
प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक
मैनाक मोह भंग
गौरीक वर महादेवकेँ देखि मेना अचेत भऽ गेलली। लोक सभ कहुना हुनका होशमे अनलनि। होशमे एबापर ओ नारद आ गौरीकेँ फञ्झति करऽ लगली। नारदसँ ओ कहलनि- ‘नारद अहाँ महा ठक छी। अहाँ पहिने कहने रही जे महादेव गौरीकेँ चाहै छथि। फेर कहलहुँ जे गौरी हुनकर सेवा करथु आ कठिन तपस्या करथु तखन महादेवक संग हुनकर विवाह हेतनि। एहिमे जँ हमर बेटीक अपमान भेल से संसार जनलक। हम कतहु मुँह दखेबाक योग्य नञि रहलहुँ। हम कतऽ जाउ, की करी किछु नञि फुरैत अछि। हम जिबिते मरि गेलहुँ। हमर घर चौपट भऽ गेल। अनकर की भेलै। हमर मनक मनोरथ मनमे रहि गेल। कहाँ गेला ओ सप्तर्षि आ ओ स्त्री। एखन जँ ओ लोकनि भेटि होइतथि तँ हुनका सभक दाढ़ी-मोछ नोचि लितहुँ। ओ स्त्री लोकनि तँ आरो ठक्किन बहरायल।’
गौरीसँ कहलनि- ‘हम अनका की कहियै, हमर अपन घर बिगड़ल अछि। सभ नाच तँ हमर बेटीक कारण भेल। ओ तँ सोना बेचि माटि किनलक आ सूर्यक प्रकाश छोड़ि भगजोगनीक इजोतमे रहऽ लागल। एहन सुन्दर शक्तिशाली देवता सभकेँ छोड़ि महादेवक तपस्या केलक। गे गौरी तोरा आ तोहर तपस्याकेँ धिक्कार छौ। घर आ सौँसे नगरकेँ डाहि दे। अपने बिष खा कऽ किए ने मरि गेलेँ। कहाँ गेल ई छौँड़ी आ, आइ तोहर गर्दनि काटि दियौ।’
ई सभ कहि मैना कतहु चलि गेली। हिमालय कतबो कहलथिन ओ किछु नञि उत्तर देथि। ब्रह्मा सभ बात बूझि मेनाकेँ बुझाबऽ एला। ओ मैना सँ कहलनि- ‘महादेव सभ देवतासँ पैघ छथि। ओ परमेश्वर छथि। वैह संसारक पालन आ संहार करै छथि। अहाँ हुनका एखन धरि नञि चिन्हलियनि अछि तेँ बताहि जकाँ करै छी।’
मैना तुरन्त उत्तर देलथिन- ‘आर जे कहब से कहू, मुदा ई जुनि कहू जे महादेवक संग गौरीक विवाह कऽ दियनु। अहाँ लोकनि गौरीक सुन्दरताकेँ बर्बाद नञि करियनु। जँ मन होइत अछि तँ हुनका जानसँ मारि दियनु।’
दसो दिक्पाल सूर्य, अग्नि, यम, नैर्ऋति, वरुण, ईशान, ब्रह्मा आ शेषनाग आदि मिलि कऽ मैनाकेँ बुझेलनि, तैयो मैना एके ठाम कहि देलथिन- ‘अहाँ लोकनि किछु कहब मुदा हम गौरीक विवाह महादेवक संग ओहि कुरूपक संग नञि होमऽ देब।’
