Monday, 9 September 2013

युद्धवीरक कथा महाकवि विद्यापति रचित ‘पुरुष परीक्षा’ सँ

                                     युद्धवीरक कथा
              महाकवि विद्यापति रचित ‘पुरुष परीक्षा’ सँ

                                                      प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

युद्धवीरक कथा सुनि कायर सभ शूर होइछ, आलसी उद्यमी बनैछ आ लोक विजय प्राप्त करैछ।
मिथिलामे कर्णाट वंशामे उत्पन्न नान्यदेव नामक राजाक बालक मल्लदेव कुमार छला। ओ स्वभावेसँ सिंह सन पराक्रम रसिक छला। मनहिमन अनुभव करैत छी,ई हमर पौरुष नञि थिक। हेतु जे-
कायर,नेना ओ स्त्री इएह परश्रित भय जीबैछ। सिंह ओ सत्पुरुष तँ अपन बलदर्पपर जीबैत अछि।
पिताक प्रति भक्तिओ तँ अपन अर्जित सम्पतियहिसँ संभव थिक। कहलो अछि- पिताकेँ कतबो पुत्र रहथुन ओ जाहि बेटाक कमाइ खाइत छथि, जकर यश सुनैत छथि तकरेसँ ओ बेटाबला कहबैत छथि। तेँ कतहु जा क’ अपन बहुबलसँ पुरुषार्थ करी, ई विचारि कुमार कनौज नामक जनपद गेलाह। ओतय जयचन्द्र नामका राजा ओतय, जनिक आधिपत्य काशी धरि छल, पहुँचि सैनिक पद्धतिसँ भेँट कयल। ओ राजा हुनका सत्कारपुर्वक अपन प्रिय सहचर बनाओल। कुमार हुनक सेवामे रहि, क्रमहिँ अधिक सम्मान-भाजन बनलाह। मुदा एकदिन हुनका आदरमे विषमता बुझि पड़लनि। हेतु जे- थोड़बो गुणबला बिषय वस्तु यदि दुर्लभ रहैछ तँ ओहिमे आदरभाव रहैछ। किन्तु अधिको गुणबला यदि सुलभतासँ भेटैछ तँ ओहिमे निश्चय राजालोकनिक अनादरक भावना होइत छनि। कुमार पुन: बिचारलनि- तृष्णासँ भरल लोकक प्राण धन थिकैक,आगिक प्राण जारन,कामीक प्राण कामिनी,तहिना मनस्वीक प्राण  मान  थिकनि । तदुत्तर राजाकेँ कहलनि-देव! अपनेक प्रभुत्व सुनि हम एतय आयल छलहु, आब आनठाम जायब। राजा बजलाह-कुमार! अहाँे उद्वेगक कारण की भेल जे आनठाम जायब? मल्लदेव कहल अपनपेक आदर क्रमश: हमरा विषयमे शिथिले भेल जायत, तकरे आशंकसँ एखन आनठाम जा रहल छी। राजा बजलाह ई कथाकोना बझुना गेल ? मल्लदेव  बजलाह- हमरालोकनिक आदर तँ शुरताक होइछ; शुरता वाग्युद्धसँ नञि बझाओल जा सकैछ। अस्त्रयुद्ध अहाँक राज्यमे देखितहि नञि छी। राजा  बजलाह-समुद्रपर्यन्त हम राजस्व ग्रहन करैत छी। हमरासंग युद्धमे अड़निहार केओ अछिए नञि। तखन युद्ध होअओ ककरा संग? कुमार कहल-देव! राजाकेँ विजयक आनन्द राज्यक फल थिकैक। किन्तु बिना युद्ध विजय कोना? आ’ तखन सुखे कत’ यदि अपनेकेँ मनहो तँ हम एतयसँ जाइ। हम जकरहि राज्यमे जायब सैह अपनेक संग संग्राममे लड़बा योग्य भ’ जायत। राजा तमसाय बजलहा-रे कुमार! तोँ केहने अभागल भुढ़ थिकह? कोन दर्पसँ एना बजै छह? जाह जतय जयबह। जतहि तोँ जयबह ततहि हम अभियान करब। कुमार बाजल-इएह हम चललहुँ। कुमार ओयतसँ चिक्कोनामक राजाक राज्यमे पहुँचलाह। पाछाँ काशीश्वर (जयचन्द्व) हुनका ओतय गेल बुझि, चतुरंगिणी सेनासंग साजिस चिक्कोरक विरुद्ध बिदा भेलाह। किछु कालक अनन्तर हुनका निकट आयल बुझि चिक्कोर अपन मन्त्रीसभक संग परामर्श कयल जे काशीश्वर कुपित भ’ हमरहिपर आबि रहल छथि। तेँ आब उचित कर्त्तव्य की थिक? मन्त्री लोकनि कहल- अपनेक शक्ति थोड़ अछि,ओ छथि महाबल,तेँ हुनक संग युद्ध उचित नञि। ने अपनेकेँ धने ततेक अछि जे पैघ मनबाला ओहि राजाकेँ धन दँ सन्धि क’ लेब। तेँ उचित जे कोनो किलाक आश्रय ली। तखन पड़यबालेल उताहुल देखि चिक्कोरकेँ  मल्लदेव कहलनि- राजन्! अपने एना पड़ाइ छी किऐक ? अपनेक उद्देशेँ काशीश्वर ने कहियो आयल छथि ने आगाँ अओताह। अपने विश्वास करी तँ हुनक आगमनक कारण कही। अपनेकेँ कोनो भय नञि हो। चिक्कोर पछुल-ओ कारण की थिकैक? मल्लदेव पहिलुक सभ कथा सुना देल । चिक्कोर पूछल तखन उचित की? मल्लदेव कहल-जेँ ओ हमरा उद्देश्येँ अबै छथि तेँ अपने नञि पड़ाउ। किन्तु हुनक अनेक योद्धाक संग एकसर हमर युद्ध-कौतुक देखल जाय। चिक्कोर कहल- ओहि महाराजक सेना अपार छनि। हुनका संग एकसर अहाँक लड़ब उचित नञि। नीतिक ई विरुद्धद थ्ज्ञिक। कुमार बजलाह-शूरताक काजे रहैछ आनक आमर्षकेँ नञि सहि सकी। चिक्कोर कहल- तेँ तँ बिनु विचारेँ जे काज करैछ तनिक क्रियारम्भ परिणाममे विपत्तिजनक होइछ। कुमार कहल- ई विवाद व्यर्थ। जे काज हम करब होयत एकर सदेह रहैछ,एहन समान बलबलामे युद्ध संगत होइछ। किन्तु प्रबल शत्रुबलमे आगिमे फतिंगा जकाँ कुदि मरैछ?। कुमार कहल-यश पयबाक इच्छासँ जे युद्धमे मृत्युक वरण कयलक अछि तकरा केहनो प्रबल शत्रु सँ भयक अवकाश कत’। यशक कामनासँ युद्धमे मरण चाहनिहार वीरक कीर्ति शत्रुक महत्वसँ आओर बढ़ैत छैक। आ’ प्राण बचयाबालेल जे व्यक्ति युद्धसँ पड़ादत छथि तनिका मृत्यु तँ होइतहि छनि किन्तु ओहिसँ विशेष होइ छनि हुनक कापुरुषताक प्रकटी करण। चिक्कोर कहल- कुमार,अहाँ महान् वीर छी। काशी नरेश महाराज छथि। अत: अहाँ दुनू बीच लड़ाइ होसे तँ हमरालोकनि सुनियो नञि सकैत छी,दैखबाक कोन कथा। कुमार उत्तर देल- यदि अपने युद्ध देख’ नञि चाहि तँ कतहु यमदुतसँ अलक्षित स्थानमे जाय अपने अमर भेल जाय। हम तँ युद्ध करबे करब। परन्तु यदि से तँ अपने हमरा एकटा हाथी द’ क’गेल जाय। हम तँ अपनकेँ शुन्यो नगरक पर्यवेक्षण करब। चिक्कोर राजा कुमारक कथानुसार से क’पड़यलाह। ओकर दोसर दिन भेरीक शब्दसँ आकाशमण्डलकेँ व्यात करैत कर्मकठ मर्म धरि स्पर्श कयनिहार घोड़ाक टापक प्रहारेँ भूमण्डलकेँ दलमलित करैत,महाराज जयचन्द्र हुनक नगरक निकट आबि पहुँचलाह। मल्लदेव बढ़िक’ राजाकेँ (सामने) देखल। राजा पूछलनि-हाथीपर चढ़ि,तोँ थिकहकेँ?   