परिवर्त्तन
ओ छगुन्तामे अछि। सौँसे अनघोल मचल छै जे दिन-दुनिञा क्षणे-क्षण बदलि रहल अछि, मुदा ओकरा कहाँ नजरि अबै छै परिवर्त्तन? धीयापुता छल तँ माय-बापक डर होइ छलै। पित्ती-पितियानिक के कहय भाय-भाउजोक संग आँखि मिला कऽ बात करबाक साहस नञि होइ छलै। युवा भेल तैयो गौआँ-टोलबैयोक धाख होइ छलै। शिक्षक भऽ गेल तैयो कोनो छात्र अबैत देखय तँ चाह-पानक दोकानसँ टरि जाय।
आइयो तँ एहने हाल छै। आइयो बाल-बच्चाक डर होइ छै ने जानि कखन के तोड़ल-फारल किछु कहि देत। बेटा-पुतहुसँ धखाइए। ओकरा सभक के कहय, समधि-समधिनो संग आँखि मिला बात नञि कऽ सकैए। पोता-पोतीक बगय आ व्यवहार देखि आँखि झुका लैए। अखनो चाह-पानक दोकानक के कहए दलानोपर बैसल रहैत अछि तँ कोन पड़ोसिन आ कि बेटाक कोनो संगीक एलापर टरि जाइए।
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