Thursday, 29 August 2013

चानन, सिन्दूर आ भस्मसँ शोभित मिथिला

 
   
                चानन, सिन्दूर आ भस्मसँ शोभित मिथिला 
                                          -अमलेन्दु शेखर पाठक   

मिथिला मातृशक्तिक प्रति अगाध स्नहेसँ भरल रहल अछि, मुदा तेँ आन देवी-देवताक प्रति स्नेह-समर्पणमे कोनो कमी नञि रहल अछि। एहि ठाम सभ देवी-देवताक पूजा-अभ्यर्थनामे मैथिलजन समर्पित भावसँ जुटल रहला अछि। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, भगवतीक विविध स्वरूप काली, दुर्गा, सीता आदिक संग वीर हनुमान आदि देवताक पूजा-अर्चना अदौसँ होइत रहल अछि। ठाम-ठाम हिनक मन्दिर स्थापित कऽ बारहो मास पूजन होइत अछि। हँ, ताहिमे शक्तिक प्रति मिथिला कने बेसी समर्पित रहल अछि। भगवतीक प्रति अनन्य भक्ति-भाव रखितो एहि ठाम पञ्देवोपासनाक सबल आ पुष्ट परम्परा रहल अछि। मैथिल जन देवी-देवताकेँ समन्वित रूपसँ पुजैत एला अछि। बहुतो माताक भक्त छथि तँ बहुतो विष्णु वा शिवक, मुदा अधिसंख्यक एहन छथि जे सभक प्रति समान भाव रखै छथि। एहि ठाम पूजा करैत काल भगवान विष्णुकेँ आवाहित कऽ हुनका तुलसी दल चढ़बैत अपना ललाटपर श्रद्धाक संग चानन लगबै छथि तँ लगले ओही केराक पातपर जाहिपर भगवान विष्णुकेँ पूजल जाइ छनि, भगवतीकेँ आवाहित करै छथि आ हुनक पूजनक संग अपना कपारपर सिन्दूरक ठोप सेहो लगबै छथि। बिना महादेवक आराधनाक मैथिलक पूजन पूर्ण कोना होयत, से हुनक आराधना करैत भक्त भस्मकेँ सेहो सिरोधार्य करै छथि। ओ मिथिला भगवान विष्णुक स्वरूप भगवान श्रीकृष्णक जन्मोत्सव कोना बिसरि सकैत अछि जाहि ठाम घरे-घर सत्यनारायण पूजनक ओरियान सभ दिन चलैत हो। एहिमे पूरा समाज समवेत होइत हो। गाम-टोलमे सत्यनारायण पूजनक हकार दऽ समाजकेँ समवेत करबाक ई परम्परा अति प्राचीन कालसँ चलि आबि रहल अछि। कोनो शुभ अवसर हो आ कि श्राद्ध सन बेर सत्यनारायण भगवानक पूजनक बादे ओकरा पूर्ण मानल जाइत अछि। केराक पातसँ सजायल पूजाक चौकीपर राखल भगवान शालिग्राम आ पीयर-लाल धोती पहिरि बैसल पूजन करैत श्रद्धालु, मंत्र पढ़बैत-सत्यनारायणक कथा कहैत पुरहित आ हाथ जोड़ि श्रद्धासँ ओकर श्रवण करैत हकारपर जूटल लोक, ई दृश्य कखनो, कहियो कोनो गाम-घरमे बरमहल देखल जा सकैत अछि। भगवानक प्रति आस्था आ विश्वासक हाल ई अछि जे पूजामे नञि एनिहारो शंख बजबापर अपना घरेसँ हाथ जोड़ि प्रणाम करैत अपन श्रद्धा प्रकट करै छथि। ताहि विष्णुक प्रतिमूर्त्ति श्रीकृष्णक जन्मोत्सवपर हिनक अपर स्वरूप भगवान रामक सासुर मिथिलामे उछाह उचिते अछि।
                                                   श्रीकृष्णक चरणमे समर्पण 
भगवान श्रीकृष्णक प्रति मिथिलाक समर्पण आ आसक्ति कोना ने हो। ई ओहि महर्षिक भूमि रहल अछि जे देह धारण करितो विदेह कहल जाइ छला। ज्ञान-ध्यानक संग ई दर्शनक उर्वर आ मुखर भूमि रहल अछि। आ योगीश्वर श्रीकृष्णोक जीवन ओ लीलामे साम्य रहल अछि। श्रीकृष्णो लीलाधारी रहितो विषय-आसक्तिसँ फराक रहला। गीतामे भगवान जीवन-दर्शनक जे विशद व्याख्या केलनि अछि, कर्मयोगक सनेस देलनि अछि, जीवात्मा आ परमात्मामे अभेद आदिक प्रसंग जे मार्ग-दर्शन केलनि अछि ओकर आग्रही मिथला कोना ने हो। कंसक संहार आ एहिसँ पूर्व पूतना, वकासुर आदि राक्षक वध कऽ श्रीकृष्ण अन्यायक विरुद्ध जे शंखनाद केलनि तिनकर सम्मान ओ मिथिला कोना ने करत जे स्वयं प्रथम गणतंत्रक उद्घोषक रहैत अपन अन्यायी राजा कराल जनक पर्यन्तकेँ गद्दीसँ उतारि खेहारि देने हो। गोवर्द्धन पर्वतकेँ अपना कनगुरिया आङुरपर उठा जे समाजक पीड़ा हरैत होथि तिनकर भक्तिमे कोना ने निमग्न होयत? जे स्वयं गाय चरबैत होथि तिनका ग्रामीण अपन देवताक रूपमे कोना ने पुजता? जे कदम्बक वृक्ष तर ठाढ़ भऽ बसुली बजा पर्यावरण संरक्षण दिस प्रेरित करैत होथि तिनका प्रकृति-पूजक मिथिला कोना बिसरि सकैत अछि? जे जलकेँ बिखाह बनेनिहार कालि नागकेँ नाथि जल-संरक्षण दिस ध्यान आकृष्ट करैत होथि तिनका नदीक नैहर मिथिला कोना बिसरि सकैत अछि?
                                           ठाकुरबाड़ी-शिवालय-माइ स्थान
मिथिलाक प्रसंग कहल गेल अछि- ‘धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो’ मिथिला व्यवहारत:’, अर्थात धर्मक प्रसंग जँ कोनो निर्णय बुझबाक हो तँ मिथिलाक व्यवहार मात्र देखि लेल जाय। धार्मिक आ आध्यात्मिक दृष्टिसँ एहन महत्वपूर्ण माता जानकीक प्राकट्य स्थली मिथिलाक गाम-गाम पुण्य-स्थल अछि। मिथिलाक अधिकांश गाममे माइ स्थान (भगवतीक मन्दिर), शिवालय, ठाकुरबाड़ी आ ब्रह्मस्थान नञि हो। एहि सभ मन्दिरमे नित्य पूजा-अर्चना होइत अछि। ग्रामीण लोकनिमेसँ बहुतो नित्य एहि मन्दिर सभमे भगवानक दर्शन लेल साँझमे उपस्थित होइ छथि। ओतहि अधिकांश गामक बेटी-पुतहु देवी-देवताक समक्ष सान्ध्य-दीप जरेबा लेल जुटै छथि। अवसर विशेषपर मन्दिर सभमे विशेष पूजा-अर्चना होइत अछि। दुर्गा पूजाक अवसरपर भगवती मन्दिर आ शिवरात्रिपर देवाधिदेव महादेवक मन्दिर भक्तसँ गजगज करैत अछि, तहिना कृष्णाष्टमीक अवसरपर ठाकुरबाड़ीमे भक्तक भीड़ उमड़ि पड़ैत अछि। आरतीक समय शंख, घड़ीघण्टक स्वर वातावरणमे भक्ति-रस घोरि दैत अछि। ओतहि हारमोनियम, झालि, मृदंगक संग भजन-कीर्त्तनमे डूबल जनमानस भक्तिक अजस्र धार प्रवाहित करैत अछि।
                                                           श्रीकृष्णक स्थायी-अस्थायी मन्दिर
ओना तँ मिथिलाक प्राय: गाममे लीलाधारी भगवान श्रीकृष्णक जन्मोत्सव कृष्णाष्टमी पारम्परिक रूपसँ मनाओल जाइत अछि, मुदा बहुत रास गाम एहनो अछि जाहि ठाम भगवानक स्थायी-अस्थायी मन्दिर अछि। स्थायी मन्दिरमे तँ बसुली बजबैत राधाक संग विराजमान श्रीकृष्णक मूर्त्ति प्रतिष्ठित छनि। ओतहि एहनो   मन्दिर अछि जकर उपयोेग जन्माष्टमीक अवसरपर होइत अछि। भादव मासक कृष्ण पक्षक अष्टमीकेँ भगवानक मूरुत ओहिमे स्थापित कऽ हुनक पूजा-अर्चना होइ छनि। मूर्त्ति विसर्जनक बाद फेर अगिला बरख ओकर उपयोग होइत अछि। एहि बीच ओकरा कृष्ण मन्दिरे कहि ग्रामीण सम्बोधित करै छथि, भने ओहिमे भगवानक अस्थायी मूर्त्ति प्रतिष्ठित होइत हो। एकर अतिरिक्तक बजारसँ लऽ गाम धरि असंख्य अस्थायी मन्दिर सजैत अछि।
                                                           हजारो ठाम स्थापित होइछ मूर्त्ति
समग्र मिथिलामे सैकड़ो-हजारो ठाम-ठाम भगवान कृष्णक मूर्त्ति स्थापित कऽ सामूहिक पूजन होइत अछि। एहि लेल बनऽवला पूजा-पण्डाल प्रतिमाक विसर्जन धरि मन्दिरे बनि जाइत अछि जतऽ भक्त नर-नारी बाल-बच्चाक संग जुटि भगवानक दर्शन करै छथि, हुनका प्रसाद चढ़बैत अपन श्रद्धा निवेदित करै छथि। कतहु गाय चरबैत भगवान, तँ कतहु माखन चोरबैत आ कालि नागकेर फनपर नचैत बाल-कृष्ण, राधाक संग रास रचबैत युवा श्रीकृष्णक संग कंसक बध करैत कृष्णक मनोहारि मूर्त्ति आकार्षणक केन्द्र रहैत अछि।
                                                               ठाम-ठाम लगैत अछि मेला 
ओना तँ शहरीकरण मेलाकेँ गिड़ने चलि जा रहल अछि, मुदा एखनो ग्रामीण क्षेत्रमे ई बाँचल अछि। दुर्गा पूजा, वसन्त पञ्चमी आ शिवरात्रिक संग कृष्णाष्टमीक मेला एखनो गाम-घरमे खूब लगैत अछि। मिथिलाक दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, बेगूसराय, खगड़िया, पूर्णिञा, कटिहार, अररिया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी, भागलपुर, मुंगेर आदि केर ग्रामाञ्चलमे बहुतो ठाम कृष्णाष्टमीक मेला लगैत अछि। बहुतो ठाम दू-तीन दिनक मेला केर आयोजन होइत अछि जे कतेको गामक लोककेँ एक ठाम जुटबाक, परस्पर भेट आ संग मिलि आनन्द-उल्लास मनेबाक अवसर प्रदान करैत समाजमे सहभावक आधारकेँ मजगूत करैत अछि।  
                                                              साहित्योमे छथि विराजमान 
मिथिला अदौसँ श्रीकृष्णक प्रति समर्पित रहल अछि। ई परम्परा सैकड़ो सालसँ चलि आबि रहल अछि। यैह कारण अछि जे अधर्मक नाश लेल अवतार लेनिहार भगवान श्रीकृष्ण साहित्योमे सर्वत्र नजरि अबै छथि। मिथिला-मैथिलीक सिरमौर महाकवि विद्यापतिक पदावली तँ कृष्णे-राधासँ भरल पड़ल अछि। हुनक प्राय: गीत-रचनाक नायक श्रीकृष्ण आ नायिका राधा थिकी। उमापति उपाध्यायक ‘पारिजात हरण’ नाकट, मनबोधक ‘कृष्णजन्म’ महाकाव्य आदि प्राचीन साहित्यक संग वर्त्तमानमे सेहो साहित्यकार लोकनि श्रीकृष्णक प्रति अपन विविध भावकेँ रचनाक माध्यमे राखि रहल छथि। साहित्यकेँ समाजक दर्पण कहल गेल अछि आ साहित्यिक रचनामे भगवानक श्रीकृष्णक विविध रूपमे उपस्थिति स्पष्ट करैत अछि जे ओ मिथिलाक जन-मनमे रचल-बसल छथि। आउ! हमरो लोकनि समवेत होइ भगवान श्रीकृष्णक चरणमे आ अन्यायक नाश केर संकल्प लैत मनाबी जन्माष्टमी-कृष्णाष्टमी।

