
गोनू झा लेलनि बदला
- अमलेन्दु शेखर पाठक
गोनू झा केर उन्नतिसँ हुनकर कतेको टोलबैया डाह रखै छल। ओ सभ सदिखन चाहथि जे कोनो तरहेँ गोनू झाकेँ क्षति होनि। खुरलुच्ची धियापुताकेँ सिखा गोनू झाकेँ किछु ने किछु नोकसान करा देथि। एक बेर गोनू झाकेँ खूब धान उपजलनि। धान कटबा खरिहानमे रखबेलनि। दुष्ट प्रवृत्ति वला सभ एक गोट नढ़ेर नेनाकेँ टाका देबाक लोभ दऽ सिखा देलनि। ओ रातिमे चुपेचाप गेल आ गोनू झाक खरिहानमे आगि लगा देलक। देखिते-देखिते सौँसे खरिहार छाउरे-छाउर भऽ गेल। गोनू झा अपन समाङ आ टोलक हितचिन्तक सभक संग आगि मिझेबाक प्रयास केलनि, मुदा किए एको दाना बचतनि? डाह रखनिहार सभ प्रसन्न भऽ गेल। गोनू झा मने मन सभ बातक अनुमान करै छला। हुनका सन्देह छलनि जे क्यौ जानि कऽ आगि लगबेलक। घर एला तँ पत्नी पेटकान देने रहथिन। हुनका बुझा-सुझा शान्त केलनि। आ लगला खेधा करऽ जे के आगि लगेलक आ किए लगेलक?
नढ़ेर आगि तँ लगा देलक, मुदा धान जरैत देखि ओ पछताय लागल। ओकरा गोनू काका सन नीक लोकक धान जरेबाक अपराधा बोध होइ छलै। जखन बर्दास्त नञि भेलै तँ आबि गोनू झाक पैर पकड़ि माफी मङैत सभटा बात कहि देलकनि। गोनू झा ओकरा माफ करैत कहलथिन जे ई बात ओ ककरो लग नञि बाजय।
गोनू झा सोचलनि जे एकर बदला लेल जाय। बस अगिले दिन खरिहार पहुँचला आ बरद गाड़ीपर सभटा राख लदबेलनि आ बिदा भऽ गेला पेठिया। राख उठबैत देखि दुष्ट सभ सोचलक जे धान जरि जेबासँ हिनकर दिमाग खराब भऽ गेलनि अछि, मुदा साँझमे जखन गोनू झा हँसैत-गबैत भरल गाड़ी लऽ घुरला तँ सभ चौँकि गेल। टोलबैया सभ गोनू झासँ पुछलथिन जे राख लऽ गेल रही आ प्रसन्न भऽ घुरलहँु, की बात छै? गोनू झा बिहुँसैत जवाब देलथिन- अरे, धान जारि हमर उपकार भेल तेँ प्रसन्न छी। सभकेँ आश्चर्य भेलनि, ई की कहि रहल छथि? गोनू झा कहलथिन जे काल्हिए अखबारमे पढ़ने रही जे धानक शीशकेँ डाहि असाध्य रोग छोड़ेबाक दबाइ बनै छै। से सभटा राख समेटि पेठियापर गेल रही। बेपारी सभ हाथो हाथ कीनि लेलक। ओ तँ आरो मङै छल, मुदा हमरा तँ आब धाने नञि अछि जे डाहब। वैह सभ बड्ड पाइ देलक तँ एक गाड़ी सोना-चानी कीनि कऽ घुरलहुँ अछि। गोनू झा अपन हित चिन्तक सभकेँ आँखिए आँखिमे इशारा कऽ देने छलथिन, से ओ सभ तँ बूझि गेला जे गोनू झा कोनो चालि चलि रहला अछि, मुदा दुष्ट सभ नञि बुझलक। ओ सभ गोनू झासँ खोधि-खोधि कऽ बेपारी आ कोन पेठियापर राख बिकायत से पुछलनि। अगिले दिन ओ सभ अपन-अपन खरिहान डाहि पेठिया बिदा भेला। पेठिया पहुँचला आ सभ बेपारीसँ राख किनबा लेल कहथि। सभ हिनका सभकेँ बताह बूझि हँसि कऽ चलि जाय। साँझमे ओ सभ माथ नोचैत गाम घूरल तँ देखैत अछि जे गोनू झा अपना खेतमे राख छिटबा रहल छथि। मुँह बिधुएने घूरल दुष्ट टोलबैया सभकेँ देखि गोनू झा पुछलनि- नञि भेटल बेपारी? की करबै चलि गेल हेतै। राख सभ खेतमे छीटि लीयऽ अगिला साल नीक उपजा होयत?
भेल छल ई जे गोनू झा राख लऽ गेला आ गामसँ बाहर भरि दिन बिता साँझमे घुरि आयल छला। जखन दोसर दिन गोनू झा दरबार गेला तँ महाराज पछिला दिन नञि एबाक कारण पुछलथिन। गोनू झा सभटा खेरहा कहलनि तँ महाराज प्रसन्न होइत हुनका सय बरद गाड़ी धान गामपर पठबा देलथिन आ इनामो देलथिन। दुष्ट सभकेँ पकड़बा जहल दै छलथिन, मुदा गोनू झा बचा लेलथिन जे बदला तँ ओ लैए चुकल छथि। दुष्ट सभ कान पकड़लक जे फेर गोनू झाक संग अरारि नञि मोल लेता।
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