Sunday, 28 July 2013

मधुश्रावणी : दोसर दिनक कथा

                                                                      मधुश्रावणी : दोसर दिनक कथा 
                                                           प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक
                            बिहुला ओ मनसाक कथा
  मनसा महादेवक मानस पुत्री छलीह। ओ जनमितहि युवती भऽ गेली। नाङटि रहबा कारणेँ हुनक लाज रक्षा हेतु साँप हुनका देहमे लपटाय गेल। एहिसँ सभसँ गौरी अप्रसन्न भऽ गेली। तेँ हेतु मनसाकेँ कैलाश त्यागि अन्यत्र जाए पड़लनि। महादेवक कृपासँ ओ मर्त्य-भुवन चलि एली। हुनक इच्छा छल जे लोक हिनक पूजा करए। ओहि समयमे मर्त्य-लोकमे चन्द्रधर (चन्दू) नामक एक पैघ सौदागर रहए। पैघक देखाउसि आनो लोक करैत अछि। तेँ मनसाक मोनमे भेल जे पहिने चन्दूए हमर पूजा करए त देखा-देखी आनो हमर पूजा करए लागत। चन्दू महादेवक परम भक्त छल। ओ महादेव छोड़ि आन देवताक पूजा करब नञि गछलक। ओकर उत्तर छल ‘जे दहिना हाथ महादेवकेँ देने छियनि, बामा हाथसँ हम अहाँक पूजा कऽ सकैत छी।’ मनसाकेँ ई नञि जचल। ओ तमसा गेली। चन्दूक छओ गोट बेटाकेँ ओ साँप डसबाकेँ मारि देलनि। चन्दूकेँ बूढ़ारीमे पुन: एक बेटा भेल। हुनक टिप्पनि देखि ज्योतिषी कहलक जे इहो बेसी दिन नञि जीताह। हिनका विवाहक दिन कोबरहिमे साँप डँसि लेत। चन्दू अत्यन्त दु:खी भेला, किन्तु साध्य कोन। ओहि बेटाक नाम पर लक्ष्मीधर (बाला लखन्दर) पड़ल। लक्ष्मीधरकेँ छवे मास भेलापर चन्दू अपन पत्नीक जिद्दपर एहन कनिञासँ  विवाह प्रस्तुत भऽ गेलाह, जकर टिप्पनिमे चिर-सोहागिन योग छलैक। ओ पहाड़पर एकटा एहन कोठा बनबेलनि, जे सभ दिससँ निमुन छलैक। बिज्जी आ बिढ़नीक पहरा पड़ल जे ओहि परोपट्टामे कोनो साँपकेँ नञि आब देतै। ओहि कोठामे लखन्दरक विवाह बारह बरखकपरम सुन्दरी आ सुलक्षणि कन्या बिहुलासँ भेल। जखन ओ कनिञा संग कोहबर छल। तखने कोनो बाटे एकटा साँप आबि हिनका डँसि लेलक। लखन्दर तत्काले मरि गेलाह। लोक सभ हिनका संस्कार लेल  गंगा कात लऽ गेला। बिहुला परम सती छली। ओहो स्वामीजीक संग श्मशान घाट चलि गेली। लोक सभकेँ ओ मुर्दा गारऽ नञि देलनि। ओ सभकेँ कहलनि जे हमरा जेना होयत तेना हिनका जिआयब। बिहुला केराक थमक एकटा नाव बना ओहिमे सभक संग अपनहुँ बैसि गेली। आ गंगामे नावकेँ भसिया देलनि। लोकसभ बहुत मना केलक, लेकिन जिद्द देखि अन्तमे लोक हुनका अपना भाग्य पर छोड़ि देलक। ओ बिना अन्न-जलक गंगामे मुर्दाक संग कतेको दिन धरि भसिआइत रहली। सभक माँस गलि-गलि खसय लागल। केरा थम्ह सड़िकऽ टूटऽ लागल। भसिआइत-भसिआइत ओ बेढ़ प्रयाग पहुँचल। बिहुला आ त्रिवेणी घाटपर एक धोबिनकेँ कपड़ा खिचैत देखलनि। ओकरा संग एक चिल्हका छलैक। ओ चिल्हका ओकरा दिक्क करै छलै। बीच-बीचमे नुआ खीच लैत छलै। अन्तमे धोबिनओकरा जानसँ मारि खीचल सारी तरमे झाँपि देलक। काजक बाद  चिल्काकेँ जिया देलक आ ओकरा काँख तर लऽ  घर बिदा भऽ गेल। बिहुला के भेलनि जे एहि धोबिनसँ हुनक काज भऽ सकैत छनि।  दोसर दिन जखन धोबिन फेर घाटपर आयल तखन बिहुला अपना सभ हाल ओकरा कहलखिन्ह। आ ओकरासँ अपन स्वामीकेँ पुन: जीवित करबामे मदति मङलखिन्ह। बिहुलाक सुन्दरता, धैर्य आ साहस देखि धोबिनकेँ दया आबि गेल। धोबिन बिहुलाकेँ सङ इन्द्र दरबार पहुँचल। ओतय आरो देवता सभ छला। बिहुला सभ देवताकेँ अपन वृतान्त सुनेलनि आ अपन स्वामीक प्राण दानक भीख मङलनि। देवतागण बिहुलाक व्यवहार देखि प्रसन्न भऽ गेला आ हुनका दया आबि गेलनि। ओ सभ बिसहरा (मनसा) के बजेलनि आ चन्दू सौदागरक अपराधकेँ क्षमा करबा लेल कहलनि। बिहुलो बिसहाराक पैर पकड़ि विनती केलनि आ आँचरि पसारि कबुला केलनि जे यदि पति सहित हुनक छबो भैंसुर जीबि उठता तँ ओ अपन ससुरकेँ मना पूर्ण समारोहक संग बिसहाराक पूजा करती तथा मृत्यु भुवनमे हुनक प्रचार करती। बिसहरी माता प्रसन्न भऽ सभकेँ जीवित हेबाक वरदान देलनि। इन्द्र महराज लक्ष्मीधर सहित सातो भाइकेँ यमपुरीसँ बाहर करबाक आज्ञा देलनि। सातो भाइकेँ नव शरीर दऽ बिहुलाक संग लगा देल गेल। चन्दू सौदागर बेटाक शोकसँ मरनासन्न भऽ गेल छला। देखनिहार अभावमे धन-वित्त बोहा गेलनि। अकस्मात् सातो बेटाक संग पोतहुकेँ आयल देखि आनन्द विभोर भऽ गेला। हुलसि कऽ सातो बेटा आ पुतोहुकेँ गला लगेलनि। बिहुला सँ सभ हाल बुझि हुनका आशीर्वादसँ ओतप्रोत कऽ देलनि। खूब धूमधामसँ बिसहाराक पूजा केलनि। सभकेँ हकार आ निमंत्रण देलनि। बिसहाराक महिमाक गुणगान, पूजाक प्रचार कयल गेल। अनेको स्थानपर हुनक मन्दिर बनाओल गेल। ओहि दिनसँ मृत्यु भुवनमे बिसहाराक पूजा होमय लागल। गाम-गाममे हुनक गहबर बनल। लोक सभ ढ़ोल बजा, भीख माङि बिसहाराक गीत गाबि पूजा करब प्रारम्भ केलक।

बिसहराक कथा
कद्रू नामक स्त्रीसँ कश्यप मुनिकेँ एक हजार सन्तान भेल आ ओ सम्पूर्ण संसारमे पसरि गेल। ओ सभ उत्पाती छल। एकाएक ओ सभ मरऽ लागल। ब्रह्मा चिन्तित भऽ गेला जे साँप एना करत तँ हमर सृष्टि समाप्त भऽ जायत। ब्रह्मा कश्यप मुनिकेँ एहिसँ त्राणक उपाय कहलनि। कश्यप मुनि साँप झाड़बाक मंत्र बनेलनि। ओ तपस्या कऽ बिसहाराक सृष्टि केलनि। तेँ मनसा देवी कहल जाइत अछि। एहि तरहेँ ओ महादेवक, श्रीकृष्णक तपस्या केलनि। एहि सभसँ हिनक देह सुखाकऽ जीर्ण भऽ गेल तेँ हिनक नाम जरत्कारू पड़ल। हिनक विवाह बूढ़ ब्राह्मणसँ भेल।  अखाड़क संक्रान्तिसँ नाग पञ्चमी धरि बिसहाराक पूजा पसीझक पातपर होइत अछि। बिसहारा पूजा करबासँ लोककेँ धन-धान्यक वृद्धि होइत अछि आ साँपक डर नञि होइत अछि। बारह नामसँ बिसहरि विख्यात छथि-जगदगौरी,   मनसा, जरत्कारु, वैष्णवी, सिद्धयोगिनी, नागेश्वरी, शैवी, जरत्कारु - प्रिया, नाग-भगिनी, आस्तीक माता, बिसहारा आ महाज्ञानयुता। ई बारहो नाम लेबासँ लोककेँ अपना आ ओकर सन्तानकेँ सर्पदंशक डर नञि होइत अछि।

