैत अछि। खेलाड़ियो निर्धारित। दलान बदलि कऽ जँ आन नगर-महानगरक भेबो कयल तँ खेलाड़ी ओतबे, वैह जे पहिनेसँ गोलमे छथि। हँ, ओकरा जरूर साझी कऽ लेल जाइत अछि जाहि दलान आ कि कोठलीपर ई होइत अछि। खेल समाप्त भेलाक बाद साझी कयल गेनिहार धोखे-धाखी ताकल जाइ छथि।
   एमहर जखन खेलक बीचमे ठाढ़ खेलाड़ीकेँ देखै छी तँ ई बदलैत भेटै छथि। कहियो कऽ बीचमे ठाढ़ सामान्य मैथिल जनता भेटै छथि जे निर्विकार ठाढ़ छथि। मूकदर्शक टा बनल। हुनका जेना एहि खेलमे कोनो रुचिए नञि होनि। ने ककरो छूबाक प्रयास आ ने खाली कोन धरबाक उत्कण्ठा। कोन धऽ ‘झिझिर कोना’ खेलाइत आन्दोलनीकेँ सेहो एकर फिकिर नञि जे बीच वलाक गतिविधिक बिना खेल अधखरू अछि। ओ अपने मगन भेल सुर मिलेबामे मस्त ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना।’ कहियो कऽ बीचमे ठाढ़ मिथिला आ मैथिली नजरि अबै छथि जिनका देखि अनुमान होइत अछि जे ओ अपन सन्तानकेँ ‘झिझिर कोना’ खेलाइत देखि प्राय: ई सोचैत रहै छथि जे हुनके लेल प्रयास कऽ रहल बाल-बच्चा हुनकासँ छुएबाक डरेँ किए पड़ा रहल अछि? हुनका कोनो कोन किए ने धरऽ दऽ रहल छनि। हुनके नामपर आयोजन करैत अछि, हुनके गुणगानमे समय बितबैत अछि, हुनके विकासक लेल जान उपछि देबाक घोषणा करैत अछि आ आयोजनक उपलब्धिक प्रसंग चिन्तन करबाक पलखतियो ने बहार करैत अछि। सभ सन्तान हुनका नामपर एकठाम बैसबासँ कन्छी कटैत अछि। अपवादकेँ छोड़ि प्राय: लोक स्वयंभू नेता बनबाक जोगारमे बेहाल अछि। आन्दोलनकेँ लक्ष्य धरि पहुँचेबाक घोषणाकेँ मूर्त्तरूप देबाक प्रति क्यौ साकांक्ष नञि अछि। से जँ नञि तँ अपन गतिविधिकेँ माटिसँ ने जोड़ैत? एकर बीज धरतीमे ने रोपैत? कोनो आन गाछक साँङह जकाँ उपयोग कऽ आन्दोलनकेँ अमरलत्ती जकाँ नञि ने चतरऽ-पसरऽ दैत? ‘मिथिला-मैथिली’ तखन आर सीदित भऽ उठै छथि जखन अपना नामपर लोककेँ जमा कऽ अभियानी द्वारा ओकर अपना रुचि-रसक अनुरूप बात-व्यवस्था देखै छथि। सभकेँ समेटि कऽ अपना पक्षमे ठाढ़ केनिहारक प्रतीक्षा ‘मिथिला-मैथिली’ अनन्त कालसँ करैत ‘झिझिर कोना’ केर खेल देखि रहली अछि। हमरा कानमे एक कविक ई पाँती सुना पड़ैत अछि-
  ‘भाषा नेता चिन्तित गुरुपद पयबा लय
     साहित्यकार युग नायक कहबयबा लय
    अनका नीचाँ धकियबामे लागल अछि
    अथवा अपना विज्ञापनमे पागल   अछि’
   आ जखन ‘झिझिर कोना’ मे कोनो आन गोलक  अभियानी, खेलाड़ी सन बीचमे नजरि अबै छथि तखन खेल-भावनेपर आघात शुरू भऽ जाइत अछि। कोनमे ठाढ़ खेलाड़ी कोन बदलबे लेल तैयार ने जे कहीँ धोखोसँ बीचवला ने कोन धऽ लेअए। एहि डरेँ एके कोनमे ठाढ़ भेल जपैत रहै छथि ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना।’ बीचो वला ककरो छू कऽ सराबऽ लेल तैयार नञि, ओ सदिखन कोन धरबाक ब्योँतमे। एक गोल जँ दोसर टोल गेल तँ ओहि ठामक लोककेँ भड़केबाक जोगारमे लागल-भीड़ल। परिणाम ओहि टोलसँ पहिने पहुँचल गोलक खेल भऽ गेल गोल। एक गोट गोल दलान बदलि पहुँचल दिल्ली, मुम्बइ, नेपाल तँ दोसर गोआ, हैदराबाद, आगरा। प्रवासी मैथिल आ मिथिला-मैथिली संस्थामेसँ अधिकांश ताबते सक्रिय-सजग जाबत अपना धरतीसँ टीम आबि ‘झिझिर कोना’ खेलायल। गौआँ-घरुआकेँ एहिसँ कोनो माने-मतलबे ने। साकांक्ष लोक एतबेसँ सन्तोष करैत जे खेलमे भने समय नष्ट भऽ रहल हो, कमसँ कम खेलेनिहारक स्वास्थ्य लाभ तँ भैए रहल छै। आर नञि किछु तँ खेलक माध्यमे मिथिलाक सुगन्धि तँ पसरैत अछि। मैथिलीक बोल तँ अनुगुञ्जित होइत अछि। एहू खेलपर विराम लगा देल जाएत तँ मैथिलीक दू टा पाँतियो कतऽ सुनब? आ तेँ सगरो अनघोल अछि- ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना।’

