Sunday, 4 August 2013

मधुश्रावणी : दसम दिनक कथा



            मधुश्रावणी : दसम दिनक कथा 

                                    प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                          कार्त्तिकेयक जन्म
एक समय महादेव गौरीक संग भोग केर इच्छासँ निर्जन वनमे गेलाह। ओतऽ ओ दुनू गोटे सुगन्धित झोँझमे एक भऽ भोग करऽ लगला। एहिमे ओ ततेक लीन भऽ गेला जे हुनका सभ किछु बिसरा गेलनि। गौरीक संग एकाकार होइत-होइत बहुत दिन बीति गेल। देवता लोकनिकेँ एहिसँ चिन्ता होबऽ लगलनि। ओ लोकनि ब्रह्मा ओतऽ पहुँचला आ महादेव जाहि रूपेँ गौरीक संग भोगमे लीन छला से कहि सुनेलनि आ बजला जे एहिसँ जे सन्तान हेतनि से केहन हेतनि। ब्रह्मा कहलनि- ‘अहाँ लोकनि एहि लेल चिन्ता जुनि करू। सभ कल्याणे होयत, मुदा एतबा अवश्य ध्यान रखैत जाउ जे जँ गौरीक पेटसँ सन्तान होयत तँ से समस्त संसारक नाश कऽ देत। तेँ हेतु अहाँ लोकनि महादेवकेँ भोगसँ निवृत्त करबाक उपाय करै जाउ।’ सभ देवता वनमे जा कऽ हल्ला करऽ लगला। हल्ला करबासँ महादेवक ध्यान टूटलनि आ भोगसँ निवृत्त भेला। महादेव भोगसँ उठला तँ हुनकर अंश पृथ्वीपर खसि पड़लनि। गौरीकेँ एहिसँ क्रोध भेलनि। ओ सभ देवताकेँ श्राप देलनि जे आइ सँ कोनो देवताके ँ भोगसँ बच्चा नञि हेतनि। महादेवक अंशके ँ पृथ्वी सहन नञि कऽ सकली। ओ अंश आगिमे फेकि देलनि। आगि सेहो भारकेँ नञि सहि सकला। ओ ओकरा सरपत वनमे फेकि देलनि। सरपतपर जा कऽ ओ अंश छओ मुँहवला एकटा बच्चा भऽ गेल। ओहि वाटे कृत्तिका सभ जाइ छली। ओ सभ कनैत बच्चाकेँ उठा लेलक। अपन-अपन दूध पिआय ओहि बच्चाकेँ ओ सभ पोसलक। पैघ हेबापर बच्चाकेँ सभ तरहक शिक्षा देलक। बच्चाकेँ पोसनिहारि कृत्तिका सभ छली, तेँ हेतु ओहि बच्चाक नाम कार्त्तिकेय पड़ल। गणेशजीक जन्मक बाद जखन गौरी-शंकरकेँ कार्त्तिकेयक जन्मक पता लगलनि तँ हुनका बजा लेलखिन। देवता लोकनि कार्त्तिकेयक अभिषेक केलनि आ हुनका अपन सेनापति बनेलनि। कार्त्तिकेय ताड़कासुरकेँ मारलनि आ इन्द्रके ँ हुनक राज्य घुरा कऽ देलनि। हुनकर विवाह साठिसँ भेल।
                                                                 गणेशक जन्म
देवता लोकनि द्वारा प्रथम भोगमे बाधा हेबाक कारणेँ गौरी चिड़चिड़ाहि भऽ गेली। ओ सतत रुष्ट रहै छली। कार्तिकेयक जन्म ताबत भऽ गेल छलनि, मुदा हुनका लोकनिके ँ एकर खबरि नञि छलनि। महादेव गौरीके ँ प्रसन्न करबा लेल बहुत चेष्टा केलनि, मुदा ओ प्रसन्न नञि भेली। महादेवकेँ एहि लेल बड़ चिन्ता भेलनि। एक दिन ओ गौरीसँ पुछलनि- ‘अहाँ एना किए करै छी? अहाँ कोना प्रसन्न रहब से हमरा स्पष्ट कहू?’