मंगला-गौरीक कथा
श्रुतिकीर्त्ति नामक एकटा राजा छला। हुनका बेटा नञि छल। ओ भगवतीक आराधना केलनि। भगवती वरदान मङबा लेल कहलनि। राजा कहलनि पुत्र छोड़ि कोनो वस्तुक कमी नञि अछि। हमरा एकटा पुत्र दिअ। भगवती कहली-सेवक तोरापर हम प्रसन्न छी। तोरा पुत्र लिखल नञि छह, तथापि तोरा हम बेटा देबह। सर्वगुणी बेटा लेबह तँ सोलह बरख जीतह आ जँ चिरञ्जीवी लेबह तँ महामूर्ख हेतह। राजा मन्दिर दुआरि लगीचक एकटा आम रानीकेँ खुआ देलनि। रानीक कोखिसँ सुन्दर बालकक जन्म भेल। राजकुमार पढ़ि-लिखि सम्पन्न भऽ गेला। देखैत-देखैत राजकुमार सोलह बरखक भऽ गेला। राजाकेँ एमहर चिन्ता सता रहल छल। बेटाक मृत्यु अपन सोझाँ केना देखता। राजा राजकुमारकेँ अपना सारक संग काशी पठा देलनि। माम-भागिन काशीक रस्तामे जाइत-जाइत आनन्दनगर पहुँचला। ओहिठाम वीरसेन नामक राजा राज करैत छला। राजाकेँ मँगला गौरी नामक एकटा कन्या रहथिन। ओ सखी सभक संग फुल लोढ़ि रहल छली। बात बातमे कोनो सखी तमसाकेँ राजकुमारीकेँ राँड़ी कहि देलनि। राजकुमारी कहलनि हमरा हाथक अक्षत जाहि वरक माथपर पड़ि जायत ओ अल्पायु रहितो चिरायु भऽ जायत। सञ्योगवश माम-भागिन एहि बातकेँ अपना कानसँ सुनलनि। ओ सोचलनि जे राजकुमारी संग भगिनाक विवाह भऽ जायत तँ ओ चिरायु भऽ सकैत छल। एमहर राजकुमारीक विवाह सुकेतु वर्मासँ तऽ छल। ओ कुरूप छल। सुकेतुक बाप-पित्ती विचारलनि। नीक वर लऽ मड़वा पर जायब आ विवाह भेला बाद ओकरा भगा देब आ सुकेतुकेँ कोहबरमे बैसा देब। ई लोकनि मामासँ भागिन मङलनि। चिरायुक विवाह राजकुमारीसँ करायल गेल। एमहर सोलहम बरख चिरायुक पूरि गेल छल। अधरतियामे काल गहुमनक रूप धऽ घर पैसि गेल। राजकुमारी गहुमनकेँ देखि दुधक बाटी ओकरा  आगू राखि देलनि। नागराज प्रसन्न भऽ ओतहि राखल पुरहरिमे पैस गेल। राजकुमारी आँगीसँ पुरहरिक मुँह बान्हि देलनि। बादमे जखन राजकुमारी साँपवला पुरहरिकेँ फेकऽ गेली तँ साँपक जगह एक गोट रत्नक हार छल। ओ हार पहिर लेली। एमहर चिरायु अपन मामक संग काशी, विन्ध्याचल चलि गेला। एक बरखक बाद फेर एहिठाम एला। राजकुमारी चिरायुकेँ देखि चीन्ह लेली। राजा दुनूक विवाह खूब धूमधामसँ करेलनि आ पूरा परिवार खुशीपूर्वक जीवन बिताबऽ लगला। तेँ मैना आ नाग पूजाक साधवाक जीवनमे बड़ महत्व अछि।

मधुश्रावणी : पहिल दिनक कथा

                                                                                 मधुश्रावणी : पहिल दिनक कथा
                                                     प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक                                           मौना पञ्चमी
एगो बूढ़ी स्नान करबा लेल धार कात गेली। ओ देखलनि जे धारमे पातपर पाँच गो जीव लहलहाइत दहा रहल अछि। ओ जीव बूढ़ीकेँ कहलकनि जे जाउ आ गाममे स्त्राीगणकेँ कहियनु जे आइ मौना पञ्चमी अछि। आइ पवित्रता पूर्वक स्नान-ध्यान करथि। चिक्कनि माटि आनि घर-आङनकेँ पवितासँ नीपथि। ओहि माटिक पाँच गो थुम्हा बनाबथि। ओहिपर सिनूर-पिठार लगा दूभि साटि देथु। नव बासनमे खीर-घोरजाउर बनाबथि। बिसहराक पूजा कऽ हुनका दूध-लाबा चढ़ाबथि। खीर, घोरजाउरक उसरगि देथि। नेबो, आमक पखुआ, नीमक पात आदि चढ़ाबथि। घरक दुआरिक दुनू भाग गोबरसँ फेँच काढ़ने नागक आकृति बनाबथि। ओकरा मुँहमे दही-दूभि लगाबथि। आइ तीत खाथि। जे एहि तरहेँ मौना पञ्चमी पाबनि मनेती तिनका सभ तरहक कल्याण हेतनि। एना नञि केनिहारिकेँ नोकसान हेतनि।
जखन स्नान कऽ बूढ़ी गाम घुरली तँ ओ सभकेँ एकर जानकारी देलनि। किछु गोटे बूढ़िक बातपर विश्वास नञि केलनि आ पाबनि नञि मनेलनि। ओतहि बहुतो गोटे हुनका बातपर विश्वास कऽ जाहि रूपेँ कहल गेल छल तहिना मौना पञ्चमी मनेलनि। जे सभ पाबनि केलनि से सभ तँ सुरक्षित रहला आ जे सभ पाबनि नञि केलनि ओ सभ रातिमे मरि गेला। तखन लोक सभ बूढ़ी लग पहुँचल आ हुनकासँ एकर उपाय पुछलनि। बूढ़ी फेर धार लग गेली आ ओहि ठाम चिकनी पातपर लहलह करैत ओहि जीवकेँ सभटा बात कहि उपाय पुछलनि। ओ पाँचो जीव पाँचो बहिन बिसहरा छली। परिचय जानि बूढ़ी हुनका प्रणाम केलनि आ मरल लोक सभकेँ जीवन देबाक आग्रह केलनि। तखन बिसहरा कहलनि जे गाममे जँ ककरो ओहि ठाम बासनमे खीर-घोरजाउर लागल रहि गेल हो तँ ओकरा मरल लोक सभक मुँहमे लगा देबै ओ सभ जीबि जायत। सभकेँ कहबै जे अगिला पञ्चमीकेँ जखन नागपञ्चमी होयत तँ ओहि दिन नियमसँ पाबनि मनाबथि। बूढ़ि गाम आबि सभटा बात कहलनि आ सभ मरल लोकक मुँहपर खीर-घोरजाउर लगायल गेल। सभ जीबि उठला। नागपञ्चमी दिन पाबनि मनेलनि आ मड़रय कहाय लगला।

                                                                               बिसहराक जन्म
महादेव आ गौरी सरोवरमे जल-क्रीड़ा कऽ रहल छला। एही बीच ओ स्खलन भऽ गेलनि। महादेव ओकरा पुरैनिक पातपर राखि देलनि जाहिसँ विसहरा पाँचो बहिनिक जन्म भेलनि। महादेवकेँ पाँचोपर सन्तानवत स्नेह उमड़ि एलनि। ओ रोज सरोवर जाथि आ पाँचो बहिनिक संग खेलाथि। एमहर गौरीकेँ महादेवपर सन्देह भेलनि जे ओ नहाय लेल जाइ छथि तँ बड़ी काल किए लगबै छथि? एक दिन ओ चुपेचाप महादेवक पछोड़ धेलनि। नुका कऽ देखलनि जे महादेव साँपक पाँचो पोआ संग खेला रहल छथि। गौरी कुपित भऽ गेली आ पाँचो पोआकेँ पैरसँ पीचऽ लगली तँ महादेव मना केलनि आ कहलनि जे ई पाँचो मारबाक पात्र नञि छथि। ई पाँचो अहाँक पुत्री थिकी। ई सभ अहाँक संग सभक उपकार करती। सभक कष्ट दूर करती। हिनका सभक पूजा साओन मासमे पृथ्वीपर हेतनि। जे एहि पाँचो बहिनिक पूजा करता तिनकर सभ तरहेँ कल्याण हेतनि। महादेव कहलनि जे एहि पाँचोक नाम ओ जया, बिसहरि, शामिलबारी, देव आ दोतलि रखलनि अछि।