गोनू झाक महीँस

                                       गोनू झाक महीँस
                                                                 - अमलेन्दु शेखर पाठक
गोनू झा केर भाइ छलथिन भोनू झा। एक बेर दुनू भाइमे बाँट बखरा भऽ गेलनि। सभ सम्पत्तिक बँटवारा भऽ गेल। जे समान जोड़ामे छल, माने दू-दू चारि-चारि केर संख्यामे छल से तँ सहजतासँ बँटा गेल, मुदा जे एके टा छल तकरा कोनो बाँटल जाय? ई पैघ समस्या छल। गोनू झा चाहै छला जे महीँसक सेवा दूनू भाय करथि। ओकरा दुनू गोटे खाय-पीबऽ लेल देथि आ दूध आधा-आधा बाँटि लेथि, मुदा भोनू झाकेँ लोक सभ चढ़ा-बढ़ा देने छलनि तेँ ओ मानबा लेल तैयारे नञि भेला। गोनू झा कतबो बुझेलथिन, मुदा ओ टोलबैया सभक सिखेबाक कारणेँ महीँस बँटबापर अड़ल रहि गेला। अन्तमे गोनू झा हुनकेपर छोड़ि देलथिन जे जेना मन होनि तेना करथु।
एमहर गोनू झाक विकाससँ टोल-पड़ोसक लोक सभमेसँ कतेको जरै छल। कतेको गोटे हुनका छकेबाक प्रयासमे विफल रहल छला से सभ अवसर तकै छला जे कोना हुनका पछाड़ल जाय। एहन लोक सभकेँ गौँ भेटि गेलनि। ओ सभ भोनू झासँ सटि गेला आ आरो चढ़ा-बढ़ा देलनि जे महीँसोक बाँट कराबथु। भोनू झा हुनके सभकेँ पञ्चैती लेल बजेलनि। सभ बैसि कऽ पञ्चैती कऽ देलनि जे महीँसकेँ आगाँ आ पाछाँ दू भागमे बाँटि देल जाय। अगिला हिस्सा गोनू झाकेँ भेटलनि आ पछिला भोनू झाकेँ।
अगिला हिस्सामे महीँसक मुँह पड़ै छल से गोनू झा रोज महीँसकेँ खुआबथि आ पछिला हिस्सामे थनमे पड़ै छल से भोनू झा बिना कोनो तरद्दुतकेँ आरामसँ रोज दूध दूहथि आ दही-दूध खाथि-पीबथि। गोनू झाकेँ बिना किछु केने गोबर सेहो भऽ जानि, जकरा खेतमे पटाबथि। एहिसँ हुनक उपजो बढ़ि गेलनि। गोनू झा भायक सिनेहमे चुपमे छला। एक दिन टोलबैया सभ हुनक कौचर्य केलकनि जे बड़ा दिमाग वला छथि, केहन छकेलियनि।
ई बात गोनू झाकेँ बड़ अप्रिय लगलनि। ओ तय केलनि जे सभक बुधियारी घुसारि देता। फेर की छल, अगिला दिनसँ जखने भोनू झा महीँस दुहबा लेल बैसथि कि गोनू झा महीँसक मुँहपर सोँटा लऽ पीटऽ लागथि। एहिसँ महीँस छटपटाय लागय आ लथार चलबऽ लागय। भोनू झा महीँसकेँ दूहिए ने पाबथि। ई क्रम जखन दू-चारि दिन चलल तँ भोनू झा एकर शिकाइत पञ्च सभसँ केलनि। सभ फेर जुटला। गोनू झाकेँ पुछलथिन जे ओ एना किए करै छथि जे भोनू झा महीँसकेँ दूहि नञि पबै छथि?
गोनू झा मुस्कियाइत उत्तर देलथिन जे अपना हिस्सामे किछु करै छथि ताहिसँ ककरो की मतलब? ओ भोनू झाक हिस्सामे तँ नञि किछु करै छथि? ककरो लग कोनो उत्तरे नञि छल। भोनू झा सेहो बूझि गेला जे ओ गोनू झासँ अराड़ि मोल लऽ नञि टीकि सकै छथि। ओ गोनू झा लग हारि मानि लेलनि आ तकर बाद दुनू भाय मिलिजुलि कऽ महीँसकेँ खुआबथि-पियाबथि आ दूध आधा-आधा बाँटि लेथि। गोनू झासँ ईर्ष्या रखनिहार टोलबैया सभ मुँहे बबैत रहि गेल।

