Wednesday, 31 July 2013

मधुश्रावणी : छठम दिनक कथा

                        मधुश्रावणी : छठम दिनक कथा

                                          प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                                   गंगाक कथा
महाराज सगरकेँ दू गोट स्त्री छलथिन- वैदर्भी आ शैव्या। शैव्यासँ असमञ्जस नामक पुत्र भेलनि। वैदर्भीकेँ  सन्तान नञि छलनि। ओ सन्तानक निमित्त महादेवक तपस्या करऽ लगली। सय बरखक बाद एक गोट लोथक जन्म भेलनि। ई देखि वैदर्भी कानऽ लगली। महादेवकेँ स्मरणक करैत गोहरेलनि। महादेव पसीझि गेला आ ब्राह्मणक रूप धऽ ओतऽ एला आ ओहि लोथकेँ साठि हजार खण्ड कऽ सभकेँ एक-एक तौलामे झाँपि कऽ राखि देलनि। थोड़े दिनुक बाद ओ साठि हजार लोथक खण्ड साठि हजार सुन्दर आ बलवान पुत्रक रूपमे बदलि गेल।
महाराज सगर निनानबे गोट अश्वमेध यज्ञ पूरा कऽ सयम यज्ञ करबाक तैयारी कऽ रहल छला। देवराज इन्द्र नञि चाहै छला जे सगर केर सयम यज्ञ पूर्ण होनि। एकर कारण छल जे सयम अश्वमेध यज्ञ पूरा हेबापर यज्ञ केनिहार शतक्रतु इन्द्र भऽ जाइत अछि। तेँ इन्द्र कोनो ने कोनो विघ्न उपस्थित कऽ देथिन।
अश्वमेधक घोड़ा छोड़ल गेल जकरा संग सगर केर साठियो हजार पुत्र विदा भेला। इन्द्र छल-बल कऽ ओहि घोड़ाकेँ लऽ भागि गेला। साठियो हजार राजकुमार हुनका खेहारलनि। ओ सभ घोड़ा तकबा लेल पृथ्वीकेँ कोड़ैत आगू बढ़ैत गेला। अन्तमे कपिल मुनिक आश्रममे घोड़ा बान्हल देखलनि। कपिल मुनि तपस्यामे लीन छला। राजकुमार लोकनि कपिलकेँ घोड़ाक चोर बुझि हुनकेपर छुटला। एहिसँ कपिल मुनिक ध्यान भंग भऽ गेलनि जाहिसँ ओ क्रुद्ध भऽ गेला। हुनक कु्रद्ध-दृष्टिसँ साठियो हजार राजकुमार तखने जरि कऽ भस्म भऽ गेला। महाराज सगरक यज्ञ अपूर्णे रहि गेलनि। ओ शोकाकुल भऽ गेला आ हुनक मृत्यु भऽ गेलनि।
राजकुमार लोकनिक अपमृत्यु भेल छलनि। हुनका सभक सद्गतिक उपायपर विचार लेल विद्वान लोकनिक सभा बैसल। एहिमे निष्कर्ष बहार भेल जे जँ गंगा बैकुण्ठसँ पृथ्वीपर उतरि आबथि आ साठियो हजार राजकुमारक छाउरकेँ अपन जलधारामे डुबा पवित्र कऽ देथि तखने सभकेँ सद्गति भेटि सकै छनि। मृत राजकुमार लोकनिक वैमात्रेय भाइ असमञ्जस गंगाकेँ पृथ्वीपर उतारबा लेल तपस्या करैत-करैत मरि गेला। हुनक पुत्र दिलीपो लाख बरख धरि तपस्या केलनि, मुदा सफल नञि भेला आ मरि गेला। दिलीपक पुत्र अंशुमानो तपस्या करैत-करैत मरि गेला। तखन हुनक पुत्र भगीरथ तपस्या आरम्भ केलनि जाहिसँ प्रसन्न भऽ विष्णु भगवान गंगाकेँ बैकुण्ठसँ मृत्यु भुवनपर जेबाक अनुमति दऽ देलथिन।
गंगाक एकाएक पृथ्वीपर उतरि जेबासँ धरती रसातलमे धँसि जैतथि तेँ महादेव हिमालयक ऊँच चोटीपर चढ़ि हुनका अपना माथपर उतारि जटामे समेटि लेलथिन। हुनकर जटासँ होइत गंगा हिमालय प्रदेशकेँ दहबैत बिदा भेली। जखन जह्नु ऋषिक आश्रम दहाय लगलनि तँ ओ गंगाकेँ पीबि गेला। आब भगीरथ लेल कठिन समस्या भऽ गेलनि जे कोनो गंगाकेँ लऽ जाथि आ अपन पूर्वजकेँ सद्गति देयाबथि? भगीरथ परम साहसी छला। ओ मुनिक सेवामे जुटि गेला। अन्तमे मुनि प्रसन्न भेला आ ई मनबा कऽ गंगाकेँ छोड़लनि जे ओ हुनक पुत्री कहाबथि। तहियासँ गंगा जाह्नवी कहेली आ ओ गंगद्वार होइत हरिद्वार एली। भगीरथ आगाँ-आगाँ आहि दिशामे बढ़ला जेमहर हुनक पितरक छाउर छलनि आ गंगा पाछाँ-पाछाँ सभकेँ दहबैत-भसबैत चलली। अन्तमे ओ ओहि विशाल खाधिमे खसली जकरा मुनिक क्रोधसँ भस्म भेल राजकुमार लोकनि घोड़ा तकबाक क्रममे खुनने छला। एहि कारणेँ ओ सागर कहायल। एहि तरहेँ गंगा वैकुण्ठ छोड़ि पृथ्वीपर अवतरली आ सगरक साठि हजार सन्तानकेँ सद्गति प्राप्त भेलनि। गंगा धरतीपर आबि भगीरथक परिश्रम सार्थक केलनि।

                                                               गौरीक जन्म 
सतीक मृत्युसँ दुखी महादेव विरक्त भऽ निर्जन स्थानमे जा तपस्यामे लीन भऽ गेला। हुनका संसारक कोनो सुधि नञि रहि गेलनि। एहि बीच राक्षस सभक उपद्रव बड़ बढ़ि गेल। ओहिमे ताड़कासुर बड़ पराक्रमी छल। ओ तपस्या कऽ ब्रह्माकेँ प्रसन्न कऽ लेलकनि आ हुनकासँ अमर हेबाक वरदान मङलक। ब्रह्मा कहलनि- ‘ई असम्भव अछि। जे जन्म लेलक तकर मरण अनिवार्य अछि।’ तखन ओ दोसर वरदान मङलक जे ओकर मृत्यु महादेवक औरस पुत्रक हाथेँ हो। ब्रह्मा तथास्तु कहि देलथिन।
ब्रह्मासँ ई वरदान मङबाक पाछाँ ताड़कासुरक चतुरता छल जे महादेवक पत्नी सती नि:सन्तान मरि गेल छथिन। महादेव संसारसँ विरक्ते भऽ गेल छथि। विवाहक कोनो सम्भावना नञि छनि। तेँ हुनक पुत्रक हाथेँ ओकर मारल जेबाक प्रश्ने नञि उठै छल। एहना स्थितिमे ओ अमर रहत।
अपन अन्तसँ निश्चिन्त ताड़कासुर सभ देवताकेँ भगा देलक आ स्वर्गक राजा भऽ गेल। यज्ञ-जाप रोकि देलक आ मुनि सभकेँ सतबऽ लागल। सुन्नरि नारी सभक अपहरण करऽ लागल। सौँसे संसार त्राहि-त्राहि करऽ लागल। ओकर उत्पातसँ त्रस्त देवता आ ऋषि लोकनि ब्रह्माक लग उपस्थित भेला। ब्रह्मा सभक बात सुनि कहलथिन- ‘जखन-जखन संसारमे दैत्य-दानव एहि तरहेँ उत्पात मचेलक अछि तखन-तखन आदि शक्ति महामाया दुर्गा अवतार लऽ ओकरा सभक संहार केलनि अछि। अहाँ सभ एहि महासंकटक समय उद्धार लेल हुनके आराधना करू। वैह सतीक रूपमे जन्म लऽ महादेवसँ विवाह केने छली।ओ पुन: गौरीक रूपमे जन्म लेती आ महादेवसँ हुनक विवाह हेतनि। हुनका जे पुत्र हेथिन सैह ताड़कासुरक बध करता।’
देवता आ ऋषि लोकनि भगवती दुर्गाक आराधनामे लागि गेला। किछु दिनक बाद हिमालयकेँ पुत्री भेलनि। ई देखि देवतागण प्रसन्न भऽ फूलक वर्षा केलनि। ओ अत्यन्त गोरि छली तेँ हुनकर नाम गौरी पड़लनि।