मधुश्रावणी : माधुर्य संग गम्भीर चिन्तनो

मधुश्रावणी : माधुर्य संग गम्भीर चिन्तनो

-अमलेन्दु शेखर पाठक
मिथिलाक वातावरण संगीतमय भऽ उठल अछि। नव विवाहितका महापर्व मधुश्रावणी जे शुरू भऽ गेल अछि। मधुश्रावणी जकरा मिथिलाक गामघरमे मोसरामनी सेहो कहल जाइछ अपन नामक अनुकूल मधु-रससँ सराबोर अछि। अन्तिम दिन पतिक संग मोसरमनी पुजबाक बाद हुनका हाथे तेसर बेर सिन्दूरदानक विधि नव विवाहिता लोकनिकेँ एक बेर फेर पुलकित कऽ देतनि। आ एहन पाबनि संगीत विहीन कोना होयत जखन मिथिलाक कोनो पाबनि-तिहार आ कि संस्कार बिना गीतक नञि होइत अछि। से गितगाइन सभ नव विवाहिताक आङनमे जूटि वातावरणमे अपन मनोहारी सामूहिक स्वर घोरब शुरू कऽ देलनि अछि। पबनैतिनक आङनमे भोर होइते हबगब आरम्भ भऽ गेल अछि आ पूजा आरम्भ होइते सभ विधिक गीत बेराबेरी भऽ रहल अछि। ‘विनती  सुनियौ हे  महरानी,  हम  सभ शरणमे ठाढ़, अक्षत  चानन  अहाँकेँ  चढ़ायब, आरती  उतारब ना’ सँ गोसाउनिकेँ गोहरायल जाइत अछि, तँ ‘साओन मास नागपञ्चमी भेल, बिसहरि गहवर सोहाओन भेल’ गीतसँ बसहरिक अभ्यर्थना भऽ रहल अछि। ओतहि ‘पहिरि ओढ़िय कनिञा सुहबे पाबनि पूजऽ बैसली हे, हे शुभ पावनि दिनमे’ केर माध्यमे पर्वक उछाह प्रकट होइत अछि। पूजन होइत-होइत दुपहर भऽ जाइत अछि आ तकर बाद सोलहो शृंगार केने नव विवाहिताक टोली केर समवेत स्वर वातावरणमे अनुगुञ्जित भऽ उठैत अछि ‘लालहि बन फूल लोढ़ब फुल तोड़ब,  हे सिन्दुर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।’ गहना-गुड़ियासँ लदल नव विवाहिताक लोकनिक पदचापसँ उठैत रुन-झुन स्वर वातावरणकेँ अलौकिक बना रहल अछि। ई सभ फूल लोढ़बा लेल बहरेली अछि। फूल लोढ़बा लेल, तोड़बा लेल नञि। माने साँझ धरि जे फूल मौलायब आरम्भ भऽ गेल अछि, झरि जेबा योग्य भऽ रहल अछि, तुइबा लेल प्रस्तुत अछि तकर सञ्चय करबा लेल। अधिकांश फूल भोरमे फुलाइत अछि से साँझ धरि लोढ़बे योग्य रहि जाइत अछि। ओकरा सभकेँ चुनि कऽ अपन डाला भरैत नव विवाहिताक सासुरसँ आयल भार-दोरक बात, पतिक चर्चा, परिहास आ हँसीक बोर दैत नव विवाहितामेसँ क्यौ फेर उठा दै छथि बटगमनी आ मिथिलाक संस्कृति ओहिमे बिहुँसऽ लगैत अछि। आनन्द मग्न नव विवाहिताकेँ अन्तिम दिन टेमी दगबाक परम्पराक रोमाञ्चो छनि। पानक पातसँ पति आँखि मुनता आ टेमी दगबाक विधि होयत। चर्चामे ई विधि सेहो अछि आ लुकझुक होइत-होइत सभ अपन डाला फूल-पातसँ भरि घुरै छथि तँ साँझक गीत आरम्भ भऽ जाइत अछि ‘कोन घर साँझ सँझाय गेल कोने घर दीप जरु रे, बाबू कोने सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे...।’
कहबाक तात्पर्य जे सगरो उछाहे उछाह अछि, मुदा एहि महापर्वमे एतबे धरि नञि अछि। ई अपना भीतरमे अनेक महत्वपूर्ण आ महत्वपूर्ण तथ्य समेटने अछि। एकर महत्ताकेँ एहीसँ बूझल जा सकैत अछि जे ई साहित्योमे अपन स्थान बनेलक। डॉ. शैलेन्द्र मोहन झाक उपन्यास ‘मधुश्रावणी’ मैथिली साहित्यमे आइयो अपन विशिष्ट स्थान रखैत अछि। ओना एहि पोथी सन दुखान्त मधुश्रावणी पाबनि नञि अछि। ई अपना अन्तसमे मधुरताक संग बहुत रास चिन्तन सहेजि रखने अछि। आने पाबनि जकाँ एकर सामाजिक सरोकार तँ अछिए ई नव विवाहिताकेँ गाहर्स्थ्य जीवनक योग्य बनेबाक काज सेहो करैत अछि। से व्यावहारिक आ मनोवैज्ञानिक दुहू स्तरपर।

गृहस्थ जीवन लेल दैछ मार्ग-निर्देश
मिथिलाक नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी आस्था आ श्रद्धासँ गहीँर धरि जुड़ल अछि। नव विवेहते नञि अपितु मिथिलाक कतेको विवाहिता आजीवन एहि पाबनिकेँ मनबै छथि। हँ, ओ नव विवाहिता एकरा साओन कृष्ण पक्षक पञ्चमीसँ साओन शुक्ल पक्ष तृतीया धरि मनबै छथि जिनका वैवाहिक जीवनमे पहिल बेर ई पाबनि अबै छनि आ आन-आन विवाहिता अन्तिम दिन उपास रखै छथि कि एकसञ्झा करै छथि आ अनोन खाइ छथि। नव विवाहिताकेँ मोसरामनी पुजेबामे ओ नित्य बढ़ि-चढ़ि कऽ भाग लै छथि। हुनक उछाह देखिते बनैत अछि। ई तँ अछि श्रद्धा-विश्वासक हाल। एकर दोसर पक्ष सेहो अछि। नव विवाहिता गृहस्थ जीवनमे प्रवेश करै छथि तँ हुनका गृहस्थीक गाड़ी गुड़केबा लेल आवश्यक जनतब सेहो चाही। मधुश्रावणी एहिमे मेहक काज करैत अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिनकेँ सभ दिन फराक-फराक निर्धारित कथा सुनाओल जाइ छनि जे गाहर्स्थ्य जीवनसँ कोनो ने कोनो रूपमे जुड़ल रहैत अछि। मिथिलामे सभसँ नीक शिव-पार्वतीकेँ नीक दम्पती गेलनि अछि। हुनकासँ जुड़ल अनेक कथा पबनैतिनकेँ सुनाओल जाइ छनि। एकर अतिरिक्त ओ मंगला गौरी, पृथ्वीक जन्म, समदु्र मन्थन, सती, पतिव्रता, गंगा, गौरीक जन्म, काम दहन, गौरीक तपस्या, गौरीक बियाह, मैनाक मोह भंग, कार्त्तिकेय, गणेश, लीलीक जन्म, विदाइक भार, गौरिक भागिन पुरिबा-पछबा, पतिव्रता सुकन्या, गौरीक ननदि आदिक कथा सुनै छथि। एहि कथा सभमे जतऽ शास्त्रीयताक पुट रहैत अछि ओतहि दाम्पत्य जीवनमे केहन आचार-विचार हेबाक चाही, एकर की लाभ होइत अछि आ विमरीत गति अपनेने की हानि होइत अछि, विवाहक बाद नव सम्बन्ध ननदि, भागिन आदिसँ सेहो हुनका परिचित कराओल जाइ छनि। ई कथा सभ नव-नव सम्बन्धक बीच समन्वय बनेबाक आ गृहस्थीकेँ सुचारु रूपसँ चलेबाक मानसिकता तैयार करैत अछि।

सासुरवास लेल मनोवैज्ञानिक तैयारी
मधुश्रावणी ओना तँ आने पाबनि जकाँ नजरि अबैत अछि, मुदा एकर महत्व एहि दृष्टिञे बढ़ि जाइछ जे ई ओहि नव विवाहिता लेल अछि जे अपन ओहि घर-परिवारकेँ छोड़ि अपन सासुर जेती जाहि ठाम ओ बालपनसँ लऽ युवावस्था धरि बितेलनि। जाहि गामक माटि-पानिमे ओ खेलेली। माता-पिता, भाय-बहिन, काका-काकी, सखी-बहिनपा, अपना गामक चिन्हार खेत-खरिहान, गाछी-बिरछी, पोखरि-झाँखरि सभकेँ त्यागि ओ ओहि गाम जेती जाहि ठाम हुनक परिचित पति मात्र हेथिन। बड़सँ बड़ ओ देओरकेँ चिन्हैत हेती। अपरिचित सासु-ससुर, ननदि-नन्दोसि, देयादनी, भैंसुर, देयोर आदिक बीच हुनका अपन गृहस्थी बसेबाक छनि। मधुश्रावणी नव विवाहिताकेँ सासुरवास लेल मनोवैज्ञानिक रूपसँ तैयार सेहो करैत अछि। एहिमे नव विवाहिता लेल विधान कयल गेल अछि जे अछि जे ओ भरि पाबनि सासुरेसँ आयल अन्न, फल, दूध, पूजन सामग्री, वस्त्र आदिक उपयोग करती। परिणाम ई होइत अछि जे नव विवाहिता अपन नैहरमे रहितो ओहि ठामक किछु उपयोग नञि करै छथि। काल्हि धरि जाहि नैहरक सभ किछु उपयोग करैत रहली ताहिसँ लगातार 14 दिन कटल रहब सेहो नैहरमे रहिते हुनकापर मनोवैज्ञानिक असरि जरूर बनबैत हेतनि। एहिसँ मानसिकता अवश्य बनैत होयत जे आब ओ हुनक अपन घर नैहर नञि छनि। नैहरक बदला सासुरकेँ अपन घर मानबा दिस प्रेरित करबाक ई पाबनि पहिल सीढ़ी बनैत अछि। तहिना सासुरक आर्थिक स्थितिसँ अवगत भऽ तदनुकूल अपनाकेँ तैयार करबाक अवसर सेहो ई नव विवाहिताकेँ दैत अछि। पाबनि लेल कनिञाकेँ पठाओल जायवला मधुश्रावणीक भारक ओरियान प्राय: वास्तविक आर्थिक स्थितिसँ थोड़े बढ़िएक कऽ कयल जाइत अछि। एहि पाबनिमे कनिञाक संग हुनक माय आ नैहरक आन स्त्रीगण परिजन लेल वस्त्र सेहो पठाओल जाइत अछि। एहिसँ अनुमान कयल जा सकैछ जे कनिञाक सासुरक केहन भोजन आ पहिरन-ओढ़न छनि। नव विवाहिताकेँ ई अवसर दैत अछि जे आयल भारसँ कम कऽ अपना सासुरक आर्थिक स्थितिकेँ आँकथि आ ओहिमे अपन सामञ्जस्य लेल तैयार होथि।