गोनू झा छकेलनि चोरकेँ

                    गोनू झा छकेलनि चोरकेँ
                                                              - अमलेन्दु शेखर पाठक 
गोनू झा अपन तीक्ष्ण बुद्धि आ ज्ञानकेँ लऽ समग्र मिथिलामे चर्चित तँ छलाहे ओ राज दरबारमे सेहो यशस्वी छला। सदिखन अपन बुधियारीक बलपर पुरस्कार पबिते रहथि। हुनका घरमे सोना, चानी, हीरा आदिक अमार लागल रहै छलनि। एहि कारणेँ चोर-चुहार सदिखन हुनका घरपर नजरि टिकेने रहै छल जे कखन मौका भेटय आ सभटा धन पार कऽ दी, मुदा सभ बेर ओकरा सभकेँ गोनू झा अपन बुधियारीसँ पछारि देथि। चोरि तँ नहिञे कऽ पाबय, गोनू झा उन्टे बिना कोनो विशेष प्रयासक ओकरा सभकेँ दण्डित सेहो कऽ देथि। सभ बेर चोरबा सभ बपहारि काटि पड़ाय। सभ बेर चोरबा सभ संकल्प लै छल जे गोनू झाक घरमे चोरि कऽ हुनका पाठ पढ़ेने बिना नञि छोड़त। से एक दिन अवसर भेटिते चोरबा सभ मुन्हारि साँझमे गोनू झाक घरमे पैसि गेल आ छपकि कऽ बैसि गेल आ प्रतीक्षा करऽ लागल जे रातिमे जखन गोनू झा आ हुनक कनिञा सूति रहती तँ सभटा गहना-गुड़िया, सोना-चानी आदि पार कऽ देब।
चोर सभकेँ लऽ गोनू झा सेहो चौचंक रहै छला। से जखन ओ राज दरबारसँ घुमला तँ हुनक नजरि कोठीक पाछाँ नुकायल चोरपर पड़ि गेलनि। गोनू झा मुसुकि उठला आ मने-मन चोरबा सभकेँ पाठ पढ़ेबाक निश्चय केलनि। खा-पी कऽ ओछायनपर एला तँ चर्चा चला कनिञासँ चोर सभक उत्पातपर बात करऽ लगला। एहि क्रममे ओ कनिञाकेँ कहलथिन जे ओ चोर सभक उत्पातक कोनो चिन्ता नञि करथु। गोनू झा हुनकर सभटा गहना-गुड़िया तेना ने नुका कऽ राखि देलनि अछि जे चोरबा सभ की चोरबा सभक बापो ने ताकि सकत। कनिञा पुछलथिन जे कहाँ धऽ देलियै? पहिने तँ गोनू झा कहबासँ नाकर-नुकुर केलनि आ तकर बाद कहलथिन जे बाड़ीक लतामपर मोटरी बान्हि टाङि देने छथि। चोरबा सभ तँ घरमे ने ताकत। भोरे फेर उतारि अनता आ राति कऽ धऽ देता। पहिने तँ कनिञा बाहरमे धन हेबापर चिन्ता प्रकट करैत ओकरा घरमे आनऽ लेल कहलथिन, मुदा जखन गोनू झा खूब बुझेलथिन तँ ओ सूति रहली आ फोँफ काटऽ लगली। एमहर गोनू झा अनमट काढ़ि ओछायनपर पड़ल रहला।
चोरबा सभ ई बात सूनि रहल छल, मुदा गोनू झा कतेको बेर छका देने छला तेँ पहिने एक गोटे लतामक गाछपर मोटरी टाङल अछि कि नञि से देखबा लेल गेल। ओ घुरि कऽ आयल तँ कहलक जे ठीके मोटरी टाङल अछि। आब तँ चोरबा सभ प्रसन्न भऽ गेल जे गोनू झाकेँ होइ छनि जे बड़ बुधियार छी से एहि बेर सभटा बुधियारी घुसरि जेतनि। चोरबा सभ एकाँएकी घरसँ बहरायल से गोनू झा तरे आँखिए देखि चुलक छला। ओ प्रतीक्षा करऽ लगला। ओमहर चोरबा सभ बाड़ीमे लतामक गाछ तर पहुँचल आ खूब पैघ मोटरी टाङल देखि आनन्दे झूमि उठल। सभ लप दऽ गाछपर चढ़ल आ मोटरी उतारबा लेल जहाँ हाथ लगेलक कि बाप-बाप चिकरऽ लागल। असलीहतमे ओ छल मधुमाँछीक पैघ छत्ता। जहाँ चोरबा सभ हाथ लगेलक कि मधुमाँछी सभ ओकरा सभपर टूटि पड़ल। चोरबा सभ गाछपरसँ धपा-धप खसल आ बपहारि कटैत पड़ायल। हल्लापर टोलबैया सभ लाठी लऽ जूटल जे गोनू झाक घर फेर चोर एलनि, मुदा एला तँ देखलनि जे गोनू झा हँसि रहल छथि। जखन सभटा खेरहा कहलनि तँ टोलबैयो सभ हँसैत घूरल आ गोनू झाक बुधियारीक चर्चा एक बेर फेर सौँसे पसरि गेल। राज दरबारमे जखन ई बात पहुँचल तँ महाराज गोनू झाक बुधियारीसँ प्रसन्न भऽ हुनका पुरस्कारमे सोना-चानी दऽ बिदा केलनि। गाूेनू झा बुधियारीसँ चोरबा सभकेँ छका अपन धन बचेलनि आ पुरस्कारमे आरो धन भेटि गेलनि। 