Wednesday, 21 August 2013

  ग्दानवीरक कथा
महाकवि विद्यापति रचित ‘पुरुष परीक्षा’ सँ उद्धृत

प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

उज्जयिनी नामक एक राजधानी छल। ओतऽ विक्रमादित्य नामक राजा भेला। ओ एक दिन सिंहानपर बैसल कोनो वैतालिक द्वारा पठित एक श्लोक सुनलनि जकर अर्थ छल-
‘दानवीर राजा बलाहक जय जयकार। ओ राजा ओहने महान छथि जनिक गुणगान सन्तुष्टमन ब्राह्मण लोकनि, पूर्ण मनोरथ प्रसन्नचित बन्दी लोकनि, इच्छापूर्तिसँ कृतार्थ नोकर सभ, अधीनस्थ देश-देशक राजागण, बन्दी भेल पण्डित समुदाय ओ स्वर्ण पुरस्कार प्राप्त योद्धा लोकनि दिशा-दिशामे नित्य नियमित रूपेँ करैत रहै छथि।’
एकर बाद राजा उक्त श्लोक पढ़निहार वैतालिककेँ कहलनि- ‘हौ वैतालिक! तोहर ई राजा बलाह थिका के? हमरा आगाँ एना गर्वपूर्वक हुनक उत्कर्षक वर्णन किए कऽ रहल छऽ?’
वैतालिक बाजल- ‘हम थिकहुँ वैतालिक, हमर तँ ई वृत्तिए थिक जे वीर लोकनिक यश दिश-दिश विस्तार करैत रही। कारण, वैतालिक तँ संग्राममे शूरगणकेँ ललकारा दऽ बढ़बैछ, मदान्धकेँ बोध दैछ, कायरक दुर्गुण हटबैछ आ राजा लोकनिक आगाँ विपक्षीक गुणक चर्चा करैछ, वैतालिक प्राण बरु दऽ देत, मुदा हृदयक संकोच कृपणता नञि राखत। तेँ तँ शूर लोकनि हमरा परितोष दै छथि आ हम हुनका सभक यशक अंकुरित पौधकेँ दिग्दिगन्त धरि पल्लवित करैत रहै छी। श्रीमानकेँ जँ से सुनबासँ अमर्ष हो तँ ओहिसँ बेसी वा ओहनो पौरुष देखाओल जाय। एहि हेतु कोप कथीक?’
राजा पुछलनि- ‘केहन की छनि पौरुष?’
वैतालिक बाजल- ‘देव! ओहि बलाह नामक राजाक द्वारिपर सभ राति सोनक एक मन्दिर तैयार होइछ, प्रतिदिन ओकरा काटि-काटि ओकर सोन लऽ कऽ राजा ब्राह्मण, गुणी ओ दरिद्र लोकसभमे बाँटल करै छथि। हुनक एहि दानसँ सन्तुष्ट भऽ कऽ लोक सभ हुनक यशोगान करैत रहै छथि।’
राजा बजला- ‘वैतालिक! तोँ ई सत्य कहै छ?’
वैतालिक कहल- ‘असत्य के कहत? जँ अपनेकेँ विश्वास नञि हो तँ अपन गुप्तचर द्वारा एकर जाँच करबा ली।’
राजा बजला- ‘जा धरि एकर निरूपण नञि कऽ ली ता धरि तोँ एही नगरमे रहऽ। जँ तोहर कहब सत्य हेतऽ तँ तोरा रत्नक पुरस्कारसँ सम्मानित करब। ई कहि राजा वैतालिककेँ बाहर पठेलनि आ अन्त:पुरमे जा एकान्तमे विचार करऽ लगला- बलाहक चरित्र तँ अत्यन्त आर्श्चजनक अछि! अथवा विधाताक सृष्टि-प्रपञ्चमे असम्भव की अछि? तेँ जा कऽ ई कुतूहल देखी- ई विचारि, राज्यक भार मन्त्री लोकनिककेँ दऽ अपने अग्नि ओ कोकिल नामक दू वेतालकेँ बजा, ओकर कान्हपर सवार भऽ बलाहक राजधानी गेला। ओतऽ जुआन सैनिकक वेष बना राजा बलाहकेँ भेट कऽ कहलनि- ‘महाराज! संग्राममे जकर समान क्यौ दोसर योद्धा नञि एहन साहसांक विक्रमादित्य राजाक हम द्वारपाल थिकहुँ, अपनेक नाम यश सुनि अपनेक ओतऽ सेवा हेतु आयल छी।’ ई निवेदन कऽ ओ राजाकेँ प्रणाम केलनि। राजा कहलनि- ‘हे द्वारपाल, तोँ तँ बड़ पैघ महाराजक द्वारपाल थिकॅ, हमरो ओतऽ द्वारहिपर अधिकारी भऽ कऽ रहऽ।’ ओहि दिनसँ विक्रमादित्यक द्वारपर स्थित भऽ, अत्यन्त आश्चर्यजनक घटना देखथि जे प्रतिदिन स्वर्णमन्दिर बनैत अछि आ ओकर समस्त सोन लोकमे बाँटल जाइछ। ओ सोचऽ लगला जे हिनका स्वर्णमन्दिर कोना भेटै छनि, हमरा से किए ने भेटैछ? जे काज कोनो पुरुष कऽ सकैछ तकरा लेल ककरो उदासीन नञि हेबाक थिक। कारणक जाँच तँ कऽ लेब उचित। तखन ओ ओकर कारणक जिज्ञासा करऽ लगला।
एक दिन रातिक निशाभागमे, जखन नगरक लोक आ राजपरिवारक सभ व्यक्ति सूति रहल छला, तखन ओ (विक्रमादित्य) देखलिन जे राजा बलाह अपन महलसँ बहरा नगरसँ बाहर विदा भेला। ई देखि, ओ चुप्पे, जाहिसँ ओ लक्ष्य नञि कऽ सकथि ताहि रुपेँ, हुनका पाछाँ-पाछाँ चलला। बलाह नदीतीरमे स्थित परम भयानक श्मशान पहुँचला, जे श्मशान नाचैत बेताल सभक पदाघातसँ आतंकित डाकिनीक डमरू-निनादसँ, हजारो गिदड़िनीक भूकबसँ आ उद्वेगी राक्षस सभक क्रूर क्रीड़ासँ विकट छल। ओतऽ नदीमे नहेलापर राजा बलाहकेँ भैरवक दूत सभ मनुष्यक ताँतिसँ बान्हि धहधह जरैत आगिसँ तप्त तेल भरल कड़ाहमे फेकि देलक आ राजा अत्यन्त कष्टपूर्वक प्राणत्याग केलनि। हुनक निष्प्राण शरीर जखन तेलमे सुसिद्ध भऽ गेलनि तखन भगवती चामुण्डा प्रत्यक्ष भऽ ओहि मांसकेँ खेलनि। भगवती चामुण्डा परम सन्तुष्ट भऽ राजाक हड्डीकेँ अमृतसँ सिक्त कऽ पुन: हुनका ओहिना बना देलनि। पुन: जीवित राजा बलाह भगवतीकेँ प्रणाम केलनि आ वर मङलनि। बलाह बजला- ‘हे भगवती! दान-यशसँ प्रसिद्ध पुरुष जँ याचक लोकनिक मनोरथ पूर्ण करबामे समर्थ नञि होथि तँ मृत्युसँ बेसी कष्टकर! तेँ मृत्युकेँ स्वीकार कऽ याचक लोकनिक मनोरथकेँ पूर्ण करबाक कामनासँ भगवतीकेँ अपन मांससँ पूजन कयल। अत: हे जननी! हमर कामना पूर कयल जाय।’
देवी बजली- ‘बलाह! भोरे अहाँक द्वारिपर पहिने जकाँ सोनक मन्दिर प्रस्तुत होऽ।’ देवीक वरदान पाबि कृतार्थ भऽ बलाह अपन घर फिरि अयला।
विक्रमादित्य से सभ देखि सोचलनि- ‘वैतालिक सत्ये कहलक। बलाह वस्तुत: दानवीर थिका जे दानक हेतु प्रतिदिन अपन प्राण दऽ धन अर्जन करैत छथि। भगवती तँ दयामयी थिकी। तखन किए ने एके बेर प्राण-अर्पण साहससँ हिनका कृतार्थ करै छथि? अस्तु होअऽ दियौ अगिला राति, जे उचित थिक से करब। ई विचारि ओ राजद्वारपर जा कऽ अपन काज देखऽ लगला।
ओकरा दोसर राति मन्त्री आ सामन्त ओ भृत्य लोकनिसँ घेरल-बेढ़ल बलाह जा एकान्त हेबाक प्रतीक्षामे छला, ता साँझे राति जाबत नगरक लोकसभ सूतल नञि छल   ताबते बिनु दोसरकेँ संग नेने एकसरे विक्रमादित्य ओहि स्थानपर पहुँचला, स्नान कऽ खौलैत तेल भरल कड़ाहमे कूदि गेला। भीजल शरीरक मांससँ तेल कड़कड़ा उठल, से सूनि भगवती ओतऽ आबि मांस खेलनि, हुनका हड्डीकेँ अमृतसँ सिचलनि। जखन ओ जीबि उठला तखन हुनका बलाह बूझि भगवती वर देबाक इच्छा करिते छथि ताबत ओ फेर कड़ाहमे कूदि पड़ला। फेर भगवती हुनक मांस खेलनि। एहि प्रकारेँ बेरबेर ओ जियाओल गेला आ पुन: कड़ाहमे झम्प लैत गेला। एहन सात्विक स्वभाववला धीर पुरुष ई विक्रमादित्ये थिका से बुझि भगवती बजली- ‘हे विक्रमादित्य! अहाँपर तँ हम प्रसन्ने छी। अहाँकेँ आठो सिद्धि प्राप्ते अछि? हम तँ ने हुनक मांससँ आ ने अहाँक मांससँ तृप्त होइ छी, मात्र हम पुरुषक साहसक जाँच करबा लेल कृत्रिम भूख ओ तृप्ति देखबै छी। एखन हम अहाँक साहससँ सन्तुष्ट भेल छी। वर माङू।’
तखन विक्रमादित्य प्रणाम कऽ वर मङलनि। विक्रमादित्य कहलनि- ‘देवी! अहाँ जगन्माता छी, भक्तक प्रति वात्सल्य रखनिहार छी। बलाहक प्रति दया भेल तेँ अपनेक आराधना केलहुँ अछि जे बलाहकेँ मृत्युवरणक साहस बिनु केनहुँ हुनक द्वारिपर सोनक मन्दिर प्रस्तुत होइत रहौन।’
भगवती बजली- ‘तहिना होऽ।’
एहि प्रकारेँ वरदान प्राप्त कऽ विक्रमादित्य अपन राज्य फिरला। जे वैतालिक सत्यवार्ता कहने रहनि तकरा बजा, रत्न-वस्त्र आ घोड़ा-हाथी प्रदान कऽ पुरस्कृत केलनि। एमहर बलाह, जखन नगरक लोक सभ सूति रहल छल, जनशून्य रातिक निशाभागमे श्मशान पहुँला तँ किछु देखबामे नञि एलनि, मुदा आकाशवाणी सुनबामे एलनि- ‘हे बलाह! विक्रमादित्य अहाँक कष्टकेँ दूर कऽ गेल छथि।’ अर्थ स्पष्ट बुझबामे नञि एलनि तेँ गुनिधुनि करैत, भिनसर याचक लोकनिकेँ हम की देबनि एकर चिन्ता करैत घर जा पलंगपर पड़ि रहला, मुदा निद्रा नञि भेलनि। जागल-जागल करौटो नञि लेलनि, तैयो द्वारपाल प्राते आबि जगेलकनि। सोनक मन्दिर पहिने जकाँ द्वारिपर देखि ओ (बलाह) कृतार्थ भेला। प्रसंगसँ आकाशवाणीक अर्थ आब बुझबामे एलनि जे विक्रमादित्यक प्रसादसँ हमरा से सिद्धि भेटल जाहिसँ बेरबेर मरणक आयास-प्रयासक अपेक्षा नञि रहल। हुनक एहि निर्धारित विषयकेँ, वैतालिक सभामे आबि कऽ पुन: दोहरा कऽ कहलक।
विक्रम केसरी राजा पुरुष लोकनिमे पहिल उल्लेख हेबा योग्य छथि, जनिक दया दानवीरो केर विषयमे कल्पलता (मनोरथ साधक) सिद्ध भेल। 

मिथिला राज्य : जनबल केर हो सङोर

                                                              मिथिला राज्य : जनबल केर हो सङोर

                                                   - अमलेन्दु शेखर पाठक
राष्टÑ जखन पराधीन छल। अङरेज राज करै छल। अनेक आत्मबलिदानी महापुरुष स्वाधीनता संग्रामक लड़ाइ लड़ि रहल छला। भारतवर्षकेँ अङरेजक चाङुरसँ मुक्त करबा लेल ओ सभ अपन जानक कोनो परवाहि नञि कऽ रने-बने बौआ रहल छला। समग्र राष्टÑकेँ एक सूत्रमे बान्हि स्वाधीनता आन्दोलनसँ जन-मनकेँ जोड़बा लेल अहर्निश प्रयास करै छला। एकर अपेक्षित परिणाम भेल। अङरेजक अत्याचारसँ सहमल जनमानस सेहो आन्दोलनक औचित्य बुझलनि आ बहुतो गोटे प्रत्यक्ष रूपसँ एहिमे सहभागी भेला। ओतहि एहन बहुत रास लोक छला जे आन्दोलनक समर्थक छला, अङरेजक अत्याचारसँ मुक्ति चाहै छला, हृदयमे स्वाधीनताक चिनगी सुनुगि रहल छलनि, मुदा मुखर नञि भऽ पाबि रहल छला। ओ सभ सामने एबामे हिचकिचाइ छला आ अपन भावनाक अभिव्यक्ति कतहु एकान्त-असगरमे करै छला। घरक कोठली बन्न कऽ अथवा एकान्त गाछीमे असगरे भारतमाताक जयकार किंवा वन्देमातरम् केर नारा लगबै छला। मिथिला राज्य आन्दोलनोक तेहने सन हाल अछि। जनमानसमे मिथिला राज्यक लेल चेतना अछि। एकर समर्थको बहुत रास लोक छथि। मिथिला क्षेत्रक समग्र विकास लेल पृथक मिथिला राज्यक गठन कयल जेबाक आवश्यकता बुझै छथि, मुदा ताहि लेल मुखर नञि होइ छथि। मिथिला राज्य आन्दोलनीक गतिविधि हुनका पसिन्न पड़ै छनि, मुदा एकर अभिव्यक्ति ओ परस्पर चर्चा मात्रमे करै छथि। आगाँ बढ़बासँ हिचकै छथि। प्रयोजन अछि एहि जनभावनाकेँ मुखर करबाक। से जहिए एहिमे सफलता भेटि जायत मिथिला राज्यक गठन अनायासे भऽ जायत। तहिना जेना अनुकूल बसात पाबि महात्मा गान्धीक संग जनसमुद्र उमड़ि आयल छल। ई वैह मिथिला अछि जाहि ठामसँ महात्मा गान्धी अपन आन्दोलनक सूत्रपात केलनि आ मन्द बसात जकाँ सिहकि रहल आन्दोलन तेहन प्रचण्ड बिहाड़ि बनि गेल जाहिमे ओहि अङेरजक सत्ता उड़िया गेल जकरा राजमे कहियो सूर्य अस्त नञि होइ छला। एहन धरगर-कसगर आन्दोलन लेल एकरा बहुमुखी बनेबाक आवश्यकता अछि।
मिथिला राज्यक माङ काल्हुक नञि अछि। अङरेजक दासतासँ भारत मुक्तो नञि भेल छल तहिएसँ मिथिला राज्यक माङ होइत रहल अछि। जहिया अङरेज 1903 मे मिथिलाकेँ दू फाँक कऽ देने छल आ सुगौली सन्धिमे एकर पैघ भू-भाग नेपालकेँ दऽ देलक तहियो मिथिला कछमछा उठल छल, जेना एखन तेलंगानाकेँ राज्य बनेबाक केन्द्र सरकारक निर्णयसँ मिथिला अपनाकेँ अपमानित आ उपेक्षित अनुभव कऽ रहल अछि। मिथिला-मैथिलीक विकास आन्दोलनमे जुटल संगठन सभक तिक्ख प्रतिक्रिया आबि रहल अछि। केन्द्र सरकारक मुखर विरोध भऽ रहल अछि। आन्दोलनकेँ प्रभावी बनेबाक घोषणा भऽ रहल अछि। ई सभ हेबाके चाही। संग-संग आत्म-मन्थन ओ आत्म-चिन्तन सेहो हेबाक चाही जे कहाँ चूकि रहल छी जे बेराबेरी देशमे राज्यक गठन भऽ रहल अछि आ मिथिलाकेँ एहिसँ बारल-टारल जा रहल अछि। एहिपर गम्भीर विमर्शक संग सधल डेग उठेबाक प्रयोजन अछि।