पर्यावरणसँ बढ़बैछ निकटता
ओना तँ सभ पाबनि प्रकृतिएपर आधारित होइत अछि। जखन-जखन प्राकृतिक परिवर्त्तन होइत अछि कोनो ने कोनो पाबनि अवश्य मनाओल जाइत अछि, मुदा नव विवाहिताक महापर्व मधुश्रावणी एहन पाबनि अछि जे पबनैतिनकेँ सोझे प्रकृतिसँ जोड़ैत अछि। ओकरा प्रकृतिक लग अनैत अछि आ ई सन्देश दैत अछि जे पर्यावरणक लेल सभ गाछ-बिरिछ अनिवार्य आ उपयोगी अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिन रोज साँझमे फूल लोढ़ै छथि। फूलक संग ओ विभिन्न गाछक पात सेहो जमा करै छथि। ताहिमे बेली, चमेली, ओड़हुल, गुलाब, कनैल, अपराजिता आदिक फूल आ जाही, जूही, बाँस, मेहदी, लताम, औरा, अनार, अकौन आदिक पात होइत अछि। एहि सभसँ डाला भरि पबनैतिन नित्य साँझमे घर घुरै छथि आ एही फूल-पातसँ अगिला दिन भोरमे पूजन होइत अछि। एहि पाबनिमे बासिए फूल-पातसँ पूजाक विधान अछि। फूल लोढ़बा काल तँ नव विवाहिताक बीच गाछ-पातक नाम आ ओकर उपयोगिताक चर्च होइते अछि, कोन फूल-पात पूजाक उपयोगमे आयत आ नञि ताहिपर एक-दोसरसँ तँ विमर्श होइते अछि, बूढ़-पुरान सेहो एहि सम्बन्धमे नवका पीढ़ीकेँ जानकारी दैत रहला अछि।ई क्रम पहिल दिन मौना पञ्चमीसँ लऽ अन्तिम दिन धरि चलैत अछि। पातो तोड़बाक विधान ताहि समयमे राखल गेल अछि जखन बरखा होइत रहैत अछि। पाबनि साओन मासमे होइत अछि आ एहि समयमे गाछसँ पात हटेने ओकर क्षति नञि होइत अछि।

साँप पर्यन्त केर रक्षाक मानसिकता
पर्यावरणमे साँप सन विषधर केर सेहो महत्वपूर्ण स्थान अछि। आधुनिक विज्ञानो एकरा स्वीकार करैत अछि। से कतेको अनुसन्धानक बाद, मुदा मिथिला अदौसँ एकरा जनने अछि। मात्र जनबे ने केलक, अपितु साँप सन जीव पर्यन्तक रक्षा लेल एकर विधान मधुश्रावणीक संग केलक। नव विवाहिता तिथिक हिसाबे लगातार 14 दिन धरि बिसहरि केर पूजन करै छथि। नाग-नागिनसँ सम्बन्धित अनेक कथा सुनै छथि जे आगामी जीवनक पाथेय बनैत अछि। अक्षय अहिबातक कामना संग होबऽ वला एहि पाबनिकेँ महिलेसँ ताहूमे नव विवाहितासँ जोड़बाक पाछाँ कारण सेहो अछि। ई विधान प्राय: एहि दुआरे कयल गेल जे ओहि नव विवाहिताक जीवनमे पहिल बेर ई पाबनि अबैत अछि भावी माता होइ छथि। जँ माय पर्यावरणक संरक्षा-सुरक्षा केर संग सर्प सन जीवक प्रति संवेदनशील हेती तँ ओ अपना सन्तानमे सेहो एकर संवेदना भरि सकती। यैह कारणो अछि जे मिथिला क्षेत्रक महिला तँ धार्मिक-आध्यात्मिक होइते छथि, हुनकासँ कनेको कम पुरुष नञि होइ छथि। तेँ अन्धानुकरणक अन्हर-बौखीक बादो एखनो मिथिलाक अधिकांश लोक अपन सांस्कृतिक परम्पराक प्रति ममत्व रखै छथि। ओना धीरे-धीरे एहूमे घून लागब शुरू अछि।

महिलाक पौरोहित्य सशक्तिकरणक आधार
सगरो दुनिञामे महिला सशक्तिकरणक अनघोल अछि। सभ तरि एके रंग बात जे महिलाकेँ कतिया कऽ राखि देल गेल। हुनका विकास नञि करऽ देल गेल। अपनो ओहि ठाम यैह हाल, मुदा मिथिलाक स्थिति अतीतमे देश-दुनिञाक आन क्षेत्रसँ सर्वथा भिन्न रहल अछि। ई सत्य जे पुरुष समाज जकाँ अपनो ओहि ठाम महिला लोकनिक समाजक सभ क्षेत्रमे सक्रिय नञि रहली, मुदा विद्याक क्षेत्रमे एहन नञि रहल। ज्ञानार्जनक अधिकार प्राचीन कालेसँ मैथिलानीकेँ रहलनि। तेँ ने मिथिला पुत्री गार्गी एतहि भेल छली जे राजा जनक ओहि ठाम ब्रह्मज्ञानी लोकनिक सभामे सम्मिलित होइत छली। शास्त्रार्थ करै छली। से की बिना पढ़ने-लिखने? तहिना सुलभा, सुनयना, मैत्रेयी, भारती, लखिमा आदि रहली। तहिना महिलाकेँ पौरोहित्यक अधिकार सेहो छलनि। आइयो छनि। मधुश्रावणी पाबनिमे आइयो महिलाकेँ पौरोहित्य करबैत देखल जा सकैत अछि। महिला पुरहित होइ छथि टोल-समाजक कोनो बूढ़-पुरान दादी, काकी, पीसी आदि जे प्रतिदिन नव विवाहिता पबनैतिनकेँ मोसरामनी पुजबै छथि आ सभ दिन लेल निर्धारित फराक-फराक कथा कहै छथि। अन्तिम दिन हुनका दक्षिणामे नव नूआ आदि सेहो भेटै छनि। आर तँ आर गाम-घरमे हुनका ‘पण्डीजी’ कहि सम्बोधित सेहो कयल जाइ छनि। कतेको गाममे आइयो मोसरामनी पुजनिहारि नव विवाहिता सभक बीच फूल लोढ़बा काल ई संवाद सुनल जा सकैत अछि ‘गे बहिना तोहर पण्डीजी के छथुन, हमर तँ अपने बड़की मैञा छथि?’ उत्तरमे कोनो काकी, कोनो दीदी, कोनो गामवालीक नाम कहल जाइत अछि। ई व्यवस्था लौकिक अछि। माने शास्त्रीय आ लौकिक दुहू दृष्टिञे मिथिला अपन मातृ शक्तिकेँ यथोचित सम्मान दैत रहल अछि। ई परम्परा नव विवाहिताक महापर्व मोसरामनीमे एखनो विद्यमान अछि।

मातृभाषाक प्रति बनबैछ संवेदनशील
नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी मिथिलाक मातृभाषा मैथिलीक प्रति सेहो संवेदनशील बनबैत अछि। एहि पाबनिमे सभटा कथा मैथिलीमे होइत अछि। फूल लोढ़बा काल, पूजा काल बिसहरि, गोसाउनि, मधुश्रावणी आदिक गीत तँ मैथिलीमे होइते अछि एहिमे जे पाँच गोट विशेष लौकिक मंत्रक विधान कयल गेल अछि जकरा बीनी कहल गेल अछि। व्रती पूरा आस्थासँ प्रतिदिन ई सुनै छथि- ‘जहियासँ भेल नाग मनारे। बिसहरि खसली शम्भु-भड़ारे...’, ‘गोसाउनि दान बड़ि, सोहाग बड़ि, आधा साओन....’, ‘गोसाउनि दाइकेँ एक ढक छियनि, पुरिबा-पछबा बसात छियनि..’, ‘बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल पहिल कोन...’ आ ‘दीप दिपहरा जाथु धरा, मोती मानिक भरथु घरा...।’ कतेक ठाम गौरी, बिसहरि, बैरसी, चनाइ नाग, कुसुमावती, पिंगला, लीली नाग, शतभागिनि, गोसाउनि, नाग, साठि आदिक पूजा पूर्णत: मैथिलीमे होइत अछि तँ कतेको ठाम पूजन संस्कृतमे आ लौकिक विधान बीनी आदि मैथिली आदिमे होइछ। माने शास्त्रीयता आ लौकिकताक समन्वय रहैछ। 

मधुश्रावणीक गीत आ बीनी

मधुश्रावणीक गीत आ बीनी
नव विवाहिताक महापर्व मधुश्रावणी पाबनि मनायल जा रहल अछि। एकर समापन आगामी 9 अगस्तकेँ साओन शुक्ल तृतीयाकेँ होयत। नव विवाहिता लोकनि गौरी, बिसहरा, वैरसी, चनाइ नाग, कुसुमावती, पिंगला, लीली नाग, शतभगिनी सहित गोसाउनि, साठि केर पूजन कऽ रहल छथि। नित्य कथा सुनि रहल छथि। ओतहि बीनीक मोटरीकेँ खोँइछमे राखि पाँच गोट ‘बीनी’ तीन बेर सुनै छथि। एकर बाद सभ दिन लेल निर्धारित कथा होइत अछि। कथाक अन्तमे ‘बाचो बीनी’ सुनबाक विधान अछि। ओतहि पूजनक समय आ फूल लोढ़बा काल गीत-गायनक परम्परा रहल अछि। साँझक समय सेहो माय-बहिनि लोकनि ‘साँझ’ गबै छथि। पोथीक अभाव आ गामसँ दूर विभिन्न महानगर ओ नगरमे रहनिहार मैथिल परिवारकेँ अपन सांस्कृतिक परम्परासँ जुड़ल रहबामे असुविधा होइ छनि। एहि ठाम प्रस्तुत अछि गीत आ बीनी-