गोनू झाक बेटा

                                                                                         गोनू झाक बेटा
                                                              - अमलेन्दु शेखर पाठक 
गोनू झाक घरपर चोर धपायले रहै छलनि। चोर सभ जनै छल जे गोनू झा राज दरबारमे छथि आ ओहि ठामसँ हुनका बेसी काल सोना-चानी, हीरा-मोती आदि इनाममे भेटिते रहै छनि। चोर सभ सदिखन गोनू झाक घरमे हाथ सुतारऽ लेल बाट तकैत रहैत छल। अपन एक ने एक चटियाकेँ गोनू झाक घर दिस पठबिते रहै छल जे जखने लगौ जे चोरि सम्भव अछि हम सभ जूमि जेबौ।
एक दिन चोर सभकेँ चटियाक समाद भेटल जे आइ गोनू झा सबेरे ओछायनपर चलि गेल छथि तेँ आइ हाथ साफ करबाक अवसर भेटि सकैत अछि। समाद भेटिते चोर सभ जूटल आ बेरा-बेरी गोनू झाक घरमे पैसि गेल। ओ सभ देखलक जे गोनू झा ओछायनपर पड़ल अपना कनिञा संग बतिया रहला अछि। चोर सभ कोठीक दोगमे दम्म साधि नुकायल दुनू बेगतीक सुतबाक प्रतीक्षा करैत हुनक बातो सुनि रहल छल।
ओमहर ओछायनपर पड़ल गोनू झाक नजरि चोरपर पड़ि गेल छलनि। ओ चोर सभकेँ पकड़बाक ब्योँत सोचऽ लगला। भेलनि जे हल्ला करब तँ चोर जँ बेसी संख्यामे होयत तँ पड़ा जायत आ कहीँ अस्त्र-शस्त्र ने रखने हो। चतुर गोनू झाकेँ उपाय फुरा गेलनि। ओ कनिञाकेँ कहलनि जे जखन अपना सभक बेटा होयत तँ हम पहिल केर नाम राखब मोहन।
गोनू झाक कनिञा औँघा रहल छलथिन, तेँ हुनक बातमे रुचि-रस नञि रहल छलथिन। गोनू झा हुनका देह झमारि जगेलनि आ कहलनि- ‘सुनू ने जे दोसर बेटाक नाम राखब लोचन, तेसर केर मोचन आ चारिम केर नाम राखब चोर।’
कनिञाकेँ तँ बूझल रहनि नञि जे घरमे चोर घुसि गेल अछि तकरे पकड़बाक जोगार गोनू झा कऽ रहल छथि। तेँ ओ कहलथिन ‘दुर जाउ चोर कहीँ नाम भेलै... अच्छा जे मन होयत से राखब...जहिया बेटा होयत तहिया ने नाम राखब एखन सूतू।’
गोनू झा चोर वला बात बाजियो नञि सकै छला आ चोरकेँ पकड़बोक छलनि तेँ पत्नीकेँ जगबैत बजला- ‘सूनू ने! चारू बेटाकेँ खूब खुआ-पिया कऽ तन्दुरुस्त राखब आ जखन जरूरति होयत चारूकेँ एक्के बेर सोर पाड़ब मोहन, लोचन, मोचन, चोर हो ऽऽऽऽ....जल्दी आबऽ मोहन, लोचन, मोचन, चोर हो ऽऽऽऽ....।’
गोनू झा जोर-जोरसँ नाम लऽ चिकरि-चिकरि बाजि रहल छला आ कनिञा हँसैत-हँसैत लोटपोट भऽ रहल छलथिन जे बेटा भेलनि नञि आ सभकेँ जोर-जोरसँ बजा रहल छथि, मुदा गोनू झाक आवाज आर जोरे भेल जा रहल छलनि।
एमहर गोनू झाक आवाज सुनि हुनक पड़ोसिया मोहन, लोचन आ मोचन लाठी लऽ पहुँचि गेला। सभ केबाड़ खटखटेलनि कि गोनू झा चट दऽ खोलि देलनि। पड़ोसिया सभ चोर दऽ पुछलकनि तँ देखा देलथिन कोठी दिस। चोर सभ गोनू झाक बात तँ सुनि रहल छल, मुदा गोनू झाक कनिञा जकाँ ओहो सभ खिस्से बूझि रहल छल। ओकरा सभकेँ पते ने छल जे बेटाक नामक बदल गोनू झा अपन पड़ोसियाक नाम लऽ रहल छथि आ चारिम बेटाक नाम जानि कऽ चोर राखि चिचिएला जाहिसँ सभ जुटि जाय। जखन पड़ोसिया सभ जुटि गेला तँ चोर सभकेँ पड़ेबाक बाटे ने सूझल। सभ पकड़ल गेल। लोक सभ जमि कऽ पिटलनि आ राजाक सिपाही सभकेँ पकड़ि कारागारमे धऽ देलक। असलीहत बुझबापर पड़ोसिया सभक संग कनिञा सेहो गोनू झा केर प्रशंसा केलनि आ महराज सुनलनि तँ एहू चतुरता लेल गोनू झा पुरस्कृत कयल गेला। चोरो पकड़ा गेल आ गोनू झा केर घरमे धन सेहो बढ़ि गेल।

