चानन, सिन्दूर आ भस्मसँ शोभित मिथिला
-अमलेन्दु शेखर पाठक
मिथिला मातृशक्तिक प्रति अगाध स्नहेसँ भरल रहल अछि, मुदा तेँ आन देवी-देवताक प्रति स्नेह-समर्पणमे कोनो कमी नञि रहल अछि। एहि ठाम सभ देवी-देवताक पूजा-अभ्यर्थनामे मैथिलजन समर्पित भावसँ जुटल रहला अछि। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, भगवतीक विविध स्वरूप काली, दुर्गा, सीता आदिक संग वीर हनुमान आदि देवताक पूजा-अर्चना अदौसँ होइत रहल अछि। ठाम-ठाम हिनक मन्दिर स्थापित कऽ बारहो मास पूजन होइत अछि। हँ, ताहिमे शक्तिक प्रति मिथिला कने बेसी समर्पित रहल अछि। भगवतीक प्रति अनन्य भक्ति-भाव रखितो एहि ठाम पञ्देवोपासनाक सबल आ पुष्ट परम्परा रहल अछि। मैथिल जन देवी-देवताकेँ समन्वित रूपसँ पुजैत एला अछि। बहुतो माताक भक्त छथि तँ बहुतो विष्णु वा शिवक, मुदा अधिसंख्यक एहन छथि जे सभक प्रति समान भाव रखै छथि। एहि ठाम पूजा करैत काल भगवान विष्णुकेँ आवाहित कऽ हुनका तुलसी दल चढ़बैत अपना ललाटपर श्रद्धाक संग चानन लगबै छथि तँ लगले ओही केराक पातपर जाहिपर भगवान विष्णुकेँ पूजल जाइ छनि, भगवतीकेँ आवाहित करै छथि आ हुनक पूजनक संग अपना कपारपर सिन्दूरक ठोप सेहो लगबै छथि। बिना महादेवक आराधनाक मैथिलक पूजन पूर्ण कोना होयत, से हुनक आराधना करैत भक्त भस्मकेँ सेहो सिरोधार्य करै छथि। ओ मिथिला भगवान विष्णुक स्वरूप भगवान श्रीकृष्णक जन्मोत्सव कोना बिसरि सकैत अछि जाहि ठाम घरे-घर सत्यनारायण पूजनक ओरियान सभ दिन चलैत हो। एहिमे पूरा समाज समवेत होइत हो। गाम-टोलमे सत्यनारायण पूजनक हकार दऽ समाजकेँ समवेत करबाक ई परम्परा अति प्राचीन कालसँ चलि आबि रहल अछि। कोनो शुभ अवसर हो आ कि श्राद्ध सन बेर सत्यनारायण भगवानक पूजनक बादे ओकरा पूर्ण मानल जाइत अछि। केराक पातसँ सजायल पूजाक चौकीपर राखल भगवान शालिग्राम आ पीयर-लाल धोती पहिरि बैसल पूजन करैत श्रद्धालु, मंत्र पढ़बैत-सत्यनारायणक कथा कहैत पुरहित आ हाथ जोड़ि श्रद्धासँ ओकर श्रवण करैत हकारपर जूटल लोक, ई दृश्य कखनो, कहियो कोनो गाम-घरमे बरमहल देखल जा सकैत अछि। भगवानक प्रति आस्था आ विश्वासक हाल ई अछि जे पूजामे नञि एनिहारो शंख बजबापर अपना घरेसँ हाथ जोड़ि प्रणाम करैत अपन श्रद्धा प्रकट करै छथि। ताहि विष्णुक प्रतिमूर्त्ति श्रीकृष्णक जन्मोत्सवपर हिनक अपर स्वरूप भगवान रामक सासुर मिथिलामे उछाह उचिते अछि।
श्रीकृष्णक चरणमे समर्पण