                                                                  काम दहन 
एक   दिन हिमालयक ओहि ठाम नारद मुनि एला। हिमालय अपन पुत्री गौरीकेँ हुनका देखा जिज्ञासा केलनि जे हिनक विवाह किनका संग हेतनि? गौरीक हाथ देखि नारद कहलनि- ‘हिनक विवाह महादेवक संग हेतनि। से ओहिना नञि हेतनि। एखन महादेव अहीँक शिखरपर तपस्या कऽ रहल छथि। गौरी नित्य ओतऽ जा हुनक सेवा करथि। तखन ओ प्रसन्न भऽ हिनका संग विवाह करता।’
गौरी चेष्टगरि भऽ गेली तँ हिमालय हुनका नित्य दू सखीक संग महादेवक सेवा लेल पठाबऽ लगलथिन। देवता सभ महादेवक तपस्या भंग हुनक ध्यान गौरी दिस आकृष्ट करेबा लेल कामदेवकेँ तपोवन पठेलनि। कामदेव अपन पत्नी रति आ मित्र वसन्तक संग ओतऽ पहुँचि गेला। वसन्तक महिमासँ वनक सभ गाछ फुला गेल। सुगन्धिसँ वन-प्रान्त गमगमा उठल। फूल सभपर भम्हरा मड़राय लागल। शीतल बसात बहऽ लागल। चन्द्रमाक ज्योतिसँ वन सुन्दर लागऽ लगला। एहन मनोहारी-रमणीय वातावरणसँ महादेवक तपस्या भंग होबऽ लगलनि। गौरी सजि-धजि कऽ वासन्ती फूलक गहना पहिरि सखीक संग ओहि वनमे पूजा करबा लेल पहुँचली। गौरी सुन्नरि तँ छलीहे, ओहि दिन साज-शृंगारसँ हुनक सौन्दर्य आरो निखरि आयल छलनि। जखने महादेव लग गौरी पहुँचली आ कि कामदेव अपन वाण चलेलनि जे महादेव लग खसल। महादेवक तपस्या भंग भऽ गेलनि आ ओ गौरी दिस तकलनि। गौरी हुनक पूजा कऽ कातमे ठाढ़ भऽ गेली। गौरीक सुन्दरतासँ महादेव हुनका प्रति आकर्षित भऽ गेला आ बड़ाइ करैत गौरी दिस बढ़ला। गौरी संकोचसँ पाछाँ हटि गेली। हठात महादेवकेँ ध्यान एलनि जे ओ कामातुर भऽ उठला अछि। ओ एकर कारण जनबा लेल एमहर-ओमहर तकलनि तँ एकटा झोँझमे नुकायल कामदेवपर नजरि पड़लनि। ओ क्रोधित भऽ उठला जाहिसँ तेसर नेत्र खुजि गेलनि। एहिसँ कामदेव जरि कऽ भस्म भऽ गेला।
रति अपन पतिकेँ भस्म होइत देखि मूर्च्छित भऽ खसली। होशमे एबापर ओ करुण विलाप करऽ लगली। रतिक शोकसँ देवता लोकनि पर्यन्त दुखी भऽ उठला। तखन देवतागण महादेव लग पहुँचला आ कहलथिन जे एहिमे कामदेवक कोनो दोष नञि छनि। देवते लोकनि हुनका पठेने छलथिन जे कहुना महादेव गौरी दिस आकृष्ट होथि आ हुनकासँ विवाह करथि। तखने ताड़कासुरसँ सभकेँ त्राण भेटि सकै छलनि। तेँ महादेव कोनो उपाय कऽ कामदेवकेँ जीवन देथु।
देवता लोकनिक बात सुनि महादेव कहलथिन- ‘कामदेव मुइना नञि अछि, मात्र हुनक शरीर भस्म भेलनि अछि। हुनका ओ शरीर एखन प्राप्त नञि हेतनि। समुद्रमे शम्बर नामक दैत्य अछि। रति ओतऽ जाय एखन रहथु। कामदेव द्वापरमे श्रीकृष्णक पुत्र प्रद्युम्न भऽ जन्म लेता। शम्बर हुनका जनमिते उठा कऽ अपन नगर लऽ जायत। रतिकेँ ओतहि प्रद्युम्नक रूपमे कामदेव भेटथिन। जखन ओ पैघ हेता तँ दैत्य शम्बरकेँ पारि ओेकर धन-सम्पत्ति सहित रतिकेँ सेहो द्वारिका लऽ जेता आ हुनकासँ विवाह कऽ सुख-विलास करता।’
एकर बाद महादेव अन्तर्ध्यान भऽ गेला। रति ओहि ठामसँ शम्बरक ओतऽ आश्रय लेल बिदा भेली आ कामदेवसँ मिलनक प्रतीक्षा करऽ लगली।

Tuesday, 30 July 2013

गोनू झा केर कम्मल


                                                             
                        गोनू झा केर कम्मल

                                                                 - अमलेन्दु शेखर पाठक 

गोनू झाक बुद्धि आ ज्ञानक जते लोक प्रशंसक छला ततबे हुनक विरोधी सेहो छला। हुनक धन-बीतसँ जरै छला। सदिखन अवसर तकै छला जे कखन गोनू झाक दुनू भाइमे झञ्झटि होनि जे बीचमे पड़ि गोनू झाकेँ हानि पहुँचाबथि। गोनू झाक भाइ भोनू झा छला सुधबौक। ओ छल-प्रपञ्च जनै ने छला। से जहाँ कोनो टोलबैया कनेको चढ़ेलक-बढ़ेलक कि बाँट-बखरा लेल तैयार भऽ जाइ छला। ओ लोकक चढ़ौअलि-बढ़ौअलि नञि बूझथि। से एक बेर भोनू झाकेँ किछु गोटे सिखा-पढ़ा देलकनि जे गोनू झासँ बाँटि लीयऽ नञि तँ कहियो विकास नञि करब। एहि बेर भोनू झा अड़ि गेला। गोनू झा कतबो बुझेलनि ओ मानबा लेल तैयारे ने भेलथिन। हारि कऽ गोनू झा बाँट लेल तैयार भऽ गेला।
गोनू झाक विरोधी सभ जखने ई सुनलनि सभक छाती जुड़ा गेलनि। ओ सभ भोनू झाक पक्षसँ पञ्च भऽ कऽ एला। गोनू झा तँ असलीहत बुझै छला। ओ मने मन पञ्च सभकेँ पछाड़बाक आ भोनू झाकेँ फेरसँ संग करबाक विचार केलनि। हुनकर ध्यान कम्मल दिस गेलनि आ ओ मुसुकि उठला। ओ पञ्च सभसँ ई स्वीकार करबा लेलनि जे जकरा हिस्सामे कम्मल जखन रहत तखन ओ अपना हिसाबे ओकर उपयोग करत।
बाँट-बखरा भऽ गेल। सभ समान गोनू झा आ भोनू झामे बरोबरि कऽ बँटा गेल। रहि गेल एगो कम्मल। समस्या छल जे ओ एके टा छल। ओकरा कोना बाँटल जाय जे दुनूकेँ भेटनि। गोनू झाक विरोधी सभ चालि चललनि। कम्मलक बाँट एना कऽ देलनि जे दिनमे ओ गोनू झा रखता आ रातिमे भोनू झा। गोनू झाक विरोधी टोलबैया सभ मने मन प्रसन्न छल जे एहि बेर हिनकर सभ बुधियारी घुसरि जेतनि, मुदा गोनू झा अपनो यैह चाहै छला। ओ प्रसन्न भऽ गेला। बाँट-बखराक दुइ दिन बाद भोनू झाकेँ फेर पञ्च सभकेँ बजाबऽ पड़लनि। कारण छल जे गोनू झा दिनमे कम्मल तँ राखथि, मुदा साँझ पड़बासँ पहिने ओकरा पानिमे बोरि भिजा देथि। आब रातिमे जखन भोनू झाक हिस्सामे कम्मल भेटनि तँ ओ तते तीतल रहै छल जे उपयोगे ने कयल जा सकै छल। भोनू झाक शिकाइतपर पञ्च सभ गोनू झाकेँ आबि टोकलथिन। गोनू झाक उत्तर छलनि जे हुनका हिस्सामे जखन दिनमे कम्मल छनि तँ ओकर उपयोग हुनका जेना मन हेतनि तेना ने करता। ओ रातिमे तँ कम्मल नञि भिजबै छथि। आब पञ्च सभ निरुत्तर रहि गेला। भोनू झा सेहो बुझि गेला जे गोनूक ज्ञानक आगाँ ककरो चलऽवला नञि। ओ फेरसँ गोनू झाक संग भऽ गेला। जखन गोनू झा दरबार गेला आ महराजकेँ पता लगलनि तँ ओ गोनू झाक बुधियारीक प्रशंसा केलनि। एहि लेल हुनका दान-दक्षिणामे सोना, चानी, हीरा आदि भेटलनि आ महराज एगो कम्मल सेहो देलथिन जे दुनू भाइ लग एक-एक टा भऽ जायत। आब भोनू झा बुझलनि जे गोनू झाक संग रहबासँ की लाभ अछि?

