Sunday, 10 November 2013

                                        आउ संकल्प ली आ बचाबी बहिन सामाकेँ

                                                                                अमलेन्दु शेखर पाठक 

रातिक नीरवतामे बहिन लोकनिक समवेत स्वर पसरब शुरू भऽ गेल अछि। छठिक पारण केर रातिएसँ बहिन लोकनि एकठाम जमा भऽ सामा खेलब आरम्भ कऽ देलनि अछि। भाइ केर दीर्घ जीवन, हुनक सुयश, हुनक समग्र विकास, हुनक गुणक बखान करैत बहिन लोकनिक सामूहिक गीत-स्वर वातावरणमे मिसरी घोरि रहल अछि- ‘गाम के अधिकारी तोँहे बड़का भैया हो...।’
एकरा संगहिँ झरकाओल जा रहल अछि ‘चुगिला’ केर मुँह। बहिन लोकनि ‘साम-चक साम-चक अबिहऽ हे...’ केर संगहिँ माटिक बनाओल कुरूप चुगिला केर मुँह झौँसैत गाबि रहल छथि- ‘इण्डामे गरइ छपपट करै चुगिला केर बहुआ साँझे मरै।’
सगरो मिथिलामे सामा-चकेबा खेलबामे बहिन लोकनि जूटल छथि। से पहिल दिन अबोध बहिन सेहो सामा छूलनि तँ वयोवृद्धा बहिन सेहो। सभ अपन भाइ केर नाम लऽ हुनक कल्याण-कामनामे जुटल छथि। हालेमे जन्म लेनिहार भाइ होथि आ कि एहन वयोवृद्ध भाइ जिनका मुँहमे एगो गोट दाँत नञि बचल होनि सभक नाम गीतमे बहिन लोकनि लऽ रहल छथि।

                                                      पद्मपुराणमे वर्णित अछि कथा 

ओना एकरा लोकपर्व कहि सम्बोधित कयल जाइत अछि, मुदा एकर सम्बन्ध पद्मपुरणाक कथासँ अछि। ओहिमे वर्णित अछि जे भगवान श्रीकृष्णकेँ जाम्वती नामक स्त्रीसँ एक पुत्र आ एक पुत्र छलथिन। पुत्रक नाम छलनि साम्ब आ पुत्री छलथिन सामा। सामा केर विवाह चारुवक्त्रसँ भेल छलनि जे जनकण्ठमे चकबा नामसँ विराजमान छथि। सामाकेँ वृन्दावनसँ अत्यधिक स्नेह छलनि। ओ नित्य वृन्दावन जाथि आ ओहि ठाम सप्तर्षि लोकनिक दर्शन करथि आ कथा-पुराण सुनि घुरि आबथि। एहि बातकेँ चूड़क (चुगिला) नोन-मिर्चाइ लगा श्रीकृष्णकेँ कहलथिन जे सामा चोरा-नुका कऽ वृन्दावन जाइ छथि। चूड़क तेना एहि बातकेँ रखलक जे श्रीकृष्ण क्रोधित भऽ गेला। ओ सामाकेँ श्राप दऽ देलथिन जे अहाँ चोरा-नुका कऽ वृन्दावन जाइ छी तँ पक्षी बनि जाउ आ वृन्दानवनमे वास करू। एहि शापसँ सामा पक्षी भऽ गेली। श्रीकृष्णक एहि श्रापसँ सामाक पति चारुवाक्त्र अत्यन्त दुखी भेला। ओ महादेवक तपस्या आरम्भ केलनि। महादेव प्रसन्न वरदान मङबा लेल कहलथिन तँ ओ कहलनि जे भगवान श्रीकृष्णक शापसँ हुनक प्रिया सामा पक्षी भऽ गेली अछि तेँ शिव हुनको पक्षी रूप देथि जाहिसँ ओ वृन्दावनमे हुनका संग रहि सकथि। तखन महादेव हुनका चक्रवाक (चकवा) पक्षी बना देलथिन। ओ सामाक संग वृन्दावनमे रहऽ लगला।
एमहर साम्ब ओहि समयमे बाहर छला जखन ई घटना भेल छल। घुमला तँ सभटा जतनब भेलनि जाहिसँ ओ अत्यन्त दुखी भेला। दुखी साम्ब बहिन-बहिनोइ केर उद्धार लेल श्रीकृष्णक आराधना आरम्भ केलनि। पिता श्रीकृष्ण हुनक तपश्चर्यासँ प्रसन्न भेलथिन आ वरदान मङबा लेल कहलथिन। तखन साम्ब अपन बहिन-बहिनोइ केर उद्धार लेल निवेदन केलथिन। एहिपर श्रीकृष्ण कहलथिन ‘कार्त्तिक मास हमर प्रिय अछि। तेँ कार्त्तिक मासक कृष्ण पक्षक पड़िवमे खढ़क वृन्दावन, सप्तर्षि, सामा, चकबा आ अहाँक माटिक मूर्त्ति बना नित्य पूजा करथि। गामक बाहर खेतमे ओकरा घुमावथि। माटिक चुगिला बनाबथि आ ओकर मुँह झरकाबथि। कार्त्तिक पूर्णिमाकेँ मूर्त्ति सभक विसर्जन करथि आ भायकेँ मधुर आदि भोजन कराबथि। तखन सामा शाप मुक्त हेती। ’
भगवान श्रीकृष्णक निर्देशक आलोकमे साम्ब अपना देश भरिमे स्त्रीगण लोकनिसँ कार्त्तिक मासमे सामा केर पूजन करेलनि जाहिसँ सामा आ चक्रवाक शाप मुक्त भेला। सामा अपना भाइकेँ आशीर्वाद दैत कहलथिन जे कार्त्तिक मासमे जे कोनो बहिन सप्तर्षिक संग हुनक भाय साम्ब आ हुनक पूजन करती तिनका हुनके सन भाय प्राप्त हेथिन आ ओ सोहाग आ सन्तानसँ भरल-पुरल रहती।
पद्मपुरणाक एही कथाक आधारपर सामा-चकेवाक खेल कार्त्तिक मासमे पूर्णिमा धरि बहिन लोकनि पूरा मनोयोगसँ करै छथि। एहि कथानकमे इहो जनश्रुति जुड़ल अछि जे चूड़क वृन्दावनमे आगि लगा सामा आ चक्रवाककेँ डाहबाक प्रयास केलक, मुदा तेहन बरखा भेल जे ओ किछु नञि बिगाड़ि सकल।
भाय साम्ब आ बहिन सामाक स्नेहकेँ अपना जीवनमे साकार करबाक अभिलाषासँ बहिन लोकनि आइयो सामा-चकेवाक खेलमे जुटल छथि। बहुत रास बहिन लोकनि अपने हाथे माटिक सामा बनेलनि अछि तँ अधिकांश कुम्भकार द्वारा विभिन्न रंगसँ ढेउरल आकर्षक सामा-चकेबाक मूर्त्ति कीनि हिनक पूजनमे जुटल छथि। सामा-चकेवा संग झाँझी कूकुर, सप्तर्षि, सतभैया चिड़ै, खुरुचि भैया, बाटो बहिन आदि बनाओल गेल अछि। एकरा संगहिँ नव खढ़, सण्ठी आदिसँ वृन्दावन आ पटुआ केर दाढ़ी-मोछक संग चुगिला बनाओल गेल अछि। नित्य रातिमे भोजन-छाजनसँ निश्चिन्त भऽ बहिन लोकनि सामाक डाला माथपर लऽ गामक चौबटिया अथवा कोनो खेतमे जुटै छथि। एकठाम सभ सामा रखै छथि आ एक-दोसराक हाथमे सामा दैत ओरा फेरैत वातावरणमे गीतक मधु-स्वर घोरै छथि- ‘साम फेरलो ने जाय...।’ एहिमे गामक धी-बेटीक सहभागिता तँ अछिए, गामक पुतहु लोकनि सहो जुटल छथि। पुतहु बेसी दूर खेते-खेते नै जेती तेँ घरो लग सामा-चकेवा खेलल जा रहल अछि। एहि लेल बहिन लोकनि नैहर आयल छथि तँ गामक कतेको पुत्रवधू अपना नैहर गेल छथि।