भगवान श्रीकृष्णक प्रति मिथिलाक समर्पण आ आसक्ति कोना ने हो। ई ओहि महर्षिक भूमि रहल अछि जे देह धारण करितो विदेह कहल जाइ छला। ज्ञान-ध्यानक संग ई दर्शनक उर्वर आ मुखर भूमि रहल अछि। आ योगीश्वर श्रीकृष्णोक जीवन ओ लीलामे साम्य रहल अछि। श्रीकृष्णो लीलाधारी रहितो विषय-आसक्तिसँ फराक रहला। गीतामे भगवान जीवन-दर्शनक जे विशद व्याख्या केलनि अछि, कर्मयोगक सनेस देलनि अछि, जीवात्मा आ परमात्मामे अभेद आदिक प्रसंग जे मार्ग-दर्शन केलनि अछि ओकर आग्रही मिथला कोना ने हो। कंसक संहार आ एहिसँ पूर्व पूतना, वकासुर आदि राक्षक वध कऽ श्रीकृष्ण अन्यायक विरुद्ध जे शंखनाद केलनि तिनकर सम्मान ओ मिथिला कोना ने करत जे स्वयं प्रथम गणतंत्रक उद्घोषक रहैत अपन अन्यायी राजा कराल जनक पर्यन्तकेँ गद्दीसँ उतारि खेहारि देने हो। गोवर्द्धन पर्वतकेँ अपना कनगुरिया आङुरपर उठा जे समाजक पीड़ा हरैत होथि तिनकर भक्तिमे कोना ने निमग्न होयत? जे स्वयं गाय चरबैत होथि तिनका ग्रामीण अपन देवताक रूपमे कोना ने पुजता? जे कदम्बक वृक्ष तर ठाढ़ भऽ बसुली बजा पर्यावरण संरक्षण दिस प्रेरित करैत होथि तिनका प्रकृति-पूजक मिथिला कोना बिसरि सकैत अछि? जे जलकेँ बिखाह बनेनिहार कालि नागकेँ नाथि जल-संरक्षण दिस ध्यान आकृष्ट करैत होथि तिनका नदीक नैहर मिथिला कोना बिसरि सकैत अछि?
ठाकुरबाड़ी-शिवालय-माइ स्थान
मिथिलाक प्रसंग कहल गेल अछि- ‘धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो’ मिथिला व्यवहारत:’, अर्थात धर्मक प्रसंग जँ कोनो निर्णय बुझबाक हो तँ मिथिलाक व्यवहार मात्र देखि लेल जाय। धार्मिक आ आध्यात्मिक दृष्टिसँ एहन महत्वपूर्ण माता जानकीक प्राकट्य स्थली मिथिलाक गाम-गाम पुण्य-स्थल अछि। मिथिलाक अधिकांश गाममे माइ स्थान (भगवतीक मन्दिर), शिवालय, ठाकुरबाड़ी आ ब्रह्मस्थान नञि हो। एहि सभ मन्दिरमे नित्य पूजा-अर्चना होइत अछि। ग्रामीण लोकनिमेसँ बहुतो नित्य एहि मन्दिर सभमे भगवानक दर्शन लेल साँझमे उपस्थित होइ छथि। ओतहि अधिकांश गामक बेटी-पुतहु देवी-देवताक समक्ष सान्ध्य-दीप जरेबा लेल जुटै छथि। अवसर विशेषपर मन्दिर सभमे विशेष पूजा-अर्चना होइत अछि। दुर्गा पूजाक अवसरपर भगवती मन्दिर आ शिवरात्रिपर देवाधिदेव महादेवक मन्दिर भक्तसँ गजगज करैत अछि, तहिना कृष्णाष्टमीक अवसरपर ठाकुरबाड़ीमे भक्तक भीड़ उमड़ि पड़ैत अछि। आरतीक समय शंख, घड़ीघण्टक स्वर वातावरणमे भक्ति-रस घोरि दैत अछि। ओतहि हारमोनियम, झालि, मृदंगक संग भजन-कीर्त्तनमे डूबल जनमानस भक्तिक अजस्र धार प्रवाहित करैत अछि।
श्रीकृष्णक स्थायी-अस्थायी मन्दिर
ओना तँ मिथिलाक प्राय: गाममे लीलाधारी भगवान श्रीकृष्णक जन्मोत्सव कृष्णाष्टमी पारम्परिक रूपसँ मनाओल जाइत अछि, मुदा बहुत रास गाम एहनो अछि जाहि ठाम भगवानक स्थायी-अस्थायी मन्दिर अछि। स्थायी मन्दिरमे तँ बसुली बजबैत राधाक संग विराजमान श्रीकृष्णक मूर्त्ति प्रतिष्ठित छनि। ओतहि एहनो मन्दिर अछि जकर उपयोेग जन्माष्टमीक अवसरपर होइत अछि। भादव मासक कृष्ण पक्षक अष्टमीकेँ भगवानक मूरुत ओहिमे स्थापित कऽ हुनक पूजा-अर्चना होइ छनि। मूर्त्ति विसर्जनक बाद फेर अगिला बरख ओकर उपयोग होइत अछि। एहि बीच ओकरा कृष्ण मन्दिरे कहि ग्रामीण सम्बोधित करै छथि, भने ओहिमे भगवानक अस्थायी मूर्त्ति प्रतिष्ठित होइत हो। एकर अतिरिक्तक बजारसँ लऽ गाम धरि असंख्य अस्थायी मन्दिर सजैत अछि।