गोसाउनिक गीत- 1
विनती  सुनियौ हे  महरानी,  हम  सभ शरणमे ठाढ़।
अक्षत  चानन  अहाँकेँ  चढ़ायब, आरती  उतारब ना।।
बेली चमेली माँ के हार चढ़ायब, ओड़हुल चढ़ायब ना।
करिया  छागर  धूर  बन्हायब,  उजर  चढ़ायब  ना।।

गोसाउनिक गीत- 2

कोन फूल पीयर हे माता कोन फूल लाल हे
कोन फूल पहिरन माँ के कोन फूल सिङार हे
चम्पा फूल पियर माँ हे ओढ़ूल फूल लाल हे
चम्पा फूल पहिरन माँ के ओढ़ूल फूल सिङार हे
पहिरि   ओढ़िय  काली  मन्दिरमे  ठाढ़  हे
सभ  सखि  मिलि कऽ पूजू माँ के दुआरि हे
पाँच - सात  सखि  मिलि विनिमव तोहार हे
हमरो   विनती   माता   सूनू   बारम्बार  हे
एकटा  जे  आशीष  दियऽ अहैबक सिङार हे
युग - युग   रहै   पबनैतिनक   सोहाग  हे

बिसहरिक गीत

साओन मास नागपञ्चमी भेल
बिसहरि गहवर सोहाओन भेल
केयो नीपै गहवर केया चौपारि
हमही अभागिन निपी दुआरि
केयो लोढ़य अड़हुल केओ बेलपात
 हमहू अभागिन हरियर दूभि
केयो माङय अनधन केओ माङय पूत
हमहू अभागिन सिरक सिन्दूर
कथी के चौखण्डी माता कथी के चौपारि
कथी के ओठङनि बिसहरि खेले जुआ सारि
सोना के चौखण्डी मैया रूपा के चौपारि
तुलसी ओठङनि बिसहरि खेले जुआ सारि
खेलैते धूपैते बिसहरि गेली अलसाय
सिरमा बैसल भगता बेनिया डोलाय
कहाँ तोहर आसन वासन कहाँ निज धाम
कौने दाइक बेटी थिकहुँ की थिक नाम
मेना हमर आसन बासन वैह थिक नाम
गौरी दाइक बेटी थिकहुँ बिसहरि नाम
जोड़ी लागल कलश देब जोड़ी लागल झाँझ
जोड़ी लागल छागर देब रहू एहि ठाम
सदा दहिन रहू होइयौ ने बाम

मोसरामनी पुजबा कालक गीत- 1

पहिरि ओढ़िय कनिञा सुहबे पाबनि पूजऽ बैसली हे
 हे शुभ पावनि दिनमे
लच-चल लचकै हुनकर डाँर
हे शुभ पाबनि दिनमे
घोड़बा चढ़ल अबथिन दुलहा रसिलबा
 हे शुभ पाबनि दिनमे
आजु  सुदिन दिन पाबनि छै
हे शुभ पाबनि दिनमे
ससुरा सँ औतै भरिया भार
हे शुभ पाबनि दिनमे
भरिया के करिहऽ बिदाह
हे शुभ पाबनि दिनमे

मोसरामनी पुजबा कालक गीत- 2

पाबनि पूजू आजु सोहागिन प्राण नाथ के संगमे
कारी कम्बल झारि गंगाजल काजर सिन्दुर हाथमे
चानन घसू मेहदी पीसू लिखू मैना पातमे
पाबनि साजी भरि-भरि आनल जाही-जूही पातमे
कतेक सुन्दर साज साजल अछि लिखल मैना पातमे।

फूल लोढ़बाक गीत

जानकी सखी विचारल झटझाट झारल
हे चलहुँ नन्दन वन जाय, सुन्दर फूल लोढ़ब
लालहि बन फूल लोढ़ब फुल तोड़ब
हे सिन्दुर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब
हरियर बन फूल लोढ़ब, फुल तोड़ब
पानहि भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।
कारी बन फूल लोढ़ब, फुल तोड़ब
हे काजर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।
चारु बन फूल लोढ़ब, फुल तोड़ब
हे माङब अखण्ड सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।


साँझ
कोन घर साँझ सँझाय गेल कोने घर दीप जरु रे
बाबू कोने सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे
बड़बा बाबा साँझ सँझाय गेल बड़की बाबी घर दीप जरु रे
फल्लाँ बाबा घर सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे
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बीनी-1

जहियासँ भेल मन-मनारे। बिसहरि खसली शम्भु-भड़ारे।।
कानथि गौरा फोड़थि ढाह। हे दाइ बिसहरि राखू नाह।।
आब तुलायलि पाँचो बहिनी। सकल शरीर घामि गेल बीनी।।
बीनी हे बिसकर्मा देलनि । देव-दोतिलकेँ देखऽ देलनि।।
सामिल-बाइल हरे परेखी। बेनी-गुण यति कहब विशेषी।।
आँतर-आँतर लागल मोती। मुक्ता गाछ पाट के थोपी।।
चारि कञ्चन चारि सामिक वरना। से देखि माइ हे आदित भुलना।।
से देखि माइ हे मालिन भुलना। डाँटी लागि गरुड़ के वाला।।
सोने बान्हू बान्ह करोड़ा। रूपे बान्हू गजमोती माला।।
जे बनीइ तेन बीनइ सारी। गहा-गुही पलटा दे नारी।।
अन्हरा पाबय नयन-संयुक्ता। कोढ़िया पाबय निर्मल काया।।
बाँझी नारि पाबय पुत्ता। जे ई बीनी सुनय चित्ता।।
अनधन लक्ष्मी बाढ़य वित्त। जे ई बीनी सुनय मन लागि।।
तकरा वंश नञि हो विष-दोष। तकर पुरुष चलय लछ कोस।।
जँ बीनीक लागय बसात। बीष-दोष नञि आबय पास।।

बीनी- 2
गोसाउनि दान बड़ि, सोहाग बड़ि, सुन्दर बड़ि, आधा साओन
जगत्र गोसाउनि, मधस्थ राजाक बेटी, युगे कुमरक बहिन
मधु-मधु महानाग-श्रीनाग-नागश्री दाइकेँ पाँच पुत्र कोखि धरि
नाहर परतारि बैरसी बियाहि, मद्र-मनिका धरहर ढाहि, गोसाउनि
सन भाग, लीली सन सोहाग, सुननिहारिकेँ होइनि।

बीनी- 3
गोसाउनि दाइकेँ एक ढक छियनि, पुरिबा-पछबा बसात छियनि,
कोखिलाक सात छियनि, भमराक लात छियनि, मेघडम्बर सन छाती छियनि
मुक्तावली पाँती छियनि।

बीनी- 4
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल पहिल कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल दोसर कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल तेसर कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल चारिम कोन।
बीनी बूनल झोर कोन, बीनी उठल पाँचम कोन।
चारू कोना रूना टूना भेल सम्पूर्णा, गौरा दाइकेँ पाँचो बेटिया।
भल भाइ शंकर हमहीँ जियाओल गौरी दाइ के बेटी।।

बीनी- 5
दीप दिपहरा जाथु धरा। मोती-मानिक भरथु घरा।।
नाग बढ़थु, नागिन बढ़थु। पाँच बहिन बिसहरा बढ़थु।।
बाल बसन्त भैया बढ़थु। डाढ़ी-खोँढ़ी मौसी बढ़थु।।
आशावरी पीसी बढ़थु। बासुकी राजा नाग बढ़थु।।
बासुकिनी माय बढ़थु। खोना-मोना मामा बढ़थु।।
राही शब्द लऽ सुती। काँसा शब्द लऽ उठी।।
होइत प्रात सोना कटोरामे दूध-भात खाइ।।
साँझ सूती प्रात उठी, पटोर पहिरी कचोर ओढ़ी।।
ब्रह्माक देल कोदारि, विष्णुक चाँछल बाट।।
भाग-भाग रे कीड़ा-मकोडाÞ। ताही बाट अओता ईश्वर महादेव,
पड़ल गुरूड़क ढाठ। आस्तिक, आस्तिक, आस्तिक, गरुड़, गरुड़।।

वाचो बीनी
पुरैनिक पत्ता, झिलमिल लत्ता, ताहि चढ़ि बैसली बिसहरि माता।
हाथ सुपारी खोँइछा पान, बिसहरि करती शुभ कल्याण।