                                                हँसीसँ सरावोर होइत अछि राति 

सामा-चकेवाक खेलक क्रममे ननदि-भाउजक परिहासपर राति सेहो मुसुकि उठैत अछि। ओतहि जखन बहिन लोकनि वृन्दावन जरा ओकरा मिझबैत गबै छथि ‘वृन्दावनमे आगि लागल क्यौ ने मिझाबय हे...’ तँ भाय-बहिनक स्नेहसँ अभिभूतो होइत अछि। बहिन लोकनि जखन   चुगिलाक मुँह झरकबैत ओकर अकल्याणक कामना करै छथि ‘धान-धान-धान भैया कोठी धान, भुस्सा-भुस्सा-भुस्सा चुगिला कोठी भुस्सा’, ‘चुगिला करय चुगलपन बिलैया बाजय म्याउँ धऽ ला चुगिलाकेँ फाँसी देउँ’ तँ वातावरण बहिन लोकनिक समवेत हँसीसँ सराबोर भऽ उठैत अछि। आनन्दपूर्ण एहि प्रक्रियाक बाद सामाक डाला लऽ बहिन लोकनि घर घुरि जाइ छथि। सामाक डालाकेँ शीतेमे राखल जाइ छनि।

                                            पूर्णिमाकेँ डोलीपर बिदा हेती सामा 

सामा-चकेवाक ई खेल पूर्णिमासँ एक दिन पूर्व धरि चलत। पूर्णिमाकेँ भाइ केरा केर थम केर डोली बनेता। ओहिपर सामा राखल जेती। जेना बेटी-धी केर विदागरी होइ छनि तेना हुनक खोँइछ भरल जेतनि। चूड़ा-दहीक भोग लगतनि। भाय डोलीकेँ कान्ह लगा पोखरि किंवा कोनो धारक कात धरि पहुँचेता। ओहि ठाम मूर्त्तिक विजर्सजन होयत। कतेको ठाम मूर्त्तिकेँ भाय तोड़ै छथि आ ओकरा खेत आदिमे माटिक तर गाड़ि देल जाइत अछि। एकर बाद बहिन मुरही, बतासा, लड्डू आदिसँ अपना भाइ केर फाँड़ भरती। एकरा संगहिँ भाय-बहिनक एहि मुधर प्रेमक पर्व सामा-चकेवाक समापन होयत।

                                                   बहिन रहती तखन ने सामा 

हमरा लोकनि भाय-बहिनक एहि स्नेहिल पर्वमे तँ समवेत छीहे। बहिन लोकनिक अपना गीतमे हमरा सभक नामोल्लेख करैत हमरा सभक कल्याण-कामना कैए रहल छथि। हमरा लोकनि सामाक विसर्जनमे तँ सहभागी हेबे करब, मुदा जे वर्त्तमान जा रहल अछि ताहिमे सामा-चकेवाक ई पर्व एहिना चलैत रहत? हमरा लोकनिकेँ जेना बेटी-बहिनसँ अभाँछ भेल जा रहल अछि तेनामे तँ ई पाबनिए समाप्त भऽ जायत। जी हँ, एही तरहेँ जँ भ्रूण हत्या करैत रहब, गर्भेमे कन्या-भू्रणकेँ चीन्हि ओकरा नष्ट करैत रहब तखन कोना होयत सामा-चकेवाक ई पर्व? जखन कन्याकेँ उकन्नन करैत रहब तँ भ्रातृ द्वितीया, सामा-चकेवा, रक्षाबन्धन आदि सभक उठाव भऽ जायत। बेटीक अभावमे बेटा सेहो नञि होयत। हमरा लोकनि लेल बहिन कते मंगलकामना करै छथि से रातिमे कने कान पाथि सुनी आ विचार करी, की हमरा लोकनि अपना बहिनक लेल किछु नञि कऽ सकै छी? की हुनक कल्याण-कामना हमरा सभक दायित्व नञि? आउ सामा-चकेवाक एहि पुनीत पर्वपर संकल्प ली जे लिंग परीक्षण कऽ कन्या-भ्रूण हत्यामे हमरा लोकनि रञ्चो मात्र लेल सहभागी नञि होयब। आन भायकेँ सेहो एहि लेल टोकि तँ सकिते छी। जँ एको गोट सामाकेँ धरतीपर एबाक अधिकारसँ वञ्चित करबाक कुत्सित प्रयास हमरा लोकनि रोकि लै छी तँ सत्ते अपन दायित्वक निर्वाह कऽ सकब आ अपना जीवनकेँ धन्य कऽ सकब। एहि प्रयासेक बलपर बहिनक अशेष शुभकामनाक अधिकारी होयब। नञि तँ सामा-चकेवाक ई पावन अवसर इतिहास गाथा बनि जायत। सभ बरख बहिन लोकनि जे हमरा लोकनिक मन-प्राण अपन आशीर्वादसँ जुड़बै छथि ताहि लेल लालायित रहि जायब। आबऽ वला पीढ़ी जखन संकटापन्न होयत आ बेटीक अभावमे बेटा पायब सेहो सम्भव नञि होयत तखन भने हमरा लोकनिक भौतिक काया नञि रहत, मुदा आत्मा सीदित होइत रहत कारण ओहि परिस्थितिकेँ भोगनिहार एहि दोष लेल हमरे सभकेँ दुर्वचन कहत। आउ सामा-चकेवाक पर्वपर अपना भीतर केर पिशुन प्रवृत्ति, किंवा चुगिला सन व्याप्त अधलाह विचारकेँ समाप्त करबाक संगहिँ ली सामाकेँ बचेबाक संकल्प।