गौरी कहलनि- ‘अहाँ अन्तर्यामी छी। अहाँ सभक मनक बात बूझि जाइ छियै तखन हमर मनक बात अहाँ नञि बुझै  छी से हमरा कोना विश्वास होयत। मूर्ख पतिके ँ स्त्री सभ बात कहै छै, मुदा हे स्वामी! अहाँ तँ अन्तर्यामी छी, हम अहाँकेँ कहब तखन अहाँ बुझबै? जँ अपने हमरा पूछल अछि तँ हम अपनेक आज्ञाकेँ कोना नञि मानब। सुनू-स्त्रीगणक लेल संसारमे सभसँ पैघ सुख नीक पुरुखक संग भोग करब थिक। ओहि भोगमे जँ कोनो प्रकारक बाधा होइ छै तँ एहिसँ बढ़ि कऽ स्त्री जातिक लेल कोनो दुख नञि होइ छै। एहि दुखसँ स्त्री दिनानुदिन खिन्न आ झक्खी स्वभावक भऽ जाइत अछि। आब अपनहि सोचू जे हमरा केहन भारी दु:ख अछि। एक तँ भोगमे विघ्न, दोसर अपनेक अंश पृथ्वीपर खसि पड़ल आ सभसँ पैघ दु:ख तँ ई जे एखन धरि नि:सन्तान छी। जकर पति स्वयं त्रिलोकीनाथ तकरा बेटा नञि? जाहि स्त्रीकेँ बेटा नञि तकर जीवन व्यर्थ थिक। तपस्या, योग, दान इत्यादि नीक कर्म आन जन्ममे काज दै छै,मुदा नीक बेटा इहलोक आ परलोक सभठाम सुख दै छै। हे प्राणनाथ! अहाँ सर्वोपरि सर्वज्ञ छी। हम आब कोन उपाय करू, कृपया अपने हमरा कहू।’
पार्वतीक बात सुनि महादेव कहलनि- ‘हे प्रिये! निराश नञि होउ। सभ बातक उपाय छै। माघ सुदि त्रयोदशीसँ सुपुष्य नामक विष्णुक व्रत आरम्भ होइ छनि आ से भरि साल चलैत रहै छै। एहि व्रतमे बड़ खर्च आ कष्ट होइ छै,मुदा तुरन्त फल देनिहार एहन दोसर कोनो व्रत नञि अछि। अहाँ चिन्ता नञि करू। हम सभ प्रबन्ध कऽ देब। कोनो वस्तुक असुविधा नञि होयत।’
गौरी प्रसन्न भऽ अगिला माघसँ सुपुष्यक व्रत आरम्भ कऽ सविधि समाप्त केलनि। व्रत समाप्त कऽ गौरी महादेवक संग   कैलाशक एक सुन्दर निर्जन स्थानमे सुखविलास करऽ लगली। जखन महादेवक अंश खसबाक समय भेलनि तखन भगवान विष्णु एक बूढ़ तपस्वी ब्राह्मणक रूपमे ओतऽ गेला आ हाक लगेलनि- ‘परम पिता महादेव आ जगन्माता गौरी, अहाँ लोकनि कतऽ छी? हम भूखे मरि रहल छी। किछु खुआउ आ हमर प्राणक रक्षा करू। भूखल ब्राह्मणक हाक सुनि दुनू गोटे धड़फड़ा कऽ उठि दौड़ला। एहि बीच महादेवक अंश पलंगपर खसि पड़लनि। गौरी-महादेव, ब्राह्मणक आदर सत्कारमे लागि गेला। हुनका पूछि-पूछि कऽ भोजन करबऽ लगला। एकाएक ब्राह्मण देवता अन्तर्ध्यान भऽ गेला। ओहि समयमे आकाशवाणी भेल- ‘अहाँक व्रतक फल पलंगपर खेला रहल अछि। जाउ, पुत्रकेँ देखि जीवन सफल करू।’  