मधुश्रावणी : पाँचम दिनक कथा

             मधुश्रावणी : पाँचम दिनक कथा

                                            प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

          दन्त कथापर आधारित महादेवक पारिवारिक कथा
दक्षक यज्ञमे सतीकेँ प्राण त्यागबाक बाद दक्ष प्रजापति हिमालय रूपमे अवतार लेलनि। हुनका पाँच कन्या भेलथिन उमा, पार्वती, गंगा, गौरी आ सन्ध्या। एहि पाँचो कन्याक विवाह बेरा-बेरी महादेवसँ भेलनि।
                                         उमा
हिमालय पत्नी मैनाक पहिल पुत्री जखन पाँच बरखक भेली तखनेसँ महादेवकेँ वर रूपमे प्राप्त करबाक कामनासँ तपस्या लेल वन बिदा भऽ गेली। माय मनाइन हुनका उमा कहि कऽ मना केलनि तथापि ओ चलि गेली। तेँ हुनकर नाम उमा पड़लनि। आठ बरखक हेबापर महादेव हुनक तपस्यासँ प्रसन्न भऽ हुनकासँ विवाह केलनि। ई समाचार सुनि मनाइन बताहि जकाँ करऽ लगली जे फूल सनक बेटीकेँ बुढ़बा वर लऽ गेला।
                                          पार्वती 
हिमालयक दोसर बेटी पार्वती भेलथिन। हुनको बाढ़ि उमा जकाँ छलनि। ओहो थोड़बे दिनमे विवाहक योग्य भऽ गेली। पार्वती एक दिन फूल तोड़बा लेल सखी सभक संग कनक शिखरपर गेली। ओतऽ ओ एक गोट बूढ़ व्यक्तिकेँ देखलनि जिनका पैघ-पैघ पाकल केश आ पैघ-पैघ दाँत छलनि। ओ बसहापर चढ़ल डमरू बजा रहल छला। पार्वती चीन्हि गेली जे ओ आर क्यौ नञि साक्षात महादेव छथि। सखी सभक मनो करबोपर सभकेँ घर बिदा कऽ पार्वती अपने महादेवक संग बसहापर चढ़ि चलि गेली। सखी सभ घर आबि मनाइनकेँ सभ बात कहलनि। ओ अपन माथ धुनऽ लगली जे ‘हमरा कपारमे की लिखल अछि जे एना भऽ जाइत अछि, किन्तु आब जे भऽ गेल तकर कोन उपाय?’
                                                                  गंगा 
हिमालयक तेसर बेटी भेलथिन गंगा। ओहो जखन पैघ भेली तखन एक दिन महादेव भिखारि रूपमे आबि गंगाकेँ जटामे नुका भागि गेला। तहियासँ गंगा सतत महादेवक जटामे रहऽ लगली। मनाइन जखन ई बुझलनि तखन फेर माथ धुनलनि जे ‘एहि बुढ़बाक यैह धन्धा छै जे हमर बेटी सभकेँ चोरा कऽ लऽ जाइत अछि।’


                    बिसहरिक गीत

                               संकलन : निर्मला देवी 

सखि हे साओन बरा सोहाओन
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

घर पछुआरमे कुम्हरा रे भैया
भैया गढ़ि दे माटिक दीप
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

घर पछुआरमे कानू रे भैया
भैया भूजि दे धानक लाबा
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

घर पछुआरमे दूधवला भैया
भैया दूहि दे गाइक दूध
पुजबै नाग-नगिनिञा ना।।

पाबनिक गीत
पाबनि एक हम पूजब महादेव
आनि दियऽ चीर बेसाहि महादेव
एहि रे जंगलमे चीर नञि भेटत
मृगछाला परचार महादेव।।

पाबनि एक हम पुजब महादेव
आनि दियऽ सिनुर बेसाहि महादेव
एहि जंगलमे सिनुर नञि भेटत
भसमे करू परचार महादेव।।

पाबनि एक हम पुजब महादेव
आनि दियऽ लहठी बेसाहि महादेव
एहि रे जंगलमे लहठी नञि भेटत
रुद्राक्षे करु परचार महादेव।।

पाबनि एक हम पुजब महादेव
आनि दियऽ नैवेद बेसाहि महादेव
एहि रे जंगलमे नैवेद नञि भेटत
भाङक करु परचार महादेव।।

बटगबनी
सुरुज मुँह नञि देखू मोर बिन्दिया के रंग उड़ि जाय
बहिना कोना कऽ कटबै साओन राति अन्हरिया
पिया छै नोकरिया ना।।

एक तऽ राति अन्हरिया
सूझय घर ने दुअरिया
पिया छै नोकरिया ना।।

बहिना कोना कऽ सुतबै
पिया के पलङिया
पिया छै नोकरिया ना।।

सखि सभ झुमि-झुमि गाबय गीत
दूर हमर मोनक मीत
पिया छै नोकरिया ना।।

बहिना बितल जाइ छै
काँच उमेरिया
पिया छै नोकरिया ना।।




Monday, 29 July 2013

मधुश्रावणी : चारिम दिनक कथा

                                                                                 मधुश्रावणी : चारिम दिनक कथा
                                              प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 