ऊधोजीक उधियान........ हम्मे नञि रहबऽ तिमनचिक्खा

  ऊधोजीक उधियान........
                         हम्मे नञि रहबऽ तिमनचिक्खा
                                                           - अमलेन्दु शेखर पाठक 
ऊधोजी उत्फाल भेल छथि। सौँसे घर एक दिस आ ओ अपने एक दिस भऽ गेल छथि। ककरो सुनबा लेल तैयार नञि। ओ अड़ि गेल छथि जे आब नोकरी नञि करता- ‘नञि हम्मे नोकरी नञि करबऽ तोँइ आर कतबो हल्ला करभो हम्मे आइ रिजनेसन मारि इस्कूलसँ घुरी अइबऽ।’
भौजी, माने ऊधोजीक कनिञा दौड़ल एली हमरा गोहराबऽ- ‘हे नूनू तोँइ बुझैबहो तँ मानि जैथिन। रिजेन मारि देथिन तब बाल-बुतरू सभ की खैतै...फेरो सनकी चढ़ि गेलै हन।’
हुनकासँ बात बुझबाक प्रयास कयल जे ऊधोजी एना किए कऽ रहल छथि, मुदा ओ किछु कहबाक बदला तेना हमर गट्टा धेलनि जे ओकर मट्टा टूटि गेल आ पहिल दिन बुझलहुँ जे भौजी पूरा-पूरी ऊधोजीक अर्द्धांगिनी हेबा जोगर छथि। हमर मुँहक बात मुँहे रहि गेल आ ओ हमरा घिसिएने अपना आङन लऽ कऽ पहुँचि गेली। ऊधोजी कऽलपर हाथ मटिया रहल छला। हमरा देखिते हुम्हरला- ‘भैबाकेँ बोला कऽ लैलहो से आइ हम एकरो बात नञि मानबो।...तोँइ आर कलस्टर-मजिस्टरकेँ अन्भो तैयौ आइ हम्मे अपना बातसँ नञि पलटय वला छिकियै।...हमरा जानपर बनल छिकै आ हिनका सभकेँ....।’
ऊधोजी वाक्यो ने पूरा केलनि आ हड़बड़ा कऽ लोटा नेने फेर कऽले लगक शौचालयमे घुसि गेला। भौजीसँ पता चलल जे अधरतिएसँ लोटे हाथे छथि। घर भरि जागल अछि। रातिमे पानि चढशौचालयसँ घुरै छथि तँ एतबे रटै छथि जे आइ नोकरी छोड़ि देता। एहू हालतिमे त्यागपत्र लिखि कऽ राखि लेलनि अछि। कनिञा बुझा कऽ थाकि गेली अछि। आब जेठका बेटोकेँ मोछक पम्ह चललनि, से ओहो बुझेलकनि, मुदा ओकरा हुरपेटि लेलथिन। बेचारा सिटपिटा कऽ कात भऽ गेल। भौजीकेँ पुछलियनि- ‘किए त्यागपत्र देबऽ चाहै छथि? भेलैए की जे...’
हमर मुँहक बात मुँहेमे रहि गेल। ऊधोजी शौचालयसँ बहार भऽ गेल छला, ओ कऽलपर हाथ मटिएबा लेल बैसैत कहलनि- ‘हम्मे कहै छिकियौ भैबा, तनी हाथ धोइ लै छिकियौ...तोँइ जरूर हम्मर दरद बुझभीँ...।’
हाथ मटिया ओही ठाम आङनमे राखल चौकीपर ओलरि गेला। हुनकर हालति ठीके खराब छलनि। कहाँ चकैठ सन देहवला ऊधोजी आ कहाँ एके रातिमे गलि कऽ राङ भऽ गेल हुनक देह। कतऽ लाल-लाल कर्जनी सन बड़का-बड़का डिम्हा कुदबा लेल तैयार रहै छलनि से धँसि गेल छलनि।...ऊधोजी कने काल आँखि मुनने हकमैत रहला। हम ई सोचि दलानपर चलबाक आग्रह केलियनि जे ओहि ठाम कोनो बात होयत तँ भौजी संग झझका-झझकी तँ नञि हेतनि, से प्रस्ताव दैते हमरापर छुटला- ‘तोँइ महा खतम छिकहीँ भैबा, लौकै नञि छिकौ जे हमर की हाल छिकै...अधरतियासँ अखनी धरि लोटा नेने दौड़िए रहलियै हन...आधासँ बेसी काल भितरे बैसल छिकियै।...फीरि अइलौँ आ फीरि जाइ छिकियै.....जँ फेरो पेटमे खोँच मारय लगतै तँ तोँइ काम देबहो...जाबे अङना अइबै ताबे जँ.....नञि-नञि हम्मे नञि जैबै दूरापर इहेँ बैठब करेँ...।’
चुप लगा गेलहुँ। कहबो तँ ठीके कने छला। बेचारे करथु की। आहा-ओहो कऽ हुनका पोल्हबैत पुछलियनि- ‘की भेल? किए नोकरी छोड़बा लेल भिड़ल छी...पेट किए खराब भऽ गेल? कतहु अक्कच-दोक्कच खा लेलियै की?’
ऊधोजी ओहू हालमे गरजि उठला- ‘माहटर तोँइ छहो की हम्मे...लगल्हो हमरासँ चटिया जेँकती सबाल पुछय...किए नोकरी छोड़भो...रे हम्मे भितरामपुर जा रहल छिकियै तकर चिन्ता ककरो नञि छिकै...खस्सी के जान जाय आ खेबैया के स्वादे नञि...तोँइ आर की चाहै छहो जे ऊधोबाबूकेँ फूकि देबहो तखनिए चैन होइतऽ..?’