                                                     हिलोरल जाय जनमानस 
बरखो भरि मिथिला राज्यक माङकेँ लऽ विभिन्न संगठन दिससँ धरना-प्रदर्शन होइत अछि। से दिल्लीक जन्तर-मन्तरपर बेसी। मिथिलाक माटिपर सेहो बरखो भरि आन्दोलनक संग विमर्शो होइत रहैत अछि। एकर सकारात्मक परिणामो होइत रहल अछि, मुदा आब प्रयोजन अछि जनमानसमे तेहन हिलोर उठेबाक जे मिथिला राज्यक विरोध आ उपेक्षा केनिहारकेँ ज्वार-भाटा बनि अपना संग बहा कऽ लऽ जाय। ताहि लेल आन्दोलनकेँ माटि धरेबाक प्रयोजन अछि। ‘माटि धरब’ अपना ओहि ठाम सकारात्मक आ नकारात्मक दुनू अर्थमे प्रयोग होइत अछि। आन्दोलनकेँ सकारात्मक अर्थ देबाक प्रयोजन अछि। जे माटि धेने रहैत अछि, अर्थात जकर जड़ि धरतीकेँ गसिया कऽ पकड़ने रहैछ ओकर केहनो झञ्झावात किछु नञि बिगाड़ि पबैत अछि। जकर जड़ि जते गहीँर से तते सबल। आ जखन जड़ि माटि छोड़ि दैत अछि, किंवा ओकर माटि पकड़बाक शक्ति घटि जाइत अछि तँ ओ माटि धऽ लैत अछि, माने धराशायी भऽ जाइत अछि। आ जे माटि धेनहि ने रहैत अछि ओ बसातक गति तेज होइते ओकरा संग सुखायल पात जकाँ उधिआय लगैत अछि। जखन पहलमान पेट भरे माटि धऽ लैत अछि तँ ओकरा चित्त कऽ माटि धरायब सहज नञि होइत अछि। से मिथिला राज्य आन्दोलनक सीर जनमानसमे जते गहीँर होयत एकर असरि ततेक बेसी होयत। एहि लेल क्षेत्र विस्तारक संग निरन्तर प्रयास अपेक्षित अछि।
                                               सौँस मिथिलाक संगसँ भेटत नव ऊर्जा  
कोनो आन्दोलनक लेल धनबलक प्रयोजन होइते अछि, मुदा ताहूसँ बेसी महत्वपूर्ण होइत अछि जनबलक। यैह होतइ अछि ओकर प्राण। एकरे बलपर ओकर धमनीमे आन्दोलनक रक्त-सञ्चार होइत अछि। एकरे बलपर आन्दोलन लक्ष्य दिस बढ़ैत अछि आ अन्तत: सफलतो प्राप्त करैत अछि। मिथिला लग जनबलक कमी नञि अछि। जनसंख्याक हिसाबे देखी तँ भारत राष्टÑमे तेहन-तेहन राज्य अछि जे ओते टा चारि राज्य असगर मिथिला क्षेत्रमे बनि जाय। असगरे दिल्ली, मुम्बइ सन कतेको महानगर आ नगर अछि जतऽ मैथिल ततबा संख्यामे छथि जतेक एकटा छोट-छीन राज्यक जनसंख्या होइत अछि। दुनिञामे कतेक एहन देश अछि जकर जनसंख्या मिथिला एते नञि अछि। छओ करोड़क जनसंख्या कम नञि होइत अछि। एकरा सभकेँ सङोरि सौँस मिथिलाक संग आन्दोलनक व्यापकता चाही। कोनो खास क्षेत्रसँ आन्दोलन कदापि नञि खुटेसल जेबाक चाही। एहि दिशामे संगठन सभक प्रयास चलि रहल अछि, मुदा एहि दिस ध्यान देब सेहो आवश्यक अछि जे सरकारी   आ गैर सरकारी स्तरपर मिथिलाकेँ छोट करबाक प्रयास सेहो भऽ रहल अछि। मिथिला महोत्सवक आयोजन दरभंगा-मधुबनी मात्रमे किए होइत अछि? सहरसा क्षेत्रमे कोसी महोत्सव होइत अछि से अवश्यक कयल जाय, मुदा ओहू ठाम ने मिथिला महोत्सव हेबाक चाही। पूर्णिञा-किशनगञ्ज क्षेत्रकेँ सीमाञ्चलक नामपर मिथिलासँ कटबाक कुचक्र रचल गेल अछि। एहिपर गम्भीरतासँ विचार कऽ सधल डेग उठायल जेबाक चाही। जाहिसँ आन्दोलनक संग समग्र मिथिला अर्थात सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार, पूर्णिञा, अररिया, किशनगञ्ज, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, भागलपुर, हाजीपुर, वैशालीक क्षेत्र, मुंगेर आदि एकसंग तनतना कऽ ठाढ़ भऽ सकय। भागलपुर, मुंगेर, हाजीपुर सहित बहुत रास क्षेत्रक मिथिलाक संग अभिन्नता केर मुखरता आन्दोलनकेँ नव ऊर्जासँ भरत। एहि सभ क्षेत्रक जनबल केर हूंकार चाही। एहन नञि जे एहि दिशामे प्रयास नञि रहल अछि, प्रयोजन अछि एकरा विस्तृत फलक देबाक।
                                                   चाही राजनीतिक चेतना 
मिथिला राज्यक गठन लेल राजनीतिक चेतना अत्यन्त आवश्यक अछि। से आन्दोलनी संगठनक संग जनमानसमे सेहो। पृथक राज्यक समाधान राजनीतिक अछि। एकर समाधान राजनीतिएसँ होयत। राजनेताकेँ मात्र भोटक डर होइ छनि। ओ सभ उचित-अनुचितपर विचारसँ बेसी अपन राजनीतिक लाभ तकै छथि। एहि लेल जनमानसकेँ सेहो सचेत होबऽ पड़त आ संगठनकेँ सेहो। एहि लेल प्रयोजन अछि जे राजनीतिक दलकेँ दू पक्षमे ठाढ़ हेबा लेल विवश कयल जाय। ओ अपन स्टैण्ड स्पष्ट करय जे मिथिला राज्यक संग अछि वा विरोधमे। राजनीतिक दलकेँ केन्द्रीय ओ राज्य स्तरपर मिथिला राज्यक प्रसंग अपन नीति रखबा लेल कहल जेबाक चाही आ जे पक्षमे ठाढ़ होइत अछि तकरा संग समग्र मिथिला हो। सुरसुर-मुरमुर दुनू केर अपेक्षा रखनिहार राजनीतिक दलकेँ नाङट करबा लेल अभियान चलय। ई शुभ संकेत अछि जे प्रसिद्ध क्रिकेटर आ दरभंगाक सांसद कीर्त्ति आजाद मिथिला राज्यक समर्थनमे खुजि कऽ सामने एला अछि। ओ पर्सनल बिल केर माध्यमसँ संसदमे मिथिला राज्य लेल प्रयास आरम्भ केलनि अछि। ओ संसदक भीतर-बाहर मिथिला राज्य लेल दृढ़ताक संग ठाढ़ रहबाक घोषणा केलनि अछि। अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समितिक तत्त्वावधानमे आयोजित कार्यक्रममे ओ दू टूक कहलनि अछि जे ओ मिथिला राज्य लेल निर्णायक लड़ाइमे संग रहता। से जँ अपन दल मना करतनि तैयो। ओ संसदपर 5 अगस्तसँ प्रस्तावित धरना-प्रदर्शनक नेतृत्वो करता।
                                            छारनि मिलि बनय मुख्य धारा 
मिथिला राज्य लेल बाबू जानकी नन्दन सिंह आत्म बलिदान केलनि। डॉ. लक्ष्मण झा पदयात्रा केलनि तँ पं. ताराकान्त झा रथयात्रा केलनि। डॉ. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ पछिला कतेको दशकसँ आन्दोलन कऽ रहल छथि। डॉ. धनाकर ठाकुर, उदयशंकर मिश्र, अशोेक झा, डॉ. बुचरू पासवान आदिक सक्रियता सेहो बनल अछि। पछिला जून मासमे मिथिला राज्य निर्माण सेना दिससँ सेहो रथ यात्रा भेल। समय-समयपर डॉ. राममोहन झा प्रभृत सेहो एहि लेल आन्दोलन करैत रहला अछि। माने आन्दोलन कहियो ठमकल नञि अछि। आन्दोलनक धारा निरन्तर प्रवाहित भऽ रहल अछि। ई जमकल नञि अछि, मुदा छारनि जकाँ फराक-फराक। राष्टÑीय ओ अन्तर्राष्टÑीय स्तरक संगठनक निर्माणक कार्य चलिए रहल अछि। ईहो क्रम नञि ठमकल अछि। प्राय: नित्य कोनो ने कोनो संगठनक बयानो अबैत रहैत अछि, मुदा से फराक-फराक। जँ सभ संगठन अपन तागति समवेत कऽ एक मञ्चसँ सधल प्रयास करय तँ मिथिला राज्य आन्दोलन अपन लक्ष्य धरि शीघ्र पहुँचत। प्रयोजन अछि सभटा छारनि मिलि मुख्य धाराक स्वरूप ग्रहण करय आ एक संग आन्दोलनक ज्वारि उठाबय।  एक मञ्चपर जुटबाक बात होइत तँ रहल अछि। एहि लेल गोट पगरे प्रयासो भेल, मुदा ई परिणाम धरि नञि पहुँचल। एकर मूल कारण रहल अछि जे अधिकांश संगठन एक मञ्चपर जुटने अपनाकेँ ओहिमे हेरा जेबाक डर होइ छनि। एकरा त्यागऽ पड़त। मिथिला राज्यक सपना साकार करबा लेल अपन सभ ‘स्व’ केर तिलाञ्जलि देबऽ पड़त।
                                            मैथिलत्वक सूत्रमे एकताबद्ध हो समाज
सभसँ महत्वपूर्ण बिन्दु अछि ओहि जन समान्यकेँ मिथिला राज्यक औचित्य आ एकर लाभसँ अवगत करायब जकरा लेल ई चाही। किसान, कृषि मजूर, छात्र, शिक्षक, छोट-पैघ नोकरिहारा, व्यवसायी, महिला-पुरुष सभकेँ रौदी-दाहीक नामपर क्षेत्रक संग भऽ रहल ठकैती, बिजलीक उपलब्धतामे पाछाँ राखल जायब, उद्योग नामपर सभ दिन आश्वासनक लमनचूस बाँटल जायब आ जेहो उद्योग पहिनेसँ छल तकरा चाटि-पोछि जायब, विद्या-दान लेल अपन विशिष्ट छवि बनेनिहार मिथिलाक एहि लेल दोसर क्षेत्रक मुँहतक्की होयब, छात्र-मजूरक पलायन आदिसँ मिथिलाक दरिद्रता आदि समस्याक निदान मिथिला राज्यसँ सम्भव होयत तकरा प्रति विश्वास उपजायब आवश्यक अछि। एहूसँ बेसी जरूरी अछि जे एहि ठामक मैथिल मुसलमान आ सभ मैथिल जातिक हृदयमे अपना माटि-पानिक प्रति ममता भरब। मैथिलत्वक सूत्रमे समाज एकताबद्ध हो।
                                               संग-संग चलय अग्रिम योजना
मिथिला राज्यक पक्षमे जेना-जेना जनमानस जुड़ि रहल अछि ताहिसँ ई तय अछि जे आइ ने काल्हि एकर गठन होयत अवश्य। तेँ अग्रिम तैयारी सेहो संग-संग हेबाक चाही। पृथक मिथिला राज्यक आर्थिक आधार की होतय ताहिपर बेसी काज करबाक प्रयोजन अछि। ताहि लेल समाजक प्रबुद्ध वर्गकेँ जोड़ल जेबाक चाही। एहि माध्यमे हुनक सहभागिता सेहो एहि   आन्दोलनमे सुनिश्चित कयल जा सकैत अछि। कहल जाइत अछि जे एहि ठामक पानि, माछ, मखान आदिकेँ ठोस आर्थिक आधार बनाओल जायत। से कोना ताहिपर विमर्श आ ठोस योजना तैयार हेबाक चाही। समग्र मिथिलाक पर्यटन स्थल कोन रूपमे आर्थिक विकासक आधार बनत ताहि दिशामे काज अपेक्षित अछि। तहिना कृषि, उद्योग, व्यापार, यातायात आदिक सुव्यवस्था आ रौदी-दाही सन विकराल समस्याक निदानपर केन्द्रित ठोस योजनाक निर्माण विशेषज्ञ दलक माध्यमे कयल जा सकैत अछि। 

मिथिलामे पण्डिते बन्है छला रक्षा सूत्र

 

                   मिथिलामे पण्डिते बन्है छला रक्षा सूत्र
                                                                  - अमलेन्दु शेखर पाठक
श्रावणी पूर्णिमा भाइ-बहिनक पवित्र प्रेमक प्रतीक पर्व रक्षाबन्धन किंवा राखीक रूपमे सगरो मनाओल जाइत अछि। देशक विभिन्न भागक संग मिथिलो एहि पर्वकेँ हर्षोल्लासक वातावरणमे मनबैत अछि। स्नान-पूजनसँ निवृत भऽ नव वस्त्र पहिरि बहिन अपना भाइ केर माथपर चानन लगबै छथि, हुनक आरती उतारै छथि आ रक्षासूत्र (राखी) बान्हि सदिखन अपन रक्षाक वचन लै छथि। भाइकेँ मिठाइ सेहो खोअबै छथि आ भाइ रक्षाक वचन दैत उपहार दै छथि। ई तँ अछि वर्त्तमान। कने अतीत दिस हुलकी मारू। ई जानि आश्चर्य लागत, हठात विश्वासे नञि होयत जे मिथिलामे पहिने मनाओल जाय वला रक्षाबन्धनक स्वरूप वर्त्तमानसँ मिसियो भरि मेल नञि खाइत अछि। मिथिलामे तँ ई भाइ-बहिनिक पाबनि कहियो रहबे ने कयल। मिथिलामे तँ भाइ-बहिनिक पाबनिक स्नेह-पर्व ‘भ्रातृ द्वितीया’ रहल अछि जे एखनो मनायल जाइत अछि। एकर अतिरिक्त ‘सामा’ सेहो एहि ठाम भाइ-बहिनिक पाबनि एहि ठाम मनायल जाइत अछि जाहिमे बहिन छठिक पारन दिनसँ सामा खेलाइ छथि आ कार्त्तिक पूर्णिमा दिन जखन सामाकेँ बिदा कयल जाइत अछि तखन भाइ सामाक डोलीकेँ कान्ह लगबै छथि, बहुत ठाम सामा तोड़ै छथि आ बहिन हुनक फाँड़ भरै छथि। एकर सत्यापन लेल इतिहास खँघारबा लेल बेसी पाछाँ जेबाक आवश्यकता नञि अछि। समाजमे एहन बहुत रास लोक भेटि जेता जिनक उमेर साठि-सत्तरि बरख छनि। कने हुनकासँ पूछि कऽ देखियौन जे जहिया नेना छला तहिया ओ अपना बहिनसँ राखी बन्हबेने छथि? एही उमेरक कोनो महिलासँ पूछि कऽ जाँचल जा सकैत अछि जे जेना एखन ई पाबनि मनाओल जाइत अछि तेना ओ अपना भाइकेँ राखी बन्हने छथि? उत्तर निश्चित रूपसँ नकारात्मक भेटत। एहि वयसक कोनो जाति-वर्गक मैथिल दू टूक कहता जे पहिने रक्षाबन्धनपर मिथिलामे बहिन अपना भाइकेँ राखी नञि बन्है छली। एहिसँ कमो उमेरक लोकक एहन उत्तर भेटि सकैत अछि। कतेको लोक ई कहि सकै छथि जे हुनका समयमे पण्डित-पुरहित बान्हथि, ओना बहिनो राखी बान्हब शुरू कऽ देने छली। यैह सत्य अछि। अपना ओहि ठाम पण्डिते-पुरहित रक्षासूत्र बान्हथि। हाल धरि रक्षाबन्धन दिन हाथमे रक्षासूत्र नेने यजमानकेँ बन्हबा लेल ठाम-ठाम पुरहित नजरि आबथि। एखनो ई परम्परा कतहु-कतहु चलैत अछि, मुदा आब नगण्य। अनुकरणक बिहाड़िमे अपन परम्पराकेँ हम सभ तेना उपेक्षित कऽ देलहुँ जे एखन बेसी दिन भेबो ने कयल अछि आ नवका पीढ़ीकेँ ई पतो नञि अछि जे रक्षाबन्धन एहि ठाम भाइ-बहिनिक पाबनि नञि छल। बहुत रास विद्वान एहि तथ्यकेँ लिपिबद्ध सेहो केने छथि। प्रसिद्ध पत्र ‘मिथिला मिहिर’ केर 1936 मे प्रकाशित ‘मिथिलांक’ मे ‘मिथिला में प्रचलित कुछ पर्व त्यौहार’ शीर्षक आलेखमे जीवानन्द ठाकुर लिखै छथि जे रक्षाबन्धनमे ब्राह्मण ‘येनबद्धो’ मंत्रसँ रक्षा (राखी) बन्है छथि। मैथिली भाषा-साहित्यक भीष्मपितामह कहल गेनिहार आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ अपन पोथी ‘मन पड़ैत अछि’ मे लिखने छथि जे सिनेमाक प्रभावेँ रक्षाबन्धन भाइ-बहिनिक पाबनि भऽ गेल। मैथिलीक शिखर-पुरुष पण्डित श्रीचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ अपन पोथी ‘अतीत मन्थन’ मे लिखै छथि ‘आइ रक्षा बन्धनक जे परिवर्त्तित स्वरूप देखि रहल छी से ‘पोरस’ नामक सिनेमा अयलाक बाद प्रचलित भेल, ई भाय-बहिनक पर्वक रूपमे मिथिलामे पसरि गेल।’ आनो-आन पोथीमे
                                         बच्चीकेँ सेहो बान्हल जाइ छल रक्षा-सूत्र 
श्रावणी पूर्णिमा दिन कुलदेवताकेँ रक्षा-सूत्र चढ़ाओल जानि आ पण्डित-पुरहित रक्षा-सूत्र लऽ घरसँ बिदा होथि आ यजमान सभक ओतऽ जा ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल माचल:’ मंत्रक संग घर-परिवारक सभ सदस्यकेँ रक्षा-सूत्र बान्हथि। बच्चीकेँ सेहो राखी बान्हल जाइनि। पुरुषक दहिना हाथमे आ बच्ची लोकनिक वामा हाथमे पण्डित रक्षा-सूत्र (राखी) बान्हथि। यजमान पण्डितकेँ दक्षिणा देथि। कतहु-कतहु बूढ़-पुरान लोक सेहो अपनासँ कम उमेरक लोककेँ रक्षा-सूत्र बान्हथि। एक गोटेकेँ कतेको पण्डित सेहो बान्हथि। खास कऽ सुखी-सम्पन्न लोक रक्षा-सूत्र बन्हेबा लेल श्रावणी पूर्णिमाकेँ दलानपर बैसथि आ पण्डित-पुरहित आबि-आबि रक्षा-सूत्र बान्हि दक्षिणा पाबथि। पण्डित श्रीचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ अपन पोथी ‘अतीत मन्थन’ मे महाराज रमेश्वर सिंहक प्रसंग लिखै छथि- ‘श्रावणी पूर्णिमा दिन महाराजाधिराज रमेश्वर सिंह रक्षाबन्धन पर्वक अवसरपर पूर्ण राजकीय वेषमे वर्त्तमान संस्कृत विश्वविद्यालयक सभाकक्ष आनन्दबागमे बैसैत छलाह, आगाँमे तीन टा चानीक बट्टामे टाका, अठन्नी आ चौअन्नी राखल रहैत छलनि। अपन कुल पुरोहित, विद्यालयक अध्यापक लोकनि, छात्रगण, राजक ब्राह्मण कर्मचारी सब, शुभंकरपुर, सुन्दरपुर, रानीपुर, खराजपुर, मिर्जापुर, चतरिया, गहुमी आदि गामक ब्राह्मण सब राखी बन्हबाक हेतु अबैत छलथिन। दक्षिणामे पुरोहित, अध्यापक लोकनिकेँ एक टाका, ब्राह्मण सबकेँ अठन्नी, छात्र समुदाय आ दरिद्र सबकेँ चौअन्नी भेटैत छलनि।’ राखीसँ सम्बन्धित लोकगीत उपलब्ध नञि होयब सेहो एहि भावकेँ पुष्ट करैत अछि जे ई पाबनि मिथिलामे भाइ-बहिनक नञि छल। हँ, आइ अछि आ लोक हँसी-खुशी पवित्र भावसँ मिथिलोमे मनबै छथि।
                                                        मेधा-रक्षाक ओरियान
पहिने मिथिलामे जे रक्षाबन्धन मनाओल जाइ छल ओहिमे मेधाक रक्षाक वचन लेल जाइ छल। पहिने जे समाजमे जातीय व्यवस्था छल से एखुनका जकाँ नञि छल। पहिने समाजक ब्राह्मण वर्गक काज छल   पढ़ब-पढ़ायब आ समाज-कल्याण लेल चिन्तन मनन करब। स्वाभाविक रूपसँ जे समाजक कल्याण लेल चिन्तन-मनन करै छला तकरा प्रति समाजोक दायित्व बनै छल। प्राय: तेँ पण्डित-पुरहित द्वारा श्रावणी पूर्णिमापर रक्षा-सूत्र बन्हबाक विधान कयल गेल जे एहि मेधाक रक्षाक वचन दैत समाज अपन दायित्वक निर्वाह सेहो करय। रक्षाबन्धनक मंत्रमे यैह कहलो जाइत अछि। आइ ई भाव कतहु नञि अछि। मेधाक रक्षाक चिन्ता एतेक गम्भीरताक संग करबाक व्यवस्था तिरोहित भऽ गेल अछि।
                                           बदलैत स्वरूप, झूस होइत भाव
जेना-जेना युग बदलि रहल अछि, तहिना-तहिना राखीक स्वरूप सेहो बदलैत चलि गेल। पहिने एक पातर सूत्रक आगाँ तूरकेँ रंगि ओकर फुदना लगाओल राखी बनै छल। ई एखनो भेटैत अछि, मुदा बहुत तकबापर। जखन एकर ग्राहके नञि छथि तँ सभ तरि भेटत कोना? पहिने पटुआसँ सेहो ई बनाओल जाइ छल। एहि राखीक डोरमे बीच-बीचमे तूर अथवा पटुआकेँ विभिन्न रंगमे रंगि लगाओल रहै छल। धीरे-धीरे पाबनिपर बजार आ प्रदर्शन हाबी होइत गेल। स्पञ्जक राखी बनऽ लागल। दू-तीने रंगक अथवा एके रंगक स्पञ्ज गोल रहै छल आ ओहिपर प्लास्टिक केर फूल, रक्षाबन्धन लिखल किंवा आन कोनो फोटो लागल रहै छल। कतेको गोटे ओहिपर सय-पचासक टाका लगा सेहो पहिरथि। फेर नग आदि राखी आयल। राखीक ई स्वरूप जेना-जेना बदलि रहल अछि तहिना-तहिना एकर पवित्र भाव सेहो झूस होइत जा रहल अछि। स्नेहपर प्रदर्शन आ बजार हाबी भऽ रहल अछि।
                                               पेटी-बाकसमे सेहो रक्षा सूत्र 
रक्षाबन्धनक संग लोक परम्परा सेहो जूटल। जन-सामान्यक मान्यता भऽ गेल जे ई रक्षा-सूत्र अछि आ ई जकरा बान्हल जायत तकर सुरक्षा होयत। एहि भावक आधारपर अपना ओहि ठाम मनुक्खे नञि निर्जीव वस्तु पर्यन्तकेँ रक्षा-सूत्र बन्हबाक परम्परा चलि पड़ल। लोक अपन घरक केबाड़क जिज्जिर, आब हेण्डिल, साइकिल, मोटरसाइकिल, पेटी, बाकस आदिमे रक्षा-सूत्र बान्हऽ लगला। अखनो कतहु-कतहु ई परम्परा चलि रहल अछि, मुदा आब हुकहुकीपर अछि। धीरे-धीरे ई समाप्ति दिस अग्रसर अछि।
                                      स्वेच्छाचारितासँ भखरि रहल महत्व
पछिला किछु दशकसँ भारतीय पाबनि-तिहार मनेबामे स्वेच्छाचारिता निरन्तर बढ़ल जा रहल अछि। दुर्गापूजा हो वा रक्षाबन्धन, अधिकांश पाबनिक संग ई भऽ रहल अछि। कोनो देवी-देवताक मूर्त्ति स्थापित कऽ पूजा कयल जाइत अछि आ शास्त्रीय विधानकेँ कतिया मनमर्जी विसर्जन कयल जाइत अछि। तहिना रक्षाबन्धनक संग सेहो भऽ रहल अछि। कतिपय संस्था श्रावणी पूर्णिमासँ पहिने रक्षाबन्धन मना लैत अछि। तहिना पाबनि बीति जेबाक बादो ओकरा मनेबाक चलनि देखबामे अबैत अछि। मानल जा रहल अछि जे जानि-बूझि कऽ एना कयल जा रहल अछि जाहिसँ भारतीय परम्परा भखरि कऽ महत्वहीन भऽ जाय।
                                            आउ मजगूत करी स्नेह-सूत्र 
रक्षाबन्धनक वर्त्तमान भने इतिहास कथा आ सिनेमाक देन हो, मुदा भाइ-बहिनक पवित्र प्रेमक रूपमे ई प्रतिष्ठित अछि। आउ एहि पाबनिकेँ एहिमे निहित रक्षाक पवित्र सन्देशक संग मनाबी। एखन जेना महिलामे माय-बहिनिक छवि देखबाक प्रवृत्ति समाप्त भऽ रहल अछि आ हुनका सभक संग मानवताकेँ लज्जित करऽवला घटना भऽ रहल छनि, ताहि समयमे एकर प्रासंगिता आरो बढ़ि गेल अछि। आउ पवित्र भावसँ मनाबी रक्षाबन्धन आ स्नेह-सूत्रकेँ करी मजगूत।     