                                           सतीक कथा

ईश्वर सृष्टि रचबा लेल पहिने विष्णु, तखन महादेव आ अन्तमे ब्रह्माक रूपमे अवतार लेलनि। ब्रह्माके ँ सृष्टि रचबाक दायित्व भेटलनि। ओ तप-बलसँ अपन शरीरसँ देवता आ ऋषि-मुनि, मुहसँ सतरूपा नामक स्त्री आ स्वयंभुव मनु, दहिना आँखिसँ अत्रि, कान्हसँ मरीचि आ दहिना पाँजरसँ दक्ष प्रजापतिक जन्म देलनि। आब ब्रह्माक सन्तानो सभ सृष्टि करऽ लगला। मरीचिक पुत्र कश्यप भेला आ अत्रिक पुत्र चन्द्रमा। मनुकेँ दू पुत्र प्रियव्रत आ उत्तानपाद भेलथिन। तीन पुत्री आकृति, देवहुति आ प्रसूति भेलखिन। प्रसूतिक विवाह दक्ष प्रजापतिसँ भेलनि। ताहिसँ साठि कन्याक जन्म भेलनि। एहिमे आठ कन्याक विवाह धर्मसँ, एगारह केर रुद्रसँ, तेरह केर कश्यपसँ, सत्ताइस केर चन्द्रमासँ आ एक गोट सती नामक कन्याक विवाह महादेवसँ भेलनि।
चन्द्रमा अपन स्त्री सभमे रोहिणीके ँ सभसँ बेसी मानै छला। तँे बाकी छब्बीसो बहिनकेँ हुनकर बहुत डाह होइ छलनि। ओ सभ अपन पिता दक्षकेँ एकर ओलहन दै छली। दक्ष आसन जमाय चन्द्रमाकेँ बुझेबाक चेष्टा केलनि, मुदा ओ निष्फल भेला। दक्ष क्रोधसँ हुनका श्राप दऽ देलनि- अहाँकेँ क्षय रोग भऽ जायत आ सम्पूर्ण शरीर गलि जायत। एकर प्रभावेँ चन्द्रमाक शरीर दिनपर दिन गलऽ लगलनि।
ओ देवता सभसँ गोहारि लगेलनि, मुदा क्यौ हुनकर रक्षा नञि केलनि। अन्तमे अपन साढ़ू महादेवक शरणमे गेला। ताबत चन्द्रमाक देह बहुत गलि गेल छलनि मात्र किछुए बाँचल छल। महादेव हुनका अपन माथपर चढ़ा लेलनि। हुनकर देह गलब बन्न भऽ गेलनि।
जखन दक्षकेँ एकर पता चललनि तँ ओ दौगल महादेव लग एला आ हुनका चन्द्रमाकेँ अपन माथपरसँ उतारि देबऽ लेल कहलथिन। महादेव ई बात अस्वीकार कऽ देलनि आ कहलनि जे ओ अपन शरणमे आयल केर तिरस्कार नञि कऽ सकै छथि।
दक्ष प्रजापति तहियासँ अपन जमाय महादेवसँ असौजन क
ऽ लेलनि। दक्ष अपन तामसकेँ देखबऽ लेल एकगोट पैघ यज्ञक आयोजन केलनि। ओहिमे सभ देवता आ मुनिकेँ नोतलनि, मुदा महादेवकेँ छोड़ि देलनि। यज्ञ प्रारम्भ भेल। लोक सभ देखबा लेल ओमहर जाय लगल। देवता लोकनि अपन विमानसँ बिदा भेला। सभकेँ  अपन नैहर दिस जाइत देखि सती एकर कारण महादेवसँ पुछलनि। सती जखन बुझलनि जे हुनक नैहरमे एतेक पैघ यज्ञ भऽ रहलनि अछि तँ ओ महादेवसँ बिना नोत ओतऽ जेबा लेल जिद्द ठानि देलनि। अन्तमे महादेव हुनका अपन सेवक वीरभद्रक संग नैहर पठा देलनि।
सती जखन अपन पिताक यज्ञस्थलीमे पहुँचली तँ क्यौ हुनका बैसबो धरि लेल नञि कहलनि। सभ हिनका दिस ताकि-ताकि कनफुसकी करऽ लगला। ओहि ठाम महादेवक निन्दा सेहो भऽ रहल छलनि। ई सभ देखैत-देखैत आ महादेवक निन्दा सुनैत-सुनैत जखन सतीकेँ असह्य भऽ गेलनि तखन ओ धधकैत यज्ञकुण्डमे कूदि आत्मदाह कऽ लेलनि। ई देखि हुनका संग आयल वीरभद्र ओतऽ भारी उत्पात मचबऽ लागल। दक्षक गर्दनि काटि लेलक। यज्ञ मण्डलकेँ तहस-नहस कऽ देलक। देवता आ मुनिगणकेँ मारि भगेलक। महादेवकेँ जखन पता लगलनि तँ ओहो ओतऽ पहुँचि गेला। हुनका क्रोधमे देखि देवता सभ कल जोड़ि क्षमाप्रार्थी भेला। ओ सभ कहलनि जे ाअहाँकेँ अपमानित करबाक दण्ड दक्ष पाबि गेला। आब जँ यज्ञ सम्पन्न नञि होयत तँ संसारक अनिष्ट भऽ जायत आ बिनु यजमानक जीने यज्ञ कोना होयत? ते ँ हुनका कहुना जियाउ। अन्तमे औढरदानी महादेव द्रवित भऽ गेला आ यज्ञमे बान्हल बतूक मूड़ी काटि दक्षक धड़सँ जोड़ि देलनि। ओ पुन: जीवित भऽ गेला आ बो-बो करऽ लागल। महादेवकेँ हुनका भेटल एहि दण्ड आ हुनका बो-बो करैत देखि महादेवकेँ बड़ नीक लगलनि। तहियेसँ लोकसभ महादेवक पूजाक अन्तमे बो-बो करैत अछि जाहिसँ ओ प्रसन्न होइ छथि। दक्षक जीबि गेलाक बाद यज्ञ समाप्त भेल, मुदा सतीक विछोहसँ महादेव बताह भऽ गेला। ओ सतीक शवकेँ कनहापर राखि लेलनि आ जतऽ-ततऽ बौआय लगला। विष्णु भगवानकेँ जखन ई स्थिति नञि सहल भेलनि तखन ओ अपन चक्रसँ सतीक शवकेँ काटि-काटि खसबऽ लगला। सतीक अंग जतऽ-जतऽ भूमिपर खसल से सभ सिद्धपीठ भऽ गेल। विष्णु भगवान महादेवकेँ परामर्श देलनि जे ओ कठिन तपस्या करथु, सती जखन पुन: जन्म लेती तखन ओ हुनका प्राप्त भऽ जेती। महादेव तखन कैलाश छोड़ि हिमालयक घनघोर जंगलमे जा तपस्यामे लीन भऽ गेला।