मन तँ लोहछि गेल। ई हमर चटिया तँ नहिञे छथि, हमहूँ तँ हिनक चटिया नञि छियनि। दू-चारि बरख छोट हेबनि तकर की माने जे एना लुलकारता? मन तँ भेल जे चुपचाप उठि कऽ चलि दी, मुदा फेर हुनक शारीरिक अवस्थापर ध्यान गेल आ चुप लगा गेलहुँ। अपना ओहि ठाम कहलो गेल छै जे बच्चा, बूढ़ आ बेमारपर दया करी। प्राय: ऊधोजी सेहो गमि लेलनि जे एखन हुनकर बात हमरा नीक नञि लागल से नरम पड़ैत कहलनि- ‘ले बलैया तोँइ किए मूँह लटका लेलहीँ रे भैबा, कने जोरसँ बोला गेलै तँ बुझभी नञि जे कमजोरीसँ एना होइ छिकै....।’
ऊधोजी हमरा प्रति सिनेह देखेलनि आ आगाँमे टाङ पसारि देलनि। संकेत केलनि तँ मन मसोसि कऽ पैर ऐँठऽ लगलियनि। हमरा दबेने हुनक ढेङ सन-सन टाङ-जाँघकेँ की हेतनि, मुदा तैयो झूलऽ लगलहुँ आ ऊधोजी अपन व्यथा कहब शुरू केलनि- ‘भैबा रे सरकारी नोकरीकेँ लात मारब के चाहै छिकै? जहिया नोकरी होलै तहिया हम्मे बड्डी खुशी होलियै...माहटर होबै...परिच्छा होइतै तऽ हमरा आउर के नोकरी होबो करितै? बीए पास होलियै तहिया मोछ रहै करिया...नोकरी होलै उजरा मोछवला के...जे होलै से होलै माहटर तऽ हम्मे होइए गेलियै....आहि रे बा, माहटर होलियै बाल-बुतरूकेँ पढ़ाबै खातिर की बकरी, घोड़ा, महीस आ मनुक्ख गीनय खातिर आ भोट करबय खातिर?...हाय रे बा एकर बाद हम्मे होइ गेलियै बेपारी....चाउन आनहो, खिचड़ी बाँटहो...चोरी करहो, चाउर बेचहो, नञि बेचभो तँ तंग होइबहो...चोरी करहो तोँइ, पकड़ैबहो तँ गौञाँ-घरुआ सोँटियैबो करतऽ आ एकबारमे फोटो सहो छपि जैतऽ...नञि चोरि करभो तँ ई लुटुकुन नेताजी सभक आव-भगत कहाँसँ करभो...हाकिमक स्वागत कोना होइतऽ?’
ऊधोजीकेँ कण्ठ सुखा गेल छलनि। नोन-चीनी मिलायल पानि दू घोँट पीलनि आ फेर शुरू भऽ गेला- ‘ई फेज तँ जेना-तेना पार होइ गेलियै...हाय रे बा आब   कहै छिकै तिमनचिक्खा बनहो।’
हम टोकारा देलियनि- ‘केहन सुन्नर तँ नोकरी अछि। आब तँ अहाँ प्रभारी हेडमास्टरो छी।’
ऊधोजी लोहछला- ‘भैबा रे यैह ने काल होइ गेलै। छपरामे मझिनी भोजन धीयापुता खैलकै आ मरि गेलै से आब कहै छिकै जे पहिने तोँ चिखहो तब दहो बच्चा सभके...नोकरी करभो तँ सरकारी बात कोना नञि मानभो से काल्हि हम्मे चिखलियै एक बेर, मुदा आबय लागलै नेताजी सभ आ सभ बेराबेरी अपना सामनेमे हमरा कहै पहिने अपने खाइ कऽ देखबहो...तै पर गारजीयनो जुटय लागलै...हमरा चिखैत-चिखैत ठोँठा धरि आइ गेलै खिचड़ी..ढेकरो होइ तँ मुँहमे खिचड़ी आबि जाइ...घरे आबैत-आबैत छेरा-बोकरा धै लेलकै...आब तोँही बोलेँ हम्मे माहटरी करबै कि तिमनचिक्खा बनबै....।’
ऊधोजीक बात तँ ठीके छलनि, तथापि कहलियनि- ‘मिड डे मील बनेबामे सफाइ आदि नञि रखबै?’
ऊधोजी तमतमेला- ‘तोँइ आर की बुझै छहो जे हम्मे सभ जानि-बूझि कऽ गन्दा राखै छिकियै, जे बेबस्था देबहो ओहीमे ने खाना बनबैबै...कहै छहो जे शौचालय लग बनबै छिकै...रे भैबा देशमे ऐसन लाखो आदमी छिकै जे लगमे नञि शौचालये के हॉजपर खाना पकबै छिकै...आ घरमे लोकके फूड पोआइजनिंग नञि होइ छिकै...कुछ होइ गेलै तँ माहटरे के फाँसी....बच्चा आर के हिफाजति ठीक छिकै, मुदा माहटर के जान जान नञि होइ छिकै की...फूड चीखि कऽ अपने टीङ गेलियै तबै की होतै...छिकै अन्दाज ककरो...हम ककरो नञि सुनबै...आइ रिजनेसन देबे करबै?’
ऊधोजी लोटा लऽ फेर दौड़ि गेला आ हम चौकीपर विचारैत बैसल रहि गेलहुँ, अपना आहि ठाम कोनो समस्याक निदान लेल रोगक इलाज किए ने होइ छै?