Tuesday, 23 July 2013

शोणितक दाम

                                                   शोणितक दाम
                                                       -अमलेन्दु शेखर पाठक
श्आब हí क· रहल छी अहाँ सभÓ -मोद बाबू गरजला। श्एहन कतहु सुनबो ने केने रही हमरा लोकनि, आब हमरो सभक उमेर कम थोड़े रहल, अस्सी लगिचा देलियैÓ।
मोद बाबूक गरजबाक कोनो असरि नहि पड़ल। सभ एक-दोसराक मुँह मात्र तकैत रहल। कमल बाबूक चारू पुत्र अपनामे कटाउँझ करैते रहलथिन। के आगि देत से फरिछाए नहि रहल छल। जेठ बालक जयपालक अèािकारे बनै छनि, मुदा छोटका रामपालक कहब छनि जे ओ मोन खराब भेलापर एको बेर हुलकियो मार· नहि एलखिन। माझिल श्यामपाल सेहो आगि देबा लेल फाँड़ भिडऩे छथिन, मुदा पछिला जतरामे ओ मदन बाबूसँ लडि़ क· गेल छलथिन आ सौँसे समाज र्इ देखने छलनि तेँ बजबाक साहस नहि छलनि। ओना कनियाँ कहने रहथिन आगि देबा लेल। कारण जे आगि देतै तकरा बड़का अठकठबा भेटतै। बजबो केलनि, मुदा सझिला जनकपाल भाँजी मारि देलथिन- श्अहाँ आगि देबै से हमहीँ किए ने देबै, गाम èा· क· रहलहुँ हम आ आगि देबनि आहाँ सभ? नेरकम केलियनि हमरा लोकनि आ आगि देबा लेल आहाँ सभ उताहुल छी, लाजो नहि होइए?Ó
मोन तँ तिलमिला गेलनि, मुदा चुपे रहि गेला। आइ बोèा भ· रहल छनि जे गाम आबर-जात किए नहि करैत रहला। बाबू कूही भ· क· मरला। सभ दिन गाँजाक सोँट मारैत रहला जनकपाल आ आइ जे छोह देखा रहल छथि।
ओमहर गोपालकेँ किछु ने फुरा रहल छनि, की करथु? कोना क· कहथु अपन नाम। अपन नाम लैते हरबिर्रो ने मचि जाय। चारू भर नजरि खिरेलनि - श्मशान भूमिमे ठाढ़ छथि सभ लोक। कहै छै जे श्मशानमे आबि क· सभटा मोह मायासँ लोक मुä भ· जाइत अछि, मुदा एत· तँ उन्टे भ· रहल छै। सभ अपना अपनी दिस अठकठबा समेटबा लेल बेहाल अछि। सामने चिता सजल अछि आ ओहिपर कमल बाबूक शव पाड़ल छनि। एक कात गोँइठा सुनुगि रहल अछि। कमल बाबू एनमेन तेना जेना सूतल होथि। गोपालकेँ कमल बाबूक संग बितायल एक-एक पल स्मरण पडय़ लगलनि। ओ कमल बाबूक क्यौ नहि छथि। क्यौ नहि छथि माने, रä संबंèाी नहि छथि। ओना क्यौ कोना नहि छथि। नामो तँ हुनके देल छनि। अपन माय-बाप मोनो कहाँ छनि। पाँचे वर्षक रहथि जखन कमल बाबूकेँ लहेरियासराय टीसनपर भेटल रहथि। कहाँ दन तहिया ब³ला बजैत रहथि गोपाल, गोपाल नामो कहाँ कहने रहथि। किछु नाम कहने रहथि आ कमल बाबू गोपाल कहय लागल रहथिन। कमल बाबू तहिया युवके छला आ नोकरी तकै छला। बालो-बच्चा कहाँ भेल छलनि। जखन टीसनपर क्यौ नहि रखलनि आ गोपाल कनैत-कनैत लहालोट भ· गेला तँ अपना संग नेने एलथिन। कमल बाबूक पत्नी कुमुदिनी सेहो छाती सँ लगा लेलथिन। थोड़े दिन ताक हेर क· पुत्रवते राखि लेलथिन। गोपालक अबिते संयोग लगलै आ कमल बाबूकेँ प्रोफेसरी भेटि गेलनि। विवाहक दस वर्ष बीति गेल रहनि, मुदा कोनो संतान नहि भेल छलनि। दुनू बेकती दुखी रहै छला, से गोपालक अबिते कुमुदिनी मातृसुख पौलनि। अपनो संतान भेलनि, मुदा एहिसँ गोपालक मान-दानपर कोनो असरि नहि पड़लनि। दू पुत्रक बादे आपरेशन कराबय चाहै छला कमल बाबू, मुदा हुनका मायक जिदकेर समक्ष नतमस्तक भ· जाय पड़लनि। कुमुदिनीकेँ माय आ कमल बाबूकेँ बाबू कहै छला गोपाल। से माय अस्वस्थ रहय लगलथिन आ बाबूक समक्षे सभकेँ छोडि़ बिदा भ· गेली। ताबत जयपाल बीडीओ भ· गेल छलथिन। श्यामपालोकेँ रेलवेमे नोकरी भ· गेल छलनि। जनकपाल आर्इ.ए.एस. केर तैयारी लेल दिल्ली ओगरने छला आ रामपालकेँ आवारागदÊसँ फुर्सति नहि रहनि। गोपालकेँ जते भ· सकलनि निमेरा करैत रहला। माय खूब मोनसँ आशीर्वाद देने रहथिन। हुनकर अंतिम इच्छा रहनि पुतहुक मुँह देखबाक। गोपाल तैयार भ· गेला, मुदा कोनो भाइ ताहि लेल तैयार नहि। तहिया सभकेँ गोपाल अपन जेठके बुझेलथिन। गोपालक विवाह भ· गेलनि। मायक मनोरथ पूर भेलनि, मुदा गोपाल चाहैत रहथि जे सभ भाइ समर्थे छथिन, किए ने एके लगनमे सभक विवाह भ· जाय। मायोक मन रहनि, मुदा चुपे रहि गेल। कमल बाबू कहबो केलथिन, मुदा सभ भाइक जीवन वैयäकि भ· उठलनि। विवाह करबाक करबे केलनि, मुदा मायक देहांतक बाद। गोपालोक संग भाइ सभक दूरी बढय़ लगलनि आ ओहि दिन ओ पूरा-पूरी आन भ· गेलथिन जहिया पता लगलै जे बाबू जमीन पाँच भागमे बाँटि देने छथि। सभ भाइ विæोहपर उतरि एला। कमल बाबूसँ सभक कहा-सुनी èारि भ· गेलनि। गोपाल सेहो बुझौलकनि, मुदा बाबू नहि मानलथिन आ अपन सप्पत द· चुप क· देलथिन। भाइ सभक इच्छा रहनि जे गोपाल घर छोडि़ देथि। गोपाल कतेको बेर कानाफुस्सी सुनबो केलनि, मुदा गबदी मारि देलनि। जाबत बाबू छथिन ताबत रहता। छोडि़ क· चलि जेता तँ हुनका के देखतनि? आ गोपालक र्इ निर्णय ठीके रहलनि। परुकाँ बाबू बीमार पडि़ गेलथिन। देह सुखा गेलनि। अस्पतालमे भतÊ कयल गेलनि। जेठका जयपालकेँ फुर्सतिए नहि भेटलनि जे देखियो जैतथिन। माँझिल श्यामपाल एलखिन जरूर, मुदा रä देबाक बात सुनिते मोन बì खराब भ· गेलनि। जखन अपने अस्वस्थ रहथि तखन बाबूकेँ रä कोना दितथिन। रामपालकेँ पत्नी साफ मना क· देलथिन। जनकपाल ताबत नहि भेटलथिन जाबत खूनक ब्यौत नहि भ· गेलै। गोपाल एहि लेल प्रस्तुत छलाहे। पूरे चारि बोतल खून देलथिन। तीन बोतलक बाद डाक्टर साफ मना क· देलकनि श्आब खून लेने खतरा भ· सकै छैÓ। गोपाल नहि मानलनि। बाबू लेल जान चलियो जेतनि तँ की हेतै? जीवनो तँ हुनके देल छनि। बाबूकेँ जखन पता लगलनि तँ भरि पाँज èा· लेलथिन आ कहलथिन श्बौआ खाली मायक पेटेसँ जनमलासँ क्यौ ककरो बेटा नहि होइ छै से तोँ सिद्ध क· देलेँ...