Tuesday, 23 July 2013

गोनू झाक बेटा

                                                                                         गोनू झाक बेटा
                                                              - अमलेन्दु शेखर पाठक 
गोनू झाक घरपर चोर धपायले रहै छलनि। चोर सभ जनै छल जे गोनू झा राज दरबारमे छथि आ ओहि ठामसँ हुनका बेसी काल सोना-चानी, हीरा-मोती आदि इनाममे भेटिते रहै छनि। चोर सभ सदिखन गोनू झाक घरमे हाथ सुतारऽ लेल बाट तकैत रहैत छल। अपन एक ने एक चटियाकेँ गोनू झाक घर दिस पठबिते रहै छल जे जखने लगौ जे चोरि सम्भव अछि हम सभ जूमि जेबौ।
एक दिन चोर सभकेँ चटियाक समाद भेटल जे आइ गोनू झा सबेरे ओछायनपर चलि गेल छथि तेँ आइ हाथ साफ करबाक अवसर भेटि सकैत अछि। समाद भेटिते चोर सभ जूटल आ बेरा-बेरी गोनू झाक घरमे पैसि गेल। ओ सभ देखलक जे गोनू झा ओछायनपर पड़ल अपना कनिञा संग बतिया रहला अछि। चोर सभ कोठीक दोगमे दम्म साधि नुकायल दुनू बेगतीक सुतबाक प्रतीक्षा करैत हुनक बातो सुनि रहल छल।
ओमहर ओछायनपर पड़ल गोनू झाक नजरि चोरपर पड़ि गेल छलनि। ओ चोर सभकेँ पकड़बाक ब्योँत सोचऽ लगला। भेलनि जे हल्ला करब तँ चोर जँ बेसी संख्यामे होयत तँ पड़ा जायत आ कहीँ अस्त्र-शस्त्र ने रखने हो। चतुर गोनू झाकेँ उपाय फुरा गेलनि। ओ कनिञाकेँ कहलनि जे जखन अपना सभक बेटा होयत तँ हम पहिल केर नाम राखब मोहन।
गोनू झाक कनिञा औँघा रहल छलथिन, तेँ हुनक बातमे रुचि-रस नञि रहल छलथिन। गोनू झा हुनका देह झमारि जगेलनि आ कहलनि- ‘सुनू ने जे दोसर बेटाक नाम राखब लोचन, तेसर केर मोचन आ चारिम केर नाम राखब चोर।’
कनिञाकेँ तँ बूझल रहनि नञि जे घरमे चोर घुसि गेल अछि तकरे पकड़बाक जोगार गोनू झा कऽ रहल छथि। तेँ ओ कहलथिन ‘दुर जाउ चोर कहीँ नाम भेलै... अच्छा जे मन होयत से राखब...जहिया बेटा होयत तहिया ने नाम राखब एखन सूतू।’
गोनू झा चोर वला बात बाजियो नञि सकै छला आ चोरकेँ पकड़बोक छलनि तेँ पत्नीकेँ जगबैत बजला- ‘सूनू ने! चारू बेटाकेँ खूब खुआ-पिया कऽ तन्दुरुस्त राखब आ जखन जरूरति होयत चारूकेँ एक्के बेर सोर पाड़ब मोहन, लोचन, मोचन, चोर हो ऽऽऽऽ....जल्दी आबऽ मोहन, लोचन, मोचन, चोर हो ऽऽऽऽ....।’
गोनू झा जोर-जोरसँ नाम लऽ चिकरि-चिकरि बाजि रहल छला आ कनिञा हँसैत-हँसैत लोटपोट भऽ रहल छलथिन जे बेटा भेलनि नञि आ सभकेँ जोर-जोरसँ बजा रहल छथि, मुदा गोनू झाक आवाज आर जोरे भेल जा रहल छलनि।
एमहर गोनू झाक आवाज सुनि हुनक पड़ोसिया मोहन, लोचन आ मोचन लाठी लऽ पहुँचि गेला। सभ केबाड़ खटखटेलनि कि गोनू झा चट दऽ खोलि देलनि। पड़ोसिया सभ चोर दऽ पुछलकनि तँ देखा देलथिन कोठी दिस। चोर सभ गोनू झाक बात तँ सुनि रहल छल, मुदा गोनू झाक कनिञा जकाँ ओहो सभ खिस्से बूझि रहल छल। ओकरा सभकेँ पते ने छल जे बेटाक नामक बदल गोनू झा अपन पड़ोसियाक नाम लऽ रहल छथि आ चारिम बेटाक नाम जानि कऽ चोर राखि चिचिएला जाहिसँ सभ जुटि जाय। जखन पड़ोसिया सभ जुटि गेला तँ चोर सभकेँ पड़ेबाक बाटे ने सूझल। सभ पकड़ल गेल। लोक सभ जमि कऽ पिटलनि आ राजाक सिपाही सभकेँ पकड़ि कारागारमे धऽ देलक। असलीहत बुझबापर पड़ोसिया सभक संग कनिञा सेहो गोनू झा केर प्रशंसा केलनि आ महराज सुनलनि तँ एहू चतुरता लेल गोनू झा पुरस्कृत कयल गेला। चोरो पकड़ा गेल आ गोनू झा केर घरमे धन सेहो बढ़ि गेल।