                                                                    पतिव्रताक कथा
एक गोट राजाकेँ दू गोट कन्या छलनि। एक गोट कन्याक नाम छल कुमरव्रता आ दोसरक पतिव्रता। कुमरव्रता नाम एहि लेल जे ओ भरि जन्म कुमारि रहबाक व्रत नेने छली। ओतहि पतिव्रता अपन पतिएकेँ सर्वस्व बूझथि आ हुनके सेवामे लीन रहथि। पतिए केर आज्ञानुसार सभ काज करथि। राजा पतिव्रताक विवाह एक गोट राजकुमारसँ करेने छला। हुनका सासुर पठा देने छला। ओही ठाम कुमरव्रताकेँ नन्दन वनमे एक कुटी बना हुनक रहबाक व्यवस्था कऽ देलनि।
एक दिन एक सिद्ध योगी ओहि वन दऽ जाइ छला। एगो कौआ हुनका माथपर चटक कऽ देलकनि। योगी क्रोधित भऽ कौआकेँ श्राप दऽ देलनि। कौआ जरि कऽ भस्म भऽ गेल। योगी भिक्षाटन करैत-करैत पतिव्रता ओहि ठाम पहुँचला। पतिव्रता योगीसँ कहलनि- नन्दन वनमे आगि लागि गेल छै। ओहि वनमे हमर बहिनक कुटी छनि। ओकरा बचा कऽ आउ ताबत हम तुलसीकेँ बेढ़ दै छी। ओहि ठामसँ आयब तखन भीख देब। साधु हुनका डेरेलनि- हमरा जँ भिक्षा नञि देब तँ श्राप दऽ देब। ताहिपर पतिव्रता कहलथिन- हम कौआ नञि छी जे अहाँक श्रापसँ भस्म भऽ जायब। ई सुनि साधु अवाक रहि गेला जे ई स्त्री तँ हमरोसँ बेसी सिद्ध अछि। ओ साधु तुरन्त नन्दन वन गेला। ओतऽ ओ देखलनि जे समस्त वनमे आगि लागल छै। मात्र कुमरव्रताक कुटी प्रतिव्रताक प्रभुत्वसँ बाँचल छल। तखन साधु कुमरव्रतासँ कहलनि- अहाँ भरि जन्म कुमारि रहि कऽ तपस्या केलहुँ, मुदा अपन कुटीकेँ नञि बचा सकलहुँ। अहाँक कुटी पतिव्रताक प्रभावसँ बाँचल अछि। तेँ ई सिद्ध भेल जे कुमरव्रतासँ पतिव्रता पैघ होइत अछि।
ई सुनि कुमरव्रता सेहो निश्चय केलनि जे ओहो बियाह कऽ पतिव्रता बनि जेती। भोर हेबापर जाहि पुरुषक दर्शन हुनका सभसँ पहिने हेतनि तिनकेसँ विवाह कऽ लेती। भोर हेबापर हुनक नजरि एक गोट कुष्ठ रोगीपर पड़लनि। ओकर शरीर कुष्ठसँ गलल जा रहल छल। तैओ कुमरव्रता निश्चयक अनुसार ओकरे अपन स्वामी बना लेलनि। ओकरा अपन कुटीमे आनि ओकर सेवा करऽ लगली। ओ दिन-राति स्वामीक सेवा करथि, किन्तु स्वामीक रोग बढ़ल जानि। अन्तमे एक दिन हुनक पति कहि देलनि जे आब हम बेसी दिन नञि जीब। तेँ हमरा तीर्थ करा दीयऽ। ओ अपन पतिकेँ ढाकीमे लऽ माथपर उठा बिदा भेली। बाटमे एक गोट ऋषि सूलीपर लटकल तपस्या कऽ रहल छला। जखन ओ माथपरसँ ढाकी उतारऽ लगली तँ ऋषिक डाँरमे चोट लागि गेलनि। ऋषिक सम्पूर्ण शरीर कनकनाय लगलनि। ऋषि हुनका श्राप दऽ देलथिन- जाहि स्वामी लेल तोँ ऋषिकेँ एतेक कष्ट पहुँचेलेँ से स्वामी सूर्योदयसँ पहिने मरि जेथुन। ई सुनि हुनका बहुत दु:ख भेलनि आ ओ ओही ठाम बैसि गेली। ओ भगवान सूर्यक व्रत करऽ लगली। ओ पहिनो तते तपस्या केने छली जे हुनक विधवा होयब असम्भव छल। ऋषिक शापसँ पति तँ मरि गेलथिन, मुदा सतीक तपस्याक प्रभावसँ ओ फेर जीबि उठलथिन। हुनकर शरीर सेहो पूर्ण स्वस्थ भऽ गेलनि।
एहि तरहेँ सतीक महिमा कतेको तरहेँ महिमा देखल गेल अछि। तेँ सती सीता, सावित्री, अनसूया, बिहुला आदिक गुण-गान एखनो धरि होइत अछि। जँ कोनो स्त्री मनसँ अपन पतिक सेवा करै छथि तँ हुनका कोनो प्रकारक क्लेश नञि होइ छनि। ओ सती सीता-सावित्री जकाँ यशस्वी आ अमर होइ छथि।


पूजा कालक गीत- 1 
एक हम पाबनि पूजब महादेव
आनि दियऽ सड़िया बेसाहि गे माई
हमरा गाम कपड़िया ने बसय
नैहर जा करु निस्तार गे माई।।

आनि दियऽ लहठी बेसाहि गे माई
हमरो गाम चुड़िहारा ने बसय
नैहर जा करु निस्तार गे माई।।

आनि दियऽ सिन्दुर बेसाहि गे माई
हमरो गाम सिनुरिया ने बसय
नैहर जा करु निस्तार गे माई।।

गीत-2
आजु छनि सीता दाइ के पाबनि हे
वरक माय किछु ने पठेलखिन
मुजौना गाममे हलुआइ बहुत छथि
हुनकेसँ करितथि सगाइ हे
तखन भार पठबितथि।।

मुजौना गाममे मरवाड़ी बहुत छथि
हुनकेसँ करितथि सगाइ हे
तखन साड़ी पठबितथि।।

मुजौना गाममे फल्लोँ बहुत छथि
हुनकेसँ करितथि सगाइ हे
तखन साजी पठबितथि।।

बिसहरि गीत-1
साओन मास बिसहरि लेल अवतार
राम भादव मास बिसहरि झूमरि खेलाय
झुमड़ि खेलैते बिसहरि गेल अउँघाय
राम सुति रहली बिसहरि माता कानू दुआरि
तेल दे रे तेलिया भैया दीप दे कुम्हार
राम बाती दे रे पटबा भैया लेसब प्रहलाद।।

गीत-2
छोटी-मोटी तुलसी के चतरल डाढ़ि
राम ताहि तर बिसहरि माता झूमड़ि खेलाय
झुमड़ि खेलैते बिसहरि रोदन पसार
राम कहाँ गेली किए गेली कानू दुआरि
लाबा-दूध खाये बिसहरिकेँ लागल पियास
राम चलि गेली बिसहरि माता सरोवरक कात
भनहि विद्यापति सुनू हे महेश
राम सेवक जन पर दया राखू हरहु कलेश
                                                                                                                    संकलन : निर्मला देवी 

Sunday, 28 July 2013

मधुश्रावणी : तेसर दिनक कथा

                     मधुश्रावणी : तेसर दिनक कथा 

                                                                                                           
                                         प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

                                         पृथ्वीक जन्म
संसारमे पाप बेसी भऽ जेबासँ पृथ्वी पड़ा कऽ पाताल चलि गेली। एहिसँ देवतागण सेहो चिन्तित भऽ उठला। एक दिन ब्रह्मा, विष्णु आदि देवता सभ एहिपर विचार करबा लेल बैसला जे कोन एहन उपाय हो जे पृथ्वी ऊपर आबथि आ फेरसँ संसार बसि सकय। अन्तमे हुनका प्रार्थना कऽ प्रसन्न करबाक निर्णय भेल। देवता सभ पाताल गेला आ पृथ्वीक प्रार्थना केलनि जे ऊपर आबथु।
पृथ्वी कहलथिन- ‘हमरेपर सम्पूर्ण जीव-जन्तु, गाछ-बिरिछ, मनुक्ख आदि रहै छथि आ हमरे क्यौ चिन्ता नञि करै छथि। हमहीँ सभकेँ अन्न-पानि दै छी, मुदा हमरे क्यौ चिन्ता नञि करैत अछि। सभ हमरेपर मल-मूत्रक त्याग करैत अछि। हमर अपमान करैत अछि।’
देवता लोकनि भरोस देलथिन जे हुनक जे क्यौ अपमान करत हुनका पाप हेतनि। पृथ्वीसँ कहलथिन- ‘जे अहाँसँ क्षमा मङने बिनु अहाँपर पैर धरत से पापक भागी होयत। तहिना जे मल-मूत्र त्यागि ओकरा देखि लेत सेहो स्वयं पापक भागी होयत।’
देवतागणक विनय-प्रार्थनापर पृथ्वी पसीझि गेली आ ऊपर आबि गेली। तखन ओ डगमग कऽ रहल छली। तखन भगवान विष्णु काछु केर रूप धारण कऽ हुनका अपना पीठपर राखि लेलथिन।

