Wednesday, 21 August 2013

मिथिलामे पण्डिते बन्है छला रक्षा सूत्र

 

                   मिथिलामे पण्डिते बन्है छला रक्षा सूत्र
                                                                  - अमलेन्दु शेखर पाठक
श्रावणी पूर्णिमा भाइ-बहिनक पवित्र प्रेमक प्रतीक पर्व रक्षाबन्धन किंवा राखीक रूपमे सगरो मनाओल जाइत अछि। देशक विभिन्न भागक संग मिथिलो एहि पर्वकेँ हर्षोल्लासक वातावरणमे मनबैत अछि। स्नान-पूजनसँ निवृत भऽ नव वस्त्र पहिरि बहिन अपना भाइ केर माथपर चानन लगबै छथि, हुनक आरती उतारै छथि आ रक्षासूत्र (राखी) बान्हि सदिखन अपन रक्षाक वचन लै छथि। भाइकेँ मिठाइ सेहो खोअबै छथि आ भाइ रक्षाक वचन दैत उपहार दै छथि। ई तँ अछि वर्त्तमान। कने अतीत दिस हुलकी मारू। ई जानि आश्चर्य लागत, हठात विश्वासे नञि होयत जे मिथिलामे पहिने मनाओल जाय वला रक्षाबन्धनक स्वरूप वर्त्तमानसँ मिसियो भरि मेल नञि खाइत अछि। मिथिलामे तँ ई भाइ-बहिनिक पाबनि कहियो रहबे ने कयल। मिथिलामे तँ भाइ-बहिनिक पाबनिक स्नेह-पर्व ‘भ्रातृ द्वितीया’ रहल अछि जे एखनो मनायल जाइत अछि। एकर अतिरिक्त ‘सामा’ सेहो एहि ठाम भाइ-बहिनिक पाबनि एहि ठाम मनायल जाइत अछि जाहिमे बहिन छठिक पारन दिनसँ सामा खेलाइ छथि आ कार्त्तिक पूर्णिमा दिन जखन सामाकेँ बिदा कयल जाइत अछि तखन भाइ सामाक डोलीकेँ कान्ह लगबै छथि, बहुत ठाम सामा तोड़ै छथि आ बहिन हुनक फाँड़ भरै छथि। एकर सत्यापन लेल इतिहास खँघारबा लेल बेसी पाछाँ जेबाक आवश्यकता नञि अछि। समाजमे एहन बहुत रास लोक भेटि जेता जिनक उमेर साठि-सत्तरि बरख छनि। कने हुनकासँ पूछि कऽ देखियौन जे जहिया नेना छला तहिया ओ अपना बहिनसँ राखी बन्हबेने छथि? एही उमेरक कोनो महिलासँ पूछि कऽ जाँचल जा सकैत अछि जे जेना एखन ई पाबनि मनाओल जाइत अछि तेना ओ अपना भाइकेँ राखी बन्हने छथि? उत्तर निश्चित रूपसँ नकारात्मक भेटत। एहि वयसक कोनो जाति-वर्गक मैथिल दू टूक कहता जे पहिने रक्षाबन्धनपर मिथिलामे बहिन अपना भाइकेँ राखी नञि बन्है छली। एहिसँ कमो उमेरक लोकक एहन उत्तर भेटि सकैत अछि। कतेको लोक ई कहि सकै छथि जे हुनका समयमे पण्डित-पुरहित बान्हथि, ओना बहिनो राखी बान्हब शुरू कऽ देने छली। यैह सत्य अछि। अपना ओहि ठाम पण्डिते-पुरहित रक्षासूत्र बान्हथि। हाल धरि रक्षाबन्धन दिन हाथमे रक्षासूत्र नेने यजमानकेँ बन्हबा लेल ठाम-ठाम पुरहित नजरि आबथि। एखनो ई परम्परा कतहु-कतहु चलैत अछि, मुदा आब नगण्य। अनुकरणक बिहाड़िमे अपन परम्पराकेँ हम सभ तेना उपेक्षित कऽ देलहुँ जे एखन बेसी दिन भेबो ने कयल अछि आ नवका पीढ़ीकेँ ई पतो नञि अछि जे रक्षाबन्धन एहि ठाम भाइ-बहिनिक पाबनि नञि छल। बहुत रास विद्वान एहि तथ्यकेँ लिपिबद्ध सेहो केने छथि। प्रसिद्ध पत्र ‘मिथिला मिहिर’ केर 1936 मे प्रकाशित ‘मिथिलांक’ मे ‘मिथिला में प्रचलित कुछ पर्व त्यौहार’ शीर्षक आलेखमे जीवानन्द ठाकुर लिखै छथि जे रक्षाबन्धनमे ब्राह्मण ‘येनबद्धो’ मंत्रसँ रक्षा (राखी) बन्है छथि। मैथिली भाषा-साहित्यक भीष्मपितामह कहल गेनिहार आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ अपन पोथी ‘मन पड़ैत अछि’ मे लिखने छथि जे सिनेमाक प्रभावेँ रक्षाबन्धन भाइ-बहिनिक पाबनि भऽ गेल। मैथिलीक शिखर-पुरुष पण्डित श्रीचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ अपन पोथी ‘अतीत मन्थन’ मे लिखै छथि ‘आइ रक्षा बन्धनक जे परिवर्त्तित स्वरूप देखि रहल छी से ‘पोरस’ नामक सिनेमा अयलाक बाद प्रचलित भेल, ई भाय-बहिनक पर्वक रूपमे मिथिलामे पसरि गेल।’ आनो-आन पोथीमे
                                         बच्चीकेँ सेहो बान्हल जाइ छल रक्षा-सूत्र 
श्रावणी पूर्णिमा दिन कुलदेवताकेँ रक्षा-सूत्र चढ़ाओल जानि आ पण्डित-पुरहित रक्षा-सूत्र लऽ घरसँ बिदा होथि आ यजमान सभक ओतऽ जा ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल माचल:’ मंत्रक संग घर-परिवारक सभ सदस्यकेँ रक्षा-सूत्र बान्हथि। बच्चीकेँ सेहो राखी बान्हल जाइनि। पुरुषक दहिना हाथमे आ बच्ची लोकनिक वामा हाथमे पण्डित रक्षा-सूत्र (राखी) बान्हथि। यजमान पण्डितकेँ दक्षिणा देथि। कतहु-कतहु बूढ़-पुरान लोक सेहो अपनासँ कम उमेरक लोककेँ रक्षा-सूत्र बान्हथि। एक गोटेकेँ कतेको पण्डित सेहो बान्हथि। खास कऽ सुखी-सम्पन्न लोक रक्षा-सूत्र बन्हेबा लेल श्रावणी पूर्णिमाकेँ दलानपर बैसथि आ पण्डित-पुरहित आबि-आबि रक्षा-सूत्र बान्हि दक्षिणा पाबथि। पण्डित श्रीचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ अपन पोथी ‘अतीत मन्थन’ मे महाराज रमेश्वर सिंहक प्रसंग लिखै छथि- ‘श्रावणी पूर्णिमा दिन महाराजाधिराज रमेश्वर सिंह रक्षाबन्धन पर्वक अवसरपर पूर्ण राजकीय वेषमे वर्त्तमान संस्कृत विश्वविद्यालयक सभाकक्ष आनन्दबागमे बैसैत छलाह, आगाँमे तीन टा चानीक बट्टामे टाका, अठन्नी आ चौअन्नी राखल रहैत छलनि। अपन कुल पुरोहित, विद्यालयक अध्यापक लोकनि, छात्रगण, राजक ब्राह्मण कर्मचारी सब, शुभंकरपुर, सुन्दरपुर, रानीपुर, खराजपुर, मिर्जापुर, चतरिया, गहुमी आदि गामक ब्राह्मण सब राखी बन्हबाक हेतु अबैत छलथिन। दक्षिणामे पुरोहित, अध्यापक लोकनिकेँ एक टाका, ब्राह्मण सबकेँ अठन्नी, छात्र समुदाय आ दरिद्र सबकेँ चौअन्नी भेटैत छलनि।’ राखीसँ सम्बन्धित लोकगीत उपलब्ध नञि होयब सेहो एहि भावकेँ पुष्ट करैत अछि जे ई पाबनि मिथिलामे भाइ-बहिनक नञि छल। हँ, आइ अछि आ लोक हँसी-खुशी पवित्र भावसँ मिथिलोमे मनबै छथि।
                                                        मेधा-रक्षाक ओरियान
पहिने मिथिलामे जे रक्षाबन्धन मनाओल जाइ छल ओहिमे मेधाक रक्षाक वचन लेल जाइ छल। पहिने जे समाजमे जातीय व्यवस्था छल से एखुनका जकाँ नञि छल। पहिने समाजक ब्राह्मण वर्गक काज छल   पढ़ब-पढ़ायब आ समाज-कल्याण लेल चिन्तन मनन करब। स्वाभाविक रूपसँ जे समाजक कल्याण लेल चिन्तन-मनन करै छला तकरा प्रति समाजोक दायित्व बनै छल। प्राय: तेँ पण्डित-पुरहित द्वारा श्रावणी पूर्णिमापर रक्षा-सूत्र बन्हबाक विधान कयल गेल जे एहि मेधाक रक्षाक वचन दैत समाज अपन दायित्वक निर्वाह सेहो करय। रक्षाबन्धनक मंत्रमे यैह कहलो जाइत अछि। आइ ई भाव कतहु नञि अछि। मेधाक रक्षाक चिन्ता एतेक गम्भीरताक संग करबाक व्यवस्था तिरोहित भऽ गेल अछि।