ऊधोजीक उधियान........ हम्मे नञि रहबऽ तिमनचिक्खा

  ऊधोजीक उधियान........
                         हम्मे नञि रहबऽ तिमनचिक्खा
                                                           - अमलेन्दु शेखर पाठक 
ऊधोजी उत्फाल भेल छथि। सौँसे घर एक दिस आ ओ अपने एक दिस भऽ गेल छथि। ककरो सुनबा लेल तैयार नञि। ओ अड़ि गेल छथि जे आब नोकरी नञि करता- ‘नञि हम्मे नोकरी नञि करबऽ तोँइ आर कतबो हल्ला करभो हम्मे आइ रिजनेसन मारि इस्कूलसँ घुरी अइबऽ।’
भौजी, माने ऊधोजीक कनिञा दौड़ल एली हमरा गोहराबऽ- ‘हे नूनू तोँइ बुझैबहो तँ मानि जैथिन। रिजेन मारि देथिन तब बाल-बुतरू सभ की खैतै...फेरो सनकी चढ़ि गेलै हन।’
हुनकासँ बात बुझबाक प्रयास कयल जे ऊधोजी एना किए कऽ रहल छथि, मुदा ओ किछु कहबाक बदला तेना हमर गट्टा धेलनि जे ओकर मट्टा टूटि गेल आ पहिल दिन बुझलहुँ जे भौजी पूरा-पूरी ऊधोजीक अर्द्धांगिनी हेबा जोगर छथि। हमर मुँहक बात मुँहे रहि गेल आ ओ हमरा घिसिएने अपना आङन लऽ कऽ पहुँचि गेली। ऊधोजी कऽलपर हाथ मटिया रहल छला। हमरा देखिते हुम्हरला- ‘भैबाकेँ बोला कऽ लैलहो से आइ हम एकरो बात नञि मानबो।...तोँइ आर कलस्टर-मजिस्टरकेँ अन्भो तैयौ आइ हम्मे अपना बातसँ नञि पलटय वला छिकियै।...हमरा जानपर बनल छिकै आ हिनका सभकेँ....।’
ऊधोजी वाक्यो ने पूरा केलनि आ हड़बड़ा कऽ लोटा नेने फेर कऽले लगक शौचालयमे घुसि गेला। भौजीसँ पता चलल जे अधरतिएसँ लोटे हाथे छथि। घर भरि जागल अछि। रातिमे पानि चढशौचालयसँ घुरै छथि तँ एतबे रटै छथि जे आइ नोकरी छोड़ि देता। एहू हालतिमे त्यागपत्र लिखि कऽ राखि लेलनि अछि। कनिञा बुझा कऽ थाकि गेली अछि। आब जेठका बेटोकेँ मोछक पम्ह चललनि, से ओहो बुझेलकनि, मुदा ओकरा हुरपेटि लेलथिन। बेचारा सिटपिटा कऽ कात भऽ गेल। भौजीकेँ पुछलियनि- ‘किए त्यागपत्र देबऽ चाहै छथि? भेलैए की जे...’
हमर मुँहक बात मुँहेमे रहि गेल। ऊधोजी शौचालयसँ बहार भऽ गेल छला, ओ कऽलपर हाथ मटिएबा लेल बैसैत कहलनि- ‘हम्मे कहै छिकियौ भैबा, तनी हाथ धोइ लै छिकियौ...तोँइ जरूर हम्मर दरद बुझभीँ...।’
हाथ मटिया ओही ठाम आङनमे राखल चौकीपर ओलरि गेला। हुनकर हालति ठीके खराब छलनि। कहाँ चकैठ सन देहवला ऊधोजी आ कहाँ एके रातिमे गलि कऽ राङ भऽ गेल हुनक देह। कतऽ लाल-लाल कर्जनी सन बड़का-बड़का डिम्हा कुदबा लेल तैयार रहै छलनि से धँसि गेल छलनि।...ऊधोजी कने काल आँखि मुनने हकमैत रहला। हम ई सोचि दलानपर चलबाक आग्रह केलियनि जे ओहि ठाम कोनो बात होयत तँ भौजी संग झझका-झझकी तँ नञि हेतनि, से प्रस्ताव दैते हमरापर छुटला- ‘तोँइ महा खतम छिकहीँ भैबा, लौकै नञि छिकौ जे हमर की हाल छिकै...अधरतियासँ अखनी धरि लोटा नेने दौड़िए रहलियै हन...आधासँ बेसी काल भितरे बैसल छिकियै।...फीरि अइलौँ आ फीरि जाइ छिकियै.....जँ फेरो पेटमे खोँच मारय लगतै तँ तोँइ काम देबहो...जाबे अङना अइबै ताबे जँ.....नञि-नञि हम्मे नञि जैबै दूरापर इहेँ बैठब करेँ...।’
चुप लगा गेलहुँ। कहबो तँ ठीके कने छला। बेचारे करथु की। आहा-ओहो कऽ हुनका पोल्हबैत पुछलियनि- ‘की भेल? किए नोकरी छोड़बा लेल भिड़ल छी...पेट किए खराब भऽ गेल? कतहु अक्कच-दोक्कच खा लेलियै की?’
ऊधोजी ओहू हालमे गरजि उठला- ‘माहटर तोँइ छहो की हम्मे...लगल्हो हमरासँ चटिया जेँकती सबाल पुछय...किए नोकरी छोड़भो...रे हम्मे भितरामपुर जा रहल छिकियै तकर चिन्ता ककरो नञि छिकै...खस्सी के जान जाय आ खेबैया के स्वादे नञि...तोँइ आर की चाहै छहो जे ऊधोबाबूकेँ फूकि देबहो तखनिए चैन होइतऽ..?’
मन तँ लोहछि गेल। ई हमर चटिया तँ नहिञे छथि, हमहूँ तँ हिनक चटिया नञि छियनि। दू-चारि बरख छोट हेबनि तकर की माने जे एना लुलकारता? मन तँ भेल जे चुपचाप उठि कऽ चलि दी, मुदा फेर हुनक शारीरिक अवस्थापर ध्यान गेल आ चुप लगा गेलहुँ। अपना ओहि ठाम कहलो गेल छै जे बच्चा, बूढ़ आ बेमारपर दया करी। प्राय: ऊधोजी सेहो गमि लेलनि जे एखन हुनकर बात हमरा नीक नञि लागल से नरम पड़ैत कहलनि- ‘ले बलैया तोँइ किए मूँह लटका लेलहीँ रे भैबा, कने जोरसँ बोला गेलै तँ बुझभी नञि जे कमजोरीसँ एना होइ छिकै....।’
ऊधोजी हमरा प्रति सिनेह देखेलनि आ आगाँमे टाङ पसारि देलनि। संकेत केलनि तँ मन मसोसि कऽ पैर ऐँठऽ लगलियनि। हमरा दबेने हुनक ढेङ सन-सन टाङ-जाँघकेँ की हेतनि, मुदा तैयो झूलऽ लगलहुँ आ ऊधोजी अपन व्यथा कहब शुरू केलनि- ‘भैबा रे सरकारी नोकरीकेँ लात मारब के चाहै छिकै? जहिया नोकरी होलै तहिया हम्मे बड्डी खुशी होलियै...माहटर होबै...परिच्छा होइतै तऽ हमरा आउर के नोकरी होबो करितै? बीए पास होलियै तहिया मोछ रहै करिया...नोकरी होलै उजरा मोछवला के...जे होलै से होलै माहटर तऽ हम्मे होइए गेलियै....आहि रे बा, माहटर होलियै बाल-बुतरूकेँ पढ़ाबै खातिर की बकरी, घोड़ा, महीस आ मनुक्ख गीनय खातिर आ भोट करबय खातिर?...हाय रे बा एकर बाद हम्मे होइ गेलियै बेपारी....चाउन आनहो, खिचड़ी बाँटहो...चोरी करहो, चाउर बेचहो, नञि बेचभो तँ तंग होइबहो...चोरी करहो तोँइ, पकड़ैबहो तँ गौञाँ-घरुआ सोँटियैबो करतऽ आ एकबारमे फोटो सहो छपि जैतऽ...नञि चोरि करभो तँ ई लुटुकुन नेताजी सभक आव-भगत कहाँसँ करभो...हाकिमक स्वागत कोना होइतऽ?’
ऊधोजीकेँ कण्ठ सुखा गेल छलनि। नोन-चीनी मिलायल पानि दू घोँट पीलनि आ फेर शुरू भऽ गेला- ‘ई फेज तँ जेना-तेना पार होइ गेलियै...हाय रे बा आब   कहै छिकै तिमनचिक्खा बनहो।’
हम टोकारा देलियनि- ‘केहन सुन्नर तँ नोकरी अछि। आब तँ अहाँ प्रभारी हेडमास्टरो छी।’
ऊधोजी लोहछला- ‘भैबा रे यैह ने काल होइ गेलै। छपरामे मझिनी भोजन धीयापुता खैलकै आ मरि गेलै से आब कहै छिकै जे पहिने तोँ चिखहो तब दहो बच्चा सभके...नोकरी करभो तँ सरकारी बात कोना नञि मानभो से काल्हि हम्मे चिखलियै एक बेर, मुदा आबय लागलै नेताजी सभ आ सभ बेराबेरी अपना सामनेमे हमरा कहै पहिने अपने खाइ कऽ देखबहो...तै पर गारजीयनो जुटय लागलै...हमरा चिखैत-चिखैत ठोँठा धरि आइ गेलै खिचड़ी..ढेकरो होइ तँ मुँहमे खिचड़ी आबि जाइ...घरे आबैत-आबैत छेरा-बोकरा धै लेलकै...आब तोँही बोलेँ हम्मे माहटरी करबै कि तिमनचिक्खा बनबै....।’
ऊधोजीक बात तँ ठीके छलनि, तथापि कहलियनि- ‘मिड डे मील बनेबामे सफाइ आदि नञि रखबै?’
ऊधोजी तमतमेला- ‘तोँइ आर की बुझै छहो जे हम्मे सभ जानि-बूझि कऽ गन्दा राखै छिकियै, जे बेबस्था देबहो ओहीमे ने खाना बनबैबै...कहै छहो जे शौचालय लग बनबै छिकै...रे भैबा देशमे ऐसन लाखो आदमी छिकै जे लगमे नञि शौचालये के हॉजपर खाना पकबै छिकै...आ घरमे लोकके फूड पोआइजनिंग नञि होइ छिकै...कुछ होइ गेलै तँ माहटरे के फाँसी....बच्चा आर के हिफाजति ठीक छिकै, मुदा माहटर के जान जान नञि होइ छिकै की...फूड चीखि कऽ अपने टीङ गेलियै तबै की होतै...छिकै अन्दाज ककरो...हम ककरो नञि सुनबै...आइ रिजनेसन देबे करबै?’
ऊधोजी लोटा लऽ फेर दौड़ि गेला आ हम चौकीपर विचारैत बैसल रहि गेलहुँ, अपना आहि ठाम कोनो समस्याक निदान लेल रोगक इलाज किए ने होइ छै?

ऊधोजीक उधियान..... जाम परदेश

 ऊधोजीक उधियान....