आकाशवाणी सुनि गौरी दौड़ली। देखै छथि एक सुन्दर बच्चा पलंगपर खेला रहल अछि आ अपन अउँठा चूसि रहल अछि। दुनू गोटेकेँ असीम आनन्द भेलनि। कैलाशपर उत्सव मनाओल गेल। देवता लोकनि आबि बच्चाकेँ आशीष देलनि। हिमालय सेहो सपरिवार एला। बच्चाक नाम गणेश राखल गेल। एहि उत्सवमे शनि महाराज सेहो आयल छला। गौरीक आग्रह करबापर ओ बच्चाकेँ अछोपे देखलनि। लगले गणेशक गरदनि कटि गेलनि। भगवान विष्णु तुरन्त एक विशिष्ट हाथीक गरदनि काटि गणेशक धड़मे जोड़ि देलनि आ अमृत छीटि हुनका जिएलनि। ओहि दिनसँ गणेशक मुँह हाथीक मुँह सन छनि। एहि उत्सवमे गौरी आ महादेवकेँ देवता लोकनिसँ पता लगलनि जे हुनक प्रथम भोगक फलस्वरूप कार्तिकेय केर जन्म भऽ गेल छनि। ओ कृत्तिका लोकनिक संरक्षणमे छथि। गणेशक विवाह दक्ष प्रजापतिक बेटी पुष्टिसँ भेलनि।
                                                     गौरीक (नाग) दन्त कथा
हिमालयकेँ चारिम बेटी बड़ गोरि भेलथिन। तेँ हुनकर नाम गौरी पड़लनि। गौरी जखन विवाह योग्य भेलथिन तँ मनाइन हिमालयकेँ कहऽ लगलथिन - ‘अपने बैसल छी। कन्यादानक कोनो व्यवस्था नञि करै छी। कोनो बुढ़बा अबैत अछि आ बेटीके ँ लऽ जाइत अछि। ई नीक बात नञि थिक। कोनो व्यक्तिकेँ पठा कऽ नीक वर तकबाउ। जाहि तरहेँ नीक लोक सभ कन्यादान करैत अछि एहि बेर तहिना कन्यादान करब।’
हिमालय सोचऽ लागला जे एहन के लोक छथि जे सभ ठाम जाइ छथि। सभहक गुण-दोषकेँ जनै छथि। एकाएक हुनका नारद मुनिक स्मरण भेलनि। ओ नारद मुनिकेँ वर तकबाक भार देलनि आ विवाहक ओरियान करऽ लगला। नारद मुनि पुन: ओहि बुढ़बा महादेवकेँ वर तकलनि। खूब साजि वर-बरियाती आयल। दाइ-माइ सभ वर-बरियाती देखऽ गेली। देखै छथि जे वरक आँखिमे काँची-पीची लागल आ भरि देह साँप लटकल छनि। बरयितीमे क्यौ कनाह तँ क्यौ खोँड़, क्यौ नाङर तँ क्यौ लुल्ह। स्त्रीगण सभ नारद मुनिकेँ गारि देबऽ लगली आ वर-बरियातीके ँ घुमाबऽ लगली। जखन गौरी ई बात बुझलनि तँ ओ मने-मन महादेवक प्रार्थना केलनि आ नीक रूप धारण करबा लेल गोहरेलनि। महादेव सैह केलनि। तुरन्त सभ साँप बिला गेल। अपने सुन्दर पीत पटम्बर पहिरने शंकर रूप भऽ गेला। हुनकर एहन सुन्दर रूप देखि सभ क्यौ चकित भऽ गेल। शुभ-शुभ कऽ विवाह सम्पन्न भेल। मनाइन खुशीसँ बेटी, जमायकेँ बिदा केलनि। महादेव गौरी संग खुशीसँ रहऽ लगला।
                                                               बिदाइ केर भार
बेटी जमायकेँ बिदा कऽ मैना किछु दिनक बाद बिदाइ केर भार पठेलनि। दही, केरा, खाजा, लड्डू, चूड़ा, ठकुआ, मालपुआ इत्यादि। महादेवकेँ एतेक वस्तु रखबाक ने जगहे छलनि ने घरमे खेनिहारे छलनि। सभके ँ बजा कऽ खुएलनि आ बैन सेहो बँटलनि, मुदा वस्तु सभ सधबे नञि करनि। भारसँ घर-आङन गन्हाय लगलनि। भारक वस्तु कोना सधत तकर उपाय सोचऽ लगला। एक गोटे कहलकनि जे जँ भड़कनि छुलाहि धुरखुर धऽ ठाढ़ि हेती तँ भण्डार सधि सकैत अछि। खोज पुछारि कऽ एकटा भड़कनि छुलाहि ताकल गेली। ओकरा धुरखुर सटा ठाढ़ कयल गेल तखन भारक वस्तु सभ सधल।