सप्तर्षि लोकनि वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र आ भारद्वाज सेहो मैनाकेँ बुझेलखिन- ‘हमरा लोकनि कहियो कोनो अनुचित कार्यमे नञि पड़ै छी। हमरा लोकनि उचित बूझि एहि विवाहमे घटक भेलहुँ। स्वयं त्रिलोकीनाथ अहाँक घरपर आयल छथि। सभकेँ हिनकर दर्शन दुर्लभ होइ छै। हिनकासँ बढ़ि कऽ कन्यादानक पात्र दोसर एहि संसारमे क्यौ नञि अछि।’ मैना हुनको लोकनिक बात नञि मानलनि। अपन बेटीकेँ तरुआरिसँ काटि देबा लेल तैयार भेली, मुदा महादेवसँ विवाह करबा लेल तैयार नञि भेली। तखन हिमालय स्वयं मैनाकेँ बुझाबऽ एला आ कहलनि- ‘अहाँ एना किए करैत छी? द्वारिपर के सभ आयल छथि से नञि देखै छी। एना बताहि जकाँ करै छी। हम महादेवके चिन्है छियनि ओ त्रिलोकीनाथ छथि। ओ सभ किछु कऽ सकै छथि। तेँ हेतु अपन जिद्द छोड़ि विवाह सम्पन्न होमऽ दियौ।’
मैना उत्तर देलनि- ‘हमर निश्चय अटल अछि। हम महादेवक संग गौरीक विवाह नञि करब। अहाँ जँ बेटीसँ निश्चिन्त होमऽ चाहै छी तँ ओकरा गरदनिमे पाथर बान्हि कऽ कतहु डुबा दियौ।’
आब गौरी मायकेँ बुझाबऽ लेल गेली आ कहलनि- ‘माय! अहाँक मति एना खराब किए भऽ गेल अछि? अहाँ सभदिन धर्म-कर्मपर विश्वास करैत आयल छी। अहाँ महादेवके ँ एते छोट किए बुझै छियनि? ई संसारक पालनकर्त्ता थिका। सभक कल्याण यैह करै छथि। ई सभ देवताक देव महादेव थिका। देखियनु हिनका संग सभ देवता हिनकर सेवक बनि आयल छथि। अहाँ उठू। होश करू आ महादेवक संग हमरा दान कऽ सुखी होउ। जँ अहाँ ई काज नञि करब तँ हम आन कोनो देवतासँ विवाह नञि करब। भरि जन्म कुमारि रहि महादेवक तपस्या करैत रहि जायब। हम हुनका मन-वचन-कर्मसँ वर बना लेने छियनि।
मैना गौरीक ढिठगरि बात सुनि अवाक रहि गेली। ओ क्रोधे थर-थर कपैत गौरीकेँ पकड़ि मारऽ लगली। ई देखि नारद मुनि दौड़ि कऽ गौरीकेँ छोड़ेलनि। विष्णु भगवान सेहो मैनाकेँ बहुत बुझेलनि, मुदा ओ टससँ मस नञि भेली। तखन महादेवकेँ नारद कहलनि- ‘हे भोलानाथ भक्त वत्सल, आब अपन भाभट समेटू आ सुन्दर स्वरूप बनाऽ गौरीकेँ देल वरदानके ँ पूरा कयल जाय।’
भोलानाथ अपन रूप बदलि देलनि। नारद मैनाकेँ जा कऽ कहलनि- ‘आब वरकेँ जा कऽ देखू ओ केहन छथि।’
मैना महादेवकेँ देखि हुनका देखिते रहि गेली। सूर्य सन चमकैत सुन्दर आँखि, मोती-माणिकक गहना पहिरने बड़ सुन्दर लगै छला। सूर्य हुनका छत्र ओढ़ेने, चन्द्रमा चामर डोलबैत, आठो सिद्धि नचैत, गङ्गा-यमुना पाछूमे चामर धेने। ब्राह्मा, विष्णु, इन्द्र आ ऋषि-मुनि हुनकर आगू-पाछूमे जय-जयकार करैत। गन्धर्व आ अप्सरा सभ नचैत-गबैत आ महादेवक गण सभ झालि-मृदंग बजबैत झुमैत नाना प्रकारक गाजा-बाजा बजा रहल छला। एहि समयक महादेवक शोभा अवर्णनीय छल।