                                                      सामा-गीत

                                               प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक 

एलै कातिक मास हो भैया सामा लेल अवतार।
चिट्ठी लऽ कऽ जैहेँ हजमा नैहर हमार।।
बाबा आगू बजिहेँ हजमा गोचर हमार।
भैया आगू बजिहेँ हजमा मिलन हमार।।
सेहो सुनि भेला भैया घोड़ा पीठि असवार।
सिन्दूर बेसाहीह भैया बेतिया सन हे बजार।।
टिकुली बेसाहीह भैया पटना सन हे बजार।
सामा बेसाहीह भैया मनसुर चक बजार।।
टिकुली झलकि गेल फल्लाँ बहिनो के कपार।
सिन्दूर झलकि गेल भैया ऐहब भौजो के कपार।।

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पनमा जे खेलऽ हो भैया पिकिया नरेलऽ एहि ठाम।
ओही पीकी अयलै भैया यमुना गंगाक धार।।
एही पार भैया हो भैया छतवा नेने ठाढ़।
ओहि पार फल्लाँ बहिनी रोदना पसार।।
जुनि कानू जुनि खीजू बहिनी रोदना पसार।
जुनि कानू जुनि खीजू बहिनी फल्लाँ बहिनी।।
बाबा के सम्पतिया हो भैया भतिजबा के हो आस।
हम परदेशनी हो भैया मोटरिया के हो आस।।


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सामा खेलय गेलहुँ बड़का भैया के आङन हे।
भौजो लेल लुलुआय छोड़हु ननदो आँगन हे।
जुनि लुलुआबी फल्लाँ भौजो हे।
भौजी जाबे रहतै माय बापक राज ताबे सामा खेलब हे।
एतबा वचन सुनलनि बड़का भैया हे।
भैया मारलनि बरछी घुमाय बहिन मोरा पाहुन हे।

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 एहि बाटे फल्लाँ भैया घोड़बा दौड़बथि हे।
फाँड़ भरि तोड़ल हो भैया गेन्दबा के फुलबा हे।
सेहो देखि कनिञा भौजी लट धेने केशिया हे।
बाबा फुलवारी बालम लयली उजारि हे।
जुनि कानू जुनि खीजू कनिया सुहबे हे।
फेर कय लगायब बाबा फुलवारी हे।

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गामके अधिकारी तोहेँ बड़का भैया हो
भैया हाथ दस पोखरी खुना दियऽ।
चम्पा फूल लगा दियऽ हे।
फुलवा लोढ़ैत बहिनी आयल हे।
घमि गेल सिरके सिन्दूर नयन भरु  काजर हे।
छत्ता लेने आबथि भैया से मझिला भैया हे।
बैसह बहिनी एहि छाह आश्ीष देहु हे।
युगे युगे जीबथु दुनू भैया तोरो अहिबात बढ़ू हे।

Thursday, 17 October 2013

कोजागरापर सगरो छिड़िआयत हँसी चान आ मखान

         कोजागरापर सगरो छिड़िआयत हँसी चान आ मखान 

                                                      - अमलेन्दु शेखर पाठक

आसिन मासक पूनिम केर चान अपन मुस्की सगरो बाँटत। धरतीक कण-कणकेँ अपन इजोरियासँ स्नान करा जुड़ा देत। ओ अपन अमृत कलश छिलकेता। लोक मान्यताक अनुसार
आश्विन पूर्णिमाक राति चान अमृत बरसबै छथि। एमहर धरतीक चान फोँका मखान सेहो अपन हँसी छिड़िआयत। ओकरा संग दहीक मटकूर किंवा छाँछी आ बताशा ठहक्का लगायत। ई सभ होयत नव विवाहित वरक लेल मिथिलाक प्रसिद्ध पर्व कोजागरापर। ई पाबनि तँ होइ छनि ओहि नव विवाहित वरक लेल जिनक विवाहित जीवनमे कोजागरा पहिले-पहिल अबैत अछि, मुदा एहिमे समवेत होइत अछि सम्पूर्ण समाज जे पूनिम केर चान, मखान, दही आ बताशाक हँसीक फुहारसँ तितैत ओहिमे अपन उछाह घोरि दैत अछि आ धरतीपर उतरि अबैत अछि स्वर्गक आनन्द।
धर्म प्रधान भारत राष्ट्रे जकाँ मिथिलोमे ओना तँॅ प्रतिदिन कोनो ने कोनो अवसर रहिते अछि जकरा लोक आनन्द-उत्साह आ आस्था-विश्वासक संग मनबै छथि। मिथिलाक अपन विशिष्टता रहल अछि जे ई जन-जीवनक प्राय: सभ पक्षकेँ अपना दृष्टिसँ देखलक अछि आ तदनुकूल अपन स्वतंत्र चिन्तन सेहो रखलक अछि। गीत-संगीत, ज्योतिष सहित विभिन्न क्षेत्रमे एकर बेछप छवि चर्चित रहल अछि। आर तँ आर मिथिला पाबनि-तिहार पर्यन्तमे अपन स्वतंत्र उपस्थिति अंकित केलक। बहुत रास एहन पाबनि अछि जे मिथिलेमे मनायल जाइत अछि। एहिमे दू गोट एहन प्रमुख पाबनि अछि जे नव विवाहित दम्पती लेल होइत अछि जिनका विवाहित जीवनमे ई प्रथमे अबै छनि। पहिल अछि ‘मधुश्रावणी’ जे नव विवाहिता कनिञा लेल होइत अछि आ दोसर ‘कोजागरा’ जे नव विवाहित वर लेल होइत अछि। दुनू पाबनि वर-कनिञा अपना नैहरमे मनबै छथि। दुनू पाबनिमे सासुरसँ पूजन सामग्री आ चुमाओनक डाला सहित घर-घरायन लेल नव वस्त्र तथा मधुर आदिक भार अबैत अछि। मधुश्रावणी महिला लोकनिक बीच आ कोजागरा महिला-पुरुष नेना-भुटका सभक लेल।  