  -अमलेन्दु शेखर पाठक
                                       जाम परदेश

ऊधोजी बाँसक फट्ठा नेने, गल्लीक मुँहपर बेञ्च लगेने ओहिपर बैसल छला। बाँस लऽ बाटकेँ पूरा-पूरी घेरि देने छला। हालति तेहन छल जे कातो दऽ निकलब सम्भव नञि छल। जे प्रयास करितो छल तकरापर फट्ठा लऽ छुटै छला। नेना-भुटका सभ स्कूल जेबा लेल पीठपर बस्ताक बैग लदने ठाढ़ आ हुनक अभिभावक लोकनि ऊधोजीसँ आग्रह कऽ ्नरहल आ ओ तेना गरजि कऽ दौड़ै छला- ‘मारे सोँटासँ दिमागे झारि देगा।’
लोक सभक पिल्ही चमकि उठै छलै आ सभ सुटुकि जाइ छल। अपनो आॅफिस जेबामे विलम्ब भऽ रहल छल, मुदा ऊधोजीक कोइलाक पहाड़ सन कायासँ लगमे जेबाक साहस नञि भऽ रहल छल। ताबत हुनकर नजरि हमरापर पड़लनि आ जीवनमे पहिल दिन हलसि उठला। अपना मने मोलायम स्वरमे हमर स्वागत केलनि, मुदा हमरा लागल जेना क्यौ कानेपर हथौड़ा बजारि रहल हो- ‘आबो भैबा! तूँ आबि गीया तँ आब काज भऽ जायगा।....आबो बैसि कऽ हम्मर समर्थनमे नारा लगाबो आ हे कने कलस्टर साहेबकेँ फोनो लगाबो जे मोआबजा भेटेगा तखने बाटो फूजेगा।’
ऊधोजीक भुजदण्ड बढ़लनि आ जाबत हम किछु कही ताहिसँ पहिने हमरा खेलौना जकाँ उठा बेञ्चपर अपना हिसाबे बैसेलनि आ हमरा हिसाबे पटकि देलनि। बड़ चोट लागल। सुसाकरी छूटि गेल। मन तँ लोहछि गेल, मुदा ऊधोजीपर क्रोधो तँ नञि प्रकट कऽ सकै छलहुँ। मन मसोसि कऽ रहि गेलहुँ। बाट जाम करबाक कारण पुछलियनि तँ अपन विशाल टाङ आगाँ कऽ देलनि। ओहिमे क्रैप बैण्डेज छलनि। हमरा किछु बुझबा नञि आयल तँ फुफकार जकाँ निसास छोड़ैत कहलनि- ‘भैबा रे! हम्मर टाङ मुचुकि गीया। एकर मोआबजा भेटेगा तखने बाट छूटेगा।’
-‘आहि रे बा, अहाँक टाङ टूटि गेल ताहि लेल मोआवजा किए भेटत? आइ धरि एना कहियो भेलैए?...’
हमरा बीचेमे रोकैत ऊधोजी गरजला- ‘हे बेसी बलगेङ नञि जोता...जतबा कहा ततबे बूझेगा तँ नीक रहेगा...दुनिञा भरिमे की भऽ रहा से तोरे टा नञि ने बूझा रे, हमरो ने बूझा...चुपचाप मोआबजा लेल बात करि देओ नञि तँ घरमे जा कऽ सूतो आइ हम तँ आपिस नञि जाय देगा।’
हम कल जोड़ि शान्त करैत कहलियनि- ‘हे-हे बिगड़ियौ नञि। अपने सन पुरुख जँ बिगड़ि जायत तँ प्रलये ने एतै...।’
ऊधोजी पहिने तरङला- ‘रे तोँ बड़ काबिल रे...हम तोरा यमराज बुझाता की जे परलय आबेगा?’
हम हड़बड़ा उठलहुँ जे कहीँ फेर ने उठा कऽ बजारि देथि। घिघियाइत कहलियनि- ‘नञि-ननि हमर कहबाक आशय से नञि छल। हम तँ अहाँक सामर्थ्यवान हेबाक बात कहि रहल छलहुँ...मुदा भेल की से तँ कहू, कलक्टर साहेब पुछता तँ की कहबनि?।’
ऊधोजी नरम पड़ला- ‘से ने बाजो... देख भैबा! हम बजारसँ घूमि घर आबि रहा कि सड़क केर खाधिमे पैर कलटि गीया आ मुचुकि गीया।...पट्टी देखि रहा ने...आब बाजो जे सरकार एहन बाट किए राखा जे हम्मर पैर मुचका?...हम तँ बिना मोआबजा नेने नञि मानेगा।’
हम कहलियनि- ‘एतनी गो बातक लेल कतहु मोआबजा भेटय?...बेकारे जाम केने छी क्यौ नञि सूनत।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘तोरा कहने नञि भेटेगा मोआबजा...हमर पैर मुचुकि गीया से कनी गो बात भया आ सौँसे जे लोक सभ कनी-कनी गो बातपर बाट जाम करि रहा से...जेम्हरे बिदा भया तेम्हरे जाम...ई कथीक जाम तँ बकरीकेँ मोटरवला पीचि दीया...रे तँ मोटरवलाकेँ ने धरेगा, एहिमे सरकार की गलती भया।...ई जाम किए, तँ मुर्गीकेँ पीचि दीया...ई जाम कथी लेल, तँ बच्ची बाट टपि रहा कि जीप ठोकर मारि दीया...ले बलैया, नेना-भुटकाकेँ समेटि कऽ ने राखेगा?...रोडक कातेमे जँ घर बान्हा तँ बाल-बुतरूपर ध्यान ने देगा...।’
ऊधोही जोशमे आबि ठाढ़ भऽ गेल छला आ मुक्का भाँजि-भाँजि भाषण दऽ रहल छला। घामे-पसेने भऽ गेल छला, मुदा बजबाक उत्साह बढ़िते जा रहल छलनि- ‘जाम करबामे बाल-बुतरू केर संग ओकर बापो-माय जूटि रहा...देखा नञि जे पछिला दिन इस्कूल सभमे टाका बँटाया तँ कते ठाम जाम भया...रै भैबा! आर तँ आर सड़कपर दू गो गाड़ी दौड़ि रहा अपनामे टक्कर भऽ गीया तँ बाट जाम, गलती अप्पन आ तंग किया जात्री सभकेँ...एक गोटे दारू पीबि रातिमे बाटेपर सूति रहा, कोनो गाड़ी वला ठोकि दीया तँ भोरे फूल-माला दऽ लहास राखि भऽ गीया जाम...एक गोटे बाटक अतिकरमण कऽ घर बनाया, तातिमे कोनो टरक मारि दीया धक्का तँ भऽ गीया जाम...।’
हम रोकलियनि- ‘मुदा अहाँ जकाँ पैर मुचुकबापर नञि ने जाम होइ छै।’
ऊधोजी भड़कला- ‘रे एकरा तोँ छोट बात बूझि रहा। आन सभ तँ ताहि लेल जाम कीया जाहिमे सरकारक कोनो दोख नञि भया, मुदा हमर जे टाङ मुचका से तँ सरकारक बाटपर ने रे!...जेँ सरकार खाधि नञि भरा तेँ ने मुचका...नञि केहन देगा मोआवजा...हम केस करि देगा जे टाङ मुचुकबाक कारणेँ हमर लाखोक नोकसान भऽ गीया।’
फेर शान्त पड़ला आ बेञ्च घुसकबैत बाट खाली करैत कहलनि- ‘हमहूँ तँ ओकरे सभ जकाँ करि रहे नञि, गलती सरकारक आ तंग महल्लाक लोक।’
ऊधोजी बेञ्चकेँ कँखिएलनि आ बरबराइत बिदा भऽ गेला- ‘सरकारो तँ जामक समस्याकेँ बढ़ेबे ने करि रहा, जहाँ किछु भया कि मोआवजा...एहि लेल समाजकेँ ने जागरूक करेगा...नञि करेगा तँ किछुए दिनमे अपना इलाका केर नाम झूला परदेस भऽ जायगा।’
ऊधोजी जा रहल छला आ हम हुनक पीठ निँघारैत विचार करऽ लगलहँु जे ठीके ने कहि रहल छथि।

ऊधोजीक उधियान... तोड़फाड़क रिहल्सल

                                                                       ऊधोजीक उधियान...
                                                                                                                                                                             -अमलेन्दु शेखर पाठक
                 तोड़फाड़क रिहल्सल

