- अमलेन्दु शेखर पाठक
आउ झाड़ी फुलिया
‘रे बगुला तोहर घेँट किए टेढ़, बाबू वंशे टेढ़’, ई कहबी मिथिलावासीपर एकदम सटीक बैसैत अछि। खास कऽ मैथिलीक साहित्यकार लोकनिपर तँ एकदम्मे। से कोनो पीढ़ीक साहित्यकार होथु। अपवादकेँ छोड़ि दी तँ सभ मिथ्याभिमानमे घेँट टेढ़ केने। अपना आगाँमे आन ककरो मोजर देबा लेल तैयार नञि। सदिखन अपनासँ आनकेँ तुच्छ, हेय, अज्ञानी माननिहार। मिथिला-मैथिली लेल क्यौ पूरापूरी इमानदार नञि। सभक दोहरा चरित्र। ऊपरसँ किछु आ भीतरसँ किछु। तकरे परिणाम अछि जे देश-विदेशमे मिथिला-मैथिली सेवी संस्था सैकड़ोक संख्यामे सक्रिय अछि, मुदा प्राय: सभ लत्ती जकाँ कोनो ने कोनो व्यक्त्विक आलनपर चतरल-पसरल। एहन संगठनक घोर अभाव अछि जकर स्वरूप वटवृक्ष जकाँ हो, जकरा छाहरि तर साहित्य आ समाज सुस्ता सकय, जकरा मिथिलाक सभ जाति-धर्मक मैथिल एक स्वरसँ अपन प्रतिनिधि मानैत हो। तेँ आलन (व्यक्ति) हटिते संस्था-संगठन ओँघरा जाइत अछि आ अन्तत: सुखा जाइत अछि। से सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक किंवा साहित्यिक, जाहि कोनो दृष्टिञे देखी एहने परिस्थिति नजरि अबैत अछि। ‘सगर राति दीप जरय’ सेहो एही दिशामे डेग बढ़ायब शुरू कऽ देलक अछि प्राय: जे घोर चिन्ताक विषय अछि। ई संस्था नञि अछि, मुदा कोनो संस्थे जकाँ मैथिलीक विकासमे अपन महत्वपूर्ण अवदान दैत रहल अछि। ई मैथिलीमे कथा-लेखन आन्दोलन ठाढ़ केलक। अनेकोकेँ अवसर दऽ कथा-लेखनक क्षेत्रमे परिचिति बनेबाक सुअवसर देलक, मुदा एमहर किछु दिनसँ से गतिविधि आरम्भ भेल अछि जे ई अपनो परिचिति बचेने रहि सकत ताहिपर सन्देह अछि। जहिया मुजफ्फरपुरमे 21 जनवरी 1990 केँ पहिल बेर ‘सगर राति दीप जरय’ केर आयोजन प्रभास कुमार चौधरी केने छला तहिया किछु गोटे एकरा एक वर्ग विशेषक साहित्यकारक फ्रण्ट जकाँ मानने छला। एकर असलीहत जे रहल हो, मुदा अपन 23 बरखक जीवनमे नेपाल, मुम्बइ, कोलकाता, चेन्नइ, दिल्ली, झारखण्ड सहित मिथिलाक विभिन्न जिला मुख्यालय, अनुमण्डल मुख्यालय, प्रखण्ड मुख्यालय आ गामघरक यात्रा करैत ई सभ साहित्याकारकेँ कतहु ने कतहु अपना संग लेलक। से वर्ग विशेषक माननिहारोकेँ। सेहो तखन जखन एकर ने कोनो अध्यक्ष, ने सचिव, ने कोषाध्यक्ष, ने कतहु कोनो कार्यालय। तैयो एकर 80 गोट आयोजन भऽ गेल से कनेक टा उपलब्धि नञि अछि। मुदा, चिन्ता आ चिन्तनक प्रयोजनो अछि। कारण चाहे जे हो बहुत रास वरिष्ठ कथाकार आ समीक्षक एहिसँ अपनाकेँ कतिया लेलनि अछि। पछिला कतेक बरखसँ पं. गोविन्द झा, डॉ. सुरेश्वर झा, मोहन भारद्वाज, मंत्रेश्वर झा, डॉ. भीमनाथ झा, डॉ. रमाकान्त मिश्र, अशोक, डॉ. शिवशंकर श्रीनिवास आदि नियमित नञि रहि गेला अछि। एहन आरो बहुत रास नाम अछि जिनका लोकनिक स्थान बहुत रास एहन उत्साही भरलनि अछि जिनकर गतिविधि स्वयंभू अध्यक्ष, सचिव जकाँ भऽ रहल छनि। एहिसँ एकर स्वस्थ वातावरण नष्ट भऽ रहल अछि।आयोजनकेँ प्रभावी आ भाषा-साहित्य लेल उपादेय बनेबाक बदला आयोजनपर अपन प्रभाव आ ओकरा अपना लेल उपादेय बनेबाक चेष्टा भऽ रहल अछि। दू पाँती लिखि आन सभकेँ हीन बुझैत पाछाँ ठेलबाक चेष्टा कोनो नव नञि अछि, एना पहिनो होइत रहल अछि। ई विशेष चिन्ताक विषय नञि। कारण मकइ केर गाछ जकाँ जे हुहुआ कऽ बढ़ैत अछि ओ लगले सुखा सेहो जाइत अछि। बड़-पीपर नहु-नहु बढ़ैत अछि तँ दीर्घजीवी सेहो होइत अछि। चिन्ताक विषय अछि एकर गोलैसी दिस अग्रसर होयब। चिन्तन कऽ एहिपर विराम लगेबाक आवश्यकता अछि। एहिठाम जुटानिहार मात्र मैथिली आ मैथिली कथाक विकासक भावना लऽ जुटथि, सभमे सिखबाक आ सिखेबाक लौल हो, सभटा बाना उतारि सभ गोटे मात्र साहित्याकार भऽ रहथि, पुरनाक होश आ नवकाक जोश समवेत हो, तकर आवश्यकता अछि। प्रयोजन अछि सगर राति जरनिहार दीपपर लागि रहल फुलियाकेँ हटेबाक।