                                                  सासुरक दूभि-धानसँ होयत चुमाओन 

कोजागरामे वरक सासुरसँ चुमाओन लेल दूभि-धान आ मधुर आदिसँ सजल डाला अबै छनि। एहिपर मखान, मखानक माला, घुनेश, चानीक कौड़ी, नारियर, केरा, दहीक छाँछ, पान, गोटा सुपारी, लौङ, इलायची आदिक संग विभिन्न तरहक मधुर फराक-फराक राखल रहैत अछि। पहिने तँ एहिपर सुपारीक गाछ, जनौ केर गाछ आदि सेहो रहैत छल जे एहि मैथिल ललनाक हस्तकलाक प्रतिभाकेँ मुखर करैत छल। आब एहिमे कमी आबि गेल अछि। डालापर लोक अपन साधंस केर हिसाबे आन-आन वस्तु सेहो सजबै छथि। एहि डालाक निरीक्षण सर-समाज करैत अछि। जे डाला जते पैघ आ नीक जकाँ सजाओल तकर तते प्रशंसा। एही डालाक दूभि-धान लऽ वरक घरक महिला लोकनि चुमाओन करै छथि आ पुरहर-पातिलक दीपसँ गाल सेदै छथि। परिवार आ सामजक वरिष्ठ पुरुष लोकनि दूर्वाक्षत मंत्रक संग दीर्घ ओ सुखी जीवनक आशीर्वाद दै छथि।
चुमाओन ओहिना नञि भऽ जायत। एहि लेल आङनमे अष्टदल अरिपन देल जायत जाहिपर डाला राखल जायत। पुरहर-पातिल आ कलशक अरिपन सेहो देल जायत। ओहिपर तरमे धान दऽ आमक पल्लव युक्त कलश प्रतिष्ठित होयत। पातिलमे दीप जरैत रहत। मिथिलाक पाबनि बिनु गीतक कोना भऽ सकैत अछि? से मैथिल ललना सभक मधुर स्वर वातावरणमे घोरायत आ चुमाओनक विधि पूरा होयत।  



                                                          सार महोदय बनता कनिञा  

पत्नीक भ्राता अर्थात् ‘सार’ शब्द कानमे पड़िते ठोर विहुँसि पड़ैत अछि। आ जँ हुनका कनिञा बना वरक संग बैसेबाक बात हो तँ मुस्की बदलि जाइत अछि ठहाकामे। से कोजागराक राति नव विवाहित वरक आङन नाँघि मैथिलानीक समवेत हँसी-ठहाका सगरो वातावरणमे पसरैत रहैत अछि। कोजागरा पाबनिक समय धरि कनिञाक दुरागमन नञि भेल रहै छनि। विवाहक चारिमे दिन दुरागमन करेबाक परम्परा आरम्भ हेबाक बादो अधिकांश ठाम ई लगले नञि होइत अछि। से कनिञा रहै छथि अपना नैहरमे। जखन वरक चुमाओन होइ छनि तँ असकर कोना हेतनि, बहुत ठाम कनिञाक स्थानपर कलशकेँ मानि लेल जाइत अछि तँ बहुतो ठाम कनिञाक स्थानपर सार महोदयकेँ बैसाओल जाइ छनि। हँ ई देखल जाइत अछि जे सार कनिञासँ छोट होथि। हुनका संग चौल करैत तौनी ओढ़ा घोघ कऽ देल जाइ  छनि आ सामूहिक हँसी-मजाकसँ घर-आङनक पोर-पोर आनन्दक सागरमे उभचुभ करऽ लगैत अछि।

                                                       बँटायत अछि पान-मखान-बतासा 

आङनमे चुमाओनक विधि आ लक्ष्मीक पूजनक बाद दलानपर हबगब तेज भऽ उठत। वरक सासुरसँ आयल मखान, पान आ बतासा समाजक बीच बाँटल जायत। बारिक एकाँएकी सभक बीच ई बँटता। एहिमे नेना-भुटकाक उछाह कने बेसी छिलकैत रहत। एक संग पचासो हाथ बारिक सोझाँ आयत आ ओ सभपर थोड़े मखान आ बतासा राखि देता। पानक बारिक पान राखि देता। एहि लेल साँझे गाम-टोलमे हकार देल जायत। लोक बेराबेरी ओहि सभ दलानपर पहुँचि पान-मखान-बतासा लेता जाहि ठाम कोजागरा मनायल जायत। रोम-रोम झकझक देखार केनिहार इजोरियामे बहुतो मखान-बतासा खायब आरम्भ करता जकर ‘कुरकुर-कुरकुर’ ध्वनि आ हकार पुरनिहारक पानसँ रङल ठोर-दाँत घरवैयाकेँ तृप्त करतनि। बहुतो ठाम-ठामसँ मखान-बतासा लऽ ओकर छोट-छोट पोटरी बनेता। एके बेर कते खेता? पोटरी बनेबाक क्रममे नेना-भुटका केर मखान-बतासा छिटेबो करत जे अगिला भोर धरि मुस्कियाइत ओहि दऽ गेनिहार बटोहीक स्वागत करत।

                                                    होयत लक्ष्मी पूजन आ रात्रि जागरणा

ओना तँ दीपावलीक राति लक्ष्मी-गणेशक पूजा सगरो होइत अछि। मिथिलोमे दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश पूजल जाइ छथि, मुदा एहि ठाम कोजागराक राति लक्ष्मी पूजन प्रशस्त अछि। एहि लेल दुआरिसँ भगवती घर धरि अरिपन देल जायत। चिनुआरपर सेहो अरिपन होयत। ओहि ठाम जल भरल लोटामे आमक पल्लव राखल जायत आ भगवतीकेँ घर करबाक विधि परिवारक वरिष्ठ महिला करती। मान्यता अछि जे कोजागराक राति लक्ष्मी घरे-घर बुलै छथि आ देखै छथि जे के जागल अछि-
निशीथे वरदा लक्ष्मी: कोजागर्तीति भाषिणी।
तस्मै वित्तं प्रयच्छामि अक्षै: क्रीड़ां करोति य:।।
एहि मान्यताक अनुरूप बहुतो रास लोक राति भरि जागरण करै छथि। जिनका ओहि ठाम पाबनि रहै छनि हुनक समय तँ हकार पुरनिहार सभक मखान-बतासा-पानसँ स्वागतमे बीति जाइ छनि, आ जिनका ओहि ठाम पाबनि नञि छनि ओहो पचीसी आदि खेलैत जागरण करैत माता लक्ष्मीक स्वागतमे राति बितबै छथि।

                                                          देओर-भाउजक बीच पचीसी

कोजागराक राति देओर-भाउजक बीच पचीसीक खेल चर्चित रहल अछि। एहि खेलमे देओर-भाउज राति बितबै छथि। एहि बीच हुनक हास-परिहाससँ वातावरण सराबोर होइत रहैत अछि, मुदा आब ई अपवादे भेटैत अछि। कारण मिथिलाक गाम-घर आब अपना लोकक बिनु उदास रहैत अछि। भाउज कोनो महानगरमे अपन पति आ बाल-बच्चाक संग बिता रहल छथि तँ देओर कतहु आन ठाम रोजी-रोटी लेल अपस्याँत छथि। यैह कारण अछि जे पहिने कोजागराक राति जतऽ घर-घर देओर-भाउजक बीच पचीसीक खेल होइ छल से समटा कऽ ओहि घरमे रहि गेल अछि जाहिमे ई पाबनि मनायल जाइत अछि। सेहो विधि पुरौअलि मात्र।