                                           बदलैत स्वरूप, झूस होइत भाव
जेना-जेना युग बदलि रहल अछि, तहिना-तहिना राखीक स्वरूप सेहो बदलैत चलि गेल। पहिने एक पातर सूत्रक आगाँ तूरकेँ रंगि ओकर फुदना लगाओल राखी बनै छल। ई एखनो भेटैत अछि, मुदा बहुत तकबापर। जखन एकर ग्राहके नञि छथि तँ सभ तरि भेटत कोना? पहिने पटुआसँ सेहो ई बनाओल जाइ छल। एहि राखीक डोरमे बीच-बीचमे तूर अथवा पटुआकेँ विभिन्न रंगमे रंगि लगाओल रहै छल। धीरे-धीरे पाबनिपर बजार आ प्रदर्शन हाबी होइत गेल। स्पञ्जक राखी बनऽ लागल। दू-तीने रंगक अथवा एके रंगक स्पञ्ज गोल रहै छल आ ओहिपर प्लास्टिक केर फूल, रक्षाबन्धन लिखल किंवा आन कोनो फोटो लागल रहै छल। कतेको गोटे ओहिपर सय-पचासक टाका लगा सेहो पहिरथि। फेर नग आदि राखी आयल। राखीक ई स्वरूप जेना-जेना बदलि रहल अछि तहिना-तहिना एकर पवित्र भाव सेहो झूस होइत जा रहल अछि। स्नेहपर प्रदर्शन आ बजार हाबी भऽ रहल अछि।
                                               पेटी-बाकसमे सेहो रक्षा सूत्र 
रक्षाबन्धनक संग लोक परम्परा सेहो जूटल। जन-सामान्यक मान्यता भऽ गेल जे ई रक्षा-सूत्र अछि आ ई जकरा बान्हल जायत तकर सुरक्षा होयत। एहि भावक आधारपर अपना ओहि ठाम मनुक्खे नञि निर्जीव वस्तु पर्यन्तकेँ रक्षा-सूत्र बन्हबाक परम्परा चलि पड़ल। लोक अपन घरक केबाड़क जिज्जिर, आब हेण्डिल, साइकिल, मोटरसाइकिल, पेटी, बाकस आदिमे रक्षा-सूत्र बान्हऽ लगला। अखनो कतहु-कतहु ई परम्परा चलि रहल अछि, मुदा आब हुकहुकीपर अछि। धीरे-धीरे ई समाप्ति दिस अग्रसर अछि।
                                      स्वेच्छाचारितासँ भखरि रहल महत्व
पछिला किछु दशकसँ भारतीय पाबनि-तिहार मनेबामे स्वेच्छाचारिता निरन्तर बढ़ल जा रहल अछि। दुर्गापूजा हो वा रक्षाबन्धन, अधिकांश पाबनिक संग ई भऽ रहल अछि। कोनो देवी-देवताक मूर्त्ति स्थापित कऽ पूजा कयल जाइत अछि आ शास्त्रीय विधानकेँ कतिया मनमर्जी विसर्जन कयल जाइत अछि। तहिना रक्षाबन्धनक संग सेहो भऽ रहल अछि। कतिपय संस्था श्रावणी पूर्णिमासँ पहिने रक्षाबन्धन मना लैत अछि। तहिना पाबनि बीति जेबाक बादो ओकरा मनेबाक चलनि देखबामे अबैत अछि। मानल जा रहल अछि जे जानि-बूझि कऽ एना कयल जा रहल अछि जाहिसँ भारतीय परम्परा भखरि कऽ महत्वहीन भऽ जाय।
                                            आउ मजगूत करी स्नेह-सूत्र 
रक्षाबन्धनक वर्त्तमान भने इतिहास कथा आ सिनेमाक देन हो, मुदा भाइ-बहिनक पवित्र प्रेमक रूपमे ई प्रतिष्ठित अछि। आउ एहि पाबनिकेँ एहिमे निहित रक्षाक पवित्र सन्देशक संग मनाबी। एखन जेना महिलामे माय-बहिनिक छवि देखबाक प्रवृत्ति समाप्त भऽ रहल अछि आ हुनका सभक संग मानवताकेँ लज्जित करऽवला घटना भऽ रहल छनि, ताहि समयमे एकर प्रासंगिता आरो बढ़ि गेल अछि। आउ पवित्र भावसँ मनाबी रक्षाबन्धन आ स्नेह-सूत्रकेँ करी मजगूत।     

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