                                                                                समुद्र-मन्थन
समुद्र-मन्थन करबापर विचार लेल देवतागण सुमेरु पर्वतपर जुटला। विष्णु केर विचार भेलनि जे समुद्र-मन्थन देवता आ दानव दुनू मिलि कऽ करथु। हुनके विचारसँ वासुकी नागकेँ बजाओल गेलनि। ओ आबि मन्दराचल पर्वतमे लपटा गेला आ ओकरा उखाड़ि समुद्रक कात लऽ अनलनि। ओ समुद्र-मन्थनसँ प्राप्त होबऽवला अमृतमे हिस्सा भेटबाक आश्वासनपर मन्थनक कष्ट सहबा लेल तैयार भऽ गेला। मन्थनक तँयारी तँ भऽ गेल, मुदा समस्या ई ठाढ़ भऽ गेल जे मन्थन लेल समुद्रमे रखबापर एतेक भारी मन्दार पर्वते डूबि जाइत। कोनो एहन आधार तँ चाही जाहिपर मन्थार रहि सकय आ डूबय नञि। अन्तमे देवता लोकनिक कूर्मराज (काछु) सँ आग्रह केलनि। कच्छप आधार बनि मन्दार पर्वतक भार सहबा लेल तैयार भऽ गेला। तखन कूर्मराजपर मन्दारकेँ राखि मथनी बनाओल गेल। वासुकी नाग मन्थन लेल रस्सी बनला। वासुकी नागक फन दिस दानव पकड़लनि आ नाङरि दिस देवतागण। समुद्र-मन्थन आरम्भ भेल। एहिसँ समुद्रक जीव-जन्तु सभ पिसाय लागल। मन्दारपर लागल गाछ-बिरिछ सभ अपनामे रगड़ा कऽ टूटि-टूटि समुद्रमे खसऽ लागल। ओहि रगड़सँ पर्वतमे आगि लागि गेल। एहिसँ पर्वतपर केर जड़ी-बूटी, सोना-चानी, मूङा आदि जरि कऽ भस्म भऽ गेल। देवता आ दानव गर्मीसँ व्याकुल भऽ उठला तँ शीतलता देबा लेल इन्द्र वर्षा करऽ लगला जाहिसँ अमृतमय सभटा भस्म धोखरि-धोखरि समुद्रमे खसऽ लागल। एहिसँ समुद्रक पानि नोनगरसँ दूध भऽ गेल आ बेसी काल धरि मन्थनसँ घी बनि गेल। एकर बादो जखन बड़ी काल मन्थन कयल गेल तँ समुद्रसँ लक्ष्मी, सुरा (मदिरा), उच्चैश्रवा घोड़ा बहार भेल जे चन्द्रमा लोकनि हथिया लेलनि। तकर बाद अमृतक कलश नेने धन्वन्तरि प्रकट भेला। एकर बाद विष बहार भेल जकर तापसँ देवता आ दानव मूर्च्छित होबऽ लगला। एहिसँ हाहाकार मचि गेल। ई हाल देखि विष्णु भगवान महादेवसँ आग्रह केलनि आ ओ सभटा विष पीबि गेला। महादेव सेहो एहिसँ बेहोश भऽ गेला। तखन माता गौरीक नेहोरा-मिनतीपर बिसहराक संग सभ साँप, बिढ़नी, चुट्टी, पिपरी आदि जा कऽ महादेवक शरीरसँ लपटा गेल आ विष बहार केलक। अन्तमे सभ महादेवक कण्ठमे कनेक विष छोड़ि देलकनि जाहिसँ हुनक कण्ठ नील भऽ गेलनि आ ओ नीलकण्ठ कहल जाय लगला।
एमहर अमृत लेल देवता आ दानवमे झगड़ा होबऽ लागल। दानव सभक कहब छल जे समुद्रसँ बहार भेल सभटा वस्तु देवता सभ अपनामे बाँटिए लेलनि। जाहि अमृत लेल समुद्र-मन्थन भेल ताहिमे सँ हुनको सभकेँ बखरा चाही। देवका सभकेँ चिन्ता छलनि जे दानव सभ बहुत बलिष्ठ अछि, कतेको बेर हुनका सभकेँ स्वर्गसँ खेहारि कऽ भगा चुकल छनि। जँ अमृत पीबि लेत तँ अमर भऽ जायत आ तखन सभ दिन देवता सभकेँ देबेने रहत। तखन भगवान विष्णु मोहिनीक रूप धारण कऽ दानव सभक आगाँ ठाढ़ भऽ गेला। दानव मोहिनीक स्त्री रूपसँ मोहित भऽ गेल आ अमृतक कलश हुनका हाथमे दऽ देवता सभसँ युद्ध करऽ लागल। मोहिनी रूप धेने भगवान नारायण देवता लोकनिकेँ अमृत पियाबऽ लगला। ई राहु नामक दैत्य देखि लेलक आ देवताक रूप धऽ ओहो अमृत पीबि लेलक, मुदा ओकरा देवताक रूप धरैत सूर्य आ चन्द्रमा देखि नेने छला। ओ विष्णुकेँ एकर जानकारी देलनि। जाबत राहुक कण्ठसँ नीचा अमृत उतरैत ताहिसँ पहिने विष्णु अपन चक्रसँ ओकर गर्दनि काटि देलनि। अमृत-पान करबाक कारण राहु मरि तँ नञि सकल, मुदा ओ दू खण्ड भऽ गेल। गर्दनि वला खण्डक नाम राहु आ धड़ वला खण्डक नाम केतु पड़ल। तहिएसँ ओ सूर्य आ चन्द्रमाक शत्रु बनि गेल। तेँ एखनो अमावश्यामे सूर्यकेँ आ पूर्णिमामे चन्द्रमाकेँ ओ गीड़ि लैत अछि जाहिसँ सूर्यग्रहण आ चन्द्रग्रहण होइत अछि। जेँ ओकर गर्दनि आ धड़ फराक छै तेँ सूर्य आ चन्द्रमाक ओहिसँ उग्रास भऽ जाइ छनि, माने ओ बहरा जाइ छथि।
एमहर देवता लोकनिकेँ अमृत पिएबाक बाद विष्णु अस्त्र-शस्त्र लऽ दानव सभसँ कसगर युद्ध केलनि आ सभकेँ मारि-काटि कऽ पराजित कऽ देलनि। ओ सभ दानवकेँ खेहारि पाताल भगा देलनि। बचल अमृत इन्द्रकेँ दऽ देलथिन। इन्द्र ओकर रखबारिक भार विश्वकर्माकेँ देलनि। समुद्र-मन्थनमे वासुकी नाग रस्सीक काज केने छला तेँ देवता लोकनि हुनका आशीर्वाद देलथिन जे हुनका   मायक श्राप कहियो नञि लगतनि आ ओ जन्मेजयक यज्ञमे सपरिवार नञि जरता। हुनकर भागिन आस्तिक मुनि हुनक रक्षा करथिन। 