हजारो ठाम स्थापित होइछ मूर्त्ति
समग्र मिथिलामे सैकड़ो-हजारो ठाम-ठाम भगवान कृष्णक मूर्त्ति स्थापित कऽ सामूहिक पूजन होइत अछि। एहि लेल बनऽवला पूजा-पण्डाल प्रतिमाक विसर्जन धरि मन्दिरे बनि जाइत अछि जतऽ भक्त नर-नारी बाल-बच्चाक संग जुटि भगवानक दर्शन करै छथि, हुनका प्रसाद चढ़बैत अपन श्रद्धा निवेदित करै छथि। कतहु गाय चरबैत भगवान, तँ कतहु माखन चोरबैत आ कालि नागकेर फनपर नचैत बाल-कृष्ण, राधाक संग रास रचबैत युवा श्रीकृष्णक संग कंसक बध करैत कृष्णक मनोहारि मूर्त्ति आकार्षणक केन्द्र रहैत अछि।
ठाम-ठाम लगैत अछि मेला
ओना तँ शहरीकरण मेलाकेँ गिड़ने चलि जा रहल अछि, मुदा एखनो ग्रामीण क्षेत्रमे ई बाँचल अछि। दुर्गा पूजा, वसन्त पञ्चमी आ शिवरात्रिक संग कृष्णाष्टमीक मेला एखनो गाम-घरमे खूब लगैत अछि। मिथिलाक दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, बेगूसराय, खगड़िया, पूर्णिञा, कटिहार, अररिया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी, भागलपुर, मुंगेर आदि केर ग्रामाञ्चलमे बहुतो ठाम कृष्णाष्टमीक मेला लगैत अछि। बहुतो ठाम दू-तीन दिनक मेला केर आयोजन होइत अछि जे कतेको गामक लोककेँ एक ठाम जुटबाक, परस्पर भेट आ संग मिलि आनन्द-उल्लास मनेबाक अवसर प्रदान करैत समाजमे सहभावक आधारकेँ मजगूत करैत अछि।
साहित्योमे छथि विराजमान
मिथिला अदौसँ श्रीकृष्णक प्रति समर्पित रहल अछि। ई परम्परा सैकड़ो सालसँ चलि आबि रहल अछि। यैह कारण अछि जे अधर्मक नाश लेल अवतार लेनिहार भगवान श्रीकृष्ण साहित्योमे सर्वत्र नजरि अबै छथि। मिथिला-मैथिलीक सिरमौर महाकवि विद्यापतिक पदावली तँ कृष्णे-राधासँ भरल पड़ल अछि। हुनक प्राय: गीत-रचनाक नायक श्रीकृष्ण आ नायिका राधा थिकी। उमापति उपाध्यायक ‘पारिजात हरण’ नाकट, मनबोधक ‘कृष्णजन्म’ महाकाव्य आदि प्राचीन साहित्यक संग वर्त्तमानमे सेहो साहित्यकार लोकनि श्रीकृष्णक प्रति अपन विविध भावकेँ रचनाक माध्यमे राखि रहल छथि। साहित्यकेँ समाजक दर्पण कहल गेल अछि आ साहित्यिक रचनामे भगवानक श्रीकृष्णक विविध रूपमे उपस्थिति स्पष्ट करैत अछि जे ओ मिथिलाक जन-मनमे रचल-बसल छथि। आउ! हमरो लोकनि समवेत होइ भगवान श्रीकृष्णक चरणमे आ अन्यायक नाश केर संकल्प लैत मनाबी जन्माष्टमी-कृष्णाष्टमी।
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