Friday, 16 August 2013

गोनू झा साफ करेलनि चोरसँ पछुअति

 
            गोनू झा साफ करेलनि चोरसँ पछुअति  

                                                - अमलेन्दु शेखर पाठक
गोनू झा द्वारा बेर-बेर पछाड़ि देबाक बादो चोरबा सभ हुनका ओहि ठाम चोरि करबाक प्रयास नञि छोड़ि रहल छल। ओ सभ सदिखन बाट तकैते रहै छल जे कोना गोनू झाक घरमे हाथ सुतारी? बेर-बेर गोनू झा अपन चतुरतासँ ओकरा सभकेँ चारि तँ नहिञे करऽ दै छला, तेहन ने छकान छकबै छला जे बहुत दिन धरि ओ सभ हुनका घर दिस हुलकीयो मारबासँ डेराइ छल, मुदा जहाँ किछु दिन बितै छल आ गोनू झाकेँ दरबारसँ पुरस्कार भेटै छलनि कि चोर सभ फेर सक्रिय भऽ जाइ छल। चोर सभ गोनू झाक घरमे चोरि करबाक गौँ तकैत रहै छल आ अवसर भेटिते लार-चार कऽ दै छल। ओमहर चोर सभकेँ लऽ गोनू झा सदिखन चौचंक रहै छला। जखने चोर सभ हुनका घरमे चोरि केर सूरसार करै छल कि गोनू झाक नजरि पड़िए जाइ छलनि। फेर तँ ओ तेहन ने उपाय धराबथि जे चोर सभ बपहारि काटि पड़ाय। से एक दिन मुन्हारि साँझमे जखन गोनू झा दरबारसँ घुमला तँ हुनकर नजरि अपन घरक पछुअति दिस पड़ि गेलनि। भरि-भरि डाँर भाङ आ जंगल-झाड़ भऽ गेल छलनि। मजूर सभकेँ कतेको बेर तमबेबा लेल अनलनि, मुदा जंगल-झाड़ देखि ओ सभ पड़ा जाय। पछुअतिकेँ देखैत गोनू झा विचारि रहल छला जे कोन मजूरकेँ कहि एकरा साफ करा तीमन-तरकारी लगाओल जाय आ कि भाङक बीच बैसल एकगोट चोरपर हुनक नजरि पड़ि गेलनि आ ओ मुसुकि उठला। आङन एला तँ चारू कात सतर्क नजरि देलनि। कोठली सभ देखि ऐला। एहि बीच दू गोट चोरकेँ अपना कोठलीक धरनिपर चढ़ल सेहो देखि नेने छला। भोजन आदि कऽ सुतबा लेल गेला। गोनू झा अपना पत्नीकेँ कहलनि- ‘हे एगो गुप्त बात कहि देबाक मन होइत अछि, देह-नेहक कोन ठेकान? नञि कहने रहब तँ करोड़ो टाकाक सोना, चानी, हीरा, मोती आदि माटिए तरमे रहि जायत।’ पत्नी बिगड़लथिन- ‘अनेरे आइँबाइँ नञि बाजू, अहाँकेँ किए किछु होयत, मुदैकेँ हेतै...।’
गोनू झा कहलथिन- ‘अच्छा-अच्छा हमरा किछु नञि होयत, मुदा गुप्त बात जानि लेब तँ हर्जे की? अहूँकेँ तँ बूझल रहबाक चाही अपन धन-सम्पत्तिक बारेमे?’
पण्डिताइन कहलथिन- ‘बाजू जे कहबाक अछि।’
गोनू झा कहलथिन- ‘अपना पछुअतिमे जे एते जंगल भऽ गेल अछि से हम किए ने साफ करबै छी से बूझल अछि?’
पत्नी बजली- ‘बूझल रहय वा नञि, जंगलमे कोन सोना-रूपा अछि जे ओकरा जोगा कऽ रखने छी...हमरा दिनोमे ओमहर जेबामे डर होइए जे कतहु साँप-कीड़ा ने बहरा जाय।’
गोनू झा हुनका रोकैत कहलथिन- ‘हीरे-मोती दुआरे ने साफ नञि करबै छी। बरखो पहिने राजा ओहि ठामसँ पचास तमघैल सोना, हीरा, मोती, अशर्फी आदि भेटल छल से हम चुपचाप पछुअतिमे गाड़ि देने रही। एखन अपना घरमे जते सम्पत्ति होयत तकर पचासो गुना बेसी अपना पछुअतिमे गाड़ल अछि। हम एही दुआरे ओकरा साफ नञि करबै छी।...अहूँ ध्यान राखब ने कहियो ओकरा साफ करायब आ ने ककरो लग चर्चे करब, नञि तँ चोर-चुहार सभक कानमे पड़ल तँ हम सभ सुतले रहब आ सभ तमघैल उखड़ि जायत।’
घरमे पैसल चोर सभ गोनू झा आ हुनक पत्नीक बात सुनि रहल छल। ओकरा सभक आँखि चमकि उठलै। सभ एकाँएकी घरसँ बाहर भेल। गोनू झा से देखि लेलनि आ निश्चिन्त भऽ सूति रहला। एमहर चोर सभ अपनामे विचार केलक जे गोनू झा ठीके बरखोसँ पछुअति साफ नञि करबै छथि। जरूर एहि ठाम धन-सम्पत्ति गाड़ल अछि। फेर की छल चोर सभ कोदारि लऽ जूमि गेल आ लागल तामऽ। राति भरि सभ तमैत रहल, मुदा किछु नञि भेटल। भोर होबऽ वला छल। सूर्यक लाली पसरब शुरू भऽ गेल छल। ताबत एकगोट चोरक नजरि पड़ल तँ देखैत अछि जे गोनू झा अपना पछुअतिमे कोनटा लग ठाढ़ मुसुकि रहल छला। चोरकेँ अपना दिस तकैत पाबि गोनू झा बजला- ‘वाह! अहाँ सभ तँ पूरा बारी तामि देलिऐ। सभट जंगल साफ कऽ देलहँु...हे कने सुस्ता लीयऽ तखन आर काज करब...अहा-हा अहाँ सभ तँ पसेने-पसेने भऽ गेल छी...कहाँ गेलऽ हो फेकन भाइ कने हिनका सभकेँ जल पियाबऽ।’
जखने गोनू झा हाक देलनि कि चोरबा सभक पकड़ल जेबाक डरसँ प्राण सुखा गेल आ ओ सभ लंक लऽ कऽ पड़ायल। गोनू झा अपन बुद्धिमत्तासँ घरमे चोरि तँ नहिञे होबऽ देलनि, अपन पछुअति सेहो साफ करबा लेलनि। 