मधुश्रावणी : दोसर दिनक कथा

                                                                      मधुश्रावणी : दोसर दिनक कथा 
                                                           प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक
                            बिहुला ओ मनसाक कथा
  मनसा महादेवक मानस पुत्री छलीह। ओ जनमितहि युवती भऽ गेली। नाङटि रहबा कारणेँ हुनक लाज रक्षा हेतु साँप हुनका देहमे लपटाय गेल। एहिसँ सभसँ गौरी अप्रसन्न भऽ गेली। तेँ हेतु मनसाकेँ कैलाश त्यागि अन्यत्र जाए पड़लनि। महादेवक कृपासँ ओ मर्त्य-भुवन चलि एली। हुनक इच्छा छल जे लोक हिनक पूजा करए। ओहि समयमे मर्त्य-लोकमे चन्द्रधर (चन्दू) नामक एक पैघ सौदागर रहए। पैघक देखाउसि आनो लोक करैत अछि। तेँ मनसाक मोनमे भेल जे पहिने चन्दूए हमर पूजा करए त देखा-देखी आनो हमर पूजा करए लागत। चन्दू महादेवक परम भक्त छल। ओ महादेव छोड़ि आन देवताक पूजा करब नञि गछलक। ओकर उत्तर छल ‘जे दहिना हाथ महादेवकेँ देने छियनि, बामा हाथसँ हम अहाँक पूजा कऽ सकैत छी।’ मनसाकेँ ई नञि जचल। ओ तमसा गेली। चन्दूक छओ गोट बेटाकेँ ओ साँप डसबाकेँ मारि देलनि। चन्दूकेँ बूढ़ारीमे पुन: एक बेटा भेल। हुनक टिप्पनि देखि ज्योतिषी कहलक जे इहो बेसी दिन नञि जीताह। हिनका विवाहक दिन कोबरहिमे साँप डँसि लेत। चन्दू अत्यन्त दु:खी भेला, किन्तु साध्य कोन। ओहि बेटाक नाम पर लक्ष्मीधर (बाला लखन्दर) पड़ल। लक्ष्मीधरकेँ छवे मास भेलापर चन्दू अपन पत्नीक जिद्दपर एहन कनिञासँ  विवाह प्रस्तुत भऽ गेलाह, जकर टिप्पनिमे चिर-सोहागिन योग छलैक। ओ पहाड़पर एकटा एहन कोठा बनबेलनि, जे सभ दिससँ निमुन छलैक। बिज्जी आ बिढ़नीक पहरा पड़ल जे ओहि परोपट्टामे कोनो साँपकेँ नञि आब देतै। ओहि कोठामे लखन्दरक विवाह बारह बरखकपरम सुन्दरी आ सुलक्षणि कन्या बिहुलासँ भेल। जखन ओ कनिञा संग कोहबर छल। तखने कोनो बाटे एकटा साँप आबि हिनका डँसि लेलक। लखन्दर तत्काले मरि गेलाह। लोक सभ हिनका संस्कार लेल  गंगा कात लऽ गेला। बिहुला परम सती छली। ओहो स्वामीजीक संग श्मशान घाट चलि गेली। लोक सभकेँ ओ मुर्दा गारऽ नञि देलनि। ओ सभकेँ कहलनि जे हमरा जेना होयत तेना हिनका जिआयब। बिहुला केराक थमक एकटा नाव बना ओहिमे सभक संग अपनहुँ बैसि गेली। आ गंगामे नावकेँ भसिया देलनि। लोकसभ बहुत मना केलक, लेकिन जिद्द देखि अन्तमे लोक हुनका अपना भाग्य पर छोड़ि देलक। ओ बिना अन्न-जलक गंगामे मुर्दाक संग कतेको दिन धरि भसिआइत रहली। सभक माँस गलि-गलि खसय लागल। केरा थम्ह सड़िकऽ टूटऽ लागल। भसिआइत-भसिआइत ओ बेढ़ प्रयाग पहुँचल। बिहुला आ त्रिवेणी घाटपर एक धोबिनकेँ कपड़ा खिचैत देखलनि। ओकरा संग एक चिल्हका छलैक। ओ चिल्हका ओकरा दिक्क करै छलै। बीच-बीचमे नुआ खीच लैत छलै। अन्तमे धोबिनओकरा जानसँ मारि खीचल सारी तरमे झाँपि देलक। काजक बाद  चिल्काकेँ जिया देलक आ ओकरा काँख तर लऽ  घर बिदा भऽ गेल। बिहुला के भेलनि जे एहि धोबिनसँ हुनक काज भऽ सकैत छनि।  दोसर दिन जखन धोबिन फेर घाटपर आयल तखन बिहुला अपना सभ हाल ओकरा कहलखिन्ह। आ ओकरासँ अपन स्वामीकेँ पुन: जीवित करबामे मदति मङलखिन्ह। बिहुलाक सुन्दरता, धैर्य आ साहस देखि धोबिनकेँ दया आबि गेल। धोबिन बिहुलाकेँ सङ इन्द्र दरबार पहुँचल। ओतय आरो देवता सभ छला। बिहुला सभ देवताकेँ अपन वृतान्त सुनेलनि आ अपन स्वामीक प्राण दानक भीख मङलनि। देवतागण बिहुलाक व्यवहार देखि प्रसन्न भऽ गेला आ हुनका दया आबि गेलनि। ओ सभ बिसहरा (मनसा) के बजेलनि आ चन्दू सौदागरक अपराधकेँ क्षमा करबा लेल कहलनि। बिहुलो बिसहाराक पैर पकड़ि विनती केलनि आ आँचरि पसारि कबुला केलनि जे यदि पति सहित हुनक छबो भैंसुर जीबि उठता तँ ओ अपन ससुरकेँ मना पूर्ण समारोहक संग बिसहाराक पूजा करती तथा मृत्यु भुवनमे हुनक प्रचार करती। बिसहरी माता प्रसन्न भऽ सभकेँ जीवित हेबाक वरदान देलनि। इन्द्र महराज लक्ष्मीधर सहित सातो भाइकेँ यमपुरीसँ बाहर करबाक आज्ञा देलनि। सातो भाइकेँ नव शरीर दऽ बिहुलाक संग लगा देल गेल। चन्दू सौदागर बेटाक शोकसँ मरनासन्न भऽ गेल छला। देखनिहार अभावमे धन-वित्त बोहा गेलनि। अकस्मात् सातो बेटाक संग पोतहुकेँ आयल देखि आनन्द विभोर भऽ गेला। हुलसि कऽ सातो बेटा आ पुतोहुकेँ गला लगेलनि। बिहुला सँ सभ हाल बुझि हुनका आशीर्वादसँ ओतप्रोत कऽ देलनि। खूब धूमधामसँ बिसहाराक पूजा केलनि। सभकेँ हकार आ निमंत्रण देलनि। बिसहाराक महिमाक गुणगान, पूजाक प्रचार कयल गेल। अनेको स्थानपर हुनक मन्दिर बनाओल गेल। ओहि दिनसँ मृत्यु भुवनमे बिसहाराक पूजा होमय लागल। गाम-गाममे हुनक गहबर बनल। लोक सभ ढ़ोल बजा, भीख माङि बिसहाराक गीत गाबि पूजा करब प्रारम्भ केलक।

बिसहराक कथा
कद्रू नामक स्त्रीसँ कश्यप मुनिकेँ एक हजार सन्तान भेल आ ओ सम्पूर्ण संसारमे पसरि गेल। ओ सभ उत्पाती छल। एकाएक ओ सभ मरऽ लागल। ब्रह्मा चिन्तित भऽ गेला जे साँप एना करत तँ हमर सृष्टि समाप्त भऽ जायत। ब्रह्मा कश्यप मुनिकेँ एहिसँ त्राणक उपाय कहलनि। कश्यप मुनि साँप झाड़बाक मंत्र बनेलनि। ओ तपस्या कऽ बिसहाराक सृष्टि केलनि। तेँ मनसा देवी कहल जाइत अछि। एहि तरहेँ ओ महादेवक, श्रीकृष्णक तपस्या केलनि। एहि सभसँ हिनक देह सुखाकऽ जीर्ण भऽ गेल तेँ हिनक नाम जरत्कारू पड़ल। हिनक विवाह बूढ़ ब्राह्मणसँ भेल।  अखाड़क संक्रान्तिसँ नाग पञ्चमी धरि बिसहाराक पूजा पसीझक पातपर होइत अछि। बिसहारा पूजा करबासँ लोककेँ धन-धान्यक वृद्धि होइत अछि आ साँपक डर नञि होइत अछि। बारह नामसँ बिसहरि विख्यात छथि-जगदगौरी,   मनसा, जरत्कारु, वैष्णवी, सिद्धयोगिनी, नागेश्वरी, शैवी, जरत्कारु - प्रिया, नाग-भगिनी, आस्तीक माता, बिसहारा आ महाज्ञानयुता। ई बारहो नाम लेबासँ लोककेँ अपना आ ओकर सन्तानकेँ सर्पदंशक डर नञि होइत अछि।

मंगला-गौरीक कथा
श्रुतिकीर्त्ति नामक एकटा राजा छला। हुनका बेटा नञि छल। ओ भगवतीक आराधना केलनि। भगवती वरदान मङबा लेल कहलनि। राजा कहलनि पुत्र छोड़ि कोनो वस्तुक कमी नञि अछि। हमरा एकटा पुत्र दिअ। भगवती कहली-सेवक तोरापर हम प्रसन्न छी। तोरा पुत्र लिखल नञि छह, तथापि तोरा हम बेटा देबह। सर्वगुणी बेटा लेबह तँ सोलह बरख जीतह आ जँ चिरञ्जीवी लेबह तँ महामूर्ख हेतह। राजा मन्दिर दुआरि लगीचक एकटा आम रानीकेँ खुआ देलनि। रानीक कोखिसँ सुन्दर बालकक जन्म भेल। राजकुमार पढ़ि-लिखि सम्पन्न भऽ गेला। देखैत-देखैत राजकुमार सोलह बरखक भऽ गेला। राजाकेँ एमहर चिन्ता सता रहल छल। बेटाक मृत्यु अपन सोझाँ केना देखता। राजा राजकुमारकेँ अपना सारक संग काशी पठा देलनि। माम-भागिन काशीक रस्तामे जाइत-जाइत आनन्दनगर पहुँचला। ओहिठाम वीरसेन नामक राजा राज करैत छला। राजाकेँ मँगला गौरी नामक एकटा कन्या रहथिन। ओ सखी सभक संग फुल लोढ़ि रहल छली। बात बातमे कोनो सखी तमसाकेँ राजकुमारीकेँ राँड़ी कहि देलनि। राजकुमारी कहलनि हमरा हाथक अक्षत जाहि वरक माथपर पड़ि जायत ओ अल्पायु रहितो चिरायु भऽ जायत। सञ्योगवश माम-भागिन एहि बातकेँ अपना कानसँ सुनलनि। ओ सोचलनि जे राजकुमारी संग भगिनाक विवाह भऽ जायत तँ ओ चिरायु भऽ सकैत छल। एमहर राजकुमारीक विवाह सुकेतु वर्मासँ तऽ छल। ओ कुरूप छल। सुकेतुक बाप-पित्ती विचारलनि। नीक वर लऽ मड़वा पर जायब आ विवाह भेला बाद ओकरा भगा देब आ सुकेतुकेँ कोहबरमे बैसा देब। ई लोकनि मामासँ भागिन मङलनि। चिरायुक विवाह राजकुमारीसँ करायल गेल। एमहर सोलहम बरख चिरायुक पूरि गेल छल। अधरतियामे काल गहुमनक रूप धऽ घर पैसि गेल। राजकुमारी गहुमनकेँ देखि दुधक बाटी ओकरा  आगू राखि देलनि। नागराज प्रसन्न भऽ ओतहि राखल पुरहरिमे पैस गेल। राजकुमारी आँगीसँ पुरहरिक मुँह बान्हि देलनि। बादमे जखन राजकुमारी साँपवला पुरहरिकेँ फेकऽ गेली तँ साँपक जगह एक गोट रत्नक हार छल। ओ हार पहिर लेली। एमहर चिरायु अपन मामक संग काशी, विन्ध्याचल चलि गेला। एक बरखक बाद फेर एहिठाम एला। राजकुमारी चिरायुकेँ देखि चीन्ह लेली। राजा दुनूक विवाह खूब धूमधामसँ करेलनि आ पूरा परिवार खुशीपूर्वक जीवन बिताबऽ लगला। तेँ मैना आ नाग पूजाक साधवाक जीवनमे बड़ महत्व अछि।

मधुश्रावणी : पहिल दिनक कथा

                                                                                 मधुश्रावणी : पहिल दिनक कथा
                                                     प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक                                           मौना पञ्चमी
एगो बूढ़ी स्नान करबा लेल धार कात गेली। ओ देखलनि जे धारमे पातपर पाँच गो जीव लहलहाइत दहा रहल अछि। ओ जीव बूढ़ीकेँ कहलकनि जे जाउ आ गाममे स्त्राीगणकेँ कहियनु जे आइ मौना पञ्चमी अछि। आइ पवित्रता पूर्वक स्नान-ध्यान करथि। चिक्कनि माटि आनि घर-आङनकेँ पवितासँ नीपथि। ओहि माटिक पाँच गो थुम्हा बनाबथि। ओहिपर सिनूर-पिठार लगा दूभि साटि देथु। नव बासनमे खीर-घोरजाउर बनाबथि। बिसहराक पूजा कऽ हुनका दूध-लाबा चढ़ाबथि। खीर, घोरजाउरक उसरगि देथि। नेबो, आमक पखुआ, नीमक पात आदि चढ़ाबथि। घरक दुआरिक दुनू भाग गोबरसँ फेँच काढ़ने नागक आकृति बनाबथि। ओकरा मुँहमे दही-दूभि लगाबथि। आइ तीत खाथि। जे एहि तरहेँ मौना पञ्चमी पाबनि मनेती तिनका सभ तरहक कल्याण हेतनि। एना नञि केनिहारिकेँ नोकसान हेतनि।
जखन स्नान कऽ बूढ़ी गाम घुरली तँ ओ सभकेँ एकर जानकारी देलनि। किछु गोटे बूढ़िक बातपर विश्वास नञि केलनि आ पाबनि नञि मनेलनि। ओतहि बहुतो गोटे हुनका बातपर विश्वास कऽ जाहि रूपेँ कहल गेल छल तहिना मौना पञ्चमी मनेलनि। जे सभ पाबनि केलनि से सभ तँ सुरक्षित रहला आ जे सभ पाबनि नञि केलनि ओ सभ रातिमे मरि गेला। तखन लोक सभ बूढ़ी लग पहुँचल आ हुनकासँ एकर उपाय पुछलनि। बूढ़ी फेर धार लग गेली आ ओहि ठाम चिकनी पातपर लहलह करैत ओहि जीवकेँ सभटा बात कहि उपाय पुछलनि। ओ पाँचो जीव पाँचो बहिन बिसहरा छली। परिचय जानि बूढ़ी हुनका प्रणाम केलनि आ मरल लोक सभकेँ जीवन देबाक आग्रह केलनि। तखन बिसहरा कहलनि जे गाममे जँ ककरो ओहि ठाम बासनमे खीर-घोरजाउर लागल रहि गेल हो तँ ओकरा मरल लोक सभक मुँहमे लगा देबै ओ सभ जीबि जायत। सभकेँ कहबै जे अगिला पञ्चमीकेँ जखन नागपञ्चमी होयत तँ ओहि दिन नियमसँ पाबनि मनाबथि। बूढ़ि गाम आबि सभटा बात कहलनि आ सभ मरल लोकक मुँहपर खीर-घोरजाउर लगायल गेल। सभ जीबि उठला। नागपञ्चमी दिन पाबनि मनेलनि आ मड़रय कहाय लगला।

                                                                               बिसहराक जन्म
महादेव आ गौरी सरोवरमे जल-क्रीड़ा कऽ रहल छला। एही बीच ओ स्खलन भऽ गेलनि। महादेव ओकरा पुरैनिक पातपर राखि देलनि जाहिसँ विसहरा पाँचो बहिनिक जन्म भेलनि। महादेवकेँ पाँचोपर सन्तानवत स्नेह उमड़ि एलनि। ओ रोज सरोवर जाथि आ पाँचो बहिनिक संग खेलाथि। एमहर गौरीकेँ महादेवपर सन्देह भेलनि जे ओ नहाय लेल जाइ छथि तँ बड़ी काल किए लगबै छथि? एक दिन ओ चुपेचाप महादेवक पछोड़ धेलनि। नुका कऽ देखलनि जे महादेव साँपक पाँचो पोआ संग खेला रहल छथि। गौरी कुपित भऽ गेली आ पाँचो पोआकेँ पैरसँ पीचऽ लगली तँ महादेव मना केलनि आ कहलनि जे ई पाँचो मारबाक पात्र नञि छथि। ई पाँचो अहाँक पुत्री थिकी। ई सभ अहाँक संग सभक उपकार करती। सभक कष्ट दूर करती। हिनका सभक पूजा साओन मासमे पृथ्वीपर हेतनि। जे एहि पाँचो बहिनिक पूजा करता तिनकर सभ तरहेँ कल्याण हेतनि। महादेव कहलनि जे एहि पाँचोक नाम ओ जया, बिसहरि, शामिलबारी, देव आ दोतलि रखलनि अछि।