तोँ नहि रहितेँ तँ बेटा अछैतो निपुत्रे रहि जैतहुँ...हमरा लग तोरा पठा क· भगवान संतान-सुख बुझबाक अवसर देलनि...हे एगो बात कहै छियौ, जखन मरि जाइ तँ तोहीँ आगि दिहेँ। आन देत तँ आत्मा काहि काटत, तोँ देबेँ तँ जुड़ा जायत बौआÓ।
गोपाल गछि तँ लेलनि, मुदा बुझै छला जे प्रस्ताव दैते समाजो विरोèामे ठाढ़ भ· जायत। कोन जाति-èार्मक छथि सेहो तँ पता नहि। आ अखन,जखन समाज तय क· देलकै जे आगि देनिहारकेँ अठकठबा भेटतै, सभ भैयारी एहि लेल मारि ठनने छथि। अठकठबा तय होयबासँ पूर्व ककरो फुर्सति नहि छलनि तँ किनको मन खराब छलनि। आब मुर्दा पड़ल अछि आ सभ अठकठबापर गिद्ध जकाँ èयान लगेने छथि। की करथु गोपाल, बाबूक अंतिम इच्छा पूरा करबा लेल आगि देबा लेल अपन नाम कहथुन की नहि?...कहीँ तेसरे बखेरा ने भ· जाय। किछु निर्णय नहि क· पाबि रहल छथि। भीतरसँ अबाज उठलनि-श्अपनाकेँ सुरक्षित रखबा लेल चुप रहि जेताÓ। हठात उठला आ जयपालकेँ कहलथिन जे आगि ओ देता। जेना एकेबेर खरक आगि जकाँ सभ èाुèाुआ उठल। जयपाल सोझे आरोपो लगा देलथिन- श्खूनक दाममे अठकठबा चाहै छी?Ó
गोपाल सन्न रहि गेला। जयपाल एते खसि पड़ता से सोचनहुँ नहि छला। अवाक रहि गेला गोपाल। थोड़े काल बोले नहि फुटलनि, कने कालक बाद कहलथिन- श्बाबूक इच्छा रहनि तेँ, अठकठबा अहीँ सभ बाँटि लेबÓ। आब गौओँ सभ सुगबुगयला- र्इ कोना हेतै? अपन पुत्र अछैत आनक जनमल आगि देतै? देयादो रहितनि तँ ठीक छल। गोपाल भीतरे-भीतर कूही भ· उठला- भगवान हिनके कोखिमे किए ने जन्म देलथिन। कमल बाबू सन साèाु पुरुषक हाल भीतर èारि हिला देलकनि। आश्चर्य होइ छनि गोपालकेँ- एक टा माय कि बाप चारि टा संतानकेँ पोसि लै छै, मुदा चारि टा संतान मिलि एकटाकेँ नहि पोसि पबैए। गोपालक प्रस्तावपर भाइ सभ तँ तैयार भ· गेलथिन, आब समाजे विरोèामे ठाढ़ भ· गेलनि।
ताबत राजेÜवर बाबू ओकील हपसैत पहुँचि गेलथिन। ओ दाह संस्कार नहि होयबाकेँ नीक मानि रहल छला। कमल बाबू हुनका एगो लिफाफ देने रहथिन। कहने रहथिन जे हुनक मृत्युक बाद दाह संस्कार होयबासँ पूर्व खोलबाक निर्देश देने रहथिन, से कमल बाबूक देहांतक जानकारी भेलापर गंगापुरसँ सोझे दौड़ल गामपर गेला आ शव श्मशान चलि जेबाक बात सुनि सोझे एत· एला अछि। उपसिथत लोक सभमे हबगब शुरू भ· गेल। किनको मत रहनि जे कमल बाबू सभटा संपत्ति गोपालक नाम क· देने हेथिन तँ क्यौ एकरा गोपालक चलाकी मानि रहल छला। ओमहर चारू भाइकेर चेहरा निश्तेज भ· उठल छलनि। सभ एक-दोसराक मुँह देखि रहल छला। राजेÜवर बाबू लिलाफ फोललनि। सभ लोक हुनका घेरि लेलकनि। लिफाफसँ एगो कागत बहरायल जाहिपर लिखल छल जे श्हुनका आगि देथि श्री...पालÓ। आब भारी फेरी लागल। कागतमे पूरा नाम किनको नहि। श्पालÓ शब्दसँ पहिने सादा छलै। सभ भाइ तर्क देबय लगला। सभक यैह कहब जे बाबू हुनके नाम लिखय चाहै छला। बूढ़ रहथि से अक्षर छूटि गेलनि, मुदा एहिसँ निदान तँ नहि बहरायत। किछु लोक एहि लेल कमल बाबूकेँ सेहो लोक नीक-बेजाय कहय लगलनि। कमल बाबू रहथि मखौलिया। जाबत जीला सभकेँ हँसबैते रहला, मुदा किछु लोककेँ हुनक र्इ स्वभाव नीक लगनि तँ किछु गोटे भीतरे-भीतर डाहो रखै छला। कमल बाबू अपना पत्नीयोकेँ परिहास करैत रहै छलथिन। दलसिंहसराय कालेज जाथि आ अयबामे बेसी दिन भ· जानि तँ कहियो तेना अक्षर उन्टा क· चि-ी लिखि देथिन जे ककरो चलबे ने करै, मुदा कुमुदिनी आ गोपालकेँ बुझा देने रहथिन। कहियो सामने अयना राखि ओहिमे सभटा खेरहा पढ़ा जाय तँ कहियो शीर्षक नीचा क· अयनाक समक्ष पत्र रखलापर पढ़ाय, मुदा आइ तँ किछु लिखले नहि छै। गोपालोक बुद्धि काज नहि क· रहल छनि। एही बीच राजेÜवर बाबूक हाथसँ कागज उèािया गेलनि आ सोझे èाुआँइत गोँइठापर जा क· खसलै। जाबत लोक उठाबय-उठाबय ता कागत कुड़कुड़ा गेलै आ श्पालÓ शब्दसँ पहिने चमकि उठलै अक्षर श्गोÓ, आब शब्द पूरा भ· क· गोपाल भ· गेल छलै। हलसि उठला गोपाल आ मुखागिन दैत बाजि उठला श्तोँ सभ की देबह खूनक दाम, दाम तँ देलनि बाबूÓ। आ बुक्का फाडि़ क· कानि उठला गोपाल  श्बाबू यो बाबू... अगिलो बेर जन्म ली तँ अहीँ बाप होइ यो बाबूÓ।