स्वाधीनता समरमे कलम-तरुआरि संग मिथिला

           स्वाधीनता समरमे कलम-तरुआरि संग मिथिला

                                                        - अमलेन्दु शेखर पाठक 
सांसारिक एवं आध्यात्मिक चेतनाक बीच अद्भुत सामञ्जस्य बनेनिहार महाराज विदेह जनकक मिथिला-भूमिक कोखिसँ जतऽ भगवती सीताक प्राकट्य भेल ओतहि अनेकश: विभूति भेला जे विद्या-वैभवक बलपर सम्पूर्ण विश्वमे अपन मातृभूमिक कीर्त्ति-पताका फहरेलनि। अपन विशिष्ट सांस्कृतिक परम्परा लेल बेछप परिचय स्थापित केनिहार मिथिला सदिखन शान्त मनसँ विद्या-व्यवसायमे लागल रहल। शब्द-ब्रह्मक संग शान्ति केर उपासना लेल मैथिल चर्चित रहला अछि। यैह यथार्थो अछि, मुदा एकर अर्थ ई कदापि नञि अछि जे मिथिलावासी डेरबूह रहला अछि। जखन कखनो बेर पड़ल मिथिलाक वीर-सपूत क्रान्ति-कालीक आराधनासँ कहियो डेग पाछाँ नञि केलनि। एहि ठामक तप:पूत आत्मबलिदान लेल प्रस्तुत रहला। हँ, समर-भूमि पर्यन्तमे अपन विवेक आ बुद्धिकेँ संग रखलनि। मिथिला जखन कखनो युद्ध लेल सन्नद्ध भेल अपन मेधोक उपयोग करैत रहल। क्रान्ति-पथपर बढ़ल तँ समवेत भऽ बढ़ल। वीर योद्धा लोकनि तँ मैदानमे अपन वीरताक प्रदर्शन लेल उतरबे केला, साहित्य-साधक लोकनि सेहो पाछाँ नञि रहला। समर-भूमिमे कलम आ तरुआरि एक संग अपन कमाल देखबैत रहल। भारतमाताक परतंत्रताक बेड़ी कटबा लेल सेहो मिथिला जखन समवेत भेल तँ एक दिस जतऽ अपन शोणितसँ राष्टÑ-देवताक चरण पखारबा लेल मैथिलक नम्मा पतियानी लागि गेल ओतहि साहित्यकार बन्धु सेहो अक्षर-अर्घ्य समर्पित केलनि। स्वतंत्रता-संग्रामक महायज्ञमे अपनाकेँ होमि देबा लेल उताहुल असंख्य मैथिल युवा जतऽ चन्द्रशेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी आदिकेँ अपन आदर्श मानि बलिदानीक शृंखलामे जुटि गेला, ओतहि महात्मा गान्धीक अहिंसा आ असहयोग आन्दोलनक संग सेहो सम्पूर्ण समाज जुटि गेल। ओहि समय जेना मिथिलाक घर-घर आन्दोलनीक गढ़ बनि गेल। एक दिस युवा लोकनि रेल लाइन उखाड़बामे जुटला तँ टेलीफोनक तार काटल गेल, सड़क-पुल तोड़ल गेल, कोर्ट-कचहरीमे ताला लगायल गेल। डाकघर लूटल गेल आ अंगरेजी सरकारक अन्य सम्पत्तिकेँ व्यापक क्षति पहुँचायल गेल। एहि क्रममे कतेको ठाम गोली चलल आ सैकड़ो गोटे एहिमे मारल गेला। जखन 1857 केर विद्रोह भेल तँ ओ मिथिलामे देवघरक समीप रोहिणी गामसँ आरम्भ भेल जतऽ 12 जून 1957 केँ ओहि ठामक रेजीमेण्टक तीन सिपाही विद्रोह करैत लेफ्टिनेण्ट सर नारमन लेस्लीक गोली मारि हत्या कऽ देलनि। तीनूकेँ फाँसीक सजाय भेटलनि। एकर बाद भागलपुरक संग मिथिलाक आन-आन क्षेत्रमे विद्रोहक आगि पसरैत गेल आ मिथिलाक सपूत लोकनिक बीच जेना अपन जीवन-धन अर्पित करबाक प्रतिस्पर्द्धा आरम्भ भऽ गेल। एहि क्रममे बड़गामक रामदयाल सिंह, मुधोरापुरक छुट्टो उर्फ झगड़ू आदि फाँसीक फान चुमलनि तँ बड़गामक कदई साही, छोटू साही, कृष्णा साही, दर्शन शाही आदि कालापानीक सजाय पेलनि। एकर अतिरिक्त नत्थू शाही, शोभा शाही, बैजनाथ तिवारी, कित्तू शाही, छत्रधारी शाही तिलकू तिवारी आदि सेहो जहलक सजाय भोगलनि। ई मिथिलाक कोनो एक क्षेत्रक कथा नञि अछि। आन्दोलनीक ई पतियानी नम्मा होइत चलि गेल।
दरभंगाक पं. रामनन्दन मिश्र, डॉ. लक्ष्मण झा, जयनारायण झा विनीत, यदुनन्दन शर्मा, सूरज नारायण सिंह, हरिपुर गामक बलिदानी बालक द्वय शिव आ नारायण, कमलेश्वरी चरण सिन्हा, गोष्टो बनर्जी, दीनानाथ सिंह, जगदीश्वरी प्रसाद ओझा, ब्रजकिशोर प्रसाद, धरनीधर प्रसाद, रामनिहोरा सिंह, कुलानन्द वैदिक, डॉ. डी. एन. झा, गोपी बल्लभ दास, ब्रज बल्लभ दास, ओकील सुरेन्द्र प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, राधिका प्रसाद, राजपति लाल, भरफोड़ीक रक्षा सिंह, नेउरक अवध सिंह आ राज प्रसाद सिंह आदि स्वाधीनता-समरमे अपनाकेँ झोँकि देलनि। स्वाधीनता आन्दोलनमे दरभंगा राज परिवारक अहम भूमिका रहल। राज परिवार आरम्भेसँ स्वाधीनता सेनानीकेँ सहयोग दैत रहला। बेर पड़ल तँ खुजि कऽ सेहो सामने आयल आ तत्कालीन काँग्रेसकेँ अधिवेशन लेल इलाहाबादमे भवन कीनि कऽ समर्पित कऽ देलक। दरभंगाकेँ महात्मा गान्धी, सुभाष चन्द्र बोस आदिक प्रत्यक्ष मार्ग-दर्शन भेटैत रहल जे पाथेय बनल।
नेशनल स्कूल भरलक नव ऊर्जा
स्वतंत्रता आन्दोलनकेँ नेशनल स्कूलक स्थापना नव ऊर्जासँ भरलक। दरभंगामे एकर स्थापना 1920 इ. मे भेल। ई स्थापित भेल छल सरकारी स्कूलकेँ त्यागनिहार छात्र लोकनिकेँ पढ़ेबा लेल, मुदा बादमे ई आन्दोलनीक गढ़ बनि गेल। ई नेपालक पूर्व प्रधानमंत्री मातृका प्रसाद कोइराला आ वी. पी. कोइरालाक संग ओहि समयक प्राय: सभ आन्दोलनीक आश्रयस्थल बनल। ई आपात कालमे समाजक चिन्तो करैत रहल, ओतहि बेर-विपतिमे ठाढ़ो होइत रहल। एहि ठाम 1932 केर 26 जनवरीकेँ राष्टÑीय ध्वज फहरेबाक घटना ककरा रक्तकेँ ओजसँ नञि भरि देत। ओहि दिन भीड़ जमा छल आ राष्टÑीय ध्वज फरायल जा रहल छल। तखने अंगरेजी सिपाही पहुँचि गेल आ कार्यक्रम स्थगित करबा लेल कहलक, मुदा आन्दोलनी नञि मानलनि। लाठी चार्ज भेल, मुदा 12 बरखक छात्र युगेश्वर प्रसाद सहित कतेको आन्दोलनी डटल रहला। एहिमे कतेको गोटे घायल भेल छला। मधुबनीमे चतुरनान दास आ समस्तीपुरक दलसिंहसरायमे वंशीधर मारवाड़ी नेशनल स्कूलक स्थापनाकेँ साकार केलनि। एकर अतिरिक्त हाजीपुर, सीतामढ़ी, बेतिया, मेहसी, भागलपुर, कटिहार, नसरगञ्जमे सेहो नेशनल स्कूल स्थापित भेल आ आन्दोलनक चिनगीकेँ प्रचण्ड ज्वाला बनबैत   रहल।
मधुबनी : जयनगर थानाक घेराव कालमे छपराही गामक लखन यादवक बलिदान भेलनि। डॉ. बैद्यनाथ मिश्र बेनीपट्टी थाना आ डाकघरमे आगि लगेलनि आ एहि क्रममे मुइला। ओतहि भोगेन्द्र झा, रामाकान्त झा, फखरू महतो, गणेशी ठाकुर, अकलू महतो लाइन उखबड़बा काल अंगरेजक गोलीसँ मुइला। एहिमे नथुनी साह गोलीक छर्रासँ घायल भेला। रामलखन मिश्र, बेनीपट्टीक डॉ. बैद्यनाथ झा, ठक्कन महतो आदि
 नेपालक जहल तोड़लक आजाद दस्ता
स्वाधीनता आन्दोलनमे समस्तीपुरक ओकील गिरिवर प्रसाद, सत्यनारायण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, यदुनन्दन सहाय, डॉ. देवकीनन्द झा, डॉ. शालिग्राम मिश्र, रघुनाथ प्रसाद सिंह, सत्यनारायण तिवारी, रामखेलावन भगत, यमुना सिंह, रामनिरीक्षण सिंह, रामदेव सिंह, रमानन्द ब्रह्मचारी, देवनारायण मण्डल, जागेश्वर पूर्वे, अवध बिहारी सिंह, विश्वनाथ सिंह, जागेश्वर महतो, उमानाथ शर्मा, हरिनन्दन ठाकुर प्रसाद शर्मा, महावीर सिंह, सियाशरण सिंह, वशिष्ठ नारायण सिंह, मुनीन्द्र शर्मा, डॉ. रामप्रकाश शर्मा, नन्दलाल शर्मा, विलायत सिंह, यमुना कार्यी, सुनीति देवी, मो. शीश, मुंशी मेहतर, रत्नेश्वरी प्रसाद सिंह, लक्ष्मण सिंह, रामचन्द्र प्रसाद सिंह, रामलखन प्रसाद सिंह, गया प्रसाद सिंह, लक्ष्मीनारायण राय, राम औतार सिंह, कमलनाथ ठाकुर, युगल कुँवर, डॉ. मुक्तेश्वर सिंह उर्फ मुक्खा सहनी, शत्रुघ्न शरण सिंह, महेन्द्र नारायण सिंह, शौकत अली आजाद, डॉ. वी. डी. शर्मा आदि स्वतंत्रता आन्दोलनमे तन-मन-धनसँ लागल रहला। एहि ठाम नन्द किशोर शर्मा निर्भय आ कर्पूरी ठाकुर 1939 सँ पूर्व व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ हेबासँ पहिने राज्य छात्र संघक अधिवेशन करेलनि। निर्भयजीकेँ विरोधमे भाषण करबापर एक बरखक सजाय भेल छलनि। ओमहर छात्र सभ थानापर तिरंगा फहरेलनि। बादमे रामचन्द्र सिंह, एकबाल सिंह, माधव सिंह, उमाकान्त सिंह, जगदीश पोद्दार आ चन्द्र प्रकाश गिरफ्तार भेला। केईएचई स्कूलक छात्र रमाकान्त झा रोसड़ा टीसनपर झण्डा फहरेलनि। सिंघिया थानापर झण्डा फहरेनिहार कुलदीप सिंहकेँ गोली मारि देल गेल। दलसिंहसराय थानापर झण्डा फहरेबा काल गोली चलल जाहिमे कतेको मरला आ घायल भेला। 15 अगस्त 1942 केँ ब्रिटिश सेनासँ भरल ट्रेन मुजफ्फरपुर जा रहल छल, ओहिमेसँ मशीनगनसँ जूलूसपर गोली दागल गेल जाहिमे केईएचई स्कूलक नवम कक्षाक छात्र रामलखन राय शहीद भेला। अगस्त क्रान्ति भर्त्सनापर  एसडीओ जबर्दस्ती छात्र-अभिभावक केर हस्ताक्षर लेलक। केईएचई स्कूल खूजल तँ छात्र सभ ओहि बण्डलकेँ जरेलनि। एहिमे छात्र धनेश्वर साह, शारदानन्द झा, बलभद्र नारायण सिंह, राजेन्द्र नारायण शर्मा आ कृष्ण चन्द्र प्रसाद सिंह राधेजी अभियुक्त बनायल गेला आ केस भेल। एहि ठाम आजाद दस्ता गठित भेल। ई हनुमाननगर (नेपाल) जहल तोड़ि जयप्रकाश नारायण आ डॉ. राममनोहर लोहिया आदिकेँ छोड़ेलक। एहि दस्तामे शारदानन्द झा, वशिष्ठ नारायण सिंह, भोला साह, हरेकृष्ण राय, बलदेव चौधरी, बालेश्वर प्रसाद सिंह, कर्पूरी ठाकुर, रामऔतार शर्मा, रघुनाथ प्रसाद सिंह, राजेन्द्र नारायण शर्मा, जगदीश पोद्दार, रामबुझावन सिंह आदि छला। वशिष्ठ नारायण सिंह दरभंगा जहल फानि बहरेला जाहिमे दरभंगा समाहरणालय केर लिपिक राम सरोवर शर्मा आ कृष्णचन्द्र राधे सहयोगी भेला। हिनका लोकनिक अतिरिक्त राम बुझावन सिंह, बाबूजी पाठक, ठक्कन चौधरी, राजेन्द्र नारायण शर्मा आदि निरन्तर आन्दोलनात्मक गतिविधि चलबैत रहला।
खलबला उठल कोसी आ पवित्र गंगा
भारत राष्टÑकेँ अंगरेजक दासतासँ मुक्त करेबामे गण्डकी, कमला, बलानक संग कोसीक पानि सेहो खौलि उठल। सहरसा, मधेपुरा, सुपौलक संग गंगाक किनारपर बसल मुंगेर आ भागलपुर सेहो अपनाकेँ एहि आन्दोलनमे पूरापूरी समर्पित कऽ देलक। कोसी क्षेत्रक  बाबू रामबहादुर सिंह, पं. छेदी झा, बाबू लक्ष्मी सिंह, जटाशंकर चौधरी, पं. सूयनर््ाारायण झा आदिक नाम स्वर्णाक्षरमे अंकित अछि। एकाढ़ गामक धीरो राय केर मृत्यु भागलपुर जहलमे भेलनि।
मधेपुराक चुल्हाइ यादव भागलपुर जहलमे मुइला। गढ़िया-बलहा गामक कालेश्वर मण्डल सहरसामे गोलीसँ मारल गेला। एही गामक नीरो मण्डल, नूनूलाल मण्डल, पं. बलभद्र मिश्र, रमेश झा, गणेश झा, महादेव मण्डल, शोभाकान्त मिश्र, बनगामक हरिकान्त एवं पुलकित कामति सहरसा टीसनपर अंग्रेजक गोलीसँ मारल गेला। चैनपुरक भोला ठाकुरकेँ सहरसा गोशाला लग गोली मारि देल गेलनि। नरियार गामक केदारनाथ तिवारी, उदाकिशुनगञ्जक बाजा साह, बलुआ बजारक प. राजेन्द्र मिश्र, ललित नारायण मिश्र, गढ़ियाक रमेश झा, पचगछियाक बाबू रामबहादुर सिंह, बनगामक पं. छेदी झा द्विजवर, रानीपट्टी गामक शिवनन्दन प्रसाद मण्डल, परसरमा गामक गंगा प्रसाद सिंह, मधेपुराक मो. कुदरुतुल्ला, बैद्यनाथधर मजुमदार उर्फ खोखाबाबू,  बिहराक रतिलाल मिश्र, सहरसा सुलिन्दाबादक चित्रनारायण शर्मा, परड़ीक सूर्यनारायण झा, सुपौलक कर्णपुर केर चन्द्रकिशोर पाठक, पटोरी पचगछियाक राजेन्द्र लाल दास, जटाशंकर चौधरी, गणतगञ्जक खूबलाल महतो आ हिनक पत्नी लक्ष्मी देवी आदिक अवदानकेँ कहियो नञि बिसरल जा सकैत अछि। विदेशी वस्त्र जरेबामे आ दोकानपर पिकेटिंग केनिहारमे रामफल सिंह, सोनाइ मण्डल, बोतल हजरा, ईश्वर मण्डल, जोहर मण्डल, झण्डा फहरेनिहारमे हंसराज पैकरा, सिताइ सन्त, अशर्फी साह, रामप्रसाद मण्डल, रामेश्वर झा, अशर्फी मेहता, मनोहरपट्टी गामक कामता प्रसाद, भूषण   प्रसाद गुप्ता, भुवनेश्वर प्रसाद वर्मा, लक्ष्मण लाल दास, जनेश्वर ठाकुर, विश्वनाथ प्रसाद सिंह, बैकुण्ठ प्रसाद सिंह, शालिग्राम प्रसाद सिंह, जयबल्लभ सिंह, सियाराम, चतुरानन्द मिश्र, गणेशपुर गामक श्रीकान्त मिश्र, विद्याधर झा, कोरियापट्टीक विश्वनाथ प्रसाद सिंह, बैकुण्ठ प्रसाद सिंह, परसारीक किन्नू यादव, वाजितपुरक उग्रनारायण सिंह, जदियाक भब्बी यादव, बभनगामाक विश्वनाथ झा, सुशासन गामक कमलेश्वरी मण्डल, मुरलीगञ्जक वेणी प्रसाद मण्डल, अमीरमल चम्पा लाल, सोहनलाल बैद्य, गंगापुरक सत्यनारायण मण्डल, मधेपुरा सरोपट्टीक कार्त्तिक प्रसाद सिंह, भेलाहीक सृष्टि नारायण यादव आदि स्वाधीनता सेनानी मातृभूमिकेँ अंगरेजक चाङुरसँ मुक्त करेबामे दिन-राति एक केने रहला। तिलकपुर गामक सियाराम सिंहक नेतृत्वमे सियाराम दल गठित भेल। सोनवर्षामे सियाराम दल आ पुलिसमे संघर्ष भेल। एहिमे सरदार नित्यानन्द सिंह, भागलपुर खरहियाक अर्जुन सिंह, बिहपुर झण्डापुरक फौदी मण्डल, सोनवर्षाक लड्डू शर्मा, कालूचक विसपुरिया कालूचक केर रामावतार झा, सोनवर्षाक सीताराम मण्डल आ खुशरू मण्डल तथा खरिक कठैलाक निर्मल झा मारल गेला। एकर नेतृत्वकर्त्ता पार्थ ब्रह्मचारी, चिन्तामणि मिश्र, रामखेलावन सिंह, रामावतार राय आदि दलमे छला। एहि ठाम परशुराम दल आ महेन्द्र गोपक दल सेहो सक्रिय छल। एकर अतिरिक्त भागलपुरक केशवदास चौधरी, सीतामढ़ीक बाबू नवाब सिंह, यमुना सिंह, पूर्णिञाक लक्ष्मीनारायण सुधांशु, लेफ्टिनेण्ट केदारनाथ चौधरी, रवि रञ्जन बाबू, कन्हैया लाल, कटिहारक सत्यदेव शुक्ल, खगड़ियाक माड़र गामक बलिदानी प्रभु नारायण आ धन्ना-माधव, आदि स्वतंत्रता-संग्राममे जुटल रहला। मुजफ्फरपुर तँ जेना आन्दोलनीक गढ़े छल। नरम बा गरम दुहू दलक ई केन्द्र जकाँ छल। खुदीराम बोस आ प्रफुल्ल चाकी किंग्स फोर्ड केर हत्या लेल ओकरा वाहनपर जखन बम फेकलनि तँ युवक नव उछाहसँ भरि उठला। ओना एहि घटनामे फोर्ड बचि गेल आ दू गोट महिला मारल गेली, तथापि बम काण्ड खुदीरामकेँ युवा-हृदय सम्राट बना देलक। समस्तीपुरक ओइनीमे हुनक पकड़ल जायब आ फाँसीपर चढ़ा देल जायब आन्दोलनीक संकल्पकेँ आरो मजगूत केलक। मुजफ्फरपुरक राय बहादुर द्वारिकानाथ, रामप्रसाद, रामनारायण तिवारी, अयोध्या सिंह, महंथ रामकृष्ण दास, रामप्रीत पाण्डेय, केदार सिंह, ध्वजा बाबू आदि स्वाधीन भारतक सपना साकार करबा लेल कण्टकाकीर्ण पथकेँ अंगीकार केलनि। तत्कालीन मुजफ्फरपुरक नगरपालिका अध्यक्ष खाँ बहादुर महबूब हुसैन आदिक सक्रियता इतिहास रचलक।  
गान्धीजीकेँ ‘महात्मा’ केर उपाधि अर्पित केलक मिथिला
स्वाधीनता समरमे महात्मा गान्धीक अवदानक समक्ष सम्पूर्ण राष्टÑ नतमस्तक अछि। गान्धीजीक सफलतामे मिथिलाक बड़ बेसी योगदान रहल। ओ मिथिलामे अपन आन्दोलनक सूत्रपात मोतिहारीसँ केलनि आ तकर बाद हुनका संग जन समुद्र उमड़ि गेल। गान्धीजी मिथिलामे स्वतंत्रता आन्दोलनक बहि रहल बसातकेँ अन्हर-बिहाड़िमे बदलि देलनि। एकर बाद समग्र मिथिला असहयोग आन्दोलन, नोन सत्याग्रह आदिमे जूटि गेल। हुनक एहि अवदानकेँ मिथिला गम्भीरतासँ लेलक आ हुनका ‘महात्मा’ उपाधिसँ विभूषित केलक। हालेमे मैथिलीमे प्रकाशित गान्धीजीक पोथी ‘मंगल प्रभात’ केर अनुवाद पोथीमे डॉ. रामदेव झा एहि तथ्यकेँ उद्घाटित केलनि अछि। ओ 21 अप्रील 1917 सँ लऽ 24 नवम्बर 1917 केर बीच तत्कालीन प्रसिद्ध पत्रिका ‘मिथिला मिहिर’ मे गान्धीजीक आन्दोलनसँ सम्बन्धित आठ गोट समाचारक शीर्षक केर उल्लेख केलनि अछि जाहिमे गान्धीजीकेँ ‘महात्मा गान्धी’, ‘महात्मा कर्मवीर गान्धी’ कहल गेलनि। डॉ. रामदेव झाक मानब छनि जे गान्धीजीकेँ 21 अप्रील 1917 सँ पूर्व ‘महात्मा गान्धी’ कहल गेल होनि एहन प्रमाण नञि भेटैत अछि जे स्पष्ट करैत अछि जे गान्धीजीकेँ ‘महात्मा’ उपाधि मिथिला अर्पित केलकनि। चम्पारणक भूमि स्वाधीनता आन्दोलनक दृष्टिञे बड़ उर्वर रहल अछि। एहि ठामक राजकुमार शुक्ल, गोरख प्रसाद, रघुनाथ लाल, प्रजापति मिश्र, रामकुमार मिश्र, पवन कुमार मिश्र, खेम्हर राय, रामजी साह, प्यारेलालजी, काली कुमार मिश्र, ध्रुव नारायण त्रिपाठी, कमलनाथ तिवारी, विभूति मिश्र, विपिन बिहारी वर्मा, गणेश राय, राजाजी झा, लक्ष्मी नारायण झा, वंशी राउत, गुलाली, हरेकृष्ण झा, राजा ओझा, पशुपतिनाथ झा आदि आन्दोलनक ज्वालामे अपनाकेँ समर्पित कऽ इतिहास रचलनि।
लेखनी उगिलैत रहल आगि
स्वतंत्रता आन्दोलनमे साहित्यकार लोकनिक लेखनी आगि उगिलैत रहल। आधुनिक मैथिली साहित्यक जनक कवीश्वर चन्दा झा ‘समय केहन भेल घोर हे शिव’, ‘न्यायक भवन कचहरी नाम, सभ अन्याय भरल तेहि ठाम’, साहित्यरत्नाकर मुंसी रघुनन्दन दास अपन कविता ‘देश दशा’, यदुनाथ झा यदुवर ‘भारत सुषमा’, ‘कामना’, पं. छेदी झा मधुप ‘चरखा चौमासा’, ‘जयति स्वदेश’, कविवर सीतराम झा ‘स्वदेश महिमा’ आदिसँ समाजकेँ स्वतंत्रता लेल चलि रहल आन्दोलनसँ जुटबाक प्रेरणा देबाक संग एहिमे लागल सेनानीक उत्साहवर्द्धन करैत रहला। ओमहर पं. रामनन्दन मिश्र मगन आश्रमसँ पत्रिका प्रकाशित कऽ अक्षर-आन्दोलन चलबैत रहला। कतेको जिलासँ विद्रोही पत्रिका प्रकाशित होइत रहल।
मिथिलाक स्वतंत्रता आन्दोलनक ई झलकी मात्र अछि। मिथिलाक दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पूर्णिञा, कटिहार, खगड़िया, किशनगञ्ज, फारविसगञ्ज, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, भागलपुर, मुंगेर, देवघर, दुमका, जमूइ   सहित विभिन्न विभिन्न जिलामे असंख्य लोक बलिदानी भेला जिनका सभकेँ एहि लघु आलेखमे सहेजब असम्भव अछि। आइ हमरा लोकनि 67म स्वतंत्रता दिवस मना रहल छी। एहि सभ आत्मबलिदानी वीर-सपूतकेँ शत-शत नमन करैत एक बेर एहू दिस विचार आवश्यक जे की आइ देशक जे परिस्थिति अछि ताही लेल ई सभ अपनाकेँ होमि देलनि? की अंगरेजक दासतासँ मुक्त भारत एहि सभ रणवीरक आकांक्षा-अभिलाषाक पूर्त्ति कऽ रहल अछि? की हमरा लोकनि अपन अवदानसँ हिनका सभक तर्पण करब?