ऊधोजीक उधियान..... जाम परदेश

 ऊधोजीक उधियान....

  -अमलेन्दु शेखर पाठक
                                       जाम परदेश

ऊधोजी बाँसक फट्ठा नेने, गल्लीक मुँहपर बेञ्च लगेने ओहिपर बैसल छला। बाँस लऽ बाटकेँ पूरा-पूरी घेरि देने छला। हालति तेहन छल जे कातो दऽ निकलब सम्भव नञि छल। जे प्रयास करितो छल तकरापर फट्ठा लऽ छुटै छला। नेना-भुटका सभ स्कूल जेबा लेल पीठपर बस्ताक बैग लदने ठाढ़ आ हुनक अभिभावक लोकनि ऊधोजीसँ आग्रह कऽ ्नरहल आ ओ तेना गरजि कऽ दौड़ै छला- ‘मारे सोँटासँ दिमागे झारि देगा।’
लोक सभक पिल्ही चमकि उठै छलै आ सभ सुटुकि जाइ छल। अपनो आॅफिस जेबामे विलम्ब भऽ रहल छल, मुदा ऊधोजीक कोइलाक पहाड़ सन कायासँ लगमे जेबाक साहस नञि भऽ रहल छल। ताबत हुनकर नजरि हमरापर पड़लनि आ जीवनमे पहिल दिन हलसि उठला। अपना मने मोलायम स्वरमे हमर स्वागत केलनि, मुदा हमरा लागल जेना क्यौ कानेपर हथौड़ा बजारि रहल हो- ‘आबो भैबा! तूँ आबि गीया तँ आब काज भऽ जायगा।....आबो बैसि कऽ हम्मर समर्थनमे नारा लगाबो आ हे कने कलस्टर साहेबकेँ फोनो लगाबो जे मोआबजा भेटेगा तखने बाटो फूजेगा।’
ऊधोजीक भुजदण्ड बढ़लनि आ जाबत हम किछु कही ताहिसँ पहिने हमरा खेलौना जकाँ उठा बेञ्चपर अपना हिसाबे बैसेलनि आ हमरा हिसाबे पटकि देलनि। बड़ चोट लागल। सुसाकरी छूटि गेल। मन तँ लोहछि गेल, मुदा ऊधोजीपर क्रोधो तँ नञि प्रकट कऽ सकै छलहुँ। मन मसोसि कऽ रहि गेलहुँ। बाट जाम करबाक कारण पुछलियनि तँ अपन विशाल टाङ आगाँ कऽ देलनि। ओहिमे क्रैप बैण्डेज छलनि। हमरा किछु बुझबा नञि आयल तँ फुफकार जकाँ निसास छोड़ैत कहलनि- ‘भैबा रे! हम्मर टाङ मुचुकि गीया। एकर मोआबजा भेटेगा तखने बाट छूटेगा।’
-‘आहि रे बा, अहाँक टाङ टूटि गेल ताहि लेल मोआवजा किए भेटत? आइ धरि एना कहियो भेलैए?...’
हमरा बीचेमे रोकैत ऊधोजी गरजला- ‘हे बेसी बलगेङ नञि जोता...जतबा कहा ततबे बूझेगा तँ नीक रहेगा...दुनिञा भरिमे की भऽ रहा से तोरे टा नञि ने बूझा रे, हमरो ने बूझा...चुपचाप मोआबजा लेल बात करि देओ नञि तँ घरमे जा कऽ सूतो आइ हम तँ आपिस नञि जाय देगा।’
हम कल जोड़ि शान्त करैत कहलियनि- ‘हे-हे बिगड़ियौ नञि। अपने सन पुरुख जँ बिगड़ि जायत तँ प्रलये ने एतै...।’
ऊधोजी पहिने तरङला- ‘रे तोँ बड़ काबिल रे...हम तोरा यमराज बुझाता की जे परलय आबेगा?’
हम हड़बड़ा उठलहुँ जे कहीँ फेर ने उठा कऽ बजारि देथि। घिघियाइत कहलियनि- ‘नञि-ननि हमर कहबाक आशय से नञि छल। हम तँ अहाँक सामर्थ्यवान हेबाक बात कहि रहल छलहुँ...मुदा भेल की से तँ कहू, कलक्टर साहेब पुछता तँ की कहबनि?।’
ऊधोजी नरम पड़ला- ‘से ने बाजो... देख भैबा! हम बजारसँ घूमि घर आबि रहा कि सड़क केर खाधिमे पैर कलटि गीया आ मुचुकि गीया।...पट्टी देखि रहा ने...आब बाजो जे सरकार एहन बाट किए राखा जे हम्मर पैर मुचका?...हम तँ बिना मोआबजा नेने नञि मानेगा।’
हम कहलियनि- ‘एतनी गो बातक लेल कतहु मोआबजा भेटय?...बेकारे जाम केने छी क्यौ नञि सूनत।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘तोरा कहने नञि भेटेगा मोआबजा...हमर पैर मुचुकि गीया से कनी गो बात भया आ सौँसे जे लोक सभ कनी-कनी गो बातपर बाट जाम करि रहा से...जेम्हरे बिदा भया तेम्हरे जाम...ई कथीक जाम तँ बकरीकेँ मोटरवला पीचि दीया...रे तँ मोटरवलाकेँ ने धरेगा, एहिमे सरकार की गलती भया।...ई जाम किए, तँ मुर्गीकेँ पीचि दीया...ई जाम कथी लेल, तँ बच्ची बाट टपि रहा कि जीप ठोकर मारि दीया...ले बलैया, नेना-भुटकाकेँ समेटि कऽ ने राखेगा?...रोडक कातेमे जँ घर बान्हा तँ बाल-बुतरूपर ध्यान ने देगा...।’
ऊधोही जोशमे आबि ठाढ़ भऽ गेल छला आ मुक्का भाँजि-भाँजि भाषण दऽ रहल छला। घामे-पसेने भऽ गेल छला, मुदा बजबाक उत्साह बढ़िते जा रहल छलनि- ‘जाम करबामे बाल-बुतरू केर संग ओकर बापो-माय जूटि रहा...देखा नञि जे पछिला दिन इस्कूल सभमे टाका बँटाया तँ कते ठाम जाम भया...रै भैबा! आर तँ आर सड़कपर दू गो गाड़ी दौड़ि रहा अपनामे टक्कर भऽ गीया तँ बाट जाम, गलती अप्पन आ तंग किया जात्री सभकेँ...एक गोटे दारू पीबि रातिमे बाटेपर सूति रहा, कोनो गाड़ी वला ठोकि दीया तँ भोरे फूल-माला दऽ लहास राखि भऽ गीया जाम...एक गोटे बाटक अतिकरमण कऽ घर बनाया, तातिमे कोनो टरक मारि दीया धक्का तँ भऽ गीया जाम...।’
हम रोकलियनि- ‘मुदा अहाँ जकाँ पैर मुचुकबापर नञि ने जाम होइ छै।’
ऊधोजी भड़कला- ‘रे एकरा तोँ छोट बात बूझि रहा। आन सभ तँ ताहि लेल जाम कीया जाहिमे सरकारक कोनो दोख नञि भया, मुदा हमर जे टाङ मुचका से तँ सरकारक बाटपर ने रे!...जेँ सरकार खाधि नञि भरा तेँ ने मुचका...नञि केहन देगा मोआवजा...हम केस करि देगा जे टाङ मुचुकबाक कारणेँ हमर लाखोक नोकसान भऽ गीया।’
फेर शान्त पड़ला आ बेञ्च घुसकबैत बाट खाली करैत कहलनि- ‘हमहूँ तँ ओकरे सभ जकाँ करि रहे नञि, गलती सरकारक आ तंग महल्लाक लोक।’
ऊधोजी बेञ्चकेँ कँखिएलनि आ बरबराइत बिदा भऽ गेला- ‘सरकारो तँ जामक समस्याकेँ बढ़ेबे ने करि रहा, जहाँ किछु भया कि मोआवजा...एहि लेल समाजकेँ ने जागरूक करेगा...नञि करेगा तँ किछुए दिनमे अपना इलाका केर नाम झूला परदेस भऽ जायगा।’
ऊधोजी जा रहल छला आ हम हुनक पीठ निँघारैत विचार करऽ लगलहँु जे ठीके ने कहि रहल छथि।