                                                     कौमुदी महोत्सवोक आयोजन 

नव विवाहित केर ओहि ठाम मनाओल जायवला कोजागरा केर अतिरिक्त एहि पाबनिकेँ विभिन्न संस्था आ संगठन कौमुदी महोत्सवक रूपमे सेहो मनबैत अछि। अनेको साहित्यिक संस्था एहि अवसरपर कवि-गोष्ठीक आयोजन करैत अछि तँ राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ सेहो एहि महोत्सवपर सामूहिक पायस भोजनक ओरियान करैत अछि। कोजागराक राति चन्द्रमाक इजोरियाक संग अमृत बरसबाक मान्यताक अनुरूप खुजल अकासक नीचाँ मखानक खीर बनाओल जाइत अछि। ओकरा बिनु झाँपन देने राखल जाइत अछि आ सभ मिलि-बाँटि खाइ छथि। पाबनिक अवसरपर लोक सभ अपना घरोमे खीर बनबै छथि।
आउ मिथिलाक एहि प्रसिद्ध पाबनिमे हमरो लोकनि सम्मिलित होइ। लक्ष्मीसँ सम्पूर्ण मिथिलापर कृपा दृष्टिक आशीर्वाद माङी। चन्द्रमासँ मिथिलाक धरतीपर अमृत-कलश उझीलि एकर पोर-पोरकेँ रसमय बनेबाक अनुनय करी जाहिसँ लहलहा उठय सभ फसिल। चली नव विवाहितक दलानपर धरतीक चान फोँका मखानक संग बतासा आ पान पाबि ली।



              कोजगरा-गीत 

 प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

आइ भैया के छनि कोजगरा हे पूर्णिमाक राति।
कथी केर जुत्ता कथी केर छत्ता,
की पहिरि कऽ चलता हे । पूर्णिमा...।।
सोने केर जुत्ता रूपे केर छत्ता,
 झुनकी खराम चढ़ि चलता हे।। पूर्णिमा...।।
कथी केर थारी कथी केर कौड़ी,
 किनका संग पचीसी खेलता हे ।। पूर्णिमा...।।
सोना केर थारी चानीक कौड़ी,
 भौजी संग खेलता पचीसी हे।। पूर्णिमा...।।

            चुमाओन-गीत

भैया के करियनु चुमाओन कोजगरामे।
बाबूजी पुछि-पुछि परसथि मखान भोजघरामे।
आङन चानन नीपल गेल अछि।
गजमोती चौक पुराय देल अछि।
भैया के करिऔन चुमाओन कोजगरामे।
मानिक दीप जराओल दय-दय।
काँच बाँस के डाला लय-लय।
भैया के करियनु चुमाओन कोजगरामे।

             पचीसी-गीत

खेलू खेलू यौ भैया बाजी लगाइ कऽ।
सीता जीतथि रामजी हारथि बाजी लगाइ कऽ।
सखि सभ देथि पिहकारी बाजी लगाइ कऽ।
सीता हारथि रामजी जीतथि बाजी लगाइ कऽ।
सखी सब गेल लजाय बाजी लगाइ कऽ।
धन्य-धन्य सखी हम मिथिलावासी।
रामजी भेला जमाय बाजी लगाइ कऽ।
कौड़ी खेलऽ लेल एला जनकपुर बाजी लगाइ कऽ।
हारला माय-बहिन-पितिआइन हे बाजी लगाइ कऽ।

Sunday, 6 October 2013

आधुनिक महिषासुरक संहार लेल आउ करी क्रोध

                                        आधुनिक महिषासुरक संहार लेल आउ करी क्रोध

                                                                                             
                                                              - अमलेन्दु शेखर पाठक 

शारदीय नवरात्र आरम्भ भऽ गेल अछि। भगवतीक आराधनामे जनमन लीन भऽ रहल अछि। घरसँ बाहर धरि दुर्गा सप्तशतीक श्लोक अनुगुञ्जि भऽ रहल अछि- ‘या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।’ दस दिन धरि सौँसे मिथिलाक भक्तिक धारमे उभचुभ करत। पञ्चदेवोपासक मिथिलामे ओना तँ सभ देवी-देवताक पूजन समान आस्था आ विश्वासक संग होइ छनि, मुदा शक्तिक प्रति कने बेसी समर्पण रहल अछि। से देखबोमे आबि रहल अछि। मिथिलाक घर-घर, गाम-गाम आ नगर-नगर माताक आराधनामे रमल अछि। सार्वजनिक पूजाक आयोजनक संख्यो निरन्तर बढ़ल जा रहल अछि। जतऽ एक नगरमे गोटेक ठाम सार्वजनिक पूजा होइ छल ओहि ठाम दर्जनो ठाम पूजन भऽ रहल अछि। सार्वजनिक समितिक बढ़बाक क्रम तेहन सन अछि जे अगिला किछु बरखमे ई महल्ले-महल्ले भऽ जायत। गामोक हाल एहने अछि। पहिने दस-पन्द्रह-बीस गामपर एक ठाम सार्वजनिक पूजा होइ छल, से गामे-गाम हेबा दिस अग्रसर अछि। महिषासुरमर्दिनी भगवतीक प्रति बढ़ैत ई आस्था आ आकर्षण नीके कहल जायत, मुदा जखन एहि पूजनक प्रतिफलपरगम्भीरतासँ विचार करब तँ उछाह मन्द पड़ि जायत। शक्तिक अधिष्ठात्री माता दुर्गाक आराधना करबाक पाछाँ सभक एके उद्देश्य रहैत अछि कल्याण। किनको अपन आ परिजनक कल्याण कामना रहै छनि, तँ क्यौ जनकल्याण कहि अपन प्रयासकेँ विस्तार देबाक बात कहै छथि, मुदा की ठीके कल्याण भऽ रहल अछि? वर्त्तमान परिवेश कहि रहल अछि जे पूजनक सकारात्मक परिणाम रञ्चो मात्र कहाँ भेटि रहल अछि? से व्यक्तिगतो आ सार्वजनिको जीवनमे।
भहरि जाइए समर्पण
दस दिनक एहि पावन अवसरमे हमरा लोकनि सात्विक जीवन व्यतीत करै छी। लाखो शक्ति-उपासक भरि दसमी एके साँझ भोजन करै छथि। ओहो अरबा-अरबाइन। कते फलेपर दस दिन बितबै छथि। एहनो भक्त छथि जे जल छोड़ि आन किछु नञि ग्रहण करै छथि। भगवतीक प्रति अखण्ड आस्थेक परिणाम अछि जे कतेको गोटे छातीपर आ कि जाँघपर कलश स्थापित कऽ जयन्ती उगबै छथि। ओ दसो दिन निराहार रहै छथि। एहिमे पूर्णत: सफल रहै छथि। एहन भक्तोक संख्या कम नञि अछि। भरि मिथिलामे हजारो तँ अवश्य हेता। देवीक प्रति हृदयमे विश्वास रखनिहार समाज आ लोक भारत राष्टÑ छोड़ि अन्यत्र भेटब असम्भव। मुदा विडम्बना अछि जे ई समर्पण लगले भहरि जाइए। पूजा समाप्त होइते मानसिकता पल भरिमे बदलि जाइए। क्यौ देवी स्वरूपा पुतहुकेँ किछु टाका आ मोटर-गाड़ी लेल डाहबामे लागि जाइ छी, तँ क्यौ अपन धी-बेटीक विवाह लेल विवाह योग्य बेटीक ओहि बापक हिस्सा हड़पऽमे जुटि जाइ छी जे मेहनत-मजुरियो कऽ एहि सपनाकेँ पूरा करबामे अक्षम रहैत अछि। उचित-अनुचितक कोनो अर्थ नञि रहि जाइत अछि।