                                                            गौरीक ननदि
गौरी महादेवसँ एक दिन कहलनि जे सभक ननदि अबै छै, हमरो सेहन्ता होइत अछि जे ननदि अबितथि। ताहिपर महादेव कहलनि- ‘अहाँ ननदि केर भार सहि सकब?’ तखन गौरी कहलनि- ‘एतेक लोक कोना ननदिक भार सहैत अछि। हम किए ने सहि सकब।’ महादेव तुरन्त अपन बहिन आशाबरी देवीकेँ बजबेलनि। आशाबारीक पैरमे बेमाय फाटल छलनि। ओ हँसी-ठट्ठामे गौरीकेँ ओहि बेमायमे नुका रखलनि। ओही बीच महादेव आङन एला, गौरीकेँ तकलनि, मुदा गौरी नञि भेटथिन। गौरी बेमायक भीतरमे कनै छली। महादेव अपन बहिन आशाबरी देवीसँ पुछलनि- ‘अहाँक भाउज कतऽ छथि?’ ओ कहलनि- ‘हम नञि देखलियनि अछि।’ महादेव परम चिन्तित भेला। आशाबारी अपन पैर जोरसँ झमारलनि, गौरी भट दऽ खसली। दुनू गोटे भभा कऽ हँसऽ लगला।
एक दिन महादेव बहुत रास माछ अनलनि। गौरी विन्याससँ माछ बनेलनि। ननदि आशाबरीकेँ कहलनि जे अहाँ धी-सुआसिन छी, पहिने अहाँ खा लीयऽ तखन हम सभ खायब। ओ माछ खाय लगली। गौरी खण्डक-खण्ड माछ हुनका देने जाथिन आ ओ टपाटप खेने जाथि। एहि तरहेँ आशाबरी देवी सभटा माछ खा गेली। बेचारी गौरीके ँ काँटो कनखुर नञि प्राप्त भेलनि। आब गौरी अकछा कऽ महादेवसँ कहलनि- ‘आब हिनका बिदा कऽ दियौन। एहन ननदिसँ हम बाज एलहुँ।’
 महादेव हँसऽ लगला आ कहलनि- ‘हम पहिनहि मना करै छलहुँ जे अहाँ ननदिक भार नञि सहि सकब, मुदा अहाँ जिद्द कऽ देलहुँ। एतबे दिनमे तंग भऽ गेलहुँ? किछु दिन आरो रखियौन तखन सभ सेहन्ता पूरा जायत।’
गौरी नेहोरा करऽ लगली- ‘हम गोड़ लगै छी। जल्दी हिनका बिदा कऽ दियौन नञि तँ आब हमरो खा जेती।’ महादेव बुझा-सुझा कऽ अपन बहिन आशाबरी देवीकेँ बिदा केलनि।
                                                                    गौरीक भागिन
महादेवसँ पुन: गौरी एक दिन कहलनि- ‘हे नाथ! सभक भागिन अबै जाइ छथि आ मामीसँ हँसी-खेल करै छथि। हमरो तकर बड़ सेहन्ता होइत अछि।’
महादेव बिहुँसैत कहलनि- ‘ननदिक सेहन्ता तँ नीक जकाँ पूरि गेल। आब भागिनक सेहन्ता सेहो पूरि जाएत, मुदा हमरा बादमे ओलहन नञि देब।’
गौरी गंगाजल भरऽ गेली। खूब जोरसँ पुरिबा-पछबा बहऽ लागल। हुनका अपन कपड़ाक सम्हार नञि रहलनि। कतबो सम्हारथि तैओ आँचर उधिया जाइन। गौरी लाजे कठौत होबऽ लगली। ओ महादेवसँ कहलनि- ‘देखू तँ हमरा ई बसात आब बेनग्न कऽ देत।’
महादेव कहलनि- ‘ई बसात पुरिबा-पछबा अहाँक भागिन छथि। ई लोकनि अहाँक सेहान्ता पुरा रहल छथि। दुनू गोटे मिलि कऽ अहाँसँ हँसी-ठठ्ठा आ धूर्तता कऽ रहल छथि।’
हँसि कऽ गौरी कहलनि- ‘एह! जहिना अहाँक पार क्यौ नञि पाबि सकैत अछि तहिना सर-सम्बन्धी आ बहिन-भागिनक पार सेहो क्यौ नञि पाओत। आबो अपन भागिनकें हटाउ।’ महादेवक इशारासँ बसात रुकि गेल।
                                                                 गौरी छिनारि
एक समयमे महादेवसँगौरी कहलनि- ‘हे महादेव! अहाँ त्रिलोकीनाथ छी, अहाँ चोरनी आ छिनारिकेँ कोनो चेन्ह किए ने दै छिऐ? अहाँ तँ सभ किछु कऽ सकै छी।’
महादेव कहलनि- ‘हम अहाँक बात मानल, मुदा ककरा कोन चेन्ह देल जाय से अहीँ कहू।’
गौरी कहलनि- ‘छिनारिकेँ सिंघ आ चोरनीकेँ नाङरि दियौ।’
एक दिन गौरीसँ महादेव कहलनि- ‘जे आइ हमरा माछ खेबाक इच्छा होइत अछि। अहाँ माछ खुआउ।’
गौरी माछ लाबऽ गेली। मलहटोलीमे माछ नञि भेटलनि तँ ओ धारक कात बिदा भेली। ओतऽ महादेव स्वयं मछवारक रूपमे माछ मारैत रहथि। गौरी मछवारसँ कहलनि- ‘हौ मछवार! माछ छऽ? की भाव देबऽ?’
मछबार कहलक- ‘आइ हमरा बेचक नञि अछि। जँ अहाँकेँ माछ लेबाक बड़ खगता अछि तँ हमर मनक बात पूरा कऽ दिय, हम मँगनियेमे माछ दऽ देब।’ ओ अनुचित बात कहलनि। गौरी असमंजसमे पड़ि गेलीह। माछ कतहु नञि भेटलनि आ महादेवकेँ आइये माछ खयबाक इच्छा छलनि। ओ हुनक इच्छा पुरेबाक प्रयासमे छलीह। एहि बीच गौरीकेँ माथपर सिंघ उगि गेलनि। ओकरा कतबो झाँपथि ओ बढ़ले जाइन। महादेव हँसैत बजलाह- ‘आइ तँ अहाँ देखारि भऽ गेलहुँ।’ गौरी लजा गेलीह। ओ कहलनि, ‘हे महादेव! अहाँक पार के पाबि सकैत अछि। जे जे हमरासँ कराबी।’
                                                                गौरी चोरनी
एक दिन महादेव हड़बड़ायल एला आ गौरीसँ कहलनि- ‘हमरा जल्दीसँ भोजन कराउ, बहुत आवश्यक कार्य अछि।’ ओही समयमे गौरीकेँ दीर्घशंका लागि गेलनि। कतबो रोकलनि, मुदा नञि रुकलनि। ओ शीघ्र ओहि शंकासँ निवृत्त भऽ ढाकनसँ झाँपि देलनि। महादेव झाँपल वस्तुकेँ देखि कऽ गौरीसँ पूछलनि- ‘चोरा कऽ ई की रखने छी?’
गौरी लाजे कठौत भऽ गेली। ओ की कहितथिन किछु नञि फुराइन। गौरीकेँ एहि बीच बड़ पैघ नाङरि लटकि गेलनि। अन्तमे ओ तंग भऽ गेली आ अन्तमे ओ महादेवकेँ कतेक उचिती-मिनती केलनि- ‘हे महादेव! आब अपन भाभट समेटू। हम जे किछु अहाँके ँ कहै छी से हमरेपर बजारि दैत छी।’

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