‘झिझिर कोना’ खेलाइत मिथिला-मैथिली आन्दोलन

   ‘झिझिर कोना’ खेलाइत मिथिला-मैथिली आन्दोलन

      -अमलेन्दु शेखर पाठक
             
  ‘झिझिर कोना, झिझिर कोना, कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना’, धीयापुताक खेलक ई सांगीतिक समूह-स्वर हमर ध्यान अनचोके मिथिला-मैथिली आन्दोलनपर केन्द्रित कऽ दैत अछि। तहिना जखन कखनो मिथिला-मैथिली आन्दोलनपर विचार करै छी किंवा एकरा लगसँ हिआसै छी हमरा कानमे नेना-भुटकाक खेल ‘झिझिर कोना’ केर ई प्रश्नोत्तरी अनुगुञ्ति होबऽ लगैत अछि। दुनू एक-दोसराक पर्याय जकाँ बुझाइत अछि। दुनूमे अद्भुत समानता।  से उद्देश्य आ गतिविधि दुहू दृष्टिञेँ। बच्चा सभ ई खेल मनोरञ्जन आ समय बितेबा लेल खेलाइ छथि। कोनो काज नञि अछि तँ चलू ‘झिझिर कोना’ खेलि ली। नेना लोकनिमे बहुतोकेँ एकर लुतुक सेहो। आन खेल नञि रुचै छनि। घुरिफिरि कऽ यैह खेलता। एहने सन हाल मैथिली-मिथिला आन्दोलनोक देखबामे अबैत अछि।
    जेना ‘झिझिर कोना’ खेल कोनो कोठली आकि दलानक कोन भरि खेलल जाइत अछि तहिना आन्दोलनी सेहो निर्धारित कोनसँ बहरेबा लेल तैयार नञि। ‘झिझिर कोना’ मे होइत अछि ई जे चारि अथवा एहिसँ बेसी कोनसँ सटि कऽ नेना ठाढ़ रहै छथि। एक गोटा बीचमे ठाढ़ रहैत अछि। कोन धेने ठाढ़ बच्चा सभ एक-दोसरासँ स्थान बदलै छथि। एक कोनसँ दोसर कोन धरि पहुँचबासँ पहिने जँ बीचमे ठाढ़ नेना किनको छू देलक आकि खाली कोनो कोन धऽ लेलक तँ छुआ गेल आ कि स्थान पेबासँ वञ्चित रहि गेल खेलाड़ी बीचवला स्थानपर आबि जाइत छथि। स्थान-परिवर्तनसँ पहिने कोनमे ठाढ़ नेना सभ अपनामे प्रश्नोत्तरी करैत अछि। एक समूह पुछैत अछि ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना?’, दोसर समूह उत्तर दैत अछि ‘सासु घर पुतहुआ कोना’, आ गौँ ताकि बीच वला खेलाड़ीसँ बचैत दौड़ि कऽ कोन बदलि लै छथि। ई खेल स्थान बदलियो कऽ खेलल जाइत अछि। आइ एक दलानपर तँ काल्हि दोसर घरमे। कहियो स्कूलपर तँ कहियो गामक मन्दिरपर। खेलाड़ियो निर्धारिते रहैछ। एक टोलक बच्चा एक ठाम। धोखा-धाखी कहियो कऽ आनो टोलसँ क्यौ ससरि कऽ आबि गेल तँ ओकरो सम्मिलित कऽ लेल गेल। वर्चस्वपर आघात किंवा आन कोनो कारणेँ जँ मतान्तर रहल तँ दोसर टोलवलाक ‘बायकाट’ कऽ देल गेल। कहियो कऽ अपना गोलमे एहि लेल वाकयुद्ध आ मल्लयुद्ध भऽ जाइत अछि आ फूट-फूट दू गोल भऽ गेल। एक गोलक खेलाड़ी दोसरामे गेल तँ ओहो बारि देल गेल।
   अपवादकेँ छोड़ि दी तँ मैथिली-मिथिलाक विकासक अभियानो ‘झिझिर कोना’ जकाँ चलि रहल अछि। जते गाम, जते टोल, तते गोल। खेलाड़िए जकाँ प्रतिस्पर्द्धी भावसँ भरल। एक-दोसराकेँ पछाड़बा लेल अपस्याँत। एहि फेरीमे जँ गोले भहरि जाय तँ तकरो चिन्ता नञि। एहू खेलक कोन निर्धारित अछि। दरभंगा-मधुबनीक एहन दलान बेसी अछि जाहि ठाम ई खेल बरोबरि चलैत अछि। स्थानीय तँ सहजहिँ बाहरोक अभियानी एही दिस बेसी धपायल। एमहर सहरसा दिस सेहो हुलकी मारल जा रहल अछि। दरभंगा, पटना आ कि राँचीक पैघ-छोट गोलक प्रभावी गतिविधिक परिधिमे समग्र मिथिला नञि अबैत अछि। खेलाड़ियो निर्धारित। दलान बदलि कऽ जँ आन नगर-महानगरक भेबो कयल तँ खेलाड़ी ओतबे, वैह जे पहिनेसँ गोलमे छथि। हँ, ओकरा जरूर साझी कऽ लेल जाइत अछि जाहि दलान आ कि कोठलीपर ई होइत अछि। खेल समाप्त भेलाक बाद साझी कयल गेनिहार धोखे-धाखी ताकल जाइ छथि।
   एमहर जखन खेलक बीचमे ठाढ़ खेलाड़ीकेँ देखै छी तँ ई बदलैत भेटै छथि। कहियो कऽ बीचमे ठाढ़ सामान्य मैथिल जनता भेटै छथि जे निर्विकार ठाढ़ छथि। मूकदर्शक टा बनल। हुनका जेना एहि खेलमे कोनो रुचिए नञि होनि। ने ककरो छूबाक प्रयास आ ने खाली कोन धरबाक उत्कण्ठा। कोन धऽ ‘झिझिर कोना’ खेलाइत आन्दोलनीकेँ सेहो एकर फिकिर नञि जे बीच वलाक गतिविधिक बिना खेल अधखरू अछि। ओ अपने मगन भेल सुर मिलेबामे मस्त ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना।’ कहियो कऽ बीचमे ठाढ़ मिथिला आ मैथिली नजरि अबै छथि जिनका देखि अनुमान होइत अछि जे ओ अपन सन्तानकेँ ‘झिझिर कोना’ खेलाइत देखि प्राय: ई सोचैत रहै छथि जे हुनके लेल प्रयास कऽ रहल बाल-बच्चा हुनकासँ छुएबाक डरेँ किए पड़ा रहल अछि? हुनका कोनो कोन किए ने धरऽ दऽ रहल छनि। हुनके नामपर आयोजन करैत अछि, हुनके गुणगानमे समय बितबैत अछि, हुनके विकासक लेल जान उपछि देबाक घोषणा करैत अछि आ आयोजनक उपलब्धिक प्रसंग चिन्तन करबाक पलखतियो ने बहार करैत अछि। सभ सन्तान हुनका नामपर एकठाम बैसबासँ कन्छी कटैत अछि। अपवादकेँ छोड़ि प्राय: लोक स्वयंभू नेता बनबाक जोगारमे बेहाल अछि। आन्दोलनकेँ लक्ष्य धरि पहुँचेबाक घोषणाकेँ मूर्त्तरूप देबाक प्रति क्यौ साकांक्ष नञि अछि। से जँ नञि तँ अपन गतिविधिकेँ माटिसँ ने जोड़ैत? एकर बीज धरतीमे ने रोपैत? कोनो आन गाछक साँङह जकाँ उपयोग कऽ आन्दोलनकेँ अमरलत्ती जकाँ नञि ने चतरऽ-पसरऽ दैत? ‘मिथिला-मैथिली’ तखन आर सीदित भऽ उठै छथि जखन अपना नामपर लोककेँ जमा कऽ अभियानी द्वारा ओकर अपना रुचि-रसक अनुरूप बात-व्यवस्था देखै छथि। सभकेँ समेटि कऽ अपना पक्षमे ठाढ़ केनिहारक प्रतीक्षा ‘मिथिला-मैथिली’ अनन्त कालसँ करैत ‘झिझिर कोना’ केर खेल देखि रहली अछि। हमरा कानमे एक कविक ई पाँती सुना पड़ैत अछि-
  ‘भाषा नेता चिन्तित गुरुपद पयबा लय
     साहित्यकार युग नायक कहबयबा लय
    अनका नीचाँ धकियबामे लागल अछि
    अथवा अपना विज्ञापनमे पागल   अछि’
   आ जखन ‘झिझिर कोना’ मे कोनो आन गोलक  अभियानी, खेलाड़ी सन बीचमे नजरि अबै छथि तखन खेल-भावनेपर आघात शुरू भऽ जाइत अछि। कोनमे ठाढ़ खेलाड़ी कोन बदलबे लेल तैयार ने जे कहीँ धोखोसँ बीचवला ने कोन धऽ लेअए। एहि डरेँ एके कोनमे ठाढ़ भेल जपैत रहै छथि ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना।’ बीचो वला ककरो छू कऽ सराबऽ लेल तैयार नञि, ओ सदिखन कोन धरबाक ब्योँतमे। एक गोल जँ दोसर टोल गेल तँ ओहि ठामक लोककेँ भड़केबाक जोगारमे लागल-भीड़ल। परिणाम ओहि टोलसँ पहिने पहुँचल गोलक खेल भऽ गेल गोल। एक गोट गोल दलान बदलि पहुँचल दिल्ली, मुम्बइ, नेपाल तँ दोसर गोआ, हैदराबाद, आगरा। प्रवासी मैथिल आ मिथिला-मैथिली संस्थामेसँ अधिकांश ताबते सक्रिय-सजग जाबत अपना धरतीसँ टीम आबि ‘झिझिर कोना’ खेलायल। गौआँ-घरुआकेँ एहिसँ कोनो माने-मतलबे ने। साकांक्ष लोक एतबेसँ सन्तोष करैत जे खेलमे भने समय नष्ट भऽ रहल हो, कमसँ कम खेलेनिहारक स्वास्थ्य लाभ तँ भैए रहल छै। आर नञि किछु तँ खेलक माध्यमे मिथिलाक सुगन्धि तँ पसरैत अछि। मैथिलीक बोल तँ अनुगुञ्जित होइत अछि। एहू खेलपर विराम लगा देल जाएत तँ मैथिलीक दू टा पाँतियो कतऽ सुनब? आ तेँ सगरो अनघोल अछि- ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना।’

गोनू झाक महीँस

                                       गोनू झाक महीँस
                                                                 - अमलेन्दु शेखर पाठक
गोनू झा केर भाइ छलथिन भोनू झा। एक बेर दुनू भाइमे बाँट बखरा भऽ गेलनि। सभ सम्पत्तिक बँटवारा भऽ गेल। जे समान जोड़ामे छल, माने दू-दू चारि-चारि केर संख्यामे छल से तँ सहजतासँ बँटा गेल, मुदा जे एके टा छल तकरा कोनो बाँटल जाय? ई पैघ समस्या छल। गोनू झा चाहै छला जे महीँसक सेवा दूनू भाय करथि। ओकरा दुनू गोटे खाय-पीबऽ लेल देथि आ दूध आधा-आधा बाँटि लेथि, मुदा भोनू झाकेँ लोक सभ चढ़ा-बढ़ा देने छलनि तेँ ओ मानबा लेल तैयारे नञि भेला। गोनू झा कतबो बुझेलथिन, मुदा ओ टोलबैया सभक सिखेबाक कारणेँ महीँस बँटबापर अड़ल रहि गेला। अन्तमे गोनू झा हुनकेपर छोड़ि देलथिन जे जेना मन होनि तेना करथु।
एमहर गोनू झाक विकाससँ टोल-पड़ोसक लोक सभमेसँ कतेको जरै छल। कतेको गोटे हुनका छकेबाक प्रयासमे विफल रहल छला से सभ अवसर तकै छला जे कोना हुनका पछाड़ल जाय। एहन लोक सभकेँ गौँ भेटि गेलनि। ओ सभ भोनू झासँ सटि गेला आ आरो चढ़ा-बढ़ा देलनि जे महीँसोक बाँट कराबथु। भोनू झा हुनके सभकेँ पञ्चैती लेल बजेलनि। सभ बैसि कऽ पञ्चैती कऽ देलनि जे महीँसकेँ आगाँ आ पाछाँ दू भागमे बाँटि देल जाय। अगिला हिस्सा गोनू झाकेँ भेटलनि आ पछिला भोनू झाकेँ।
अगिला हिस्सामे महीँसक मुँह पड़ै छल से गोनू झा रोज महीँसकेँ खुआबथि आ पछिला हिस्सामे थनमे पड़ै छल से भोनू झा बिना कोनो तरद्दुतकेँ आरामसँ रोज दूध दूहथि आ दही-दूध खाथि-पीबथि। गोनू झाकेँ बिना किछु केने गोबर सेहो भऽ जानि, जकरा खेतमे पटाबथि। एहिसँ हुनक उपजो बढ़ि गेलनि। गोनू झा भायक सिनेहमे चुपमे छला। एक दिन टोलबैया सभ हुनक कौचर्य केलकनि जे बड़ा दिमाग वला छथि, केहन छकेलियनि।
ई बात गोनू झाकेँ बड़ अप्रिय लगलनि। ओ तय केलनि जे सभक बुधियारी घुसारि देता। फेर की छल, अगिला दिनसँ जखने भोनू झा महीँस दुहबा लेल बैसथि कि गोनू झा महीँसक मुँहपर सोँटा लऽ पीटऽ लागथि। एहिसँ महीँस छटपटाय लागय आ लथार चलबऽ लागय। भोनू झा महीँसकेँ दूहिए ने पाबथि। ई क्रम जखन दू-चारि दिन चलल तँ भोनू झा एकर शिकाइत पञ्च सभसँ केलनि। सभ फेर जुटला। गोनू झाकेँ पुछलथिन जे ओ एना किए करै छथि जे भोनू झा महीँसकेँ दूहि नञि पबै छथि?
गोनू झा मुस्कियाइत उत्तर देलथिन जे अपना हिस्सामे किछु करै छथि ताहिसँ ककरो की मतलब? ओ भोनू झाक हिस्सामे तँ नञि किछु करै छथि? ककरो लग कोनो उत्तरे नञि छल। भोनू झा सेहो बूझि गेला जे ओ गोनू झासँ अराड़ि मोल लऽ नञि टीकि सकै छथि। ओ गोनू झा लग हारि मानि लेलनि आ तकर बाद दुनू भाय मिलिजुलि कऽ महीँसकेँ खुआबथि-पियाबथि आ दूध आधा-आधा बाँटि लेथि। गोनू झासँ ईर्ष्या रखनिहार टोलबैया सभ मुँहे बबैत रहि गेल।