कोना करब कुमारिकार्चन
दसमीमे कुमारि पूजनक विधान अछि। मानल जाइत अछि जे कुमारि पूजने प्रमुख अछि। लोक पूरा श्रद्धाक संग कुमारि पूजन करै छथि। कुमारि बच्चीकेँ निमंत्रित कऽ अष्टमी तथा नवमी दिन तँ घरे-घर भोजन कराओल जाइत अछि। कतेको दसो दिन कुमारिकेँ भोजन करबै छथि। कुमारिक आदरक संग पैर धोअल जाइ छनि। तेल-कूर लगाओल जाइ छनि। सिन्दूरक ठोप कयल जाइ छनि। हाथ-पैर आ नह रङल जाइ छनि। नव वस्त्रमे अरबा चाउर, श्रृंगार प्रसाधन आदि दऽ खोँइछ भरल जाइ छनि। तखन भोजन परसि हुनका अगरबत्ती-धूप देखाओल जाइ छनि। भोजनक उपरान्त छोट-छोट बच्चीकेँ ओही श्रद्धाक संग पैर छूबि प्रणाम कयल जाइत अछि जे श्रद्धा भगवती दुर्गाक लेल रहैत अछि। ई घरे-घर तँ देखबा लेल भेटिते अछि, कतेको गाममे भरि गामक बेटीकेँ निमंत्रण दऽ सामूहिक रूपसँ कुमारिकार्चन होइत अछि। सार्वजनिक पूजा समिति सभ सेहो ई करैत अछि। सभक मनमे एके रंग श्रद्धा-विश्वास-आस्था, मुदा पूजा समाप्त होइते ई आस्था-श्रद्धा लुप्त भऽ जाइत अछि। से नञि होइत तँ जाहि बेटी जातिक चरणमे हम अपनाकेँ समर्पित करै छी ताहिसँ अभाँछ किए? लिंग परीक्षण किए? भ्रूण हत्या किए? हालति ई अछि जे जँ हमरा लोकनि एखन अपनाकेँ अपन सांस्कृतिक चेतनासँ पूरापूरी नञि जोड़ि सकलहुँ तँ आबऽ वला दिनमे कुमारिकार्चन आ कि कुमार पूजन-भोजन नञि कऽ सकब। कोना करब, जखन धी-बेटी रहती तखन ने ई सभ होयत। कने अपना टोल-महल्लामे नजरि घुमा कऽ देखब तँ एहि सत्यक पता चलत। एखने हाल अछि जे एकहक कुमार दसो-पन्द्रह ठामसँ निमंत्रित होइ छथि। दसमीमे सभ साल लोक बच्ची नञि भेटबाक बात कहै छथि। पूजाक बाद वैह डाक्टर लग लिंग परीक्षण लेल पहुँचि जाइ छथि। जँ हम अपन एहि मानसिकताकेँ नञि बदलै छी तँ दुर्गा पूजामे कतबो किए ने अनुष्ठान कऽ ली, भगवती प्रसन्न नञि हेती आ कल्याणक अपेक्षा दिवास्वप्न टा रहि जायत।
सजीव भगवतीक अपमान
हमरा लोकनिक चरित्रमे विरोधाभास स्पष्ट रूपसँ देखबामे आबि रहल अछि। मातृशक्तिकेँ सर्वोपरि मानि हमरा लोकनि कलशस्थापनसँ विजयादशमी धरि जाहि तरहेँ माताक पूजा-अर्चना करै छी ओ लगले समाप्त भऽ जाइत अछि। माटिक प्रतिमाक चरणमे अपनाकेँ अर्पित करबा लेल उताहुल रहै छी, मुदा सजीव भगवतीक प्रति पशुवत भऽ उठै छी। तेँ ने अबोध बच्ची पर्यन्तक संग संग दुराचार केर घटना नित्य प्रति कतहु ने कतहुसँ अबिते रहैत अछि। एहि विरोधाभासी व्यवहारक परित्याग करब तखन ने कल्याणक फल पायब। एहि लेल ओहि पाश्चात्यक मोह त्यागऽ पड़त जे नारीकेँ उपभोगक   वस्तु मात्र बुझैत अछि। ओकर देह-यष्टि मात्रकेँ महत्व दैत अछि। हमरा लोकनिकेँ एहिसँ बचबा लेल अपना माटि-पानि, अपन संस्कृति, अपन चिन्तनक लेल अपना भीतर मोह उत्पन्न करऽ पड़त। अपन ओहि संस्कृतिक मोह जे नारीकेँ पूज्या बनबैत अछि। जँ एहि भावकेँ अपना हृदयमे समेटि नञि सकलहुँ तखन कल्याण कोना?
त्यागऽ पड़त बाह्याडम्बर
पाश्चात्यक प्रति रुखि बाह्य आडम्बरकेँ निरन्तर बढ़बैत जा रहल अछि। भने भक्तक हृदयमे श्रद्धाक हिलोर उठैत रहओ, आयोजक एहि दिशामे अपवादे स्वरूप गम्भीर भेटता। अधिकांश ठाम आयोजनमे शास्त्रीयता दोसर स्थानपर आबि गेल अछि। पहिल स्थानपर चाक-चिक्य आबि गेल अछि। शोभा यात्रा बहार करबाक चिन्ता बेसी कयल जाइत अछि, समयपर पूजा-अर्चनाक कमे ठाम। ई सभ भऽ रहल अछि अपन मूल संस्कृतिक प्रति गौरवक अभाव आ ओकरा महत्वहीन बुझबाक कारणेँ। तेँ एहि अवसरपर जँ कोनो गीत-संगीतक आयोजनो होइत अछि तँ ओ शुद्ध सांस्कृतिक नञि होइत अछि। एहि नामपर फूहड़ताकेँ प्रश्रय भेटैत अछि जे कोनो अर्थे कल्याण नञि कऽ सकैत अछि। कल्याण लेल आबऽ पड़त अपन सांस्कृतिक परम्पराक शरणमे।
समन्वित शक्तिक चाही योग्यता
आउ जनकल्याणक लेल मिलि कऽ एकसंग करी क्रोध। क्रोधकेँ अधलाह मानल गेल अछि। आधुनिक विज्ञानो एकरा अधलाह मानैत अछि। अपना ओहि ठामक चिन्तनो। कहै छै जे क्रोध बहुत रास रोगकेँ जन्म दैत अछि। क्रोधकेँ ओहि जरैत लकड़ीक समान मानल गेल अछि जे पहिने अपने जरैत अछि तखन सम्पर्कमे एनिहारक अहित करैत अछि। मुदा भगवती दुर्गाक आविर्भाव क्रोधेसँ भेलनि। जखन आततायी महिषासुरसँ पीड़ित-सीदित देवगण शिव आ विष्णु लग पहँुचला आ दानव द्वारा सभ देवताकेँ देवलोकसँ खेहारि देल जेबाक बात कहलनि तँ भगवान शंकर आ विष्णुकेँ क्रोध भेलनि। हुनक भौँह चढ़ि गेलनि। क्रोधे मुँह विकृत भऽ उठलनि आ ओहिसँ एकगोट तेज बहार भेल। सभ देवता मिलि अपन-अपन तेजकेँ समन्वित केलनि आ भगवतीक आविर्भाव भेलनि। हुनका सभ देवता अपन अस्त्र-शस्त्रसँ सुसज्जित केलनि। तखन सभक समन्वित शक्तिसँ युक्ता भगवती महिषासुरक संहार केलनि। आधुनिक महिषासुरक वध लेल सेहो एहने समन्वित शक्ति चाही। हँ एहि लेल चाही अपनामे शक्ति जकरा समन्वित करब। एहि शक्ति-सञ्चय लेल भगवान शंकर, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवता सन सामर्थ्य चाही, तखने ने हमरा सभक समवेत शक्तिसँ उत्पन्न भऽ सकती कोनो दुर्गा जे आधुनिक असुरक नाश करती। आउ एहि लेल अपनाकेँ तदनुकूल बनाबी। एहि लेल माता दुर्गासँ माङी आशीष। एहि लेल दृढ़ता चाही। शुद्ध-सात्विक आचरण चाही। एखन तँ सगरो महिषासुरेक शक्ति एकत्रित नजरि अबैत अछि। एहिसँ भगवती दुर्गा त्राण देआबथि आ हमरा तेहन शक्ति-सम्पन्न आचारवान बनाबथि जे हुनके सन दुष्टमर्दिनी मातृशक्ति प्राप्त करबामे सक्षम होइ ताहि लेल तँ हुनके चरणमे शरण।   