Sunday, 4 August 2013

गोनू झा पुरस्कारमे मङलनि सोँटा


         गोनू झा पुरस्कारमे मङलनि सोँटा 
                                               - अमलेन्दु शेखर पाठक 

गोनू झाक बुद्धि आ एहि बलपर महराजक संग हुनक निकटता कतेको दरबारीकेँ खटकै छलनि। ओ सभ सदिखन ओहि अवसरक प्रतीक्षा करैत रहै छला जे गोनू झाकेँ पछाड़ल जाय, मुदा से सम्भवे नञि होइ छल। उन्टे यैह सभ पछड़ि जाइ छला। ओ सभ सदिखन बाटे तकैत रहै छल। संयोगसँ एक बेर एकगोट दरबारीकेँ अवसर लागि गेलै। भेलै ई जे दरबारमे एकगोट पण्डित शास्त्रार्थ लेल एला। महाराज कहलनि जे पण्डितकेँ जे क्यौ हरा देत तिनका पुरस्कार स्वरूप ओ सभ भेटतनि जे ओ मङता। अगिला दिन शास्त्रार्थक समय तय भेल। दोसर दिन निश्चित समयपर दरबारी आ पण्डित सभ दरबारमे पहुँचि गेला, मुदा संयोगसँ गोनू झाकेँ पूजा-पाठमे अबेर भऽ गेलनि। ओ धड़फड़ायल पहुँचला, मुदा ताबत द्वारपाल दरबारमे प्रवेशक करबाक द्वार बन्न कऽ देने छल। गोनू झा ओकरा द्वार खोलबा लेल कहलनि तँ ओ महाराजक बिगड़बाक बात कहि मना कऽ देलक। गोनू झा जनै छला जे ईहो द्वारपाल आन दरबारी जकाँ हिनकासँ ईर्ष्या करै छनि आ लोभी सेहो अछि। मने मन ओकरा छकेबाक निर्णय लऽ गोनू झा कहलथिन जे जँ द्वारपाल द्वार खोलि देत तँ शास्त्रार्थमे विजयी रहबापर जे किछु पुरस्कारमे भेटतनि से ओकरा दऽ देथिन। द्वारपाल हलसि कऽ खोलि देलक आ गोनू झा दरबारमे पहुँचला। शास्त्रार्थमे गोनू झा ओहि पण्डितकेँ अपन बुद्धि-ज्ञानसँ पछाड़ि देलनि। महाराज प्रसन्न भऽ गोनू झाकेँ सोना-चानी-हीरा आदि पुरस्कारमे देबाक घोषणा केलनि तँ गोनू झा कहलनि- महाराज अपने कहने रही जे शास्त्रार्थमे विजयी रहनिहारकेँ वैह पुरस्कारमे देबनि जे ओ मङता। महाराज कहलथिन- माङू की मङै छी। तखन गोनू झा पुरस्कारमे सोँटा मङलनि आ कहलनि जे ओहिसँ हुनका पीटल जाय। महाराज सहित सभ दरबारी आश्चर्यचकित रहि गेला। महाराज हुनका कतबो कहलथिन, मुदा गोनू झा अपन निर्णयसँ पलटबा लेल तैयार नञि भेला। ओ महाराजकेँ इशारा सेहो कऽ देलथिन जाहिसँ महाराज बुझि गेला जे फेर गोनू झा ककरो मूर्ख बनबऽ चाहै छथि, तेँ ओ एकर आदेश दऽ देलथिन। सोँटा आनल गेल। एक गोटे सोँटा लऽ जखने गोनू झा दिस बढ़ला कि ओ द्वारपालकेँ आवाज देलनि- कहाँ छी यौ आजुक पुरस्कार लीयऽ। द्वारपाल एहि लोभमे ओही ठाम छल जे पुरस्कारमे भेटल सभटा स्वर्णाभूषण आइ ओकरे हाथ लागत। गोनू झाक बुधियारी देखि डरे सिटपिटा गेल। तखन गोनू झा सभटा खेरहा महाराजकेँ कहलनि। महाराजक संग सभ ठहाका मारि हँसि पड़ल। गोनू झाक बुद्धिमत्तासँ प्रसन्न भऽ महाराज हुनका पहिनोसँ बेसी पुरस्कार दऽ बिदा केलनि आ द्वारपालकेँ कारागारमे रखबाक आदेश देलनि, मुदा गोनू झा महाराजसँ आग्रह कऽ ओकरा बचा लेलनि। ओ गोनू झाक पैर पकड़ि माफी मङलक आ फेर कहियो गोनू झाक संग एना नञि करबा लेल कान पकड़लक। 

मधुश्रावणी : दसम दिनक कथा



            मधुश्रावणी : दसम दिनक कथा 

                                    प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                          कार्त्तिकेयक जन्म
एक समय महादेव गौरीक संग भोग केर इच्छासँ निर्जन वनमे गेलाह। ओतऽ ओ दुनू गोटे सुगन्धित झोँझमे एक भऽ भोग करऽ लगला। एहिमे ओ ततेक लीन भऽ गेला जे हुनका सभ किछु बिसरा गेलनि। गौरीक संग एकाकार होइत-होइत बहुत दिन बीति गेल। देवता लोकनिकेँ एहिसँ चिन्ता होबऽ लगलनि। ओ लोकनि ब्रह्मा ओतऽ पहुँचला आ महादेव जाहि रूपेँ गौरीक संग भोगमे लीन छला से कहि सुनेलनि आ बजला जे एहिसँ जे सन्तान हेतनि से केहन हेतनि। ब्रह्मा कहलनि- ‘अहाँ लोकनि एहि लेल चिन्ता जुनि करू। सभ कल्याणे होयत, मुदा एतबा अवश्य ध्यान रखैत जाउ जे जँ गौरीक पेटसँ सन्तान होयत तँ से समस्त संसारक नाश कऽ देत। तेँ हेतु अहाँ लोकनि महादेवकेँ भोगसँ निवृत्त करबाक उपाय करै जाउ।’ सभ देवता वनमे जा कऽ हल्ला करऽ लगला। हल्ला करबासँ महादेवक ध्यान टूटलनि आ भोगसँ निवृत्त भेला। महादेव भोगसँ उठला तँ हुनकर अंश पृथ्वीपर खसि पड़लनि। गौरीकेँ एहिसँ क्रोध भेलनि। ओ सभ देवताकेँ श्राप देलनि जे आइ सँ कोनो देवताके ँ भोगसँ बच्चा नञि हेतनि। महादेवक अंशके ँ पृथ्वी सहन नञि कऽ सकली। ओ अंश आगिमे फेकि देलनि। आगि सेहो भारकेँ नञि सहि सकला। ओ ओकरा सरपत वनमे फेकि देलनि। सरपतपर जा कऽ ओ अंश छओ मुँहवला एकटा बच्चा भऽ गेल। ओहि वाटे कृत्तिका सभ जाइ छली। ओ सभ कनैत बच्चाकेँ उठा लेलक। अपन-अपन दूध पिआय ओहि बच्चाकेँ ओ सभ पोसलक। पैघ हेबापर बच्चाकेँ सभ तरहक शिक्षा देलक। बच्चाकेँ पोसनिहारि कृत्तिका सभ छली, तेँ हेतु ओहि बच्चाक नाम कार्त्तिकेय पड़ल। गणेशजीक जन्मक बाद जखन गौरी-शंकरकेँ कार्त्तिकेयक जन्मक पता लगलनि तँ हुनका बजा लेलखिन। देवता लोकनि कार्त्तिकेयक अभिषेक केलनि आ हुनका अपन सेनापति बनेलनि। कार्त्तिकेय ताड़कासुरकेँ मारलनि आ इन्द्रके ँ हुनक राज्य घुरा कऽ देलनि। हुनकर विवाह साठिसँ भेल।
                                                                 गणेशक जन्म
देवता लोकनि द्वारा प्रथम भोगमे बाधा हेबाक कारणेँ गौरी चिड़चिड़ाहि भऽ गेली। ओ सतत रुष्ट रहै छली। कार्तिकेयक जन्म ताबत भऽ गेल छलनि, मुदा हुनका लोकनिके ँ एकर खबरि नञि छलनि। महादेव गौरीके ँ प्रसन्न करबा लेल बहुत चेष्टा केलनि, मुदा ओ प्रसन्न नञि भेली। महादेवकेँ एहि लेल बड़ चिन्ता भेलनि। एक दिन ओ गौरीसँ पुछलनि- ‘अहाँ एना किए करै छी? अहाँ कोना प्रसन्न रहब से हमरा स्पष्ट कहू?’
गौरी कहलनि- ‘अहाँ अन्तर्यामी छी। अहाँ सभक मनक बात बूझि जाइ छियै तखन हमर मनक बात अहाँ नञि बुझै  छी से हमरा कोना विश्वास होयत। मूर्ख पतिके ँ स्त्री सभ बात कहै छै, मुदा हे स्वामी! अहाँ तँ अन्तर्यामी छी, हम अहाँकेँ कहब तखन अहाँ बुझबै? जँ अपने हमरा पूछल अछि तँ हम अपनेक आज्ञाकेँ कोना नञि मानब। सुनू-स्त्रीगणक लेल संसारमे सभसँ पैघ सुख नीक पुरुखक संग भोग करब थिक। ओहि भोगमे जँ कोनो प्रकारक बाधा होइ छै तँ एहिसँ बढ़ि कऽ स्त्री जातिक लेल कोनो दुख नञि होइ छै। एहि दुखसँ स्त्री दिनानुदिन खिन्न आ झक्खी स्वभावक भऽ जाइत अछि। आब अपनहि सोचू जे हमरा केहन भारी दु:ख अछि। एक तँ भोगमे विघ्न, दोसर अपनेक अंश पृथ्वीपर खसि पड़ल आ सभसँ पैघ दु:ख तँ ई जे एखन धरि नि:सन्तान छी। जकर पति स्वयं त्रिलोकीनाथ तकरा बेटा नञि? जाहि स्त्रीकेँ बेटा नञि तकर जीवन व्यर्थ थिक। तपस्या, योग, दान इत्यादि नीक कर्म आन जन्ममे काज दै छै,मुदा नीक बेटा इहलोक आ परलोक सभठाम सुख दै छै। हे प्राणनाथ! अहाँ सर्वोपरि सर्वज्ञ छी। हम आब कोन उपाय करू, कृपया अपने हमरा कहू।’
पार्वतीक बात सुनि महादेव कहलनि- ‘हे प्रिये! निराश नञि होउ। सभ बातक उपाय छै। माघ सुदि त्रयोदशीसँ सुपुष्य नामक विष्णुक व्रत आरम्भ होइ छनि आ से भरि साल चलैत रहै छै। एहि व्रतमे बड़ खर्च आ कष्ट होइ छै,मुदा तुरन्त फल देनिहार एहन दोसर कोनो व्रत नञि अछि। अहाँ चिन्ता नञि करू। हम सभ प्रबन्ध कऽ देब। कोनो वस्तुक असुविधा नञि होयत।’
गौरी प्रसन्न भऽ अगिला माघसँ सुपुष्यक व्रत आरम्भ कऽ सविधि समाप्त केलनि। व्रत समाप्त कऽ गौरी महादेवक संग   कैलाशक एक सुन्दर निर्जन स्थानमे सुखविलास करऽ लगली। जखन महादेवक अंश खसबाक समय भेलनि तखन भगवान विष्णु एक बूढ़ तपस्वी ब्राह्मणक रूपमे ओतऽ गेला आ हाक लगेलनि- ‘परम पिता महादेव आ जगन्माता गौरी, अहाँ लोकनि कतऽ छी? हम भूखे मरि रहल छी। किछु खुआउ आ हमर प्राणक रक्षा करू। भूखल ब्राह्मणक हाक सुनि दुनू गोटे धड़फड़ा कऽ उठि दौड़ला। एहि बीच महादेवक अंश पलंगपर खसि पड़लनि। गौरी-महादेव, ब्राह्मणक आदर सत्कारमे लागि गेला। हुनका पूछि-पूछि कऽ भोजन करबऽ लगला। एकाएक ब्राह्मण देवता अन्तर्ध्यान भऽ गेला। ओहि समयमे आकाशवाणी भेल- ‘अहाँक व्रतक फल पलंगपर खेला रहल अछि। जाउ, पुत्रकेँ देखि जीवन सफल करू।’  आकाशवाणी सुनि गौरी दौड़ली। देखै छथि एक सुन्दर बच्चा पलंगपर खेला रहल अछि आ अपन अउँठा चूसि रहल अछि। दुनू गोटेकेँ असीम आनन्द भेलनि। कैलाशपर उत्सव मनाओल गेल। देवता लोकनि आबि बच्चाकेँ आशीष देलनि। हिमालय सेहो सपरिवार एला। बच्चाक नाम गणेश राखल गेल। एहि उत्सवमे शनि महाराज सेहो आयल छला। गौरीक आग्रह करबापर ओ बच्चाकेँ अछोपे देखलनि। लगले गणेशक गरदनि कटि गेलनि। भगवान विष्णु तुरन्त एक विशिष्ट हाथीक गरदनि काटि गणेशक धड़मे जोड़ि देलनि आ अमृत छीटि हुनका जिएलनि। ओहि दिनसँ गणेशक मुँह हाथीक मुँह सन छनि। एहि उत्सवमे गौरी आ महादेवकेँ देवता लोकनिसँ पता लगलनि जे हुनक प्रथम भोगक फलस्वरूप कार्तिकेय केर जन्म भऽ गेल छनि। ओ कृत्तिका लोकनिक संरक्षणमे छथि। गणेशक विवाह दक्ष प्रजापतिक बेटी पुष्टिसँ भेलनि।
                                                     गौरीक (नाग) दन्त कथा
हिमालयकेँ चारिम बेटी बड़ गोरि भेलथिन। तेँ हुनकर नाम गौरी पड़लनि। गौरी जखन विवाह योग्य भेलथिन तँ मनाइन हिमालयकेँ कहऽ लगलथिन - ‘अपने बैसल छी। कन्यादानक कोनो व्यवस्था नञि करै छी। कोनो बुढ़बा अबैत अछि आ बेटीके ँ लऽ जाइत अछि। ई नीक बात नञि थिक। कोनो व्यक्तिकेँ पठा कऽ नीक वर तकबाउ। जाहि तरहेँ नीक लोक सभ कन्यादान करैत अछि एहि बेर तहिना कन्यादान करब।’
हिमालय सोचऽ लागला जे एहन के लोक छथि जे सभ ठाम जाइ छथि। सभहक गुण-दोषकेँ जनै छथि। एकाएक हुनका नारद मुनिक स्मरण भेलनि। ओ नारद मुनिकेँ वर तकबाक भार देलनि आ विवाहक ओरियान करऽ लगला। नारद मुनि पुन: ओहि बुढ़बा महादेवकेँ वर तकलनि। खूब साजि वर-बरियाती आयल। दाइ-माइ सभ वर-बरियाती देखऽ गेली। देखै छथि जे वरक आँखिमे काँची-पीची लागल आ भरि देह साँप लटकल छनि। बरयितीमे क्यौ कनाह तँ क्यौ खोँड़, क्यौ नाङर तँ क्यौ लुल्ह। स्त्रीगण सभ नारद मुनिकेँ गारि देबऽ लगली आ वर-बरियातीके ँ घुमाबऽ लगली। जखन गौरी ई बात बुझलनि तँ ओ मने-मन महादेवक प्रार्थना केलनि आ नीक रूप धारण करबा लेल गोहरेलनि। महादेव सैह केलनि। तुरन्त सभ साँप बिला गेल। अपने सुन्दर पीत पटम्बर पहिरने शंकर रूप भऽ गेला। हुनकर एहन सुन्दर रूप देखि सभ क्यौ चकित भऽ गेल। शुभ-शुभ कऽ विवाह सम्पन्न भेल। मनाइन खुशीसँ बेटी, जमायकेँ बिदा केलनि। महादेव गौरी संग खुशीसँ रहऽ लगला।
                                                               बिदाइ केर भार
बेटी जमायकेँ बिदा कऽ मैना किछु दिनक बाद बिदाइ केर भार पठेलनि। दही, केरा, खाजा, लड्डू, चूड़ा, ठकुआ, मालपुआ इत्यादि। महादेवकेँ एतेक वस्तु रखबाक ने जगहे छलनि ने घरमे खेनिहारे छलनि। सभके ँ बजा कऽ खुएलनि आ बैन सेहो बँटलनि, मुदा वस्तु सभ सधबे नञि करनि। भारसँ घर-आङन गन्हाय लगलनि। भारक वस्तु कोना सधत तकर उपाय सोचऽ लगला। एक गोटे कहलकनि जे जँ भड़कनि छुलाहि धुरखुर धऽ ठाढ़ि हेती तँ भण्डार सधि सकैत अछि। खोज पुछारि कऽ एकटा भड़कनि छुलाहि ताकल गेली। ओकरा धुरखुर सटा ठाढ़ कयल गेल तखन भारक वस्तु सभ सधल।
                                                            गौरीक ननदि
गौरी महादेवसँ एक दिन कहलनि जे सभक ननदि अबै छै, हमरो सेहन्ता होइत अछि जे ननदि अबितथि। ताहिपर महादेव कहलनि- ‘अहाँ ननदि केर भार सहि सकब?’ तखन गौरी कहलनि- ‘एतेक लोक कोना ननदिक भार सहैत अछि। हम किए ने सहि सकब।’ महादेव तुरन्त अपन बहिन आशाबरी देवीकेँ बजबेलनि। आशाबारीक पैरमे बेमाय फाटल छलनि। ओ हँसी-ठट्ठामे गौरीकेँ ओहि बेमायमे नुका रखलनि। ओही बीच महादेव आङन एला, गौरीकेँ तकलनि, मुदा गौरी नञि भेटथिन। गौरी बेमायक भीतरमे कनै छली। महादेव अपन बहिन आशाबरी देवीसँ पुछलनि- ‘अहाँक भाउज कतऽ छथि?’ ओ कहलनि- ‘हम नञि देखलियनि अछि।’ महादेव परम चिन्तित भेला। आशाबारी अपन पैर जोरसँ झमारलनि, गौरी भट दऽ खसली। दुनू गोटे भभा कऽ हँसऽ लगला।
एक दिन महादेव बहुत रास माछ अनलनि। गौरी विन्याससँ माछ बनेलनि। ननदि आशाबरीकेँ कहलनि जे अहाँ धी-सुआसिन छी, पहिने अहाँ खा लीयऽ तखन हम सभ खायब। ओ माछ खाय लगली। गौरी खण्डक-खण्ड माछ हुनका देने जाथिन आ ओ टपाटप खेने जाथि। एहि तरहेँ आशाबरी देवी सभटा माछ खा गेली। बेचारी गौरीके ँ काँटो कनखुर नञि प्राप्त भेलनि। आब गौरी अकछा कऽ महादेवसँ कहलनि- ‘आब हिनका बिदा कऽ दियौन। एहन ननदिसँ हम बाज एलहुँ।’
 महादेव हँसऽ लगला आ कहलनि- ‘हम पहिनहि मना करै छलहुँ जे अहाँ ननदिक भार नञि सहि सकब, मुदा अहाँ जिद्द कऽ देलहुँ। एतबे दिनमे तंग भऽ गेलहुँ? किछु दिन आरो रखियौन तखन सभ सेहन्ता पूरा जायत।’
गौरी नेहोरा करऽ लगली- ‘हम गोड़ लगै छी। जल्दी हिनका बिदा कऽ दियौन नञि तँ आब हमरो खा जेती।’ महादेव बुझा-सुझा कऽ अपन बहिन आशाबरी देवीकेँ बिदा केलनि।
                                                                    गौरीक भागिन
महादेवसँ पुन: गौरी एक दिन कहलनि- ‘हे नाथ! सभक भागिन अबै जाइ छथि आ मामीसँ हँसी-खेल करै छथि। हमरो तकर बड़ सेहन्ता होइत अछि।’
महादेव बिहुँसैत कहलनि- ‘ननदिक सेहन्ता तँ नीक जकाँ पूरि गेल। आब भागिनक सेहन्ता सेहो पूरि जाएत, मुदा हमरा बादमे ओलहन नञि देब।’
गौरी गंगाजल भरऽ गेली। खूब जोरसँ पुरिबा-पछबा बहऽ लागल। हुनका अपन कपड़ाक सम्हार नञि रहलनि। कतबो सम्हारथि तैओ आँचर उधिया जाइन। गौरी लाजे कठौत होबऽ लगली। ओ महादेवसँ कहलनि- ‘देखू तँ हमरा ई बसात आब बेनग्न कऽ देत।’
महादेव कहलनि- ‘ई बसात पुरिबा-पछबा अहाँक भागिन छथि। ई लोकनि अहाँक सेहान्ता पुरा रहल छथि। दुनू गोटे मिलि कऽ अहाँसँ हँसी-ठठ्ठा आ धूर्तता कऽ रहल छथि।’
हँसि कऽ गौरी कहलनि- ‘एह! जहिना अहाँक पार क्यौ नञि पाबि सकैत अछि तहिना सर-सम्बन्धी आ बहिन-भागिनक पार सेहो क्यौ नञि पाओत। आबो अपन भागिनकें हटाउ।’ महादेवक इशारासँ बसात रुकि गेल।
                                                                 गौरी छिनारि
एक समयमे महादेवसँगौरी कहलनि- ‘हे महादेव! अहाँ त्रिलोकीनाथ छी, अहाँ चोरनी आ छिनारिकेँ कोनो चेन्ह किए ने दै छिऐ? अहाँ तँ सभ किछु कऽ सकै छी।’
महादेव कहलनि- ‘हम अहाँक बात मानल, मुदा ककरा कोन चेन्ह देल जाय से अहीँ कहू।’
गौरी कहलनि- ‘छिनारिकेँ सिंघ आ चोरनीकेँ नाङरि दियौ।’
एक दिन गौरीसँ महादेव कहलनि- ‘जे आइ हमरा माछ खेबाक इच्छा होइत अछि। अहाँ माछ खुआउ।’
गौरी माछ लाबऽ गेली। मलहटोलीमे माछ नञि भेटलनि तँ ओ धारक कात बिदा भेली। ओतऽ महादेव स्वयं मछवारक रूपमे माछ मारैत रहथि। गौरी मछवारसँ कहलनि- ‘हौ मछवार! माछ छऽ? की भाव देबऽ?’
मछबार कहलक- ‘आइ हमरा बेचक नञि अछि। जँ अहाँकेँ माछ लेबाक बड़ खगता अछि तँ हमर मनक बात पूरा कऽ दिय, हम मँगनियेमे माछ दऽ देब।’ ओ अनुचित बात कहलनि। गौरी असमंजसमे पड़ि गेलीह। माछ कतहु नञि भेटलनि आ महादेवकेँ आइये माछ खयबाक इच्छा छलनि। ओ हुनक इच्छा पुरेबाक प्रयासमे छलीह। एहि बीच गौरीकेँ माथपर सिंघ उगि गेलनि। ओकरा कतबो झाँपथि ओ बढ़ले जाइन। महादेव हँसैत बजलाह- ‘आइ तँ अहाँ देखारि भऽ गेलहुँ।’ गौरी लजा गेलीह। ओ कहलनि, ‘हे महादेव! अहाँक पार के पाबि सकैत अछि। जे जे हमरासँ कराबी।’
                                                                गौरी चोरनी
एक दिन महादेव हड़बड़ायल एला आ गौरीसँ कहलनि- ‘हमरा जल्दीसँ भोजन कराउ, बहुत आवश्यक कार्य अछि।’ ओही समयमे गौरीकेँ दीर्घशंका लागि गेलनि। कतबो रोकलनि, मुदा नञि रुकलनि। ओ शीघ्र ओहि शंकासँ निवृत्त भऽ ढाकनसँ झाँपि देलनि। महादेव झाँपल वस्तुकेँ देखि कऽ गौरीसँ पूछलनि- ‘चोरा कऽ ई की रखने छी?’
गौरी लाजे कठौत भऽ गेली। ओ की कहितथिन किछु नञि फुराइन। गौरीकेँ एहि बीच बड़ पैघ नाङरि लटकि गेलनि। अन्तमे ओ तंग भऽ गेली आ अन्तमे ओ महादेवकेँ कतेक उचिती-मिनती केलनि- ‘हे महादेव! आब अपन भाभट समेटू। हम जे किछु अहाँके ँ कहै छी से हमरेपर बजारि दैत छी।’

