Sunday, 15 September 2013

गोनू झासँ भगवती प्रसन्न

 
                                                                       गोनू झासँ भगवती प्रसन्न
                                                 

                                      - अमलेन्दु शेखर पाठक

गोनू झा अपन ज्ञानसँ महाराजकेँ तँ प्रसन्न करिते छला। चोर-चुहारकेँ तँ छकबिते छला। सर-समाजक लोकक लग तँ अपना प्रत्युत्पन्नमतित्वसँ आदरणीय बनले छला, बेर पड़नि तँ देवी-देवताकेँ सेहो तेहन ठोका जवाब देथिन जे ओहो प्रसन्न भऽ उठथि। एक बेर भगवती कालीक समक्ष तेहन मनोरञ्जक प्रश्न रखलनि जे ओहो अपन भक्त गोनू झासँ प्रसन्न भऽ उठली आ हुनका वरदान देलनि जे बुद्धि-ज्ञानमे हुनका कहियो क्यौ ने पछाड़ि सकत।
भेलै जे गोनू झा नित्य भगवतीक पूजा करथि। एक दिन मनमे एलनि जे एते दिनसँ भगवतीक मनसँ विधि पूर्वक पूजा करै छी, मुदा ओ दर्शन नञि देलनि अछि। से आब पूजा तखने छोड़ब जखन ओ दर्शन देती। बस ई ठानि ओ पूजामे जुटि गेला। भरि-भरि दिन कालीक पूजा करऽ लगला। अहल भोरे पूजा शुरू करथि तँ सूर्य डूबि जेबाक बादे उठथि।
एक दिन पूजा-पाठक बाद ओछायनपर पड़ल छला कि हुनक पूजासँ प्रसन्न भऽ भगवती काली दर्शन देबा लेल पहुँचि गेलथिन। काली अपन विकराल स्वरूपमे आयल छली। हुनकर एक सय मुँह छलनि। हाथमे खप्पड़ आ खड्ग रखने छली। गोनू झा हलसि कऽ ओछायनपरसँ उठला आ हुनका प्रणाम केलनि। माताक दर्शनसँ अपनाकेँ कृत-कृत्य मानलनि। कनिञे कालमे गोनू झाक उत्साह बिला गेलनि आ ओ गम्भीर भऽ उठला। भगवती चौँकि उठली। एखने गोनू झा प्रसन्न छला तखन एकाएक चिन्तित किए भऽ गेला। भगवती कारण पुछलथिन तँ गोनू झा बजला- नञि कोनो खास बात नञि। हम ई सोचऽ लगलहुँ जे हमरा सभकेँ एक टा मुँह अछि आ दू टा हाथ अछि। तखन जँ कहियो सर्दी भऽ जाइत अछि तँ नाक पोछैत-पौछैत तबाह रहै छी। दू टा हाथसँ एक टा नाक नञि सम्हरैत अछि, तखन अहाँकेँ तँ एक सय मुँह आ दू टा हाथ अछि। जँ कहियो सर्दी भऽ जाइत होयत तँ दू हाथसँ एक सय नाक कोना सम्हरैत होयत, यैह सोचऽ लागल रही। गोनू झाक बात सुनि भगवती ठठा कऽ हँसि पड़ली आ हुनका आशीर्वाद देलथिन जे बुद्धि-ज्ञानमे दुनिञामे अहाँकेँ क्यौ ने पछारत। दोसर दिन गोनू झा दरबार गेला तँ महाराजकेँ सभटा बात कहलथिन तँ ओहो खूब हँसला आ हुनका एहि मनोरञ्जक बात लेल खूब बिदाइ देलनि। 

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