Wednesday, 2 October 2013

भगवती गीत



                             













 देवी पक्ष आरम्भ भऽ रहल अछि, आउ मिथिलाक परम्पराक अनुसार करी भगवतीक सांगीतिक स्मरण :


                 प्रार्थना
  
          - अमलेन्दु शेखर पाठक

आदिशक्तिश्वरी  श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।
भैरवी भय - हारिणी  दुर्गा जगत - उद्धारिणी।।

शैलपुत्री - ब्रह्मचारिणि - चन्द्रघण्टा  छी अहीँ।
शिवा-कूष्माण्डा-भवानी-स्कन्दमाता पद गही।।
चरण-तलमे पड़ल शिव जननी अहीँ कात्यायनी।
आदिशक्तिश्वरी श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।।

कालरात्रि - कपालिनी  हे  महागौरि स्वरूपिणी।
सिद्धिदात्री   भगवती   छी   सर्वमंगलकारिणी।।
हे मृडानी - रुद्रिणी  माँ  मुण्ड - मालाधारिणी।
आदिशक्तिश्वरी श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।।

महाकाली - मैथिली - शाम्भवी-केहरि वाहिनी।
खड्गिनी-चक्रिणी-कमला अहीँ वीणा-वादिनी।।
भावना  ‘अमलेन्दु’  अर्पित मातु मोक्ष-प्रदायिनी।
आदिशक्तिश्वरी श्यामा चण्ड-मुण्ड विनाशिनी।।
           *************

जय शिव प्रिये

- अज्ञात 

जय शिव  प्रिये  शंकर प्रिये  जय  मंगले  मंगल करू।
जय अम्बिके जय त्र्यम्बिके जय चण्डिके मंगल करू।।

अनन्त    शक्तिशालिनी    अमोघ   शस्त्रधारिणी।
निशुम्भ - शुम्भ  मर्द्दिनी त्रिशूल - चक्र-पाणिनी।।
जय  भद्रकालि - भैरवी जय भगवती मंगल करू।
जय वैष्णवी विश्वम्भरी जय शाम्भवी मंगल करू।।

कराल   मुख   कपालिनी  विशाल मुण्डमालिनी।
असीम    अट्टहासिनी    त्रिमूर्त्ति   सृष्टिकारिणी।।
हे   ईश्वरी  परमेश्वरी  सर्वेश्वरी   मंगल  करू।
कात्यायिनी   नारायणी  माहेश्वरी  मंगल  करू।।

प्रकृति अहीँ  सुकृति अहीँ  दया अहीँ क्षमा अहीँ।
स्वधा  अहीँ  छटा अहीँ  कला अहीँ प्रभा अहीँ।।
दुखहारिणी  सुखकारिणी  हे  पार्वती  मंगल करू।
हे ललित शक्ति प्रदायिनी सिद्धेश्वरी मंगल करू।।

जय शिव  प्रिये  शंकर प्रिये  जय  मंगले  मंगल करू।
जय अम्बिके जय त्र्यम्बिके जय चण्डिके मंगल करू।।
            *************

गोसाउनिक गीत 

- महाकवि विद्यापति 

जय-जय भैरवि असुर भयाउनि, पशुपति भामिनि माया।
सहज सुमति वर दिअओ गोसाउनि, अनुगत गति तुअ पाया।।

वासर रैनि शवासन शोभित, चरण चन्द्रमणि चूड़ा।
कतओक दैत्य मारि मुँह मेलल, कतओ उगिलि कयल कूड़ा।।

सामर वरन नयन अनुरञ्जित, जलद जोग फुल कोका।
कट-कट विकट ओठ-पुट पाँड़रि, लिधुर फेन उठ फोका।।

घन-घन घनन घुँघुरु कत बाजय, हन-हन कर तुअ काता।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरु जनि माता।।
              *************