ऊधोजीक उधियान... तोड़फाड़क रिहल्सल

                                                                       ऊधोजीक उधियान...
                                                                                                                                                                             -अमलेन्दु शेखर पाठक
                 तोड़फाड़क रिहल्सल

दलानपर राखल फूलक गमला फुटबाक अबाज कानमे पड़ल तँ निन्न टूटि गेल। भऽ तँ गेल छल भोर, मुदा उठबामे कने लेटलतीफ छी से तखनो औँघायले रही। मने मन महल्लावला सभपर खौँझेलहुँ जे ढेरी-ढाकी कूकुर पोसने अछि जे आबि कऽ कोनो ने कोनो नोकसान कऽ दैए। आब गमलो सभ फोड़ब शुरू कऽ देलक। यैह सभ सोचैत करौट फेरबे केलहुँ कि बाहर राखब गमला सभक तड़तड़ कऽ फुटबाक अबजा आयल। लगै छल जेना क्यौ उठा-उठा कऽ पटकि-पटकि फोड़ि रहल हो। तामसे घोर भऽ गेलहुँ। भेल जे महल्लाक उचक्का सभ बदमाशी कऽ रहल अछि। क्रोधान्ध भेल केबाड़ दिस बढ़बे केलहुँ कि ओकरो पीटल जाय लागल आ चन-चन कऽ खिड़की सभक शीशा फूटऽ लागल। लाठीक हुराठपर नजरि पड़ल तँ डरे हरबग्घा पैसि गेल। भेल जे ककरो दऽ कोनो समाचार छपि गेलै अछि से गुण्डा-बदमाश सभ डेरापर पहुँचि गेल अछि। हम डरे सटक सीताराम। मुँहसँ बकारे ने फूटय जे हल्लो करितहँु। कोनटा धऽ लेलहुँ आ एहि आशामे दलानपरक बल्ब, मर्करी फुटबाक दम्म सधने सुनैत रहलहुँ जे महल्लावासी जुटता तँ ई सभ पड़ायत। ताबत साओन-भादवक मेघ जकाँ ढनकैत ऊधोजीक स्वर कानमे पड़ल- ‘रे पत्तरकार! केबाड़ ने फोलो जे तोहर चानि चूरि देगा।’
आहि रे बा, ऊधोजी सनकि गेला की? ई किए हमरा नोकसान पहुँचा रहल छथि। हिनकर हम आरि तामि लेलियनि आ कि खेत जोति लेलियनि अछि। - ई सोचैत केबाड़क बिलैयापर हाथ देल, मुदा हिम्मति नञि भेल। ऊधोजीक यमराज सन आकृति आँखिक सोझाँ नाचि गेल। हाथ छीपि लेलहुँ, मुदा जखन ओ केबाड़ तोड़ि देबाक घोषणा कऽ देलनि तँ केबाड़ फोलि कात भऽ गेलहुँ। ऊधोजी बिहाड़ि जकाँ घरमे घुसला आ तोड़फोड़ शुरू कऽ देलनि। मसहरी आ ओछायन उठा कऽ फेकि देलनि। लैपटॉपपर तेहन लाठी मारलनि जे ओ टुकड़ी-टुकड़ी भऽ गेल। देखिते-देखिते घरक एक-एक वस्तु भूलुण्ठित भेल ऊधोजीक पुरुषार्थक कथा कहऽ लागल। हम डरे थरथर करैत निरुपाय भेल सभटा टुकुर-टुकुर देखैत रहलहुँ। ऊधोजी घामे-पसेने नहा गेल छला। जखन सभ समान थूरल-थकुचल भऽ गेलनि तँ पलटला आ हम बपहारि कटैत घरसँ बाहर पड़ेबाक प्रयास कयल, मुदा ऊधोजीक विशाल भजुदण्ड हमरा बीचेमे लोकि लेलक। हम किकिया उठलहुँ। ओ रोकैत कहलनि- ‘आब कथी लेल भागि रहा? आब हमर करोध शान्त भऽ गीया।’
हमहुँ ई देखि कने थीर भेलहुँ जे ऊधोजी कोनो शारीरिक क्षति पहुँचेबाक मूडमे नञि छथि। दबले स्वरमे पुछलियनि- ‘हम की हार-बिगाड़ केलहँु अछि?’
 ‘रे भैबा! तोँ कथी लेल किछु बिगाड़ेगा?... तोँ कनेको चिन्ता नञि करो तोहर कोनो टा गलती नञि भया।’ -ऊधोजी शान्त स्वरमे उत्तर देलनि।
हम आश्चर्यचकित रहि गेलहुँ जे तखन हमरा आहि ठाम किए तोड़फाड़ केलनि। पुछलियनि तँ किए कनेको अफसोच हेतनि। आरामसँ कहि देलनि- ‘तोड़फाड़ लेल ई जरूरी नञि रे भैबा जे गलती हेबे करेगा।’
आब हम कने तनलहुँ- ‘ई कोन बात भेल, बिना गलतीक किए हमर एते नोकसान पहुँचेलहुँ? ई तँ सर्वथा अनर्गल बात अछि।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘हे बेसी लबर-लबर नञि करो, नञि तँ आब ई लाठी तोरा कपारेपर बजरेगा...कने मोलायम पड़ा तँ काबिलती छाँटब शुरू करि दीया।...रे अखनो सगरो यैह ने भऽ रहा। खास कऽ पढ़ल लीखल सभ तँ यैह ने करि रहा। हम तँ तकरे अनुकरण करि रहा।’
हमरा हुनकर बात अजगुत लागल- ‘एहन कतहु भेलैए जे बिना गलतीक तोड़फाड़ भऽ जाय।’
ऊधोजी आँखि गुड़ारलनि- ‘तोँ सभ तँ कलम घसा आ सभटा बिसरि गीया। रे बुद्धिवर्द्धक चूर्ण फाँको तँ याद रहेगा। कने भोरे उठि टटका बसात चाटो...आयुर्वेदमे बहुत्ते दबाइ आबि रहा ताहिमेसँ कोनो कीनो जे स्मरण शक्ति बढ़ेगा...तोँ बज्र सिलौट भऽ गीया। अपनो लीखल समाचार बिसरि जाता।’
हम किछु नञि बुझलहुँ। हुनकर मुँह तकैत रहलियनि। प्राय: हमर मन:स्थिति बुझि गेला आ कहलनि- ‘तोरे अखबारमे ने छपा रे जे समस्तीपुरक मोहद्दीनगरमे एनसीसी केर कैडेट मरि गीया तँ छात्र सभ हेडमाहटर केर मोटरसाइकिल फूकि दीया। टेबुल, कुर्सी, बेञ्च सभकेँ थौआ-थौआ कऽ दीया।....आ मधुबन्नी बिसरि गीया जे छौँड़ा-छौड़ी केर खेलमे पूरा जिला धधकि गीया?...आब तोँही बाजो जे कैडेट मरि गीया ताहिमे इस्कूलक बेञ्च-डेस्क की बिगाड़ा?... मानि लीया जे इस्कूलक समान तोड़बा काल करोधसँ आन्हर भऽ गीया...मुदा अस्पताल की बिगाड़ा? ओहि ठाम किए तोड़फाड़ कीया।... डाक्टर मरलकेँ जीबैत कहि देता?...आर तँ आर एहिमे अभिभावको सभ संग दीया।...भैबा रे! आब तोड़फाड़ सामान्य बात भऽ गीया।’
हम घिघिएलहुँ- ‘ओहि ठाम जे तोड़फाड़ भेल से तँ घटनास्थल ओ छल, हमरा ओहि ठाम अहाँ किए तोड़फाड़ केलहुँ?’
ऊधोजी नर्म पड़ैत कहलनि- ‘रिहल्सल कीया। भोरे-भोर क्यौ सभटा फूल चरा दीया। हमरो ने नोकसान भया तँ हमहूँ ने ककरो नोकसान पहुँचायगा। से सोचा जे आनक नोकसान करेगा तँ पीटेगा तँ किए ने भैबाक घरपर रिहल्सल करि लीया जाय..आ आबि गीया तोरा ओहि ठाम।’
हम झूर-झमान भेल पुछलियनि- ‘हमरा जे एते आर्थिक क्षति पहुँचल से के पूरा करत? अहाँ तँ नाहकमे ने एते क्षति कऽ देलहुँ?’
ऊधोजी मुसुकला- ‘रे भैबा! तोहर सभ नोकसान हम भरेगा। तोँ एकदम्मे चिन्ता नञि ने करो। ओ सभ जे इस्कूल तोड़ा, अस्पतालमे नोकसान पहुँचाया से तँ फेर ओकरे सभक पाइसँ बनेगा...सरकारी   सम्पत्ति तँ जनतेक ने भया रे भैबा!...ओकरे सभ जकाँ हमहूँ अपना जेबीसँ खर्च करि तोहर सभ समान कीनि देगा।... भैबा रे एहन तोड़फाड़सँ नीक लोक अपन कपड़ा अपने फाड़ि करोधपर काबू करय..एहिमे खर्चा तँ घटि जायगा।’
ऊधोजी डण्टा नेन बिदा भऽ गेला आ हम विचारऽ लगलहुँ जे ठीके सामान्य जन जे तोड़फाड़ कऽ अपन अनावश्यक क्रोध प्रकट करै छथि से तँ नोकसान अपने होइ छनि। हँ, ई देखाइ नञि पड़ै छनि। नाक कने घुमा कऽ छूबाक बात अछि।