महादेवक एहि रूपकेँ देखि मैनाकेँ आश्चर्य लागि गेलनि। आब मैनाकेँ होश भेलनि। मनेमन प्रसन्न भेली आ अपन बेटी गौरीक तपस्याक फल त्रिलोकीनाथ महादेवके ँ देखि पहिलुका अपन भाभटपर लजा कऽ पछताय लगली।
गौरीक विवाह
देवता, ऋषि-मुनिक बरियाती ओ गाजा-बाजाक संग महादेव विवाह लेल हिमालयक द्वारिपर पहुँचला। मैना हुनकर परिछन केलनि। स्त्रीगण सभ गीत गबैत मैनाक पाछू लागि गेली। सभ महादेवक रूप देखि मोहित भऽ कठपुतरी जकाँ ठाढ़ि भऽ गेली। सभ स्त्रीगण गौरीक भाग्यक सराहना केलनि। महादेवक दर्शनसँ अपनाके ँ धन्य बुझलनि। देवता लोकनि महादेवक संग नञि छोड़लनि, कारण हुनका लोकनिकेँ शंका छलनि जे महादेव फेर कोनो तमासा ने ठानि देथि। मैना झट वरक परछनि कऽ चलि गेली। हुनको शंका छलनि जे देवता लोकनि किछु हँसी-ठट्ठा ने कऽ देथि। वरकेँ मड़बापर आनल गेलनि। हिमालय हुनक अर्हणा (पूजा) केलनि। ओठंगर कूटल गेल। महादेव कोबर घरसँ गौरीकेँ हाथ पकड़ि अनलनि। ब्रह्मा सभ काजमे तत्पर छला। वरकेँ रेशमी धोती, फूल आ सोनाक माला पहिरायल गेलनि। वर-कनिञाकेँ आमक पल्लव केर कंगन पहिरायल गेलनि। ऋषि लोकनि गोत्राध्याय पढ़ेलनि। हिमालय कन्यादान सम्पन्न केलनि। गौरी-शंकर वेदीपर गेला। अग्निक आवाहन कऽ हवन कयल गेल। विवाहक सभ विधि सम्पन्न कयल गेल। ऋषि लोकनि वर-कनिञाकेँआशीर्वाद देलनि। गन्धर्व, अप्सरा लोकनि नाच-गान केलनि। देवता लोकनि कहलनि- ‘हे महादेव! अहाँ जगतपिता छी आ गौरी जगन्माता भेली। गौरी-शंकर कुलदेवताकेँ प्रणाम कऽ, भोजनसँ निवृत्त भऽ विश्राम करबा लेल गेला। बरियाती लोकनिक सत्कार प्रारम्भ भेल। जहिना विभिन्न तरहक बरियाती आयल छला तहिना हिमालय सभक लेल विभिन्न प्रकारक ओरियानो केने छला। जतऽ साक्षात् अन्नपूर्णाक जन्म भेल छनि ओतऽ कोन वस्तुक कमी भऽ सकैत अछि? बरियाती लोकनि प्रसन्न भऽ हिमालयकेँ धन्यवाद दैत बिदा भेला आ कहलनि- ‘अहाँ धन्य छी हिमालय। आब हमरा लोकनिकेँ ताड़कासुरसँ त्राण पेबाक बाट खूजल।’
हिमालय कर जोड़ने ठाढ़ छला। मैना अपन अज्ञानताक लेल देवता ओ ऋषिसँ क्षमा माङलनि। ओ लोकनि कहलनि-‘ई सभ लीला त्रिलोकीनाथक छलनि। अहाँक सौभाग्य बढ़य। आब हमरा लोकनिके ँ जेबाक आज्ञा देल जाय।’ आगाँ-आगाँ गौरी-शंकर बसहापर चढ़ल बिदा भेला। पाछू-पाछू हुनका लोकनिके ँ अरियातबा लेल हिमालय सहित हुनकर परिवार छलनि। किछु दूर धरि हिमालय लोकनि गेला आ हुनका लोकनिके ँ जाइत देखि बेटीक बिछोहेँ भारी मन लऽ घुरि अपन घर एला।
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