कनक भूधर शिखरवासिनि

- महाकवि विद्यापति 

कनक-भूधर - शिखर-वासिनि, चन्द्रिकाचय  चारु  हासिनि।
         दशन - कोटि -विकास बंकिम, तुलित चन्द्रकले।।
क्रुद्ध-सुर-रिपु-बल-निपातिनि, महिष-शुम्भ-निशुम्भघातिनि।
                भीत-भक्त   भयापनोदन,  पाटब - प्रबले।।
जय  देवि  दुर्गे  दुरित - तारिणि, दुर्ग  मारि-विमर्द-कारिणि।
                      भक्ति-नम्र-सुरासुराधिप-मंगलायतरे।।
गगन -  मण्डल -  गर्भगाहिनि  समर  भूमिषु  सिंहवाहिनि।
              परशु-पाश-कृपाण-सायक-शंख-चक्र-धरे।।
अष्ट - भैरवि- संग-शालिनि स्वकर-कृत्त-कपाल-मालिनि।
               दनुज-शोणित-पिशित-बर्द्धित पारणा रभसे।।
संसारबन्ध - निदान - मोचिनि-चन्द्र-भानु-कृशानु लोचिनि।
                   योगिनीगण-नृत्य शोभित नृत्य भूमि रसे।।
जगति  पालन - जनन - मारण -रूप-कार्य-सहस्र-कारण।
               हरि-विरञ्चि-महेश-शेखर-चुम्ब्यमान-पदे।।
सकल - पापकला - परिच्युत सुकवि विद्यापति-कृत-स्तुति।
                   तोषिते शिवसिंह-भूपति-कामना फलदे।।
                       *************

सिंहपर एक कमल...

सिंहपर एक कमल राजित
ताहि ऊपर भगवती।
शंख गहि-गहि चक्र गहि-गहि
लोक के माँ पालती।।
दाँत खट-खट जीह लह-लह
सोणित दाँत मढ़ावती।
शोणित टप-टप पिबथि जोगिनि
विकट रूप देखावती।।
ब्रह्म एलनि विष्णु एलनि
शिवजी एलनि एहि गती।।
  *************

मैया आबि रहल...

मैया आबि रहल छथि हुनकर नुपूर रुनझुन बाजनि हे।
सिंह चढ़ल एक कमल विराजित ताहिपर खप्पर नेने हे।।

कारी केश हुनक अति सुन्दर धरती लोटनि हे।
रुण्ड-मुण्डसँ देह नुकौने रूप बनौने हे।।

अस्त्र-शस्त्र के धारण कयने खल-खल हँसथिन हे।
यैह थिकी काली दुर्गा तारा भगत उधारिनि हे।।

जय-जय अम्बे जय जगदम्बे जगत उधारिनि हे।
सेवक सब कलजोड़ि ठाढ़ छथि गोड़ लगै छथि हे।।
              *************

Saturday, 28 September 2013

हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

 
          हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल 

                                                     - अमलेन्दु शेखर पाठक 

जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर  रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।  
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मंदिर), जमुथरिक गोरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखंडक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि।
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि।
राष्टÑकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल   बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मंदिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मंदिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभम अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि।
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।
बहुत रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरीवस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि।
पोखरिक पेटमे इतिहास 
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि, मुदा ई सम्भव कोना हो? मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल सभ तँ उपेक्षाक दंश भोगैत हकन्न कानि रहल अछि।

समवेत जनशक्तिक प्रयोजन 
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भवना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब।
हम अपनो डेग बढ़ाबी 
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन   सकारात्मक प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ जरूरी घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि।
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वम मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि।
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि।



































हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

- अमलेन्दु शेखर पाठक
जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर  रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।  
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मंदिर), जमुथरिक गोरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम   विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखंडक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि।
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि।
राष्टÑकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मंदिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मंदिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभम अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि।
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।
बहुत रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरीवस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि।
पोखरिक पेटमे इतिहास
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि, मुदा ई सम्भव कोना हो? मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल सभ तँ उपेक्षाक दंश भोगैत हकन्न कानि रहल अछि।

समवेत जनशक्तिक प्रयोजन
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर   परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भवना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब।
हम अपनो डेग बढ़ाबी
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन सकारात्मक प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ जरूरी घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि।
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वम मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि।
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि।





































हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

- अमलेन्दु शेखर पाठक
जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर    रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।  
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मंदिर), जमुथरिक गोरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखंडक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि।
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि।
राष्टÑकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मंदिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मंदिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभम अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि।
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।
बहुत   रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरीवस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि।
पोखरिक पेटमे इतिहास
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि, मुदा ई सम्भव कोना हो? मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल सभ तँ उपेक्षाक दंश भोगैत हकन्न कानि रहल अछि।

समवेत जनशक्तिक प्रयोजन
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भवना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब।
हम अपनो डेग बढ़ाबी
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन सकारात्मक प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ जरूरी घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि।
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वम मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि।
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि।






































हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

- अमलेन्दु शेखर पाठक
जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम   धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर  रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।  
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मंदिर), जमुथरिक गोरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखंडक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि।
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि।
राष्टÑकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मंदिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी   ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मंदिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभम अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि।
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।
बहुत रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरीवस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि।
पोखरिक पेटमे इतिहास
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि, मुदा ई सम्भव कोना हो? मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल सभ तँ उपेक्षाक दंश भोगैत हकन्न कानि रहल अछि।

समवेत जनशक्तिक प्रयोजन
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भवना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब।
हम अपनो डेग बढ़ाबी
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन सकारात्मक प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ जरूरी घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त   पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि।
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वम मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि।
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि।





































हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

- अमलेन्दु शेखर पाठक
जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर  रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।  
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मंदिर), जमुथरिक गोरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखंडक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन   स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि।
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि।
राष्टÑकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मंदिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मंदिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभम अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि।
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।
बहुत रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरीवस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि।
पोखरिक पेटमे इतिहास
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि, मुदा ई सम्भव कोना हो? मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल सभ तँ उपेक्षाक दंश भोगैत हकन्न कानि रहल अछि।

समवेत जनशक्तिक प्रयोजन
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल   सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भवना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब।
हम अपनो डेग बढ़ाबी
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन सकारात्मक प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ जरूरी घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि।
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वम मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि।
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि।




































हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

- अमलेन्दु शेखर पाठक
जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर  रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश   द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।  
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मंदिर), जमुथरिक गोरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखंडक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि।
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि।
राष्टÑकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मंदिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मंदिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभम अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि।
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।
बहुत रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरीवस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र   सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि।
पोखरिक पेटमे इतिहास
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि, मुदा ई सम्भव कोना हो? मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल सभ तँ उपेक्षाक दंश भोगैत हकन्न कानि रहल अछि।

समवेत जनशक्तिक प्रयोजन
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भवना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब।
हम अपनो डेग बढ़ाबी
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन सकारात्मक प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ जरूरी घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि।
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वम मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि।
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि।