Friday, 16 August 2013

गोनू झा साफ करेलनि चोरसँ पछुअति

 
            गोनू झा साफ करेलनि चोरसँ पछुअति  

                                                - अमलेन्दु शेखर पाठक
गोनू झा द्वारा बेर-बेर पछाड़ि देबाक बादो चोरबा सभ हुनका ओहि ठाम चोरि करबाक प्रयास नञि छोड़ि रहल छल। ओ सभ सदिखन बाट तकैते रहै छल जे कोना गोनू झाक घरमे हाथ सुतारी? बेर-बेर गोनू झा अपन चतुरतासँ ओकरा सभकेँ चारि तँ नहिञे करऽ दै छला, तेहन ने छकान छकबै छला जे बहुत दिन धरि ओ सभ हुनका घर दिस हुलकीयो मारबासँ डेराइ छल, मुदा जहाँ किछु दिन बितै छल आ गोनू झाकेँ दरबारसँ पुरस्कार भेटै छलनि कि चोर सभ फेर सक्रिय भऽ जाइ छल। चोर सभ गोनू झाक घरमे चोरि करबाक गौँ तकैत रहै छल आ अवसर भेटिते लार-चार कऽ दै छल। ओमहर चोर सभकेँ लऽ गोनू झा सदिखन चौचंक रहै छला। जखने चोर सभ हुनका घरमे चोरि केर सूरसार करै छल कि गोनू झाक नजरि पड़िए जाइ छलनि। फेर तँ ओ तेहन ने उपाय धराबथि जे चोर सभ बपहारि काटि पड़ाय। से एक दिन मुन्हारि साँझमे जखन गोनू झा दरबारसँ घुमला तँ हुनकर नजरि अपन घरक पछुअति दिस पड़ि गेलनि। भरि-भरि डाँर भाङ आ जंगल-झाड़ भऽ गेल छलनि। मजूर सभकेँ कतेको बेर तमबेबा लेल अनलनि, मुदा जंगल-झाड़ देखि ओ सभ पड़ा जाय। पछुअतिकेँ देखैत गोनू झा विचारि रहल छला जे कोन मजूरकेँ कहि एकरा साफ करा तीमन-तरकारी लगाओल जाय आ कि भाङक बीच बैसल एकगोट चोरपर हुनक नजरि पड़ि गेलनि आ ओ मुसुकि उठला। आङन एला तँ चारू कात सतर्क नजरि देलनि। कोठली सभ देखि ऐला। एहि बीच दू गोट चोरकेँ अपना कोठलीक धरनिपर चढ़ल सेहो देखि नेने छला। भोजन आदि कऽ सुतबा लेल गेला। गोनू झा अपना पत्नीकेँ कहलनि- ‘हे एगो गुप्त बात कहि देबाक मन होइत अछि, देह-नेहक कोन ठेकान? नञि कहने रहब तँ करोड़ो टाकाक सोना, चानी, हीरा, मोती आदि माटिए तरमे रहि जायत।’ पत्नी बिगड़लथिन- ‘अनेरे आइँबाइँ नञि बाजू, अहाँकेँ किए किछु होयत, मुदैकेँ हेतै...।’
गोनू झा कहलथिन- ‘अच्छा-अच्छा हमरा किछु नञि होयत, मुदा गुप्त बात जानि लेब तँ हर्जे की? अहूँकेँ तँ बूझल रहबाक चाही अपन धन-सम्पत्तिक बारेमे?’
पण्डिताइन कहलथिन- ‘बाजू जे कहबाक अछि।’
गोनू झा कहलथिन- ‘अपना पछुअतिमे जे एते जंगल भऽ गेल अछि से हम किए ने साफ करबै छी से बूझल अछि?’
पत्नी बजली- ‘बूझल रहय वा नञि, जंगलमे कोन सोना-रूपा अछि जे ओकरा जोगा कऽ रखने छी...हमरा दिनोमे ओमहर जेबामे डर होइए जे कतहु साँप-कीड़ा ने बहरा जाय।’
गोनू झा हुनका रोकैत कहलथिन- ‘हीरे-मोती दुआरे ने साफ नञि करबै छी। बरखो पहिने राजा ओहि ठामसँ पचास तमघैल सोना, हीरा, मोती, अशर्फी आदि भेटल छल से हम चुपचाप पछुअतिमे गाड़ि देने रही। एखन अपना घरमे जते सम्पत्ति होयत तकर पचासो गुना बेसी अपना पछुअतिमे गाड़ल अछि। हम एही दुआरे ओकरा साफ नञि करबै छी।...अहूँ ध्यान राखब ने कहियो ओकरा साफ करायब आ ने ककरो लग चर्चे करब, नञि तँ चोर-चुहार सभक कानमे पड़ल तँ हम सभ सुतले रहब आ सभ तमघैल उखड़ि जायत।’
घरमे पैसल चोर सभ गोनू झा आ हुनक पत्नीक बात सुनि रहल छल। ओकरा सभक आँखि चमकि उठलै। सभ एकाँएकी घरसँ बाहर भेल। गोनू झा से देखि लेलनि आ निश्चिन्त भऽ सूति रहला। एमहर चोर सभ अपनामे विचार केलक जे गोनू झा ठीके बरखोसँ पछुअति साफ नञि करबै छथि। जरूर एहि ठाम धन-सम्पत्ति गाड़ल अछि। फेर की छल चोर सभ कोदारि लऽ जूमि गेल आ लागल तामऽ। राति भरि सभ तमैत रहल, मुदा किछु नञि भेटल। भोर होबऽ वला छल। सूर्यक लाली पसरब शुरू भऽ गेल छल। ताबत एकगोट चोरक नजरि पड़ल तँ देखैत अछि जे गोनू झा अपना पछुअतिमे कोनटा लग ठाढ़ मुसुकि रहल छला। चोरकेँ अपना दिस तकैत पाबि गोनू झा बजला- ‘वाह! अहाँ सभ तँ पूरा बारी तामि देलिऐ। सभट जंगल साफ कऽ देलहँु...हे कने सुस्ता लीयऽ तखन आर काज करब...अहा-हा अहाँ सभ तँ पसेने-पसेने भऽ गेल छी...कहाँ गेलऽ हो फेकन भाइ कने हिनका सभकेँ जल पियाबऽ।’
जखने गोनू झा हाक देलनि कि चोरबा सभक पकड़ल जेबाक डरसँ प्राण सुखा गेल आ ओ सभ लंक लऽ कऽ पड़ायल। गोनू झा अपन बुद्धिमत्तासँ घरमे चोरि तँ नहिञे होबऽ देलनि, अपन पछुअति सेहो साफ करबा लेलनि। 

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