मधुश्रावणी : नवम दिनक कथा

              मधुश्रावणी : नवम दिनक कथा

                                     प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                            मैनाक मोह भंग
गौरीक वर महादेवकेँ देखि मेना अचेत भऽ गेलली। लोक सभ कहुना हुनका होशमे अनलनि। होशमे एबापर ओ नारद आ गौरीकेँ फञ्झति करऽ लगली। नारदसँ ओ कहलनि- ‘नारद अहाँ महा ठक छी। अहाँ पहिने कहने रही जे महादेव गौरीकेँ चाहै छथि। फेर कहलहुँ जे गौरी हुनकर सेवा करथु आ कठिन तपस्या करथु तखन महादेवक संग हुनकर विवाह हेतनि। एहिमे जँ हमर बेटीक अपमान भेल से संसार जनलक। हम कतहु मुँह दखेबाक योग्य नञि रहलहुँ। हम कतऽ जाउ, की करी किछु नञि फुरैत अछि। हम जिबिते मरि गेलहुँ। हमर घर चौपट भऽ गेल। अनकर की भेलै। हमर मनक मनोरथ मनमे रहि गेल। कहाँ गेला ओ सप्तर्षि आ ओ स्त्री। एखन जँ ओ लोकनि भेटि होइतथि तँ हुनका सभक दाढ़ी-मोछ नोचि लितहुँ। ओ स्त्री लोकनि तँ आरो ठक्किन बहरायल।’
गौरीसँ कहलनि- ‘हम अनका की कहियै, हमर अपन घर बिगड़ल अछि। सभ नाच तँ हमर बेटीक कारण भेल। ओ तँ सोना बेचि माटि किनलक आ सूर्यक प्रकाश छोड़ि भगजोगनीक इजोतमे रहऽ लागल। एहन सुन्दर शक्तिशाली देवता सभकेँ छोड़ि महादेवक तपस्या केलक। गे गौरी तोरा आ तोहर तपस्याकेँ धिक्कार छौ। घर आ सौँसे नगरकेँ डाहि दे। अपने बिष खा कऽ किए ने मरि गेलेँ। कहाँ गेल ई छौँड़ी आ, आइ तोहर गर्दनि काटि दियौ।’
ई सभ कहि मैना कतहु चलि गेली। हिमालय कतबो कहलथिन ओ किछु नञि उत्तर देथि। ब्रह्मा सभ बात बूझि मेनाकेँ बुझाबऽ एला। ओ मैना सँ कहलनि- ‘महादेव सभ देवतासँ पैघ छथि। ओ परमेश्वर छथि। वैह संसारक पालन आ संहार करै छथि। अहाँ हुनका एखन धरि नञि चिन्हलियनि अछि तेँ बताहि जकाँ करै छी।’
मैना तुरन्त उत्तर देलथिन- ‘आर जे कहब से कहू, मुदा ई जुनि कहू जे महादेवक संग गौरीक विवाह कऽ दियनु। अहाँ लोकनि गौरीक सुन्दरताकेँ बर्बाद नञि करियनु। जँ मन होइत अछि तँ हुनका जानसँ मारि दियनु।’
दसो दिक्पाल सूर्य, अग्नि, यम, नैर्ऋति, वरुण, ईशान, ब्रह्मा आ शेषनाग आदि मिलि कऽ मैनाकेँ बुझेलनि, तैयो मैना एके ठाम कहि देलथिन- ‘अहाँ लोकनि किछु कहब मुदा हम गौरीक विवाह महादेवक संग ओहि कुरूपक संग नञि होमऽ देब।’
सप्तर्षि लोकनि वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र आ भारद्वाज सेहो मैनाकेँ बुझेलखिन- ‘हमरा लोकनि कहियो कोनो अनुचित कार्यमे नञि पड़ै छी। हमरा लोकनि उचित बूझि एहि विवाहमे घटक भेलहुँ। स्वयं त्रिलोकीनाथ अहाँक घरपर आयल छथि। सभकेँ हिनकर दर्शन दुर्लभ होइ छै। हिनकासँ बढ़ि कऽ कन्यादानक पात्र दोसर एहि संसारमे क्यौ नञि अछि।’ मैना हुनको लोकनिक बात नञि मानलनि। अपन बेटीकेँ तरुआरिसँ काटि देबा लेल तैयार भेली, मुदा महादेवसँ विवाह करबा लेल तैयार नञि भेली। तखन हिमालय स्वयं मैनाकेँ बुझाबऽ एला आ कहलनि- ‘अहाँ एना किए करैत छी? द्वारिपर के सभ आयल छथि से नञि देखै छी। एना बताहि जकाँ करै छी। हम महादेवके चिन्है छियनि ओ त्रिलोकीनाथ छथि। ओ सभ किछु कऽ सकै छथि। तेँ हेतु अपन जिद्द छोड़ि विवाह सम्पन्न होमऽ दियौ।’
मैना उत्तर देलनि- ‘हमर निश्चय अटल अछि। हम महादेवक संग गौरीक विवाह नञि करब। अहाँ जँ बेटीसँ निश्चिन्त होमऽ चाहै छी तँ ओकरा गरदनिमे पाथर बान्हि कऽ कतहु डुबा दियौ।’
आब गौरी मायकेँ बुझाबऽ लेल गेली आ कहलनि- ‘माय! अहाँक मति एना खराब किए भऽ गेल अछि? अहाँ सभदिन धर्म-कर्मपर विश्वास करैत आयल छी। अहाँ महादेवके ँ एते छोट किए बुझै छियनि? ई संसारक पालनकर्त्ता थिका। सभक कल्याण यैह करै छथि। ई सभ देवताक देव महादेव थिका। देखियनु हिनका संग सभ देवता हिनकर सेवक बनि आयल छथि। अहाँ उठू। होश करू आ महादेवक संग हमरा दान कऽ सुखी होउ। जँ अहाँ ई काज नञि करब तँ हम आन कोनो देवतासँ विवाह नञि करब। भरि जन्म कुमारि रहि महादेवक तपस्या करैत रहि जायब। हम हुनका मन-वचन-कर्मसँ वर बना लेने छियनि।
मैना गौरीक ढिठगरि बात सुनि अवाक रहि गेली। ओ क्रोधे थर-थर कपैत गौरीकेँ पकड़ि मारऽ लगली। ई देखि नारद मुनि दौड़ि कऽ गौरीकेँ छोड़ेलनि। विष्णु भगवान सेहो मैनाकेँ बहुत बुझेलनि, मुदा ओ टससँ मस नञि भेली। तखन महादेवकेँ नारद कहलनि- ‘हे भोलानाथ भक्त वत्सल, आब अपन भाभट समेटू आ सुन्दर स्वरूप बनाऽ गौरीकेँ देल वरदानके ँ पूरा कयल जाय।’
भोलानाथ अपन रूप बदलि देलनि। नारद मैनाकेँ जा कऽ कहलनि- ‘आब वरकेँ जा कऽ देखू ओ केहन छथि।’
मैना महादेवकेँ देखि हुनका देखिते रहि गेली। सूर्य सन चमकैत सुन्दर आँखि, मोती-माणिकक गहना पहिरने बड़ सुन्दर लगै छला। सूर्य हुनका छत्र ओढ़ेने, चन्द्रमा चामर डोलबैत, आठो सिद्धि नचैत, गङ्गा-यमुना पाछूमे चामर धेने। ब्राह्मा, विष्णु, इन्द्र आ ऋषि-मुनि हुनकर आगू-पाछूमे जय-जयकार करैत। गन्धर्व आ अप्सरा सभ नचैत-गबैत आ महादेवक गण सभ झालि-मृदंग बजबैत झुमैत नाना प्रकारक गाजा-बाजा बजा रहल छला। एहि समयक महादेवक शोभा अवर्णनीय छल।
महादेवक एहि रूपकेँ देखि मैनाकेँ आश्चर्य लागि गेलनि। आब मैनाकेँ होश भेलनि। मनेमन प्रसन्न भेली आ अपन बेटी गौरीक तपस्याक फल त्रिलोकीनाथ महादेवके ँ देखि पहिलुका अपन भाभटपर लजा कऽ पछताय लगली।
                                                          गौरीक विवाह
देवता, ऋषि-मुनिक बरियाती ओ गाजा-बाजाक संग महादेव विवाह लेल हिमालयक द्वारिपर पहुँचला। मैना हुनकर परिछन केलनि। स्त्रीगण सभ गीत गबैत मैनाक पाछू लागि गेली। सभ महादेवक रूप देखि मोहित भऽ कठपुतरी जकाँ ठाढ़ि भऽ गेली। सभ स्त्रीगण गौरीक भाग्यक सराहना केलनि। महादेवक दर्शनसँ अपनाके ँ धन्य बुझलनि। देवता लोकनि महादेवक संग नञि छोड़लनि, कारण हुनका लोकनिकेँ शंका छलनि जे महादेव फेर कोनो तमासा ने ठानि देथि। मैना झट वरक परछनि कऽ चलि गेली। हुनको शंका छलनि जे देवता लोकनि किछु हँसी-ठट्ठा ने कऽ देथि। वरकेँ मड़बापर आनल गेलनि। हिमालय हुनक अर्हणा (पूजा) केलनि। ओठंगर कूटल गेल। महादेव कोबर घरसँ गौरीकेँ हाथ पकड़ि अनलनि। ब्रह्मा सभ काजमे तत्पर छला। वरकेँ रेशमी धोती, फूल आ सोनाक माला पहिरायल गेलनि। वर-कनिञाकेँ आमक पल्लव केर कंगन पहिरायल गेलनि। ऋषि लोकनि गोत्राध्याय पढ़ेलनि। हिमालय कन्यादान सम्पन्न केलनि। गौरी-शंकर वेदीपर गेला। अग्निक आवाहन कऽ हवन कयल गेल। विवाहक सभ विधि सम्पन्न कयल गेल। ऋषि लोकनि वर-कनिञाकेँआशीर्वाद देलनि। गन्धर्व, अप्सरा लोकनि नाच-गान केलनि। देवता लोकनि कहलनि- ‘हे महादेव! अहाँ जगतपिता छी आ गौरी जगन्माता भेली। गौरी-शंकर कुलदेवताकेँ प्रणाम कऽ, भोजनसँ निवृत्त भऽ विश्राम करबा लेल गेला। बरियाती लोकनिक सत्कार प्रारम्भ भेल। जहिना विभिन्न तरहक बरियाती आयल छला तहिना हिमालय सभक लेल विभिन्न प्रकारक ओरियानो केने छला। जतऽ साक्षात् अन्नपूर्णाक जन्म भेल छनि ओतऽ कोन वस्तुक कमी भऽ सकैत अछि? बरियाती लोकनि प्रसन्न भऽ हिमालयकेँ धन्यवाद दैत बिदा भेला आ कहलनि- ‘अहाँ धन्य छी हिमालय। आब हमरा लोकनिकेँ ताड़कासुरसँ त्राण पेबाक बाट खूजल।’
हिमालय कर जोड़ने ठाढ़ छला। मैना अपन अज्ञानताक लेल देवता ओ ऋषिसँ क्षमा माङलनि। ओ लोकनि कहलनि-‘ई सभ लीला त्रिलोकीनाथक छलनि। अहाँक सौभाग्य बढ़य। आब हमरा लोकनिके ँ जेबाक आज्ञा देल जाय।’ आगाँ-आगाँ गौरी-शंकर बसहापर चढ़ल बिदा भेला। पाछू-पाछू हुनका लोकनिके ँ अरियातबा लेल हिमालय सहित हुनकर परिवार छलनि। किछु दूर धरि हिमालय लोकनि गेला आ हुनका लोकनिके ँ जाइत देखि बेटीक बिछोहेँ भारी मन लऽ घुरि अपन घर एला।