सन्धि करबालेल आयल चिक्कोरक दुत थिकह अथवा युद्धार्थी मल्लदेव? मल्लदेव कहल-राजन्! हम दुत नञि ,ने सन्धिएक हेतु आयल छी। किन्तु हम अपनेक प्रतिद्वन्द्वी योद्धा मल्लदेव थिकहुँ। राजा हँसिक बजलाह- हमर प्रतिमल्ला तोँ ठीक भेलह। आब एखन आबि क’हमर अनुसरण करह। मल्लदेव बाजल-अहीं हमर अनुसरण किण्क ने करैत छी? एखन तँ अहाँ घोड़ापर छी ओ हम हाथीपर। अहुँकेँ अस्त्र अछि,हमहुँ अस्त्ररखने छी। एखन तँ प्र्र्रसारक अवसर अछि तखन वचन-विलासक एखन अवकाश कोन? राजा आश्चर्यकसंग सैनिकसभकेँ कहल-सैनिक लोकनि, मल्लदेवकेँ जीविते पकड़ि हमरालग ल’आबह। मल्लदेव सभकेँ ललकारैत कहल- हे आकाशचारी दिक्पाल,मुनि एंव सिद्ध लोकनि! देवता! अपने लोकनि साक्षी रहू। सभगोटे एहि कौतुककेँ देखैत जाउ। राक्षसबृन्द ! नरमांससँ तृप्त होइत जाउ। वीरक प्रति अनुरागक उत्कण्ठा राखनिहारि अप्सरागण! आनन्द प्राप्त करू। संग्रामभूमिमे एकसरे मल्लदेव बहुतो (योद्ध)क संग महान् साहस देखा रहल छथि। तखन चारूदिस पकड़बालेल उमड़ैत शत्रुदलक योद्धालोकनिकेँ मल्लदेव नाराज बाणसँ मारल। हुनक आघातसँ अपन प्रियपात्र सैनिक जवानकेँ धराशायी होइत देखि जहचन्द्र सेनाकेँ आदेश देल-हे वीरपुरुष-गण ! यदि एहि मरणेन्मुख अपरोध नञि कँ सकह तँ वाणबृष्टिसँ एकरा डुबवह। तखन राजाक आज्ञा पाबि सैनिकसभ एक कालहिमे घनघोर वाणक धारासंपातसँ हुनका सराबोर कऽ देल। वाणसँ बिद्ध भऽ  ओ हाथीपरसँ भुमिपर खसि पडलाह। ओहि समयक कोनो एक प्राचीन कविक पद्य अछि- अस्स्ी सालक बुढ़ा-पक्ठोस चिक्कोर तँ पड़ा गेलाह,परंच सोलह,सालक कर्णाक युवा (मल्लदेव) संग्राममे धराशायी भेलाह। प्रचुर नाराचवार्णस छिन्नभिन्न शरीरबला मुकुटमणि! कर्णाटवंशक प्रतिष्ठावंशक बीजांकुर ! की अहाँ जीव चाहै छी? मल्लदेव कहल (पहिने) कहु, हमरा दुहु गोटेमे युद्ध केँ जीतल ? राजा बजलाह-हलरालोकनि बहुतो गोटेक संग अहाँ लड़ाई कयल आ आहत भेलहुँ ,ताहुँ पर अहाँ हमरासभकेँ जितबाक इच्छा रखितहि छी तखन अहाँ विजयी कोना नञि भेलहुँ  तखन राजा एहिा प्रशंसा वर्णनसँ हुनका बाहुबल रोमांचसँ भरि आयल आ बजलाह-देव ! हम आब जीयब। तदुत्तर हुनका शूरतासँ अत्यन्त प्रसन्न्  भऽ राजा जयचन्द कुमारक शरीरसँ बाण बाहर कराय अपना ओतय लऽ गेलाह ओ पुत्रक प्रेमसँ हुनका रक्षण-पालन कयल,घाव भरि अयलापर हुनका सत्कार-समारोहपुर्वक अपन प्रतिनिधि बनाओल। कहल गेल अछि-मल्लदवेक ओ बहादुरी तथा राजाक ओ विवेक ने कहियो अतीतकालमे भेल अछि ने भविष्यमे पुन: होयत ।     

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