दलानपर राखल फूलक गमला फुटबाक अबाज कानमे पड़ल तँ निन्न टूटि गेल। भऽ तँ गेल छल भोर, मुदा उठबामे कने लेटलतीफ छी से तखनो औँघायले रही। मने मन महल्लावला सभपर खौँझेलहुँ जे ढेरी-ढाकी कूकुर पोसने अछि जे आबि कऽ कोनो ने कोनो नोकसान कऽ दैए। आब गमलो सभ फोड़ब शुरू कऽ देलक। यैह सभ सोचैत करौट फेरबे केलहुँ कि बाहर राखब गमला सभक तड़तड़ कऽ फुटबाक अबजा आयल। लगै छल जेना क्यौ उठा-उठा कऽ पटकि-पटकि फोड़ि रहल हो। तामसे घोर भऽ गेलहुँ। भेल जे महल्लाक उचक्का सभ बदमाशी कऽ रहल अछि। क्रोधान्ध भेल केबाड़ दिस बढ़बे केलहुँ कि ओकरो पीटल जाय लागल आ चन-चन कऽ खिड़की सभक शीशा फूटऽ लागल। लाठीक हुराठपर नजरि पड़ल तँ डरे हरबग्घा पैसि गेल। भेल जे ककरो दऽ कोनो समाचार छपि गेलै अछि से गुण्डा-बदमाश सभ डेरापर पहुँचि गेल अछि। हम डरे सटक सीताराम। मुँहसँ बकारे ने फूटय जे हल्लो करितहँु। कोनटा धऽ लेलहुँ आ एहि आशामे दलानपरक बल्ब, मर्करी फुटबाक दम्म सधने सुनैत रहलहुँ जे महल्लावासी जुटता तँ ई सभ पड़ायत। ताबत साओन-भादवक मेघ जकाँ ढनकैत ऊधोजीक स्वर कानमे पड़ल- ‘रे पत्तरकार! केबाड़ ने फोलो जे तोहर चानि चूरि देगा।’
आहि रे बा, ऊधोजी सनकि गेला की? ई किए हमरा नोकसान पहुँचा रहल छथि। हिनकर हम आरि तामि लेलियनि आ कि खेत जोति लेलियनि अछि। - ई सोचैत केबाड़क बिलैयापर हाथ देल, मुदा हिम्मति नञि भेल। ऊधोजीक यमराज सन आकृति आँखिक सोझाँ नाचि गेल। हाथ छीपि लेलहुँ, मुदा जखन ओ केबाड़ तोड़ि देबाक घोषणा कऽ देलनि तँ केबाड़ फोलि कात भऽ गेलहुँ। ऊधोजी बिहाड़ि जकाँ घरमे घुसला आ तोड़फोड़ शुरू कऽ देलनि। मसहरी आ ओछायन उठा कऽ फेकि देलनि। लैपटॉपपर तेहन लाठी मारलनि जे ओ टुकड़ी-टुकड़ी भऽ गेल। देखिते-देखिते घरक एक-एक वस्तु भूलुण्ठित भेल ऊधोजीक पुरुषार्थक कथा कहऽ लागल। हम डरे थरथर करैत निरुपाय भेल सभटा टुकुर-टुकुर देखैत रहलहुँ। ऊधोजी घामे-पसेने नहा गेल छला। जखन सभ समान थूरल-थकुचल भऽ गेलनि तँ पलटला आ हम बपहारि कटैत घरसँ बाहर पड़ेबाक प्रयास कयल, मुदा ऊधोजीक विशाल भजुदण्ड हमरा बीचेमे लोकि लेलक। हम किकिया उठलहुँ। ओ रोकैत कहलनि- ‘आब कथी लेल भागि रहा? आब हमर करोध शान्त भऽ गीया।’
हमहुँ ई देखि कने थीर भेलहुँ जे ऊधोजी कोनो शारीरिक क्षति पहुँचेबाक मूडमे नञि छथि। दबले स्वरमे पुछलियनि- ‘हम की हार-बिगाड़ केलहँु अछि?’
 ‘रे भैबा! तोँ कथी लेल किछु बिगाड़ेगा?... तोँ कनेको चिन्ता नञि करो तोहर कोनो टा गलती नञि भया।’ -ऊधोजी शान्त स्वरमे उत्तर देलनि।
हम आश्चर्यचकित रहि गेलहुँ जे तखन हमरा आहि ठाम किए तोड़फाड़ केलनि। पुछलियनि तँ किए कनेको अफसोच हेतनि। आरामसँ कहि देलनि- ‘तोड़फाड़ लेल ई जरूरी नञि रे भैबा जे गलती हेबे करेगा।’
आब हम कने तनलहुँ- ‘ई कोन बात भेल, बिना गलतीक किए हमर एते नोकसान पहुँचेलहुँ? ई तँ सर्वथा अनर्गल बात अछि।’
ऊधोजी हमरापर छुटला- ‘हे बेसी लबर-लबर नञि करो, नञि तँ आब ई लाठी तोरा कपारेपर बजरेगा...कने मोलायम पड़ा तँ काबिलती छाँटब शुरू करि दीया।...रे अखनो सगरो यैह ने भऽ रहा। खास कऽ पढ़ल लीखल सभ तँ यैह ने करि रहा। हम तँ तकरे अनुकरण करि रहा।’
हमरा हुनकर बात अजगुत लागल- ‘एहन कतहु भेलैए जे बिना गलतीक तोड़फाड़ भऽ जाय।’
ऊधोजी आँखि गुड़ारलनि- ‘तोँ सभ तँ कलम घसा आ सभटा बिसरि गीया। रे बुद्धिवर्द्धक चूर्ण फाँको तँ याद रहेगा। कने भोरे उठि टटका बसात चाटो...आयुर्वेदमे बहुत्ते दबाइ आबि रहा ताहिमेसँ कोनो कीनो जे स्मरण शक्ति बढ़ेगा...तोँ बज्र सिलौट भऽ गीया। अपनो लीखल समाचार बिसरि जाता।’
हम किछु नञि बुझलहुँ। हुनकर मुँह तकैत रहलियनि। प्राय: हमर मन:स्थिति बुझि गेला आ कहलनि- ‘तोरे अखबारमे ने छपा रे जे समस्तीपुरक मोहद्दीनगरमे एनसीसी केर कैडेट मरि गीया तँ छात्र सभ हेडमाहटर केर मोटरसाइकिल फूकि दीया। टेबुल, कुर्सी, बेञ्च सभकेँ थौआ-थौआ कऽ दीया।....आ मधुबन्नी बिसरि गीया जे छौँड़ा-छौड़ी केर खेलमे पूरा जिला धधकि गीया?...आब तोँही बाजो जे कैडेट मरि गीया ताहिमे इस्कूलक बेञ्च-डेस्क की बिगाड़ा?... मानि लीया जे इस्कूलक समान तोड़बा काल करोधसँ आन्हर भऽ गीया...मुदा अस्पताल की बिगाड़ा? ओहि ठाम किए तोड़फाड़ कीया।... डाक्टर मरलकेँ जीबैत कहि देता?...आर तँ आर एहिमे अभिभावको सभ संग दीया।...भैबा रे! आब तोड़फाड़ सामान्य बात भऽ गीया।’
हम घिघिएलहुँ- ‘ओहि ठाम जे तोड़फाड़ भेल से तँ घटनास्थल ओ छल, हमरा ओहि ठाम अहाँ किए तोड़फाड़ केलहुँ?’
ऊधोजी नर्म पड़ैत कहलनि- ‘रिहल्सल कीया। भोरे-भोर क्यौ सभटा फूल चरा दीया। हमरो ने नोकसान भया तँ हमहूँ ने ककरो नोकसान पहुँचायगा। से सोचा जे आनक नोकसान करेगा तँ पीटेगा तँ किए ने भैबाक घरपर रिहल्सल करि लीया जाय..आ आबि गीया तोरा ओहि ठाम।’
हम झूर-झमान भेल पुछलियनि- ‘हमरा जे एते आर्थिक क्षति पहुँचल से के पूरा करत? अहाँ तँ नाहकमे ने एते क्षति कऽ देलहुँ?’
ऊधोजी मुसुकला- ‘रे भैबा! तोहर सभ नोकसान हम भरेगा। तोँ एकदम्मे चिन्ता नञि ने करो। ओ सभ जे इस्कूल तोड़ा, अस्पतालमे नोकसान पहुँचाया से तँ फेर ओकरे सभक पाइसँ बनेगा...सरकारी   सम्पत्ति तँ जनतेक ने भया रे भैबा!...ओकरे सभ जकाँ हमहूँ अपना जेबीसँ खर्च करि तोहर सभ समान कीनि देगा।... भैबा रे एहन तोड़फाड़सँ नीक लोक अपन कपड़ा अपने फाड़ि करोधपर काबू करय..एहिमे खर्चा तँ घटि जायगा।’
ऊधोजी डण्टा नेन बिदा भऽ गेला आ हम विचारऽ लगलहुँ जे ठीके सामान्य जन जे तोड़फाड़ कऽ अपन अनावश्यक क्रोध प्रकट करै छथि से तँ नोकसान अपने होइ छनि। हँ, ई देखाइ नञि पड़ै छनि। नाक कने घुमा कऽ छूबाक बात अछि।

ऊधोजीक उधियान......लोनमे टोन रामनाम सत्त.....