Friday, 2 August 2013

मधुश्रावणी : आठम दिनक कथा


               मधुश्रावणी : आठम दिनक कथा

                                       प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                               गौरी-विवाहक वर-बरियाती
महादेव काशीमे सप्तर्षिकेँ बजेलनि। ओ लोकनि एला। वशिष्ठक संग हुनकर स्त्री अरुन्धती सेहो एली। महादेव सभकेँ विवाहक कथा लऽ हिमालयक ओतऽ पठेलनि। ऋषि लोकनिसँ महादेवक अनुरोध सुनि हिमालय आ मेना केर आँखिसँ नोर झहरऽ लगलनि। ऋषि-मुनि गौरीकेँ आशीर्वाद देलनि। अरुन्धती मेनाकेँ महादेवक महिमाक गुण-गान सुनेलनि। कथा ठीक हेबापर विवाहक दिन ताकल गेल। विवाहक दिन फागुन वदि चतुर्दशी निश्चित भेल। सप्तर्षि लोकनि प्रसन्न भऽ काशी घुरि एला। एहि ठाम आबि महादेवकेँ सभ बात कहलनि। महादेव प्रसन्न भऽ हुनका लोकनिकेँ बरियाती चलबा लेल हकार देलनि। ओहिठामसँ महादेव कैलाश एला। देवता लोकनिकेँ निमन्त्रण आ हकार देबाक भार नारद मुनिकेँ देलनि। महादेवक गण सभ बरियातीक तैयारी करऽ लगला। वरकेँ सजाओल जाय लागल। हुनका गहना की देल जेतनि? जे सभ हिनका लग गहना रहनि ताहिसँ हुनका सजाओल गेल। माथपर चन्द्रमाक मुकु ट, शरीरमे साँपक गहना। जटाकेँ झारि कऽ नीक जकाँ बान्हि देल गेलनि। नवका बाघम्बर ओढ़ाओल गेलनि। एतबे श्रृंगारमे महादेव परम सुन्नर लागऽ लगला।
चारिम दिन महादेवक बरियाती हिमालयक ओतऽ पहुँचल। हिमालय अपन कुटुम्बक संग बरियाती लोकनिक सत्कारमे लागि गेला। मेनाकेँ बड़ मोन लागल छलनि जे जाहि वर लेल गौरी एतेक कष्ट सहलनि अछि से वर केहन अछि? ओ नारद मुनिकेँ संग लऽ दुआरिपर वर देखबा लेल गेली।
सभसँ पहिने गन्धर्वराज एला हुनकर सुन्दरता देखि मेनाकेँ भेलनि जेना यैह वर छथि। ओ प्रसन्न भेली। नारद कहलथिन जे ई देवता लोकनिक गबैया छथि। तकारा बाद धर्मराज एला। मेनाकेँ एहि बेर भेलनि जे यैह वर छथि, मुदा नारद फेर बजला जे ई तँ धर्मराज छथि। महादेव तँ हिनका लोकनिसँ बड़ बेसी सुन्नर छथि। एहिना क्रमश: सुन्दर देवता लोकनि अबैत गेला, मेना सभकेँ पहिने वर बुझथि। नारद बेराबेरी सभक परिचय मेनाकेँ दैत गेलथिन। मेना गौरीक भाग्यपर गर्व करऽ लगली। महादेव ई बात बूझि गेला। ओ किछु तमाशा करऽ चाहलनि। आब नारद कहलनि जे वैह देखू वर आबि रहल छथि। हुनका देखि अपन आँखि जुड़ाउ।
मेना सावधान भऽ हुलसि कऽ देखऽ लगली। पहिने महादेवक सेवक भूत, प्रेत, पिशाच सभ आयल। ओकरा सभक पहिरन-ओढ़न, बाजब भूकब, नाचब-गायब देखि मेना डेरा गेली। जी धक धक करऽ लगलनि। एहने ने वर होथि। ताबत महादेव सेहो आबि गेला। बसहापर चढ़ल, पाँच मुँह, तीन आँखि, दस गोट हाथ, देहमे छाउर लेपने, कौड़ीक माला पहिरने, माथपर चन्द्रमा, एक हाथमे खप्पर, दोसरमे भिक्षापात्र, तेसरमे पिनाक, चारिममे तीर, पाँचममे त्रिशूल, छठममे अभय। एहि तरहेँ सभ हाथमे किछु ने किछु भरल। हाथीक चाम पहिरने, ऊपरसँ बाघम्बर ओढ़ने, सौँसे देहमे साँप लपटायल, आँखि मुनने आ थरथर कपैत।
नारद कहलनि यैह वर महादेव छथि। ई देखैत मेना बेहोश भऽ गेली। मेना कहलनि जे- ‘गे जिद्दी छौड़ी ई क ी केलेँ। एहन वरक संग कोनो रहबेँ?

बिसहरि गीत

सखि हे बिसहरि एली अङनमा
हम सभ पुजब नगिनिञा ना
की देबनि बैसक बिसहरि माँ के
कथी देबनि ओठङनमा
हम सभ पुजब नगिनिञा ना।।
कारी कम्मल बिसहरि के बैसक देबनि
बाँसक पात ओढ़नमा
हम सभ पुजब नगिनिञा ना।।
की भोजन देबनि बिसहरि माँ के
कथी देबनि पियनमा
हम सभ पुजब नगिनिञा ना।।
धानक लाबा बिसहरि के भोजन देबनि
गायक दूध पियनमा
हम सभ पुजब नगिनिञा ना।।

पाबनिक गीत
साओन के महीना पाबनि केर दिन
मनसँ पाबनि पूजू ए कनिञा
शुभ रहत सभ दिन।।
केहि रे पठेलखिन केर दही भरिया
के मोरा देलखिन साया-साड़ी-चूड़िया
ससुर मोरा पठेलखिन केरा-दही भरिया
सासु मोरा देलखिन साया-साड़ी-चूड़िया
मनसँ पाबनि पूजू ए कनिञा
शुभ रहत सभ दिन।।

बटगबनी
माथपर लेलनि राधा सोना के घैलिया हे
चलि गेली जमुना किनार रानी राधिका हे
चीर चोराय कृष्ण कदम्बपर चढ़ि गेल हे
जल पैसि मारय डुबुकी रानी राधिका हे
दियऽ-दियऽ आहे कृष्ण हमरो के चीर
हमहुँ पुरुष अहाँ नारी रानी राधिका हे
हम की जानी चोरी के हाल रानी राधिका हे
ओलहन देबऽ गेली सासु के अङनमा हे
अहाँक पुत्र चोरेलनि चीर रानी राधिका हे
हमरो जे पुत्र-पुतहु लड़िका हे अबोधबा
ओ की जाने चारी रानी राधिका हे
अहाँ लेखे आहे सासु लड़िका अबोधबा
हमरा लेखे तरुणी वयस रानी राधिका हे।।

संकलन : निर्मला देवी, मुजौना, नीरपुर, समस्तीपुर

Thursday, 1 August 2013

मधुश्रावणी : सातम दिनक कथा

            मधुश्रावणी : सातम दिनक कथा

                                      प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                            गौरीक तपस्या
काम-दहन आ महादेवक व्यवहार देखि गौरी डेरा गेली। हुनका कतहु चैन नञि भेटनि। सदैव शिव-शिव रटैत रहथि। एहि बीच हुनका नारद मुनिसँ भेटि भेलनि। गौरी हुनकासँ महादेवकेँ प्राप्त करबाक उपाय पुछलनि। नारद कहलथिन- ‘बिना तपस्याक महादेवक दर्शन कठिन अछि। हुनका तपस्येसँ प्राप्त कयल जा सकैत अछि।’ तखन सखी सभ महरानी मेनाकेँ सभ बात कहलथिन। गौरीकेँ बजा मेना कहलनि- ‘अपना घरमे सभ देवता छथि। एहन सुकुमारि शरीरसँ वनमे तपस्या करब सहज नञि। वनमे बड़ कष्ट होयत। ते ँ हेतु हमर विचार जे घरहिमे तपस्या करू।’ मुदा गौरीकेँ ई बात नञि जँचलनि। बिना महादेवक तपस्या केने हुनका चैन नञि भेटि रहल छलनि। गौरीकेँ दुखी देखि माय बहुत चिन्तित भेली। अन्तमे जंगला जा तपस्या करबाक आज्ञा दऽ देलनि।
गौरी माता-पिताके ँ प्रणाम कऽ सखी सभक संग वन विदा भेली। ओ पटोर आ गहना खोलि कृष्णाजिन आ बल्कल पहिरि लेलनि आ गौरीशिखर नामक पहाड़क चोटीपर गेली। फल-फूलसँ लदल मनोरम स्थानकेँ देखि ओकरा साफ कऽ तपस्याक बेदी बनेलनि। ओहिपर बैसि ओ कठिन तपस्या आरम्भ केलनि। गर्मी मासमे चारू कात धुनी लगा कऽ सूर्यक दिस तपस्या करथि। बरसातमे बिनु अऽढ़वला स्थानपर तपस्या करथि आ जाड़ मासमे जलमे ठाढ़ भऽ तपस्या करथि।
जे तपस्या मुनिगणसँ पार नञि लागल से तपस्या एक गोट सुकमारि कन्याकेँ करैत देखि मुनि लोकनि हुनकर दर्शन करऽ लेल आबऽ लगला। सभ हुनक प्रशंसा करऽ लगला। ओहि आश्रमक अद्भुत हाल छल। ओतऽ गाय-सिंह एकहि घाटपर पानि पिबै छल। गौरीक तपस्याक प्रतापसँ कैलाश आ गौरी शिखरमे कोनो अन्तर नञि रहल।
गौरीसँ प्रभावित भऽ ऋषि-मुनि सभ नारदक संग महादेवक ओतऽ गेला। हुनका सभ गोटे विनम्र भऽ कहलनि- ‘हे महादेव गौरी तँ तेहन तपस्या कऽ रहल छथि जेहन आइ धरि क्यौ नञि केलक अछि आ ने कहियो भविष्यमे कऽ सकत। आब हुनकापर प्रसन्न भऽ अहाँ हमरा लोकनिक काज कयल जाय।’
महादेव कहलनि- ‘गौरी अपन तपस्यासँ हमरा प्रसन्न कऽ देलनि। आब हुनकर मनोरथक पूर्त्ति हम करब। अहाँ लोकनि जाउ। अहाँ सभक काज अनायासे भऽ जायत।’
महादेव बूढ़ बबाजीक रूप धऽ गौरीक तपस्या-स्थलपर गेला। बबाजीकेँ देखि गौरी हुनकर स्वागत-सत्कार केलनि। बबाजी प्रसन्न भऽ हुनका पुछलनि- ‘कोनो तरहक विघ्न-बाध तँ नञि अछि? कोन कामनासँ एतेक कठिन तपस्या कऽ रहल छी?
गौरी अपने किछु उत्तर नञि दऽ अपन सखीकेँ इशारा केलनि। ओ कहलनि- ‘महादेवसँ विवाह करबाक कामनासँ हमर सखी गौरी तपस्या कऽ रहली अछि। जहिएसँ ई तपस्या आरम्भ केलनि तहिएसँ आश्रममे फल-फूल लगेलनि। ओ सभ गाछ आब बढ़िञा फल-फूल दऽ रहल अछि, मुदा हिनकर कामनाक फलक अंकुरो नञि फूटल अछि।’
बबाजी गौरीसँ पुछलनि- ‘की ई बात सत्य अछि?’
गौरी हँ मे उत्तर देलथिन।
एहिपर बबाजी अपन निरशा प्रकट करैत बिदा भेला जे हुनका होइ छलनि जे गौरी कोनो पैघ कामनासँ एहन कठिन साधनामे लागल छथि।
हुनका जाइत देखि गौरी हुनका रोकबाक प्रयास करैत पुछलनि- ‘हमरासँ कोन अपराध भेल जे एना निराश भऽ तमसा कऽ जाइ छी?’
एहिपर बबाजी बजला- ‘अहाँ हमर कोनो अपराध नञि केलहुँ अछि। हमरा पहिने अहाँपर श्रद्धा भऽ गेल छल, मुदा अहाँक अभीष्ट बूझि घृणा भऽ गेल। अहाँ अशर्फी बेचि माटि कीनऽ चाहै छी। हाथीक सवारी छोड़ि बरदपर चढ़ऽ चाहै छी। सूर्यक प्रकाश छोड़ि भगजोगनीक इजोतमे रहऽ चाहै छी। कोठा-अटारी त्यागि मरघटमे दिन बितबऽ चाहै छी। कतऽ सर्वसम्पन्न इन्द्रादि देवता आ कतऽ भिखमंगा महादेव? अहाँ सन सुकुमारि आ परम सुन्दिरीकेँ ओहि बूढ़ भिगमंगा महादेवक संग जोड़ी केहन लागत? अहाँक एहन चन्द्रमा सन मुँह आ महादेवक दाढ़ी-मोछ वला मुँह, अहाँक कमल सन आँखि आ हुनक तीनटा आँखि, अहाँक माथमे फूलक बेनी आ हुनका माथ आ देहमे छाउर, अहाँक देहमे सोनाक गहना आ हुनका देहमे साप आ मुण्डमालक गहना, अहाँ मंगलमयी आ ओ महा अमंगल, अहाँ महाराज हिमालयक बेटी आ ओ ककर सन्तान छथि से अपनो नञि जनै छथि। धनिक तेहन छथि जे देहपर लत्तो नञि छनि। कन्या लेल लोक वरमे जे जे गुण तकैत अछि ताहिमेसँ एको गोट गुण महादेवमे नञि छनि। हुनकासँ विवाह करबासँ अहाँक कोनो मनोरथ पूरत? अहाँपर महादेवके ँ जँ कनिञो अनुराग रहितनि तँ ओ कामदेवकेँ नञि जरबितथि। ओ अहाँक योग्य वर कदापि नञि छथि।’
एहिपर गौरी कहलथिन- ‘महादेव निर्गुण ब्रह्म थिका। ओ अपन इच्छानुसार सगुण सेहो होइ छथि। वैह ब्रह्माक रूप धऽ संसारक सृष्टि करै छथि। सभक आदि पुरुष वैह थिका। हिनकर पिता कोन पुरुष भऽ सकैत अछि? सभ विद्याक आदि वैह छथि। हुनके श्वाससँ वेद बहरायल अछि। तखन ओ मूर्ख कोना भऽ सकै छथि? कोनो गरीब लोक मनसँ हुनकर पूजा करैत अछि तँ ओ अत्यन्त धनिक भऽ जाइत अछि। हुनकर लीला अपरम्पार छनि। सुन्दरसँ सुन्दर आ कुरूपसँ कुरूप हुनके  रूप छनि। ओ कहियो अमंगलकारी नञि भऽ सकै छथि। अहाँ अपने पापी छी, ते ँ अहाँ हुनकर रहस्य कोना बुझबनि? अहाँक हम सत्कार केलहुँ, अहाँसँ गप केलहुँ एकर हमरा प्रायश्चित करऽ पड़त।’
बबाजी फेर किछु बाजऽ लगला तँ गौरी अपन सखीसँ बबाजीकेँ बिदा कऽ देबा लेल कहलनि। ओ कहलनि- ‘फेर ई महादेवक निन्दा करता। पैघक निन्दासँ मात्र निन्दा केनिहारेकेँ पाप नञि होइ छनि अपितु सुननिहारो पापक भागी होइत अछि।’ ई कहि गौरी ओतऽसँ तमसा कऽ बिदा भऽ गेली। बबाजी तुरन्त महादेवक रूप धऽ गौरीक बाट छेकैत कहलनि- ‘हम अहाँक तपस्यासँ प्रसन्न छी। जे वरदान माङब से माङू। आइसँ हम अहाँक दास छी।’
गौरी लाज आ अनन्दसँ काठ भऽ गेली। महादेव कहलनि- ‘आब अहाँक वियोग हमरासँ सहल नञि जाइत अछि। कैलाश चलू ओतहि विवाह करब।’ गौरी लाजे महादेवकेँ किछु नञि कहि सकली। ओ अपना सखीसँ कहबेलनि जे जँ अहाँ हिनकापर प्रसन्न छी तँ अहाँ हिनकर एतबा अनुरोध मानि लियनु। एखन हिनका पिताक घर जेबाक अनुमति दियनु। अहाँ कोनो पैघ लोककेँ हिनकर पिताकेँ ओतऽ पठा कऽ हिनका संग विवाहक प्रस्ताव करियनु। विवाहक जे प्रचलित नियम अछि तहिना विवाह हो जाहिसँ हिनक पिताक गृहस्थाश्रम सफल होनि आ यश पसरनि।
गौरीक बात मानि महादेव अन्तर्ध्यान भऽ गेला। गौरी अपन पिताक घर एली। हिमालय आ मेना गौरीक सखीक  मुँहे सभ बात सुनि प्रसन्न भेला। जानकारी होइते ऋषि-मुनि हिमालयक ओतऽ एला।