Wednesday, 2 October 2013

भगवती गीत



                             













 देवी पक्ष आरम्भ भऽ रहल अछि, आउ मिथिलाक परम्पराक अनुसार करी भगवतीक सांगीतिक स्मरण :


                 प्रार्थना
  
          - अमलेन्दु शेखर पाठक

आदिशक्तिश्वरी  श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।
भैरवी भय - हारिणी  दुर्गा जगत - उद्धारिणी।।

शैलपुत्री - ब्रह्मचारिणि - चन्द्रघण्टा  छी अहीँ।
शिवा-कूष्माण्डा-भवानी-स्कन्दमाता पद गही।।
चरण-तलमे पड़ल शिव जननी अहीँ कात्यायनी।
आदिशक्तिश्वरी श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।।

कालरात्रि - कपालिनी  हे  महागौरि स्वरूपिणी।
सिद्धिदात्री   भगवती   छी   सर्वमंगलकारिणी।।
हे मृडानी - रुद्रिणी  माँ  मुण्ड - मालाधारिणी।
आदिशक्तिश्वरी श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।।

महाकाली - मैथिली - शाम्भवी-केहरि वाहिनी।
खड्गिनी-चक्रिणी-कमला अहीँ वीणा-वादिनी।।
भावना  ‘अमलेन्दु’  अर्पित मातु मोक्ष-प्रदायिनी।
आदिशक्तिश्वरी श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।।
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जय शिव प्रिये

- अज्ञात 

जय शिव  प्रिये  शंकर प्रिये  जय  मंगले  मंगल करू।
जय अम्बिके जय त्र्यम्बिके जय चण्डिके मंगल करू।।

अनन्त    शक्तिशालिनी    अमोघ   शस्त्रधारिणी।
निशुम्भ - शुम्भ  मर्द्दिनी त्रिशूल - चक्र-पाणिनी।।
जय  भद्रकालि - भैरवी जय भगवती मंगल करू।
जय वैष्णवी विश्वम्भरी जय शाम्भवी मंगल करू।।

कराल   मुख   कपालिनी  विशाल मुण्डमालिनी।
असीम    अट्टहासिनी    त्रिमूर्त्ति   सृष्टिकारिणी।।
हे   ईश्वरी  परमेश्वरी  सर्वेश्वरी   मंगल  करू।
कात्यायिनी   नारायणी  माहेश्वरी  मंगल  करू।।

प्रकृति अहीँ  सुकृति अहीँ  दया अहीँ क्षमा अहीँ।
स्वधा  अहीँ  छटा अहीँ  कला अहीँ प्रभा अहीँ।।
दुखहारिणी  सुखकारिणी  हे  पार्वती  मंगल करू।
हे ललित शक्ति प्रदायिनी सिद्धेश्वरी मंगल करू।।

जय शिव  प्रिये  शंकर प्रिये  जय  मंगले  मंगल करू।
जय अम्बिके जय त्र्यम्बिके जय चण्डिके मंगल करू।।
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गोसाउनिक गीत 

- महाकवि विद्यापति 

जय-जय भैरवि असुर भयाउनि, पशुपति भामिनि माया।
सहज सुमति वर दिअओ गोसाउनि, अनुगत गति तुअ पाया।।

वासर रैनि शवासन शोभित, चरण चन्द्रमणि चूड़ा।
कतओक दैत्य मारि मुँह मेलल, कतओ उगिलि कयल कूड़ा।।

सामर वरन नयन अनुरञ्जित, जलद जोग फुल कोका।
कट-कट विकट ओठ-पुट पाँड़रि, लिधुर फेन उठ फोका।।

घन-घन घनन घुँघुरु कत बाजय, हन-हन कर तुअ काता।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरु जनि माता।।
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कनक भूधर शिखरवासिनि

- महाकवि विद्यापति 

कनक-भूधर - शिखर-वासिनि, चन्द्रिकाचय  चारु  हासिनि।
         दशन - कोटि -विकास बंकिम, तुलित चन्द्रकले।।
क्रुद्ध-सुर-रिपु-बल-निपातिनि, महिष-शुम्भ-निशुम्भघातिनि।
                भीत-भक्त   भयापनोदन,  पाटब - प्रबले।।
जय  देवि  दुर्गे  दुरित - तारिणि, दुर्ग  मारि-विमर्द-कारिणि।
                      भक्ति-नम्र-सुरासुराधिप-मंगलायतरे।।
गगन -  मण्डल -  गर्भगाहिनि  समर  भूमिषु  सिंहवाहिनि।
              परशु-पाश-कृपाण-सायक-शंख-चक्र-धरे।।
अष्ट - भैरवि- संग-शालिनि स्वकर-कृत्त-कपाल-मालिनि।
               दनुज-शोणित-पिशित-बर्द्धित पारणा रभसे।।
संसारबन्ध - निदान - मोचिनि-चन्द्र-भानु-कृशानु लोचिनि।
                   योगिनीगण-नृत्य शोभित नृत्य भूमि रसे।।
जगति  पालन - जनन - मारण -रूप-कार्य-सहस्र-कारण।
               हरि-विरञ्चि-महेश-शेखर-चुम्ब्यमान-पदे।।
सकल - पापकला - परिच्युत सुकवि विद्यापति-कृत-स्तुति।
                   तोषिते शिवसिंह-भूपति-कामना फलदे।।
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सिंहपर एक कमल...

सिंहपर एक कमल राजित
ताहि ऊपर भगवती।
शंख गहि-गहि चक्र गहि-गहि
लोक के माँ पालती।।
दाँत खट-खट जीह लह-लह
सोणित दाँत मढ़ावती।
शोणित टप-टप पिबथि जोगिनि
विकट रूप देखावती।।
ब्रह्म एलनि विष्णु एलनि
शिवजी एलनि एहि गती।।
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मैया आबि रहल...

मैया आबि रहल छथि हुनकर नुपूर रुनझुन बाजनि हे।
सिंह चढ़ल एक कमल विराजित ताहिपर खप्पर नेने हे।।

कारी केश हुनक अति सुन्दर धरती लोटनि हे।
रुण्ड-मुण्डसँ देह नुकौने रूप बनौने हे।।

अस्त्र-शस्त्र के धारण कयने खल-खल हँसथिन हे।
यैह थिकी काली दुर्गा तारा भगत उधारिनि हे।।

जय-जय अम्बे जय जगदम्बे जगत उधारिनि हे।
सेवक सब कलजोड़ि ठाढ़ छथि गोड़ लगै छथि हे।।
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3 comments:

  1. अति उत्तम ।अहा ।साधुवाद ।

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  2. Bahut he बढ़िया अपन मित्थाला के गीत।

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