                                                             
                                                                                                         
                                                             
                                                               -अमलेन्दु शेखर पाठक

                                                             


                                                            लोनमे टोन रामनाम सत्त

ऊधोजी अन्हरोखे जुमि गेला। हम सुतले रही। अबिते तेना ने देह झमारि देलनि जे अदंक पैसि गेल, डरे घिघिया उठलहुँ। ऊधोजीक गर्दभ स्वर कानमे पड़ल- ‘मत्त तोरी के रे हम भूत की परेत जे किकिया रहा ...रे उठा आ कि गर्दा झाड़ अभियान...।’
ऊधोजीक स्वर सुनि आश्वस्त भेलहुँ, मुदा हुनक गर्दा झाड़ अभियान शुरू करबाक बातसँ धरफरा कऽ जे उठलहुँ तँ मच्छरदानीमे लटपटा मुँहे भरे खसि पड़लहुँ। लोल फूटि गेल, मुदा वाह रे ऊधोजी, कथी लेल कने आहा-ओहो करता उन्टे हमरा अलूरि, अबढङाह, अलबेङल आदि उपाधिसँ विभूषित करऽ लगला। मने मन विधाताकेँ स्मरण करैत बूझि गेलहुँ जे अजुका दिन केहन बीतत। एक तँ राक्षस पर्यन्तकेँ आतंक भऽ जाय तेहन कारी-भुजुंग ऊधोजीक मुखमण्डलक भोरे-भोर दर्शन आ ताहिपर ठोर फूलि कऽ बड़ी लटकि जायब, मुँहसँ बहरा गेल- ‘दिन कोना बीतत हे महादेव!’
ऊधोजी अग्निश्च वायुश्च भऽ गेला- ‘किए रे, तोरासँ हम्मर मुँह खराब रे जे जतरा बिगड़बाक बात करि रहा रे? एखने लण्ठशास्त्रक सातम श्लोक पढ़ि देगा कि दिमागे बुलन्द ने भऽ जायगा।’
हम डरे सटक सीताराम भऽ गेलहुँ। दबले स्वरमे कहलियनि जे ठोर फूटि गेल तेँ भगवानकेँ गोहरेलहुँ। जल्दीसँ हुनका टारबाक लेल एबाक प्रयोजन पुछलियनि तँ कहलनि- ‘लोनमे टोन लाबो।’
लोन आ टोनक किछु भाँजे ने लागल। जिज्ञासा करबापर शुरू भऽ गेलनि स्पीच- ‘रे भैबा! तोँ रहि गीया सभ दिन बैके गीयरमे...खाली मैथुली-मैथुली करबा से नञि ने काज चलेगा रे, कनी दिन-दुनिञापर सेहो ने ध्यान राखेगा...खाली मैथुली पढ़ेगा, लिखेगा, बाजेगा तँ लोन आ टोन माने कोना बुझेगा...हमरा जकाँ टॉप गीयरमे रहेगा तँ सभ ने बूझि जायगा...रे लोन भया पैँच आ टोन भया टोन।’
हमरा मुँह तकैत देखि टोन केर अर्थ स्पष्ट केलनि जे हुनका मोबाइलक रिंग टोन चाहियनि। पुछलियनि- ‘ब्लू ट्रुथ अछि?’
ऊधोजी भड़कला- ‘दुनिञामे सभसँ बकलेल तोरा हमहीँ बुझा रहा की रे जे बुल्लू रंगक टूथ राखेगा...आइ धरि कोनो मनुक्ख देखा जकर टूथ बुल्लू रंग होता...मनुक्ख तँ मनुक्ख कोनो जानवरो देखा जकर बुल्लू टूथ होता...तोरा अप्पन टूथ किए ने बुल्लू रे...भोरसँ भोर हमरासँ ठट्ठा करेगा तँ सभ टूथ झाड़ि देगा तखन तोरा पता चलेगा जे तोहर टूथ बुल्लू आ कि उज्जर...।’
हम गेङिया उठलहुँ- ‘हम दाँत वला टुथ नञि ने कहै छी...।’
ऊधोजी तरङला- ‘बेसी भचर-भचर नञि ने करो टूथ माने तोँ बुझायगा हमरा....?’
हम स्पष्ट केलियनि जे मोबाइलमे एकटा सिस्टम केर नाम छै ब्लू ट्रुथ तखन शान्त पड़ला आ अपन मोबाइल धरा देलनि। हम जुटलहुँ रिंग टोन देबामे। हुनका सुनाबऽ लगलियनि जे कोन लेता, मुदा एको गोट रिंग टोन हुनका पसिन्ने ने पड़लनि। म्युजिकसँ लऽ भजन, फिल्मी गीत, पारम्परिक मैथिली गीत सभकेँ रिजेक्ट कऽ देलनि। अन्तमे मोबाइल छीनि लेलनि आ बलाबस्ती अपना संग लऽ महल्लामे घरे-घर रिंग टोन लेल बौआय लगला। ककरो रिंग टोन नञि अरघलनि। बिदा भेला मोबाइलक दोकान दिस। हमरा संगे घिसिएने गेला। बजरोमे सैह हाल। दोकाने-दोकाने बौएला, मुदा एको गोट नञि जँचलनि। चलैत-चलैत पैर ऐँठि गेल छल से कतेक नेहरो-मिनती कऽ सुस्तेबा लेल मल-मूत्रकेँ उदरस्थ केनिहार हराही पोखरिक किनारपर दुनू गोटे बैसलहुँ। तखन ऊधोजी असलीहत फोललनि- ‘रे भैबा! टोन चाही रामनाम सत्त।’
हमरा टुकुर-टुकुर मुँह तकैत देखि बजला- ‘देख भैबा! एखुनका टोन मनक कोनमे खोँच मारता। मुर्दा डाहि रहा आ फोन आया तँ टोन बाजा बियाहक गीत। ककरो ओहि ठाम जुआन बेटा मरि गीया आ रिंग बाजा परेम केर गीत। ककरो ओहि ठाम डाका पड़ि गयी, चोरि भऽ गीया आ रिंग टोन बाजा बच्चाक ठिठिआयब जेना कहि रहा भने भया चोरि। गारि-भारिसँ लऽ डायलग धरिक रिंग टोन बनि गीया। बचि गीया बस रामनाम सत्त, तेँ हम रामनाम सत्त वला टोन ताकि रहा।’
ऊधोजी उठला आ बिदा भऽ गेला। हम हुनक पीठ निंघारैत विचरऽ लगलहुँ, कहै तँ छथि ठीके। विज्ञान मोबाइल सन सुन्दर आ उपयोगी आविष्कार देलक। हमरा लोकनि ओकर दुरुपयोग कऽ रहल छी। किदन-कहाँदन ओहिपर देखै छी, सुनै छी आ अपन संस्कृतिक कऽ रहल छी रामनाम सत्त।

सौराठ सभा : स्वर्णिम अतीत भखरैत वर्त्तमान -अमलेन्दु शेखर पाठक

  सौराठ सभा : स्वर्णिम अतीत भखरैत वर्त्तमान

-अमलेन्दु शेखर पाठक


सौराठ सभा गजगज करै छल। चारू भर पागे-पाग। लाल पाग। कोकटी पाग। उजरा पाग। वरक माथपर लाल, अधवयसूक कोकटी आ बूढ़क माथपर उजरा पाग। छत्ते-छत्ता। शिव मन्दिरमे दिन भरि बजैत घण्टा। योग्य वर-कन्याक मनोकमना पूर्त्ति लेल शिवलिंगपर चढ़ैत जनउ केर पथार। चाह-पान-जलपानक सजल दोकान-दौरी। सभा परिसरमे दरी, सतरञ्जी आ कि चद्दरि ओछा बैसल वरागत। हुनकासँ गप्प करैत कन्यागत। पिठारक उजरा चाननपर सिन्दूरक ठोप, लाल धोती आ लाले पाग पहिरने, आँखिमे काजर केने बैसल वरसँ हुनक योग्यता आदिक जानकारी लऽ सन्तुष्ट होइत लोक। वरपक्ष आ कन्यापक्षक बीच सामञ्जस्य बनबैत आ एक-दोसरा लेल योग्य सम्बन्ध देखबैत घटकराज। मिथिलाक्षरमे लिखल पञ्जीक पोथासँ अधिकार देखैत आ उतेढ़ पढ़ैत पञ्जीकार। प्रतिदिन उपस्थित हजारोक संख्या टपि कऽ होइत लाख-सवा लाख होइत। एते लोकक परस्पर वार्त्तालापक स्वर दूर-दूर धरि पसरैत। सभा आयल सर-सम्बन्धी लेल लगपासक गाममे घरे-घर तरुआ-तीमन छनाइत, पकमान बनैत। कुल मिला चारू भरक समग्र वातावरण उत्सवी रंगमे रङल।
उपर्युक्त पाँती पढ़ि कोनो मिथिलावासीक मन गदगद भऽ उठत। लागत जे मिथिलावासी अपन एहि समृद्ध परम्पराकेँ कते सहेजि कऽ रखने छथि, मुदा ई ‘फ्लैश बैक’ अछि। आइसँ लगभग पाँच दशक पूर्व धरिक ई स्थिति अछि। वर्त्तमान सर्वथा भिन्न अछि। अपनाकेँ हीन आ दोसराकेँ श्रेष्ठ मानबाक मानसिकता मिथिलाक एहि गौरवशाली परम्पराकेँ गीड़ि रहल अछि। आइ पाग नजरि अबैत अछि, मुदा आङुरपर गनबो जोगर नञि। जाहि सभामे दर्जनो पञ्जीकार बैसै छला ताहि ठाम मात्र चारि गोटे भेटै छथि। घटकराज एको गोटे नञि। वर सभ साल अबै छथि, मुदा एक-दू गोटे मात्र। तनिको तते उल्लू-दुत्थू होइ छनि जे एबापर पछताइत रहै छथि आ संग आयल लोक कान ऐँठै छथि जे आगाँ किनको नञि लऽ कऽ आयब।  जाहि वैवाहिक सभाकेँ मिथिला नरेश महाराज हरिसिंह देव आइसँ लगभग 700 बरख पहिने 1326 इ. केर लगपासमे शुरू केने छला ताहिसँ हमरा लोकनिकेँ तेहन अरुचि भेल, एकर ततेक खिधांस कयल, अपन परम्पराकेँ लतिया आधुनिकताक बिहाड़िमे तेना ने उधिआय लगलहुँ जे ई ठोहि पाड़ि कनबा लेल विवश अछि। ई अपन अन्तिम साँस गनि रहल अछि। तहिया जहिया यातायात आ सञ्चार केर कोनो सुविधा नञि छल तहिया मिथिलाक धमनीमे एक रंग सांस्कृतिक चिन्तनक रक्त प्रवाहित छल। आ आइ जखन सभ तरहेँ हमरा लोकनि सम्पन्न छी आ सञ्चार आ यातायातक आधुनिक सुविधा उपलब्ध अछि तँ हमरा लोकनि अपन गौरवाशाली सांस्कृतिक परम्पराक जड़ि काटि रहल छी। हमर जे परम्परा विश्वकेँ आकर्षित केलक, कऽ रहल अछि आ एकर अनुकरणमे नव ढंगेँ सामूहिक विवाह आदि भऽ रहल अछि तकरा हमरा लोकनि त्यागि चुकल छी।
मन पड़ैत अछि एकगोट सूनल कथा। कहाँ दन एकगोट भारतीय नेता विदेश गेला। ओहि ठाम ‘नैकेट क्लब’सँ हुनका आमंत्रण भेटलनि। ओकर सदस्य क्लबमे नङटे रहै छला। से ओकरा सभसँ आमंत्रण पाबि नेताजी क्लब लेल बिदा भेला। बाटमे सोचलनि जे किए ने ओकरे सभ जकाँ उपस्थित होइ। ओकरा सभकेँ लगतै जे आधुनिक हेबामे भारत ओकरा सभसँ कनेको कम नञि अछि। बस फेर की छल, नेताजीक कार क्लब लग रूकल तँ ओ अपन सभटा वस्त्र फोलि नङटे बहरेला, मुदा ओहि ठाम स्थिति एकदम विपरीत छल। क्लबक सदस्य सभ
विचारने छला जे भारत कते विकसित देश अछि जे ओहि ठाम तेहन वस्त्र पहिरल जाइत अछि जे ओकरा ‘नैकेट क्लब’ केर प्रयोजने नञि छै। हमरा लोकनि ने भरि दिन नीचासँ ऊपर टाइट वस्त्र पहिरै छी जे थोड़े काल वस्त्र विहीन रहब स्वास्थ्यकर होइत अछि। किए ने भारतीय नेताक स्वागत भारतीय परिधानमे करी। से नेताजी जखन कारसँ बहरेला तँ हुनका स्वागतमे विदेशी सभ धोती-कुर्त्ता पहिरने चारू कात ठाढ़ छला आ नेताजी बीचमे नाङट। ठीक एहने स्थिति हमरा सभक भऽ गेल अछि। जाहि वैवाहिक सभाकेँ लऽ मिथिलावासी समग्र संसारमे विशिष्ट मानल जाइत रहला अछि, आइयो मानल जाइ छथि, तकर हमरा लोकनि गर्दनि रेति रहल छी। एखनो सभावास सभ साल होइत अछि। मधुबनी जिलाक सौराठमे सभा लगैत अछि, मुदा उसरल-उसरल सन। जाहि सभाक प्रसंग कहल जाइ छल जे सवा लाख लोक जुटबापर ओहि ठामक पीपड़क गाछक सभ पात मौला जाइ छल, पात मौलाइते लोक बूझि जाइ छल जे सभामे एक लाखसँ बेसी लोक जुटि गेला, से सभा आइ स्वयं मौला रहल अछि।
देश-विदेशसँ होइ छल जुटान
पहिने सौराठ सभामे मिथिलाक सभ जिला पूर्णिञा, खगड़िया, बेगूसराय, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, देवघर, भागलपुर, मुंगेर, कटिहार, मधुबनी, दरभंगाक संग नेपालक मिथिला क्षेत्रसँ तँ लोक जुटिते छला, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, महाराष्टÑ आदि राज्यक भोपाल, रायपुर, जयपुर, मालदह, वाराणसी आदिसँ सेहो मैथिल अबै छला। ई कही जे देश भरिसँ जुटै छला। देशे की विदेशोसँ अबै छला आ सभामे अपन कन्या, बहिन, भतीजी आदि लेल योग्य वर चुनै छला। कन्या पक्षकेँ योग्य वर आ वर पक्षकेँ अपना योग्य कन्या भेटि जाइ छलनि।
कतेको ठाम लगै छल सभा
पहिने मिथिलामे सौराठक अतिरिक्त सीतामढ़ीक ससौला, झञ्झारपुरक समीप परतापुर, दरभंगाक सझुआर, सहरसाक महिषी आ पूर्णिञाक सिंहासनमे   सेहो ई सभा लगै छल। जेना-जेना मैथिल आधुनिक होइत गेला सभा सभ उसरैत गेल। बाँचि गेल मात्र सौराठ सभा। ईहो उसरि रहल अछि। कतेको गोटे कहै छथि जे एहूसँ बेसी ठाम सभा होइ छल आ विभिन्न जातिक लेल होइ छल जे समटा कऽ मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ मात्र लेल रहि गेल।
अपवादे होइ छल घर कथा
पहिने अपवादे स्वरूप वर्त्तमान जकाँ घर-कथा होइ छल। सभटा कथा सभेसँ होइ छल। एकर बहुत रास लाभ छल। सभसँ पैघ आर्थिक लाभ छल। आइ जते कथा होइत अछि ताहिमे वर तकबापर जते खर्च भऽ जाइ छल ततेमे कतेको गोटेक बेटीक विवाह भऽ सकैछ। एकरा संग समय केर बचत सेहो छल। एहि लेल गामे-गामे बौआय नञि पड़ै छल। ई तय छल जे सभामे बालक भेटिए जेता। एके ठाम सभ तरहक बालक। एहिमे जे पसिन्न भऽ जाय। एक बरख नञि भेल तँ अगिला बरख सही। एहन नञि होइ छल जे सभा गेनिहारकेँ बौआय पड़ै छलनि। वरो पक्षक लेल ई सुअवसर छल जाहिसँ आइ हमरा लोकनि पूर्णत: वञ्चित भऽ रहल छी।
अद्वितीय वैज्ञानिक अवधारणा पञ्जी
सौराठ सभा पञ्जी केर वैज्ञानिक अवधारणापर केन्द्रित रहल अछि। जे तथ्य आधुनिक विज्ञान आइ बूझि रहल अछि तकरा मिथिला आइसँ 700 साल पहिने ने मात्र बूझि गेल छल अपितु एकरा जाँचि-परखि लागू सेहो केलक। आधुनिक विज्ञान मानैत अछि जे निकट रक्त-सम्बन्धीक बीच वैवाहिक सम्बन्धसँ बहुत रास विकार अबैत अछि। ओतहि एकरा बारि देबापर होबऽ वला सन्तान तीक्ष्ण बुद्धिक तँ होइते अछि ओकरामे अपन माता-पिताक गुण पक्ष बेसी अबैत अछि। कतेको अनुसन्धान एहि चिन्तनपर मोहर लगेलक अछि। एही तथ्यकेँ ध्यानमे राखि पञ्जीकार माता आ पिता पक्ष दिससँ ई देखि विवाहक स्वीकृति दै छथि जे कतहु कोनो पीढ़ीमे रक्त सम्बन्धक निकटता तँ ने अछि। पञ्जीकार विश्वमोहन मिश्र कहै छथि जे ओना तँ मातृ आ पितृ पक्ष दुनू दिससँ 32-32 पीढ़ीक उतेढ़ पढ़ल जाइत अछि जे एहिमे रक्तक निकटता तँ ने अछि, मुदा पितृ पक्षसँ सात आ मातृ पक्षसँ पाँच पीढ़ीमे कतहु एके कुल-मूल केर नञि होयब अनिवार्य अछि। ई काज कहियो जरैल, पिलखवाड़, ननौर, कछुआ चकौती, कोइलख आदिक पञ्जीकार एहि ठाम करै छला। आइ मात्र चारि गोटे भेटै छथि।
सामाजिक सरोकारकेँ भेटै छल मजगूती
सौराठ सभा समग्र मिथिलाकेँ समवेत हेबाक अवसर दै छल। मिथिलाक विभिन्न जिलाक लोक एकठाम जुटै छला जाहि अवसरसँ हमरा लोकनि चूकि रहल छी। सभाक यैह गुण ओहू मिथिलावासीकेँ आकर्षित करै छल जिनका कोनो कथा करबाक नञि रहै छलनि, मुदा ओ एहिमे जुटै छला। कनेको सजग मैथिल एहिमे अवश्य पहुँचथि आ जाबत सभा समाप्त नञि होइ छल ताबत की तँ अबै-जाइ छला अथवा लगपासक अपन सर-सम्बन्धी ओतऽ टिकै छला जे सामाजिक सरोकारकेँ आरो मजगूत करै छल। ककरो कन्या किंवा वरक कथा तय करेबामे भूमिका निमाहबासँ सेहो सामाजिक सरोकार अपन मूल अर्थमे बनल रहै छल। आइ हमरा लोकनि एहिसँ पूरापूरी वञ्चित भऽ रहल छी।
सभा उसरबाक मूल कारण काटर प्रथा आ मीडिया
एतेक समृद्ध परम्पराक धारा सुखा जेबाक मूलमे मिथिलावासीक परम्राक मोह छोड़ि देब तँ कारण रहबे कयल, संगहि काटर प्रथा (दहेज प्रथा) सेहो एकरा समाप्त करबामे अपन भूमिका निमाहलक। विद्याक बलपर समग्र विश्वमे अपन कीर्त्ति-पताका फरेनिहार मिथिला कहिया अर्थक पाछाँ नञि बौआयल। सभ दिन टाका-पाइसँ बेसी महत्व विद्या आ अपन संस्कृतिकेँ देलक। जेना-जेना हमरा लोकनिकेँ आधुनिकताक बसात लागल तेना-तेना हमरा लोकनि धनकेँ महत्व दैत गेलहुँ आ यैह परिवर्त्तित मानसिकता काटर प्रथाकेँ सभोमे सन्हिएलक। पुरान लोकक अनुसार वर पक्ष जुटै तँ छला, मुदा कुल-मूलसँ बेसी हुनक ध्यान कन्यागत लोकनिक बगुलीपर रहै छलनि। जखन एकर जानकारी सार्वजनिक भेल तँ विरोध आरम्भ भेल, से तेना जे लोक आयब कम कऽ देलनि आ धीरे-धीरे छोड़ि देलनि। दोसर एहि ठाम जुटऽ वला भीड़क अपन राजनीतिक उपयोग करबाक चलनसारि सेहो आघात पहुँचेलक। सभाकेँ रसातलमे पहँुचेबामे मीडियाक भूमिकाकेँ सेहो नकारल नञि जा सकैत अछि। एकरा ‘वरक बजार’ आ ने जानि की-की कहि चौल करऽ वला रिपोर्ट सभामे एनिहारकेँ रोकलक।
समाप्त नञि भेल अछि आशाक किरण
वैवाहिक सभा आ पञ्जी प्रथाक जीवनकेँ लऽ जतऽ निराशाक स्थिति अछि ओतहि आशाक किरण पूरा-पूरी समाप्तो नञि भेल अछि। जतऽ पञ्जीकार लोकनिमेसँ अधिकांश सभा आयब छोड़ि देलनि अछि ओतहि हरेकृष्ण झा नूनू बाबू, विश्वमोहन मिश्र, मङनू मिश्र आ प्रमोद मिश्र एहि परम्पराकेँ जिएने रखबा लेल भरि सभा डटल रहै छथि आ सिद्धान्त लिखैत रहै छथि। उल्लेखनीय अछि जे बहुत रास पञ्जीकार परिवारक नव पीढ़ीक लोक एहिसँ विरत भऽ गेला अछि। सरकारी सेवा आ आन-आन व्यवसायमे लागि गेला अछि। पञ्जीकारक रूपमे भेटऽ वला सम्मानमे आबि रहल कमी हुनका सभकेँ एहिसँ फराक केलकनि। पहिने गामे-गामे पञ्जीकार जाथि तँ हुनक स्वागत होइ छल। आइ एहिमे स्खलन आयल अछि। समाज पहिने जकाँ स्वागत तँ नहिञे करैत अछि, पञ्जीकारकेँ देखि सय मोन पानि पड़ि जाइ छनि। एहन विपरीत परिस्थितियोमे पञ्जीकार विश्वमोहन मिश्र अपन पुत्र विमलेन्दु शेखर मिश्र आ आलोकचन्द्र मिश्रकेँ एहि विद्यासँ जोड़ि कऽ रखने छथि आ एहिमे निपुण केने छथि। एही तरहेँ उत्तर प्रदेशक मथुरा केर मक्खन मिश्र सन लोक सेहो छथि। हुनक पूर्वज कतेको सय साल पहिने मिथिलासँ चलि गेला आ ओतहि बसि   गेला। मक्खन मिश्र सभ बरख सभाक समयमे आबि मिथिला भ्रमण करैत रहला अछि। एतबे नञि अपन भातिज भूपेन्द्र कुमार मिश्रकेँ सेहो एहि ठाम अनलनि जे ई परम्परा चलैत रहय।
संकल्प लऽ योजनाबद्ध प्रयासक जरूरति
सौराठ सभाकेँ नव जीवन देबा लेल, नव उत्साह आ ऊर्जासँ भरबा लेल आवश्यकता अछि जे एक-एक मिथिलावासी संकल्प लेथि आ तय करथि जे पहिने जकाँ बेटा-बेटीक विवाह सभेसँ करब। एहिमे युवा-शक्तिक समवेत होयब सभसँ बेसी जरूरी अछि। युवा जँ चाहथि तँ कोनो धाराकेँ अपना बलपर मोड़ि सकै छथि। आइ तँ ई सभा आर बेसी उपयोगी भऽ सकैत अछि जखन लोक लग समयक घोर अभाव भेल जा रहल अछि। फेरसँ पुरान स्थिति पलटाबऽ लेल योजनाबद्ध ढंगसँ प्रयासक जरूरति अछि। एहि दिस गोट-पगरा डेगो बढ़ल अछि। पछिले साल घर कथाक बाद मिहिर कुमार झा महादेव आ चन्दन कुमार झा केर बरियाती सौराठ सभासँ बिदा भेल छलनि। शेखरचन्द्र मिश्र आदि सभाकेँ फेरसँ प्रतिष्ठित करबाक प्रयास पछिला कतेको बरखसँ कऽ रहला अछि। हिनके सभ जकाँ समग्र मिथिलासँ समवेत प्रयास हो तँ सौराठ सभा अपन अतीतकेँ दोहरा सकैत अछि। एक बेर दरभंगामे आ सीतामढ़ीमे फेरसँ सभा आरम्भ करबाक बात चलल छल, मुदा कोनो ठोस परिणाम सोझाँ नञि आयल। आउ 10 जुलाइ 2013 सँ शुरू भऽ रहल सभाक अवसरपर संकल्प ली जे अपन गौरवशाली अतीतकेँ पुन: प्रतिष्ठित करब। जते गोटे सभा उसरबासँ दुखी छथि ततबे गोटे जँ एहि दिशामे सजग भऽ सक्रिय होथि तँ सौराठ सभाक दिन घूरब कोनो असम्भव नञि।

Tuesday, 18 June 2013

आउ झाड़ी फुलिया - अमलेन्दु शेखर पाठक



                                                               - अमलेन्दु शेखर पाठक

                                                             

                                                                   आउ झाड़ी फुलिया

‘रे बगुला तोहर घेँट किए टेढ़, बाबू वंशे टेढ़’, ई कहबी मिथिलावासीपर एकदम सटीक बैसैत अछि। खास कऽ मैथिलीक साहित्यकार लोकनिपर तँ एकदम्मे। से कोनो पीढ़ीक साहित्यकार होथु। अपवादकेँ छोड़ि दी तँ सभ मिथ्याभिमानमे घेँट टेढ़ केने। अपना आगाँमे आन ककरो मोजर देबा लेल तैयार नञि। सदिखन अपनासँ आनकेँ तुच्छ, हेय, अज्ञानी माननिहार। मिथिला-मैथिली लेल क्यौ पूरापूरी इमानदार नञि। सभक दोहरा चरित्र। ऊपरसँ किछु आ भीतरसँ किछु। तकरे परिणाम अछि जे देश-विदेशमे मिथिला-मैथिली सेवी संस्था सैकड़ोक संख्यामे सक्रिय अछि, मुदा प्राय: सभ लत्ती जकाँ कोनो ने कोनो व्यक्त्विक आलनपर चतरल-पसरल। एहन संगठनक घोर अभाव अछि जकर स्वरूप वटवृक्ष जकाँ हो, जकरा छाहरि तर साहित्य आ समाज सुस्ता सकय, जकरा मिथिलाक सभ जाति-धर्मक मैथिल एक स्वरसँ अपन प्रतिनिधि मानैत हो। तेँ आलन (व्यक्ति) हटिते संस्था-संगठन ओँघरा जाइत अछि आ अन्तत: सुखा जाइत अछि। से सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक किंवा साहित्यिक, जाहि कोनो दृष्टिञे देखी एहने परिस्थिति नजरि अबैत अछि। ‘सगर राति दीप जरय’ सेहो एही दिशामे डेग बढ़ायब शुरू कऽ देलक अछि प्राय: जे घोर चिन्ताक विषय अछि। ई संस्था नञि अछि, मुदा कोनो संस्थे जकाँ मैथिलीक विकासमे अपन महत्वपूर्ण अवदान दैत रहल अछि। ई मैथिलीमे कथा-लेखन आन्दोलन ठाढ़ केलक। अनेकोकेँ अवसर दऽ कथा-लेखनक क्षेत्रमे परिचिति बनेबाक सुअवसर देलक, मुदा एमहर किछु दिनसँ से गतिविधि आरम्भ भेल अछि जे ई अपनो परिचिति बचेने रहि सकत ताहिपर सन्देह अछि। जहिया मुजफ्फरपुरमे 21 जनवरी 1990 केँ पहिल बेर ‘सगर राति दीप जरय’ केर आयोजन प्रभास कुमार चौधरी केने छला तहिया किछु गोटे एकरा एक वर्ग विशेषक साहित्यकारक फ्रण्ट जकाँ मानने छला। एकर असलीहत जे रहल हो, मुदा अपन 23 बरखक जीवनमे नेपाल, मुम्बइ, कोलकाता, चेन्नइ, दिल्ली, झारखण्ड सहित मिथिलाक विभिन्न जिला मुख्यालय, अनुमण्डल मुख्यालय, प्रखण्ड मुख्यालय आ गामघरक यात्रा करैत ई सभ साहित्याकारकेँ कतहु ने कतहु अपना संग लेलक। से वर्ग विशेषक माननिहारोकेँ। सेहो तखन जखन एकर ने कोनो अध्यक्ष, ने सचिव, ने कोषाध्यक्ष, ने कतहु कोनो कार्यालय। तैयो एकर 80 गोट आयोजन भऽ गेल से कनेक टा उपलब्धि नञि अछि। मुदा, चिन्ता आ चिन्तनक प्रयोजनो अछि। कारण चाहे जे हो बहुत रास वरिष्ठ कथाकार आ समीक्षक एहिसँ अपनाकेँ कतिया लेलनि अछि। पछिला कतेक बरखसँ पं. गोविन्द झा, डॉ. सुरेश्वर झा, मोहन भारद्वाज, मंत्रेश्वर झा, डॉ. भीमनाथ झा, डॉ. रमाकान्त मिश्र, अशोक, डॉ. शिवशंकर श्रीनिवास आदि नियमित नञि रहि गेला अछि। एहन आरो बहुत रास नाम अछि जिनका लोकनिक स्थान बहुत रास एहन उत्साही भरलनि अछि जिनकर गतिविधि स्वयंभू अध्यक्ष, सचिव जकाँ भऽ रहल छनि। एहिसँ एकर स्वस्थ वातावरण नष्ट भऽ रहल अछि।आयोजनकेँ प्रभावी आ भाषा-साहित्य लेल उपादेय बनेबाक बदला आयोजनपर अपन प्रभाव आ ओकरा अपना लेल उपादेय बनेबाक चेष्टा भऽ रहल अछि। दू पाँती लिखि आन सभकेँ हीन बुझैत पाछाँ ठेलबाक चेष्टा कोनो नव नञि अछि, एना पहिनो होइत रहल अछि। ई विशेष चिन्ताक विषय नञि। कारण मकइ केर गाछ जकाँ जे हुहुआ कऽ बढ़ैत अछि ओ लगले सुखा सेहो जाइत अछि। बड़-पीपर नहु-नहु बढ़ैत अछि तँ दीर्घजीवी सेहो होइत अछि। चिन्ताक विषय अछि एकर गोलैसी दिस अग्रसर होयब। चिन्तन कऽ एहिपर विराम लगेबाक आवश्यकता अछि। एहिठाम जुटानिहार मात्र मैथिली आ मैथिली कथाक विकासक भावना लऽ जुटथि, सभमे सिखबाक आ सिखेबाक लौल हो, सभटा बाना उतारि सभ गोटे मात्र साहित्याकार भऽ रहथि, पुरनाक होश आ नवकाक जोश समवेत हो, तकर आवश्यकता अछि। प्रयोजन अछि सगर राति जरनिहार दीपपर लागि रहल फुलियाकेँ हटेबाक।